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श्रद्धांजलि! कौन थीं ‘शूटर दादी’...
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श्रद्धांजलि! कौन थीं ‘शूटर दादी’ चंद्रो तोमर, जिन्होंने 60 की उम्र में निशानेबाजी शुरू कर जीते कई मेडल्स (RIP: Who was Shooter Dadi Chandro Tomar, Who Her Career In Her 60s And Won Many Medals)

दुनिया की सबसे उम्रदराज निशानेबाज, महिलाओं को खुलकर जीने, पुरूष प्रधान समाज में अपनी अलग पहचान बनाने की प्रेरणा देनेवाली ‘शूटर दादी’ चंद्रो तोमर अब नहीं रहीं. कोरोना संक्रमण की वजह से कल यानी 30 अप्रैल को उनका निधन हो गया. लेकिन उनकी सफलता की कहानी सैकड़ों लोगों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत थी और हमेशा रहेगी. चंद्रो दादी भले ही हमारे बीच न हों, लेकिन उनके किस्से हमेशा हमारे साथ रहेंगे. आइये जानते हैं शूटर दादी के जीवन से जुड़ी कुछ ज़रूरी बातें.
परिवार में औरतों के लिए थे कड़े नियम-कायदे
‘शूटर दादी’ का जन्म शामली के गांव मखमूलपुर में 1 जनवरी, 1932 को हुआ. 16 साल की उम्र में ही जौहड़ी के किसान भंवर सिंह से उनकी शादी हो गई. वो एक जॉइंट फैमिली में रहती थीं, जहां औरतों के लिए कड़े नियम कायदे थे और उन्हें उन नियम कायदों का पालन करना भी पड़ता था.
दूसरी लड़कियों की तरह चंद्रो तोमर को भी बचपन से घर के काम-काज करना सिखाया गया, लेकिन शायद भाग्य ने उनके लिए कुछ अलग ही सोच रखा था. वो औरतों के लिए खुलकर जीने का और इस मेल डोमिनेटेड सोसाइटी से मुक्त होने का नया तरीका तलाशना चाहती थीं.
खेल-खेल में सीखी शूटिंग
उम्र के जिस पड़ाव पर लोग रुक जाते हैं, दादी ने वहां से नई जिंदगी की शुरुआत की. खेल खेल में ही सही पर उन्होंने रूढ़िवादी सोच पर ऐसा निशाना लगाया कि महिलाओं के लिए मिसाल बन गईं. दरअसल हुआ यूं कि चंद्रो अपनी लाडली पौत्री शेफाली तोमर को निशानेबाजी सिखाने के लिए उसे शूटिंग रेंज ले गईं. उस वक्त उनकी उम्र 68 साल थी. लेकिन शेफाली को रेंज पर गन देखकर डर लगा. शेफाली की हिम्मत बढ़ाने के लिए चंद्रो ने गन उठाई. और गोले पर निशाना लगा दिया, पहला निशाना ही सीधा जाकर 10 नंबर पर लगा. बस यहीं से शुरू हुआ चंद्रो तोमर की निशानेबाजी का सफर.
पानी का जग घंटे भर थामकर प्रैक्टिस
चंद्रो जानती थीं कि उनकी फैमिली के पुरुष उन्हें सपोर्ट नहीं करेंगे. रोक-टोक लगाई जाएगी. इसलिए उन्होंने सबसे छिपकर शूटिंग रेंज पर जाना शुरू किया. गन बहुत भारी होती थी और एक हाथ को सीधा रखकर गन पकड़ना होता था. इसके लिए हाथों में पावर होना चाहिए, ताकि बैलेंस बन सके. हाथों की ताकत बढ़ाने के लिए भी दादी ने तरीका ढूंढ़ लिया. वो एक जग में पानी भर लेतीं, और फिर उसे सीधा पकड़कर करीब एक घंटे तक खड़ी रहतीं. ये सब ज़्यादातर वो रात में सबके सोने के बाद ही करती थीं, ताकि कोई देखने न पाए. इसी तरह चंद्रो प्रैक्टिस करती रहीं और निशानेबाजी में माहिर हो गईं.
