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प्ले स्कूल फैशन, ट्रेंड या ज़रूरत?

ज़माने के साथ-साथ बच्चों की शिक्षा का स्तर और उनके स्कूल जाने की उम्र भी बदल गई है. पहले जहां 5 साल के बाद बच्चा स्कूल में पहला क़दम रखता था, अब वहीं डेढ़-दो साल की छोटी-सी उम्र में ही पैरेंट्स उसे प्ले स्कूल में भेज रहे हैं. आख़िर क्यों कर रहे हैं पैरेंट्स ऐसा?

 

बदलते ट्रेंड ने मटेरियल लाइफ को पूरी तरह बदल दिया है. अच्छा, सबसे अच्छा बनने की चाह में आज माता-पिता ख़ुद के साथ अपने बच्चों को भी रेस में सबसे आगे निकालने के लिए प्रयासरत हैं. तहज़ीब, बात करने का ढंग, पढ़ाई में अव्वल होने के लिए वो अब स्कूल तक के समय का इंतज़ार नहीं कर रहे हैं. डेढ़ साल की उम्र में ही वो अपने बच्चे को प्ले स्कूल में डाल रहे हैं. प्ले स्कूल के बढ़ते फैशन के कारण कई पैरेंट्स दूसरों की देखा-देखी भी अपने बच्चे को प्ले स्कूल में भेजने लगते हैं. क्या प्ले स्कूल वाक़ई बच्चों के लिए फ़ायदेमंद है? आइए, जानने की कोशिश करते हैं.

फ़ायदे

* सामाजिक बनते हैं

चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट अंशु कुलकर्णी के अनुसार, “स्कूल के पहले प्ले स्कूल में बच्चों का एडमिशन कराने से वो सामाजिक बनते हैं. बहुत से बच्चे ऐसे होते हैं, जो घर के लोगों के अलावा बाहरी लोगों से बात करने में हिचकिचाते हैं. दूसरों से डरते हैं. प्ले स्कूल में जाने से वो दूसरे बच्चों और टीचर के संपर्क में आते हैं, जिससे धीरे-धीरे उनकी हिचक दूर हो जाती है.”

* शेयरिंग

घर में प्यार-दुलार की वजह से बच्चे अपनी चीज़ों के इतने आदी हो जाते हैं कि किसी दूसरे के छूने मात्र से वो रोना या चिल्लाना शुरू कर देते हैं. प्ले स्कूल में एक ही खिलौने से कई बच्चों को खेलते देख और एक ही झूले पर बारी-बारी से दूसरे बच्चों को झूलते देख उनमें समझदारी और शेयरिंग की भावना विकसित होती है.

* स्कूल जाने में मदद

3 साल तक आपके साथ रहने से बच्चे को आपकी और परिवार की आदत हो जाती है. ऐसे में जब पहली बार उसे आप स्कूल के गेट तक छोड़ने जाती हैं, तो वो आपको छोड़ना नहीं चाहता. आपसे दूर जाने पर वो बहुत रोता है. आपकी दशा भी कुछ ऐसी ही होती है. ऐसे में शुरुआत से ही जब बच्चा आपसे कुछ घंटे ही सही, दूर रहने लगता है, तो वो सेपरेशन ब्लू यानी आपसे दूर जाने की बात को आसानी से सह लेता है.

* क्विक लर्नर

कम उम्र में ही प्ले स्कूल में जाने से बच्चे में सीखने की प्रवृत्ति बढ़ती है. टीचर द्वारा सिखाए पोएम को वो बार-बार दोहराता है. इससे उसका आधार मज़बूत होता है. स्कूल जाने के बाद उसे चीज़ों को समझने में आसानी होती है.

* पैरेंट्स भी यूज़ टू होते हैं

फर्स्ट टाइम पैरेंट्स बने कपल्स के लिए स्कूल में बच्चे के एडमिशन से लेकर उसे स्कूल भेजने तक का काम किसी चुनौती से कम नहीं होता. बच्चे के साथ उनके लिए भी ये नया अनुभव होता है. ऐसे में कई बार ख़ुद पैरेंट्स ही बच्चों से दूर जाने पर रोने लगते हैं, तो कई स्कूल सही समय पर नहीं पहुंच पाते. प्ले स्कूल के ज़रिए उन्हें स्कूल के नियम-क़ानून को समझने में मदद मिलती है.

