आमतौर पर 15 अगस्त और 26 जनवरी की छुट्टी हम सबके लिए एक छुट्टी के अलावा और कुछ नहीं होती. इस दिन हम पूरे परिवार के साथ बाहर घूमने जाने से लेकर और भी कई तरह के प्लान बनाते हैं. ऐसा नहीं है कि ऐसी प्लानिंग करके हम कुछ ग़लत करते हैं, लेकिन ज़रा सोचिए, देश के लिए अहम् इस दिन यदि आप अपने बच्चे को देशहित में कुछ सिखाएं तो कितना अच्छा होगा. आज तो आप और आपके बच्चे आज़ाद हैं, लेकिन जिस रफ़्तार से हमारे प्राकृतिक संसाधन ख़त्म हो रहे हैं, कहीं ऐसा न हो कि एक दिन आपके बच्चों को पानी, बिजली जैसी बुनियादी चीज़ों का भी मोहताज़ होना पड़े. अतः देश के लिए महत्वपूर्ण इस दिन आप अपने बच्चे को भी कुछ ज़रूरी चीज़ें सिखाना न भूलें.
ये एक आम समस्या है. गांव हो या शहर हर जगह पानी की समस्या से लोगों को दो-चार होना पड़ता है. बाथरूम में टैप (नल) खोलने के बाद आप भी अगर किचन में कोई काम कर रही हैं और पानी बह रहा है, तो आपकी इस आदत को बच्चा भी फॉलो करेगा. अतः सबसे पहले अपनी आदत बदलिए और बच्चे को पानी का महत्व समझाने के साथ ही उसे पानी बचाने के लिए कहिए. ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण हर साल मॉनसून का स्तर गिरता जा रहा है, जिससे पानी की कमी होती जा रही है. ये बुनियादी ज़रूरत है, अतः इसका संरक्षण करना आपकी ज़िम्मेदारी बनती है. आपका जीवन तो किसी तरह बीत जाएगा, लेकिन आने वाली पीढ़ी को परेशानी न हो, इसलिए आज से ही अपने बच्चे को इस ज़िम्मेदारी का एहसास दिलाएं और पानी की बचत करना सिखाएं, जैसे- खुले टैप को बंद करना, वॉटर बॉटल के पानी को नहीं फेंकना, ग्लास में पानी नहीं छोड़ना आदि.
आज भी हमारे देश में बहुत से इलाके ऐसे हैं, जहां लोग अंधेरे में ही रहते हैं. कई जगह तो लाइट के नाम पर महज़ 3-4 घंटे ही बिजली आती है. ऐसे में घर के हर कमरे में बिना मतलब की लाइट जलाए रखना, टीवी देखने के साथ कंप्यूटर के इस्तेमाल की आदत बच्चों को भी लापरवाह बना देती है. अपने बच्चे के भविष्य की चिंता करते हुए उसे उसकी बेसिक ड्यूटी बताएं, जैसे- अगर बच्चा लाइट जलाकर ही सोने जा रहा है या किसी कमरे का चलता हुआ फैन छोड़कर दोस्त के बुलाने पर बाहर खेलने जा रहा है, तो उसे समझाएं कि पहले लाइट/फैन का स्विच ऑफ करे. उसे इलेक्ट्रिसिटी का महत्व बताएं. आज के दिन से उसे ऐसा न करने की बात सिखाएं. इससे बच्चे को भी अच्छा महसूस होगा कि इस ख़ास दिन से वो कुछ नया करेगा.
फ्यूल से मतलब है वेहिकल ऑयल और गैस. वैसे तो बच्चों का इससे पाला नहीं पड़ता, लेकिन जैसे-जैसे वो बड़े होते हैं उनका संपर्क इससे होता है. ऐसे में बचपन से ही उन्हें फ्यूल सेविंग के बारे में बताएं. साथ ही ख़ुद आप भी ऐसा करें. हो सके तो बच्चे को वो विज्ञापन ज़रूर दिखाएं, जिसमें एक बच्चा सिग्नल पर रुकी कार में अपने पापा के साथ बैठा है और अचानक कहता है कि बड़ा होकर वो साइकिल रिपेयर की दुकान खोलेगा. पिता के पूछने पर बच्चा कहता है कि वो ऐसा इसलिए करेगा, क्योंकि जब वो बड़ा होगा तब तक तो फ्यूल बचेगा ही नहीं. बच्चे की बात से प्रभावित होकर पिता अपनी कार का इंजन बंद कर देता है और फिर सिग्नल ग्रीन होने पर कार स्टार्ट करता है. ये विज्ञापन बहुत प्रभावी है.