पहली बार न्यूजपेपर में फ़ोटो छपी तो न्यूजपेपर ही छिपा दिया
इसके बाद चंद्रो कॉम्पिटिशन्स में भी पार्ट लेने लगीं. पहले कॉम्पिटिशन में उन्होंने सिल्वर मेडल तो अखबार में फोटोज छपीं. लेकिन उन्होंने अखबार ही छिपा दिया, ताकि घरवाले देख न सकें. लेकिन बाद में हिम्मत करके उन्होंने अखबार दिखा दिया और इस तरह पहले घर वालों को और फिर गांव के सामने चंद्रो का भेद खुल गया.
गांव वाले ताना मारते थे, मज़ाक उड़ाते थे
जब परिवार-गांव में लोगों को चंद्रो के शूटिंग टैलेंट के बारे में पता चला, उन्होंने ताने मारने शुरू कर दिए. सब कहते ‘पोता-पोती खिलाने की उम्र में ये क्या कर रही हो…. आर्मी में जाने का इरादा है क्या…’ सब कुछ इतना आसान नहीम था. घर और बाहर वालों के ताने कलेजे में तीर से चुभते थे पर चंद्रो ने कान बंद कर लिए और पूरी लगन के साथ लक्ष्य भेदने में लगी रहीं. एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था, “घर में सब इसके (शूटिंग) खिलाफ थे परंतु मैं कान बंद करके लगी रहती. सहनशक्ति बड़ी चीज होती है. मुझे यह दिखाकर साबित करना था कि एक औरत भी सब कुछ कर सकती है. जो लोग मेरा उपहास उड़ाया करते थे, बाद में वही लोग मेरी तारीफ करने लगे.”
देवरानी प्रकाशी के लिए भी बनी प्रेरणा
चंद्रो की देवरानी प्रकाशी भी कमाल की शूटर हैं. चंद्रो उनके लिए भी प्रेरणा बनीं और वो भी रेंज पर जाने लगीं, निशानेबाज़ी करने. प्रकाशी कहती हैं, ‘लगन और हिम्मत के आगे, उम्र कोई चीज ही नहीं है. लगन, हिम्मत इतनी करी कि बुढ़ापा चला गया और जवानी आ गई.’ वहीं शूटर दादी चंद्रो कहती थीं, ‘शरीर बूढ़ा होता है, मन नहीं.’
इन दोनों शूटर दादियों ने कई सारे कॉम्पिटिशन्स में हिस्सा लेकर ढेर सारे मेडल जीते हैं. जौहड़ी गांव में लड़कियों को वो निशानेबाजी भी सिखाती थीं. इन्हीं लड़कियों ने चंद्रो को शूटर दादी नाम दिया था.
शूटर दादी के जीवन पर आधारित है फ़िल्म ‘सांड़ की आँख’
शूटर दादी’ चंद्रो तोमर और प्रकाशो तोमर पर एक फिल्म भी बनी ‘सांड़ की आँख‘. इस फिल्म में अभिनेत्री तापसी पन्नू और भूमि पेडनेकर शूटर दादियों की भूमिका निभाई थी. इस फिल्म में दिखाया गया था कि किस तरह चंद्रो तोमर ने परिवार और समाज से संघर्ष कर यह मुकाम हासिल किया और कैसे दो दादियां गांव के अनपढ़ समाज से होकर भी इतनी मशहूर हो गईं.
खैर शूटर दादी चंद्रो तोमर का 89 साल की उम्र में 30 अप्रैल को निधन हो गया. लेकिन वो सभी के लिए हमेशा प्रेरणा बनी रहेंगी. उनके निधन पर देश के हर कोने से लोगों ने शोक व्यक्त किया. अक्षय कुमार, तापसी पन्नू, भूमि पेंडणेकर आदि कई फिल्मी सितारों और हस्तियों ने भी उन्हें श्रद्धांजलि दी.