Short Stories

कहानी- बेचारी कुंवारी है (Short Story- Bechari Kunwari Hai)

“क्या बात कर रही हो स्वाती! लोग अपने समाज का सड़ा-गला भी खाने को तैयार हैं, पर दूसरे समाज का अच्छा खाना भी उन्हें गवारा नहीं हो सकता! लोग क्या कहेंगे? समाज क्या कहेगा? ये कुछ ऐसी बातें हैं, जिनसे ऊपर उठने की हिम्मत आज भी इंसान नहीं जुटा पाता, भले ही कोई घुट-घुट कर मर क्यों न जाए.” प्रभा की बातों ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया था कि समाज के कैसे नियम, कैसी मान्यताएं हैं, जो इंसान को सिवाय दुख के कुछ नहीं देते? सामाजिक नियम तो इंसान की सहूलियत के लिए बनाए गए थे, न कि इसलिए कि इन नियमों के जाल में उलझ कर इंसान मर ही जाए.

”प्रभा… ओ प्रभा…!” मैंने चलते रिक्शे में से प्रभा को आवाज़ दी. घर से बाहर निकलती प्रभा चौंक पड़ी, पर मुझे देख कर वह ख़ुशी से चीख पड़ी, “स्वाती, तू …यहां? कब आई? कैसी है?”

स्वाती ने उसे गले से लगाते हुए कहा, “सब यहीं सड़क पर खड़े-खड़े पूछ लेगी क्या?”

उसने अपना माथा ठोकते हुए कहा, “सॉरी यार, चल घर चल, वहीं बैठ कर ढेर सारी बातें करेंगे. बस एक मिनट रुक, माधो चाचा की दुकान से कुछ सामान ले लूं.” स्वाती उसका हाथ थामे चल दी. यही वह मोहल्ला था जहां कॉलेज के दिनों में मेरा लगभग सारा दिन बीतता था. यही माधो चाचा की दुकान, हमारी न जाने कितनी लड़ाइयों की साक्षी बनी थी. सब कुछ तो वैसा ही है. कुछ नहीं बदला यहां, सिवाय मेरे. कॉलेज के दिनों में बिना नागा किए मैं प्रभा के घर आती थी, पर शादी के बाद ऐसी व्यस्त हुई कि पांच साल में दुबारा आना हो पाया है. घर की सबसे बड़ी बहू होने की ज़िम्मेदारी आने पर, वह अल्हड़ और चंचल-सी स्वाती कहीं खो-सी गई थी. यहां आते ही वही सारी यादें फिर से ताज़ा हो उठी थीं.

“माधो चाचा प्रणाम.” मैंने हंस कर कहा.

मुझे देख कर वे ख़ुश हो गए, “अरे… स्वाती बिटिया कितने दिनों के बाद आई हो! चॉकलेट खाओगी?” मैं खिलखिला पड़ी, “हां माधो चाचा खाऊंगी, पर अब एक चॉकलेट और देनी होगी, मेरी बिटिया के लिए.”

“काहे नहीं बिटिया, तुम्हारी बिटिया हमारी पोती हुई न, उसके लिए तो दो चॉकलेट देंगे. सच बिटिया, कलेजा ठंडा हो गया तुम्हें देख कर, तुम लोग हंसते-खेलते रहो और हमें क्या चाहिए! अब इस प्रभा का भी ब्याह हो गया होता, तो आज यह भी बाल-बच्चे वाली हो गई होती. पर नहीं, इसने तो जैसे शादी न करने की क़सम खा ली है! हर बात की एक उमर होती है, उमर बीत जाने पर, फिर बड़ी परेशानी होती है, पर यह कुछ समझती ही नहीं है. अब तुम्हीं कुछ समझाओ न इसे…” माधो चाचा की बात को बीच में काटते हुए प्रभा बोली, “आप अपना काम करो माधो चाचा, आपको मेरी ज़िंदगी में दख़ल देने की कोई ज़रूरत नहीं है!”

माधो चाचा ने मुंह टेढ़ा करते हुए कहा, “अरे लो इसमें नाराज़ होने वाली क्या बात है? बिन ब्याही लड़की देख कर चिंता तो होती ही है.”

प्रभा क्रोध से बोली, “मेरे मां-बाप अभी ज़िंदा हैं मेरी चिंता करने के लिए, आपको परेशान होने की कोई ज़रूरत नहीं है.” इतना कहकर प्रभा लगभग मेरा हाथ खींचते हुए वहां से ले आई. मैं प्रभा के इस व्यवहार पर हतप्रभ थी. मेरी प्रभा ऐसी तो न थी. वह बड़ों के प्रति सम्मान रखनेवाली, उनकी इ़ज़्ज़त करनेवालों में से थी. पर यहां तो मैं प्रभा का कोई और ही रूप देख रही थी! प्रभा की मां मुझे देखकर सुखद आश्‍चर्य से भर उठी, “स्वाती …तुम! कितने दिनों के बाद आई हो बेटी! कैसी हो?” “अच्छी हूं आंटी, आप सुनाइये क्या चल रहा है आजकल.”

