आज के पढ़े-लिखे मॉडर्न पैरेंट्स भले ही अपने बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार रखने का दावा करें, लेकिन सेक्स जैसे मुद्दे पर बच्चों के साथ बात करते हुए उनकी ज़ुबान लड़खड़ाने लगती है. बच्चे के सेक्स से जुड़े किसी भी सवाल का जवाब देने में वो आज भी हिचकिचाते हैं. सेक्स जैसे ज़रूरी मुद्दे पर अपने बच्चों से बात करते हुए क्यों झिझकते हैं पैरेंट्स?
टैबू है सेक्स
मॉडर्न होने का दंभ भरने वाले आज के शिक्षित अभिभावक भी बच्चों के मुंह से सेक्स शब्द सुनकर झेप जाते हैं. एक जानी मानी मीडिया ग्रुप से जुड़ी कविता कहती हैं, “मेरे 10 साल के बेटे ने जब अखबार में छपे सेक्स शब्द को देखकर पूछा ‘मम्मा, SEX का क्या मतलब है?’ तो मैं सन्न रह गई. मुझे समझ नहीं आया कि उसके सवाल का मैं क्या जवाब दूं.” हमारे देश में ज़्यादातर पैरेंट्स का हाल कविता जैसा ही है, वो अपने बच्चे के साथ दोस्ताना व्यवहार तो रखते हैं, लेकिन जब बात सेक्स की आती है, तो बच्चे को समझाने की बजाय उसके सवाल को टाल जाते हैं. ऐसे में वो इंटरनेट व दोस्तों के ज़रिए अपनी जिज्ञासा शांत करने की कोशिश करता है, जिसका ज़्यादातर नकारात्मक असर ही देखने को मिलता है, क्योंकि इन स्रोतों से सही व पूरी नहीं, बल्कि अधकचरी जानकारी ही मिलती है.
अपनी सेक्स जिज्ञासा को शांत करने के लिए टीनएजर्स बेझिझक यौन संबंध बना रहे हैं, जिससे न स़िर्फ उनका शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य, बल्कि करियर भी प्रभावित होता है. साइकोलॉजिस्ट कीर्ति बक्षी के मुताबिक, “सेक्स को टैबू की बजाय नैचुरल चीज़ की तरह पेश करके, सहजता से बात करके, रियल-अनरियल सेक्स यानी नैचुरल सेक्स और पोर्नोग्राफ़ी का फ़र्क समझाकर बच्चों को अपराध की राह पर चलने से रोका जा सकता है.”
क्यों झेंपते हैं पैरेंट्स?
साइकोलॉजिस्ट प्रमिला श्रीमंगलम् पैरेंट्स की झिझक की वजह उनकी सोच को मानती हैं. उनके मुताबिक, “सोच के अलावा डर, शर्मिंदगी का एहसास, नैतिक मूल्य और संस्कार भी खुले तौर पर पैरेंट्स को बच्चों से सेक्स संबंधी मुद्दे पर बात करने से रोकते हैं.फफ दरअसल, हमारा समाज और परवरिश का माहौल ही ऐसा है जहां सेक्स जैसे शब्द को हमेशा परदे के पीछे रखा गया है. यही वजह है कि पैरेंट्स चाहते हुए भी इस मुद्दे पर बच्चे से खुलकर बात नहीं कर पाते.”
सेक्सोलॉजिस्ट डॉ. राजीव आनंद की भी कुछ ऐसी ही राय है. उनके अनुसार, “पैरेंट्स जिस माहौल में पले-बढ़े और शिक्षित हुए हैं, वहां सेक्स को हमेशा एक बुरी चीज़ के रूप में पेश किया गया है. सेक्स का मतलब स्त्री और पुरुष के बीच का अंतरंग संबंध… इसी सोच के चलते अभिभावक बच्चों के साथ इस बारे में बात करने में असहज महसूस करते हैं.”
समय की मांग है सही सेक्स एज्युकेशन
दिनोंदिन सेक्स संबंधी अपराधों में बच्चों, ख़ासकर टीनएजर्स की बढ़ती भागीदारी न स़िर्फ पैरेंट्स, बल्कि पूरे समाज के लिए ख़तरे की घंटी है. ऐसे में सेक्स एज्युकेशन के ज़रिए ही बच्चों को सही-ग़लत का फ़र्क समझाया जा सकता है. डॉ. आनंद कहते हैं, “आज के दौर में जहां एक्सपोज़र और ऑपोज़िट सेक्स के साथ इंटरेक्शन बहुत ज़्यादा बढ़ गया है, ऐसे में टीनएजर्स को सेक्स के बारे में सही जानकारी होनी ज़रूरी है. बढ़ती उम्र के साथ टीनएजर्स की उत्तेजना और फैंटेसी भी बढ़ने लगती है, लेकिन उन्हें इस पर क़ाबू रखना नहीं आता, जो सेक्स एज्युकेशन से ही संभव है. सेक्स एज्युकेशन को स़िर्फ अंतरंग संबंधों से जोड़कर ही नहीं देखा जाना चाहिए.”
