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विज्ञान कथा- जुंग (Science Fiction- Jung)

“क्यों विनोद, चौंक क्यों गए?”
“जुंग भाग गया!”
“क्या? प्रोफेसर भार्गव का मुंह खुला का खुला ही रह गया. जुंग के भाग जाने का कारण सुनकर मामाजी और प्रोफेसर के भी आश्चर्य का ठिकाना नहीं था. उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि यह कैसे संभव है.

“मम्मी, देखो मैं क्या लाया?” मयंक ने स्कूल से आते ही कहा. उसके हाथों में सहमा-सिमटा एक पिल्ला था.
मम्मी बोली, “अरे, यह तो बहुत प्यारा है. कहां से ले आए?”
“राजन के यहां से. उसके यहां तो और भी पिल्ले हैं. मम्मी क्यों न इसे पाल लें. इतना सुंदर और प्यारा पिल्ला और किसी के पास नहीं होगा.” मयंक ने मचलते हुए कहा.
“हां, लेकिन पहले कंप्यूटर इसकी जांच करेगा.”
“ओह! बीच में यह कंप्यूटर क्यों आ पड़ता है ? पिछली बार भी मैं बिल्ली का बच्चा लाया था, तो इसने मना कर दिया था.” मयंक ने झल्लाते हुए कहा.
मम्मी प्यार से समझाते हुए बोली, “बेटे, वह बीमार थी. अगर यह स्वस्थ होगा, तो हम इसे पालेंगे.”
आज मयंक ख़ुश था. एक तो पापा की अनुमति मिल गई थी और कंप्यूटर की जांच में पिल्ला सफल भी हो गया था. कंप्यूटर ने उसे नाम दिया था- ‘जुंग.’
अब जुंग घर में एक सदस्य की तरह रहने लगा. मयंक उसका हर तरह से ख़्याल रखता. स्कूल से आता, तो सबसे पहले जुंग को खोजता. जुंग भी उसकी हर बात मानता. मयंक के खाने-पीने, सोने-जागने, उठने-बैठने प्रत्येक क्रियाकलाप में जुंग की भी भागीदारी होती. उसकी जुंग के साथ इतनी घनिष्टता देखकर कभी-कभी पापा टोक देते, लेकिन इससे उसे कोई फर्क़ नहीं पड़ता.
एक दिन स्कूल से आते ही उसने मम्मी से कहा, “मम्मी, हम लोग भूगोल की टीचर के साथ टूर पर जा रहें हैं, इसलिए वे शाम को आपसे बात करने घर पर आएंगी. प्लीज़, आप उनसे कहो न कि वे जुंग को भी साथ ले जाने दे.”
“अच्छा ठीक है, देखूंगी.” मम्मी बोली.
मयंक जुंग के साथ खेलने लगा.
शाम को टीचर घर आई, तो मम्मी ने कहा, “मयंक तो जुंग को भी साथ ले जाने की ज़िद कर रहा है.”
“नहीं, यह संभव नहीं है.” टीचर ने कहा.
“हम लोग पंद्रह दिनों के लिए टूर पर जा रहे हैं. अगर सभी बच्चे इसकी तरह ज़िद करने लगे तो?”
मम्मी ने भी फिर कुछ नहीं कहा. मयंक भी अपनी तैयारी में जुट गया. पापा के दफ़्तर से आते ही मयंक बोला, ‘पापा, मैं टीचर के साथ टूर पर जा रहा हूं. जुंग का ख़्याल रखिएगा.” जवाब में पापा मुस्कुराए. सुबह-सुबह मयंक को लेने गाड़ी आ गई. मयंक ने जाते-जाते फिर कहा, “मम्मी, जुंग पर नज़र रखना. बाय-बाय मम्मी-पापा.”
“हां, हां, ख़्याल रखेंगे. बाय.” मम्मी हाथ हिलाते हुए बोली. तब तक गाड़ी भी दूर जा चुकी थी. मम्मी-पापा अंदर आ गए.

