लघुकथा- आज़ादी (Short Story- Aazadi)

वो बता रही थी.. दस की उम्र से समाज सेवा, बारह तक अपना सभी काम ख़ुद करने लगना और अट्ठारह की उम्र से माता-पिता से किसी भी तरह की आर्थिक मदद लेना बंद. अपने सभी ख़र्चे ख़ुद निकालना यहां तक कि पढ़ाई का ख़र्च भी…

यूरोप की एक लड़की के विश्व भ्रमण के कीर्तिमान की ख़बर सुन मेरी बेटी पहले चहक उठी, फिर मुझसे रूठकर बोली, “तुम मुझे कनाट प्लेस तक अकेले नहीं जाने देतीं और वो देखो… मेरी ही उम्र की है और उसके माता-पिता उसे पूरी दुनिया अकेले घूमने देने से नहीं डरे.” मैंने कहा, “ठीक है, ज़रा उसकी जीवनी देखो यू-ट्यूब पर.”


बेटी ने मेरे साथ देखना शुरू किया…
वो बता रही थी.. दस की उम्र से समाज सेवा, बारह तक अपना सभी काम ख़ुद करने लगना और अट्ठारह की उम्र से माता-पिता से किसी भी तरह की आर्थिक मदद लेना बंद.


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अपने सभी ख़र्चे ख़ुद निकालना यहां तक कि पढ़ाई का ख़र्च भी… कहना न होगा इतना देखते-देखते बेटी को भूख भी लग गई थी. उसे याद आ गया था कि उसे मेरे हाथ के ढोकले बहुत पसंद हैं और उसने कई दिनों से वो खाए नहीं हैं. यही नहीं वो होमवर्क भी याद आ गया था, जिसे अपने पापा की मदद से करना था.
आज़ादी कर्तव्य पहले है और अधिकार बाद में ये बात उदाहरणों से समझानी पड़ती है.

– भावना प्रकाश


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Photo Courtesy: Freepik

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Usha Gupta

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