बदलाव की ज़रूरत
आमतौर पर पैरेंट्स ये तो चाहते हैं कि उनके बच्चे को सेक्स के बारे में सही जानकारी मिले, लेकिन ख़ुद इस मुद्दे पर वे बात नहीं करते. ज़्यादातर पैरेंट्स सेक्स को शादी के बाद वाली चीज़ के रूप में देखते हैं, लेकिन उन्हें अपनी इस सोच में बदलाव लाना होगा और कपड़ों के साथ ही अपने विचारों को भी मॉडर्न बनाकर एक दोस्त की तरह बच्चे को उसके शारीरिक अंगों और उनके विकास के बारे में जानकारी देनी होगी. इतना ही नहीं, उन्हेें ये भी बताएं कि कोई यदि उन्हें ग़लत तरी़के से छूता है, तो उसका विरोध करें या तुरंत स्कूल/घर में उसकी शिकायत करें. आजकल न स़िर्फ बाहर, बल्कि घर की चहारदीवारी में भी रिश्तेदारों द्वारा बच्चों के शोषण के कई मामले सामने आए हैं. बहुत- से मामलों में तो बच्चे समझ ही नहीं पाते कि उनके साथ कुछ ग़लत हो रहा है.
मीडिया एक्सपोज़र से बहकते क़दम
डॉ. आनंद के मुताबिक, “टीवी सीरियल, फ़िल्में, मैगज़ीन, फैशन शो आदि में जिस तरह खुलेआम अश्लीलता परोसी जा रही है, बच्चों का उनसे प्रभावित होना लाज़मी है. इन सब माध्यमों की वजह से वे उम्र से पहले ही बहुत कुछ जान लेते हैं और परदे पर दिखाई गई चीज़ों को असल ज़िंदगी में करने की कोशिश में ग़लत राह पर चल पड़ते हैं. इसके लिए बहुत हद तक पैरेंट्स भी ज़िम्मेदार हैं, उनके द्वारा इस मुद्दे पर बात न किए जाने के कारण बच्चे उत्सुकतावश या उतावलेपन में सेक्स अपराधों में लिप्त हो जाते हैं.”
सेक्सुअली एक्टिव होते बच्चे
कई अध्ययनों से ये बात साबित हो चुकी है कि आजकल 10-11 साल की उम्र में ही बच्चों में प्युबर्टी पीरियड शुरू हो जाता है. साइकोलॉजिस्ट प्रमिला श्रीमंगलम् कहती हैं, “बदलती लाइफ़स्टाइल के कारण बच्चे वक़्त से पहले बड़े हो रहे हैं और इस दौरान होने वाले हार्मोनल बदलाव उन्हें सेक्स के प्रति उत्तेजित कर देते हैं. ऐसे में सही जानकारी के अभाव में और पैरेंट्स द्वारा नज़रअंदाज़ किए जाने पर बच्चे अपनी उत्सुकता शांत करने के लिए इंटरनेट, सोशल साइट्स, पब, फ़िल्म व दोस्तों का सहारा लेते हैं, जिसका नतीजा सेक्सुअल एक्सपेरिमेंट्स के रूप में सामने आता है.”
कैसे करें बात?
ये सच है कि भारतीय पैरेंट्स के लिए बच्चों से सेक्स संबंधी मुद्दे पर बात करना आसान नहीं, लेकिन आप अगर अपने बच्चे की भलाई चाहते हैं, तो झिझक व संकोच छोड़कर आपको इस मामले पर बात करनी ही होगी. साइकोलॉजिस्ट प्रमिला श्रीमंगलम् कहती हैं, “पैरेंट्स को अपने और बच्चों के बीच के संवाद के पुल को मज़बूत बनाए रखना चाहिए और जब बच्चा सेक्स से जुड़े सवाल करने लगे, तो टालकर उसकी उत्सुकता बढ़ाने की बजाय सहजता से उसके सवालों का जवाब दें. बच्चे से नज़रें मिलाकर बात करें और ज़रूरत पड़े तो उसे सेक्स से जुड़ी कुछ अच्छी किताबें लाकर दें, ताकि उसे सही जानकारी मिले. सेक्स एज्युकेशन से बच्चों को न स़िर्फ अपने शारीरिक विकास के बारे में पता चलेगा, बल्कि सेक्सुअली ट्रांसमिटेड डिसीज़ और अनवांटेड प्रेग्नेंसी (अनचाहा गर्भ) के बारे में भी पता चलेगा, जो उन्हें ग़लत रास्ते पर जाने से रोकेगी. वैसे कई स्कूलों में सेक्स एज्युकेशन का टॉपिक कवर किया गया है, लेकिन प्युबर्टी और सेक्सुअल डेवलपमेंट के बारे में बच्चों को बताने की प्राथमिक ज़िम्मेदारी पैरेंट्स की ही है.”
डॉ. राजीव आनंद कहते हैं, “पैरेंट्स को बच्चों के सामने स्त्री/परुष के शारीरिक अंगों के बारे में गंदे और अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए और न ही उसे मज़ाक या उत्सुकता का विषय बनाना चाहिए. बच्चे को उसकी उम्र और समझ के मुताबिक बॉडी पार्ट्स और उनकी अहमियत समझानी चाहिए. साथ ही अभिभावकों को ये भी ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे को कब, क्या और कितना बताना है.”
बहरहाल, ये साफ़ है कि आज के दौर में अपने बच्चे की बेहतरी के लिए पैरेंट्स को झिझक छोड़कर सेक्स एज्युकेशन के लिए पहल करनी ही होगी.
– कंचन सिंह
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