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मयंक के चले जाने के बाद जुंग उसे रातभर खोजता रहा. उसने रात को खाना भी नहीं खाया. बस, कूं कूं… करता रहा. कभी इस कमरे में जाता, तो कभी उस कमरे में. उसकी बेचैनी देख मम्मी पापा से बोली, “जब से मयंक गया है, यह खाना-पीना छोड़ कूं-कूं… करता रहता है.”
“एक-दो दिन में यह ठीक हो जाएगा.” पापा ने कंप्यूटर पर काम करते हुए उत्तर दिया.
लेकिन जुंग ने अगले दिन भी कुछ नहीं खाया. सारा दिन एक कोने में दुबका बैठा रहा. मम्मी अपना काम करने लगी. शाम को पापा जैसे ही घर आए मम्मी ने घबराए हुए स्वर में कहा, “जुंग घर में नहीं है.”
“कब से?” पापा ने पूछा.
“पता नहीं, मैं तो उधर अपना काम कर रही थी.” मम्मी बोली.
पापा ने घर का कोना-कोना छान मारा, लेकिन जुंग कहीं नहीं था. पास-पड़ोस में भी जुंग का कोई पता नहीं था. पापा ने थाने में रपट लिखवा दी. इस थाने में केवल खोए हुए जीव-जंतुओं की खोज की जाती थी. यह थाना पालतू पशु-पक्षियों के लिए समर्पित था.
आज रविवार था. मम्मी-पापा उदास बैठे थे. थाने से ख़बर भी आ गई थी. जुंग सड़क पर दौड़ते हुए एक वाहन के नीचे आ गया था. मम्मी ने चुप्पी तोड़ी, “मयंक से क्या कहेंगे? उसे संभालना मुश्किल हो जाएगा.” तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई। पापा ने उठ कर दरवाज़ा खोला. सामने मयंक के मामाजी खड़े थे. मामाजी को देखकर मम्मी बहुत ख़ुश हुईं.
“मयंक नहीं है क्या?” मामाजी ने सबसे पहले पूछा.
“नहीं वह स्कूल की ओर से टूर पर गया है ” पापा बोले। मामाजी स्नान आदि से निवृत हो गए, तो पापा ने पूछा, ‘तुम्हें कोई नौकरी मिली या नहीं?”
“हां, हैदराबाद में हूं. वहां एक रोबो कंपनी में कार्यरत हूं. कोई छह महीने हो गए.” फिर कुछ देर रूक कर मामाजी ने पूछा, “क्या बात है जीजाजी? दीदी का चेहरा सूख-सा गया है. आप भी थोड़े-थोड़े उदास दिख रहे हैं.” पापा ने पिछले दिनों की सारी घटना बताई.
मम्मी ने कहा, “अगर वैसा ही पिल्ला फिर से आ जाएगा, तो क्या कुछ बात बन सकती है.”
“लेकिन वह जुंग की तरह नहीं कर पाएगा और फिर उसी रंग-रूप का पिल्ला खोजना आसान भी तो नहीं.” पापा ने कहा.
“हां सचमुच.” मामाजी ने समर्थन किया.
मम्मी ने पापा और मामाजी को भोजन तैयार हो जाने की सूचना दी.
“मैंने उपाय खोज लिया है.” शाम को मामाजी ने पापा से कहा. मम्मी भी वहीं बैठी थीं.
