निमोनिया वैसे तो हर उम्र के लोगों के लिए ख़तरा होती है लेकिन इसका आक्रमण छोटे बच्चों, ख़ासकर नवजात शिशु से लेकर पांच साल के बच्चों को सबसे ज़्यादा होता है. यह बीमारी क़रीब-क़रीब हर मिनट देश के एक भविष्य को मौत की नींद सुला देती है. सबसे अहम् निमोनिया भारत में सर्दियों में विकराल रूप धारण कर लेती है. लिहाज़ा, ज़रूरत है वक़्त रहते चौकस होने की ताकि ढेर सारे नौनिहालों को इसकी भेंट चढ़ने से बचाया जा सके.
कैसे होता है निमोनिया ?
दरअसल, निमोनिया एक संक्रमण बीमारी है. हवा में मौजूद बैक्टीरिया और वायरस सांस के ज़रिए फेफड़ों में पहुंच कर उसे संक्रमित कर देते हैं. कई बार फंफूद की वजह से भी संक्रमण हो जाता है. लंग डिसीज़ या हार्ट डिसीज़ से पीड़ित व्यक्तियों को सीवियर निमोनिया होने का खतरा हमेशा रहता है. अब इसका इलाज संभव हो गया है. किसी क्वालिफाइड डॉक्टर से एंटीबॉयोटिक दवा लेकर निमोनिया से पूरी तरह मुक्त हुआ जा सकता है. आमतौर पर बैक्टीरिया जनित निमोनिया से पीड़ित मरीज़ दो से चार सप्ताह में ठीक हो जाता है. मगर वायरल जनित निमोनिया से पीड़ित मरीज़ के ठीक होने में ज़्यादा वक़्त लगता है. मरीज़ को तेल, मसालेदार और बाहर के खाने का परहेज करना चाहिए. पानी खूब पीना चाहिए.
निमोनिया के लक्षण
अगर आपके बच्चे को 103 या 104 डिग्री फारेनहाइट तक बुख़ार है? उसे सर्दी भी लग रही है. शरीर भी ठंडा पड़ रहा है? उसे खांसी के साथ भी है, सीने में दर्द भी है. वह सांस लेने में कठिनाई महसूस कर रहा है? तो उसे शर्तिया निमोनिया बुख़ार है, क्योंकि ये तमाम लक्षण निमोनिया के ही हैं. ज़रूरत है फ़ौरन अलर्ट होने की, क्योंकि अपने देश में 4.30 करोड़ लोग निमोनिया से ग्रस्त हैं.
हर घंटे 45 बच्चे तोड़ते हैं दम
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइज़ेशन की रिपोर्ट के
मुताबिक़ भारत में निमोनिया से हर
घंटे 45 से ज़्यादा बच्चों की
मौत हो जाती है.
निमोनिया के कारण
टीका, उचित पौष्टिक आहार
और पर्यावरण की स्वच्छता
के ज़रिए निमोनिया की
रोकाथाम संभव है.
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