एक शहर में कुशल व्यापारी रहता था. शहर के राजा को उसके गुणों के बारे में पता था और इसलिए उसने उसे राज्य का प्रशासक बना दिया. कुछ दिनों बाद व्यापारी ने अपनी लड़की का विवाह तय किया. इस उपलक्ष्य में उसने एक बहुत बड़े भोज का आयोजन किया. भोज में राजमहल में झाड़ू लगानेवाला सेवक भी शामिल हुआ था, मगर वह गलती से ऐसी कुर्सी पर बैठ गया, जो राज परिवार के लिए नियत थी. यह देखकर व्यापारी को बहुत ही क्रोध आया और वो आग-बबूला हो गया. उसने सेवक को भोज से धक्के देकर बाहर निकलवा दिया.
सेवक को बड़ी शर्मिंदगी हुई और उसने अपने अपमान का बदला लेने की ठानी. मन ही मन उसने व्यापारी को सबक सिखाने की सोची. एक दिन सेवक राजा के कक्ष में झाड़ू लगा रहा था. उसने राजा को देखकर बड़बड़ाना शुरू किया, “व्यापारी की यह मजाल कि वह रानी के साथ दुर्व्यवहार करे.” यह सुनकर राजा के कान खड़े हो गए और उसने सेवक से पूछा, “क्या तुमने व्यापारी को दुर्व्यवहार करते देखा है?”
सेवक भी बहुत चतुर था, वो राजा के पैरों पर गिर गया और बोला, “मैं तो रातभर जुआ खेलता रहा और सो न सका, इसीलिए नींद में कुछ भी बड़बड़ा रहा हूं. मुझे माफ़ कर दीजिये.”
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राजा ने उस वक़्त तो कुछ नहीं कहा, लेकिन कहीं न कहीं उसके मन में शक का बीज तो बोया जा चुका था. राजा ने एक निर्णय लिया और व्यापारी के अधिकार कम कर दिए. महल में भी उसके घूमने पर पाबंदी लगा दी. अगले दिन जब व्यापारी ने महल में आने का प्रयास किया, तो उसे संतरियों ने रोक दिया. व्यापारी बहुत हैरान हुआ. तभी वहां खड़े उसी सेवक ने मज़े लेते हुए कहा, “संतरियों, जानते नहीं ये कौन हैं? ये बहुत प्रभावशाली हैं. ये चाहें तो तुम्हें बाहर भी फिंकवा सकते हैं, जैसे इन्होने अपने भोज में बहार फिंकवाया था.” सेवक के ताने सुनते ही व्यापारी को सारा माजरा समझते देर न लगी.
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व्यापारी चतुर तो था ही, उसने इस समस्या का हल खोज लिया और कुछ दिनों के बाद सेवक को अपने घर बुलाया, उसकी खूब आव-भगत की और उपहार भी दिए. उसके बाद बड़ी विनम्रता से भोजवाले दिन के अपने व्यव्हार के लिए क्षमा मांग ली. सेवक बहुत खुश हुआ और उसने कहा कि आप चिंता न करें, “मैं राजा से आपका खोया हुआ सम्मान ज़रूर वापस दिलाउंगा.”
अगले दिन राजा के कक्ष में झाड़ू लगाते हुआ वो फिर से बड़बड़ाने लगा “हे भगवान, हमारा राजा तो इतना मूर्ख है कि वह गुसलखाने में खीरे खाता है.” यह सुनकर राजा क्रोधित हो उठा और बोला, “मूर्ख, तुम्हारी ये हिम्मत? तुम अगर मेरे कक्ष के सेवक न होते, तो तुम्हें नौकरी से निकाल देता.” सेवक फिर से राजा के चरणों में गिर गया और दुबारा कभी न बड़बड़ाने की कसम खाई.
राजा ने भी सोचा कि जब यह मेरे बारे में इतनी गलत बातें बोल सकता है तो इसने व्यापारी के बारे में भी गलत बोला होगा, जिसकी वजह से मैंने उसे बेकार में दंड दिया. फिर क्या था, अगले दिन ही राजा ने व्यापारी को महल में उसकी खोयी प्रतिष्ठा वापस दिला दी.
सीख: इस कहानी से २ सीख मिलती हैं-
1. चाहे व्यक्ति बड़ा हो या छोटा, हमें हर किसी के साथ समान भाव से ही पेश आना चाहिए, क्यूंकि जैसा व्यव्हार आप खुद के साथ होना पसंद करेंगे वैसा ही व्यव्हार दूसरों के साथ भी करें.
2. दूसरी ये कि हमें सुनी-सुनाई बातों पर यकीन नहीं करना चाहिए. पूरी तरह जाँच-पड़ताल करके ही निर्णय लेना चाहिए.
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