पापा ने पूछा, “कैसा उपाय?”
“मेरे एक सीनियर मित्र वैज्ञानिक हैं. वे भी उसी कंपनी में एक उच्च पद पर कार्यरत हैं. अगर जुंग के हाव-भाव से मिलता-जुलता एक रोबो डाॅग ले आएं तो.” मामाजी ने मम्मी की तरफ़ देखते हुए कहा.
“क्या यह संभव है?”
“हां, क्यों नहीं. भारत रोबोटिक्स कंपनी लिमिटेड कई तरह के खिलौने भी बनाती है. अगर हम जुंग की तस्वीर और हाव-भाव, चरित्र संबंधी बातें वहां भेज दें, तो संभव है जुंग का प्रतिरूप तैयार हो जाएगा.”
“क्या पहले भी कंपनी ऐसा कर चुकी है?” पापा ने हैरानी से पूछा.
“नहीं, पर मेरे मित्र ने एक बार कहा था कि यह संभव हैै. जुंग की तस्वीर तो होगी ही. आप मुझे उसकी क्रियाकलाप और चाल-ढाल संबंधी कुछ महत्वपूर्ण बातें बता दें. मैं प्रोेफसर भार्गव को ईमेल पर संदेश दे देता हूं.” मामाजी ने कहा.
पापा ने जुंग संबंधी सारी रिपोर्ट उन्हें सौंप दी. मामाजी ने कहा, “आप निश्चिंत रहिए. जुंग का प्रतिरूप उससे थोड़ा भी भिन्न नहीं होगा.”
मयंक को गए तेरह दिन हो चुके थे. मामाजी जा चुके थे. मम्मी-पापा को डर था पता नहीं नया जुंग आएगा भी या नहीं. तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई.
पापा ने दरवाज़ा खोला. सामने एक व्यक्ति अपने हाथों में जुंग को लिए खड़ा था. पापा ने जुंग को ले लिया, तो वह व्यक्ति भी लौट गया. तब तक मम्मी भी आ गई.
“विश्वास नहीं होता, यह मशीन है. इसे ऑन तो कीजिए.” मम्मी जल्दी से बोली.
पापा ने जुंग को सक्रिय किया, तो वह सभी कमरों में बारी-बारी से गया और उसके बाद पापा का पैर चाटने लगा. मम्मी के आश्चर्य का ठिकाना नहीं था.
मम्मी जुंग से बोली, “मयंक के कमरे से उसकी पतलून ले आओ.” जुंग मयंक की पतलून ले आया. नया जुंग बिल्कुल पुराने जुंग की तरह व्यवहार कर रहा था. दो दिनों में ही मम्मी-पापा यह भी भूल गए कि जुंग मर चुका है. पंद्रह दिन बीत गए. मयंक प्रवास से लौट आया.
“मम्मी, मज़ा आ गया. जुंग कहां है?” मयंक ने आते ही पूछा.
“और तुम्हारी पतलून कौन कुतर रहा है?” मम्मी हंसते हुए बोली. मयंक ने, “अरे…” कहते हुए जुंग को गोद में उठा लिया.
“कितना शैतान हो गया है यह पापा.” मयंक ने पापा से शिकायत की.
पापा जवाब में मुस्कुराए. उन्हें सचमुच आश्चर्य हो रहा था. मयंक भी धोखा खा गया था. मयंक जुंग को लेकर अपने कमरे में चला गया.
“मंयक अगर असलियत जान गया तो?” मम्मी संदेह प्रकट करते हुए बोली.