नुक़सान

प्ले स्कूल के बहुत से फ़ायदों के साथ कुछ नुक़सान भी हैं.
  सही माहौल न मिलने की वजह से बच्चा ख़ुद को वहां एडजस्ट नहीं कर पाता और रोता है.
  प्ले स्कूल के बढ़ते क्रेज़ की वजह से कई बार मिडल क्लास फैमिली को न चाहते हुए भी स्कूल के पहले से ही आर्थिक तंगी का तनाव झेलना पड़ता है.
  स्कूलवाली ज़िम्मेदारी प्ले स्कूल से ही पैरेंट्स को उठानी पड़ती है, जैसे- सही समय पर बच्चे को स्कूल छोड़ना, स्कूल थीम के अनुसार उसे ड्रेसअप करना, स्कूल के नियम मानना आदि.
  कम उम्र में ही पैरेंट्स से दूर रहने की आदत बच्चे के कोमल मन को प्रभावित करती है.

होममेकर सुषमा विश्‍वकर्मा की प्ले स्कूल के बारे में अपनी राय है. सुषमा कहती हैं, “प्ले स्कूल एक अच्छा ज़रिया है बच्चों को सोशल बनाने का. मैंने अपनी 2 साल की बेटी आरवी को तब प्ले स्कूल में डाला जब वो डेढ़ साल की थी. प्ले ग्रुप कोई स्कूल नहीं है. वहां बच्चे एंजॉय करते हैं. ख़ुद मैंने भी जाकर देखा है. जिस तरह वहां बच्चों को ट्रीट किया जाता है, वो बहुत अच्छा लगता है. मेरी बेटी वहां जाकर एंजॉय करती है और जब वो लौटते समय अपनी टूटी-फूटी भाषा में कोई पोएम गुनगुनाती है, तो बहुत अच्छा लगता है. प्ले स्कूल जाने की आदत से अब वो स्कूल जाने में मुझे परेशान नहीं करेगी. मेरा एक और बेबी है. इसकी वजह से मैंने अपनी बच्ची को जल्दी ही प्ले स्कूल में डाल दिया, क्योंकि मैं उसको क्वालिटी टाइम नहीं दे पाती थी. दूसरा बेबी नहीं होता तो मैं अपनी बेटी को 2 साल की उम्र में प्ले स्कूल में डालती, लेकिन भेजती ज़रूर.”

 

मुंबई में रहनेवाली पेशे से टीचर माला सिंह कहती हैं, “प्ले स्कूल की ज़रूरत मैंने अपने 3 साल के बेटे लक्ष्य के लिए कभी महसूस नहीं की. मुझे ऐसा लगता है कि बच्चों को हम घर में जो कुछ सिखा सकते हैं, वो प्ले स्कूलवाले नहीं सिखाते. शुरुआत के यही तीन साल होते हैं जब पूरा दिन बच्चा परिवार के साथ समय बिताता है. कुछ लोग तो बच्चों से पीछा छुड़ाने के लिए ही उन्हें प्ले स्कूल में डालते हैं. उन्हें ऐसा लगता है कि कुछ समय के लिए ही सही वो बच्चे की ज़िम्मेदारी से दूर रहेंगे.”
क्या ज़रूरी है प्ले स्कूल?
अपने आसपास के लोगों के बच्चे को प्ले स्कूल में जाते देख बहुत से माता-पिता के मन में ये बात आती है कि क्या वाक़ई स्कूल से पहले प्ले स्कूल में दाख़िला करवाना ज़रूरी है? जानकारों की मानें, तो प्ले स्कूल में दाख़िला करवाने का हर माता-पिता का अपना विचार और रुचि है. ज़रूरी नहीं कि स्कूल से पहले प्ले स्कूल में बच्चे को भेजा ही जाए. घर में बच्चे को क्वालिटी टाइम देकर आप उसे वो सारी चीज़ें सिखा सकती हैं, जो बच्चा प्ले स्कूल में सीखता है. अतः सबसे पहले अपनी स्थिति को परख लें. अपनी सुविधानुसार ही कोई निर्णय लें. दबाव में आकर या दूसरों की देखा-देखी में अपने बच्चे को प्ले स्कूल में न भेजें.
– श्‍वेता सिंह
Meri Saheli Team

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