गार्डनिंग यानी अपने आसपास ज़्यादा से ज़्यादा पेड़ लगाना. इमारतें और सड़क बनाने के चक्कर में पेड़ों की कटाई तेज़ी से हो रही है. ऐसे में एक दिन ऐसा आएगा जब शायद पेड़ बचे ही नहीं. ये आप भी जानते हैं कि पेड़ों से हमें ऑक्सीज़न मिलता है. अतः बच्चों के सुरक्षित भविष्य के लिए उन्हें पेड़ों की हिफाज़त और नए पौधे लगाने को कहें, शुरुआत घर के गमलों से करें. चाहें तो सोसाइटी के कुछ लोगों के साथ मिलकर आप ऐसा प्लान बनाएं कि 15 अगस्त के ख़ास दिन सभी बच्चे एक-एक पौधा लगाएं. ख़ुद लगाए पौधे से बच्चों को प्यार होगा और वो उसका ज़्यादा ध्यान रखेंगे. इतना ही नहीं, धीरे-धीरे उनका रुझान इसके प्रति बढ़ेगा. बच्चों में इस आदत को विकसित करने के लिए आप उन्हें बचपन से ही नर्सरी (पौधों की) में ले जाएं. उन्हें इस विषय पर बनी फिल्में दिखाएं. हरियाली व पेड़ों का महत्व बताएं. उन्हें समझाएं कि अगर पेड़ नहीं होंगे, तो जानवर बेचारे कहां रहेंगे, चिड़िया घोंसला कहां बनाएगी? और जब जानवर और पक्षी नहीं रहेंगे, तो आगे की पीढ़ी इन्हें कैसे देख पाएगी. आपकी इन भावनात्मक बातों का बच्चे पर असर होगा और उसे अपनी ज़िम्मेदारी का एहसास होगा.
जिस तरह आप पूरा दिन घर की सफ़ाई में लगी रहती हैं, उसी तरह बच्चे को भी सफ़ाई की आदत डालें. जब भी वो कागज़ का कोई टुकड़ा या चॉकलेट का रैपर घर में इधर-उधर फेंके, तो उसे रोकें और डस्टबिन में डालने को कहें. घर में आपके इस तरह से रोकने पर बच्चा आगे से घर के बाहर भी ऐसी हरक़त करने से पहले कई बार सोचेगा. उसे प्रधानमंत्री के स्वच्छ भारत अभियान के बारे में बताएं. इस तरह की न्यूज़ भी दिखाएं जिसमें हमारे सेलिब्रिटीज़ घर के आसपास की सफ़ाई करते हैं. इससे बच्चे को अपनी ज़िम्मेदारी का एहसास होगा. धीरे-धीरे ही सही, वो भी स्वच्छता का ध्यान रखेगा.
बदलते ज़माने के साथ लोग स्वार्थी होते जा रहे हैं. उदाहरण के लिए, आप अपने आपको ही देख लीजिए. किसी रिश्तेदार के अचानक बीमार होने पर जब आपको वहां जाना पड़ता है, तो आपका मूड बिगड़ जाता है. आप अपने दैनिक कार्य की लिस्ट से एक क़दम भी इधर-उधर जाना पसंद नहीं करते. आपकी यही आदत आपके बच्चे में भी आने लगती है. अपने लाड़ले/लाड़ली को समाज में रहते हुए ये बात ज़रूर सिखाएं कि वो ज़रूरतमंद लोगों की मदद करे, जैसे- अगर बच्चा खेल रहा है और आप भी अपनी सहेलियों के साथ नीचे सोसाइटी के ग्राउंड में हैं और सामने से कोई बूढ़ा पुरुष/बूढ़ी महिला हाथ में सामान से भरा बैग लिए चला आ रहा है, तो झट से आप उसकी मदद करने पहुंचें. आपको देखकर अगली बार से जब आप उस जगह नहीं रहेंगी, तब बच्चा भी झट से उसकी मदद के लिए दौड़ेगा.
आमतौर पर शहरी परिवेश में पलने वाले बच्चे साल के 365 दिन अपने मम्मी-पापा के साथ ही बिताते हैं. ऐसे में अपने रिश्तेदारों से जुड़ना तो दूर वो उनके नाम भी नहीं जानते. ये आप दोनों के लिए गंभीर समस्या है. ये आपकी ज़िम्मेदारी बनती है कि बच्चों को रिश्तों के सही मायने बताएं. मामा-मामी, चाचा-चाची, दादा-दादी आदि से बच्चे को जोड़े रखें. कभी आप उनके घर तो कभी उन्हें अपने घर रहने के लिए बुलाएं. इससे बच्चे की बॉन्डिंग आपके अलावा घर के दूसरे सदस्यों के साथ भी बढ़ेगी और वो सामाजिक बनेगा, दूसरों के लिए भी कुछ करने की सोचेगा.
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