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“नहीं ऐसा नहीं होगा. जुंग की बैटरी एक वर्ष तक काम करेगी और फिर उसका स्विच भी गुप्त स्थान पर है.” पापा ने मम्मी को आश्वस्त किया.
मयंक के कमरे में मम्मी ने झांका. वह जुंग के साथ खेलने में व्यस्त था. मम्मी निश्चिंत हो गई. पापा दफ़्तर चले गए.
“मम्मी, मम्मी… देखो न जुंग को क्या हो गया.” मयंक चिल्लाते हुए मम्मी के कमरे में आया.
मयंक ने कहा, “देखो न, मैं इसे टाॅफी खिला रहा हूं, तो यह नहीं खा रहा है. मैंने इसके मुंह में तीन टाॅफियां डालीं, लेकिन यह उगल देता है. मम्मी, ऐसे क्यों कर रहा है?”
“अरे, इसे कुछ नहीं हुआ है बेटे. जब तू सोया था न, तब मैंने इसे खिला दिया था.” मम्मी बोली. वह ख़ुद असमंजस में थी. उसने इस समस्या पर गौर किया ही नहीं था.
“ओह! तो तुम्हें पहले बताना चाहिए था न.” मयंक जुंग को गोद में उठाते हुए बोला. जुंग भी उसके चेहरे को देख रहा था और उसकी शर्ट की काॅलर से खेल रहा था. मम्मी उस अद्भुत मशीनी जीव को देख और भी अचरज में थी. मयंक जुंग को छोड़ अपने अध्ययन कक्ष में चला गया.
शाम को पापा घर आए, तो मम्मी बोली, “अद्भुत मशीनी जीव है यह! लगता ही नहीं कि यह एक यंत्र मात्र है. मयंक जो कहता है, वही करता है. इसका व्यवहार भी जुंग की तरह ही है, लेकिन आज तो एक अजीब बात हो गई.”
“क्या?”
“मयंक इसे खिलाने की कोशिश कर रहा था.”
मम्मी की बात सुन पापा चौंके, “ओह! यह तो हम लोगों ने सोचा ही नहीं था. मयंक को इससे धीरे-धीरे दूर करने का प्रयास करो.”
फिर मयंक को बुलाकर कहा, “बेटे, जुंग का हाजमा ख़राब है. उसे इधर-उधर की चीज़ें मत देना.”
“ठीक है पापा.”मयंक ने कहा.
एक दिन शाम को पापा-मम्मी किसी मित्र के यहां घूमने गए. मयंक जुंग के साथ घर में ही रह गया. उन लोगों को घर से निकले तीन घंटे हो चुके थे.
“अब चलना चाहिए. मयंक घर में अकेला होगा.” मम्मी पापा से बोली.
वे लोग चलने को तैयार हुए ही थे कि एक नौकर ने आकर कहा, “साहब, आपका फोन.” पापा ने चोंगा कान से लगाया. उधर से मयंक की आवाज़ आई, “पापा, जुंग भाग गया.” पापा भौंचक्के रह गए. जुंग भाग गया. भला मशीन भी भाग सकती है. मम्मी ने सुना, तो वह भी चौंक गई.
वे लोग जल्दी-जल्दी घर लौटे.
मयंक ने रोते हुए कहा, “पापा, जुंग घर छोड़कर भाग गया.”
“कैसे भाग गया?” पापा ने पूछा.
°जब मुझे भूख लगी, तो मेरे मन में ख़्याल आया कि जुंग भी तो भूखा होगा. मैंने उसे खिलाने की बहुत कोशिश की, लेकिन उसने नहीं खाया. तब मैंने उसे डांटते हुए कहा कि मम्मी खिलाती है, तो खा लेता है और मुझसे नहीं खाता. भागो यहां से.”
फिर मयंक ने रोते हुए कहा, “पापा, जुंग भाग गया.” पापा का मुंह आश्चर्य से खुला रह गया.
मम्मी धीरे से बोली, “एक मशीनी जीव को बात लग सकती है?”
“रो नहीं बेटे, हम उसे खोज लाएंगे.” पापा ने मयंक के आंसू पोछते हुए कहा. मयंक अपने कमरे में चला गया. पापा ने मामाजी को ख़बर दी.
हैदराबाद में मामाजी अपने मित्र प्रोफेसर भार्गव के साथ बातचीत कर रहे थे. ख़बर सुन मामाजी चौंके, तो प्रोफेसर भार्गव ने पूछा, “क्यों विनोद, चौंक क्यों गए?”
“जुंग भाग गया!”
“क्या? प्रोफेसर भार्गव का मुंह खुला का खुला ही रह गया. जुंग के भाग जाने का कारण सुनकर मामाजी और प्रोफेसर के भी आश्चर्य का ठिकाना नहीं था. उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि यह कैसे संभव है. अचानक प्रोफेसर भार्गव के मन में एक विचार कौंधा, “ओह! अब समझा विनोद, जुंग का भाग जाना एक साधारण-सी बात है.”
“कैसे?”
“अपनी कंपनी तो केवल रोबो और खिलौने बनाती है. जुंग तो एक जीवधरी की नकल मात्र था. उसके कंप्यूटर के चिप में केवल वही निर्देश फीड किए गए थे, जो उस पिल्ले के स्वभाव और कार्यकलापों से संबंधित थे. जुंग की एक महत्वपूर्ण विशेषता थी-आज्ञाकारिता. मयंक तो संवेदनशील है, लेकिन मशीनी जीव को इससे क्या मतलब. उसने डांटकर कहा भाग जाओ. जुंग के लिए यह डांट भी आज्ञा थी. अपने जीजाजी को ख़बर कर दो. बेचारे परेशान हो रहे होंगे.” प्रोेफसर भार्गव ने कहा. मामाजी ने पापा को सूचना दे दी.
यह जानकर मम्मी-पापा की शंका दूर हो गई. वे दोनों मयंक के कमरे में गए मम्मी प्यार से बोली, “उदास मत हो बेटे. हम नया जुंग ले आएंगे.”
“अगर वह भी भाग गया तो?” मयंक रूआंसा होकर बोला. अब उसे कौन समझाए कि उसका जुंग भागा नहीं था. वह तो..!

देवांशु वत्स

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Photo Courtesy: Freepik

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Usha Gupta

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