मेरे यह पूछने की ही देर थी कि वह कहने लगी, “क्या बताऊं स्वाती, प्रभा की शादी की चिंता तो सुरसा के मुंह की तरह बस बढ़ती ही जा रही है.”

वह तनिक मेरे पास सरक कर धीमे स्वर में बोली, “स्वाती तुम्हारे लखनऊ में ही कोई लड़का देखो न! हम तो हार गए, इसकी शादी के प्रयास करते-करते…!”

तभी प्रभा वहां आ गई और ग़ुस्सा होते हुए बोली, “बस भी करो मां, मेरी शादी का रोना! कोई आया नहीं कि तुम मेरी शादी का महापुराण लेकर बैठ जाती हो.”

मैंने चौंककर प्रभा को देखा, मैं उसके असामान्य व्यवहार से परेशान हो उठी थी. अपनी हंसमुख-सी सहेली को इस तरह देखने की तो मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी. आंटी का चेहरा रुआंसा हो गया था. मैंने बात को संभालते हुए उनसे कहा, “आंटी मैं आज आपके हाथ का वो स्पेशल वाला पोहा खाकर और चाय पीकर ही जाऊंगी.”

यह भी पढ़ें: क्या है आपकी ख़ुशी का पासवर्ड?

आंटी मुस्कुराने की कोशिश करते हुए बोली, “हां, तुम लोग बैठो, मैं पोहा बना कर लाती हूं.”

आंटी के जाते ही मैंने प्रभा को अपने पास बैठाते हुए कहा “क्या हो गया है तुझे प्रभा? किस तरह व्यवहार करने लगी है तू? वहां माधो चाचा से और यहां आंटी से भी… किस तरह बात कर रही थी तुम? इतनी चिड़चिड़ी  कैसे हो गई तुम? कहां गई वो मेरी हंसती-खिलखिलाती, हर बात का मज़ा लेती प्रभा?”

मेरी बात सुनकर प्रभा की आंखों में आंसू छलक आये. मैंने उसका हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा, “क्या बात है, बता न प्रभा, मुझसे बात करेगी तो तेरा मन भी हल्का हो जाएगा. कुछ तो बोल.”

प्रभा ने आंसू पोंछते हुए कहा, “क्या बताऊं स्वाती, बात ऐसी है कि कहने में भी अजीब लगती है. मैं क्या बताऊं किसी को कि मैं इसलिए परेशान हूं, क्योंकि मेरी शादी नहीं हो रही है.”

पहले तो मैं चौंक पड़ी, फिर हंस कर बोली “बस इतनी-सी बात के लिए इतना बवाल मचा रखा है तुमने?”

वह थोड़ा नाराज़ होते हुए बोली, “देखा, तुमने भी मेरी बात को नहीं समझा न. पर शायद तुम समझ भी नहीं सकती कि 26 साल की होने के बाद भी किसी लड़की का कुंवारी होना, कितना बड़ा अभिशाप हो सकता है.”

मैंने परेशान होकर कहा, “साफ़-साफ़ कह न प्रभा कि परेशानी क्या है?”

वह बोली, “स्वाती हर लड़की की तरह मैं भी चाहती थी कि सही समय पर मेरी शादी हो जाए. मेरे भी अपनी शादी को लेकर कुछ सपने थे, कुछ आशाएं थीं. पर अब वे सारे सपने कांटे बनकर पलकों में चुभते हैं. तुम्हीं बताओ, क्या कमी है मुझमें, अच्छी-ख़ासी दिखती हूं, अंग्रेज़ी से पोस्ट ग्रेजुएट हूं, आजकल वकालत पढ़ रही हूं. ऐसा नहीं था कि कोई मुझे देखने नहीं आया, पर कोई यह कह कर नापसंद कर गया कि लड़की दुबली है, कोई कहता, ज़्यादा पढ़ी-लिखी है. कोई कहता नौकरी नहीं करती. कभी किसी को मैं पसंद आई भी, तो बात इसलिए टूट गई, क्योंकि या तो बात आगे नहीं बढ़ पाई, क्योंकि उनकी दहेज की भूख अधिक होती थी. मैं जानती हूं मेरे मां-बाप अपनी हैसियत से भी बढ़ कर मेरी शादी में ख़र्च करेंगे, पर वह अपना घर-बार तो नहीं बेच सकते न मेरी शादी के लिए. तुम जानती हो स्वाती, अब मैं लेखिका भी हो गई हूं, कई पत्र-पत्रिकाओं में मेरी कहानियां, लेख और कविताएं छपती रहती हैं. जब लोग मुझसे पूछते हैं, क्या कर रही हो आजकल, तो मेरे यह बताने पर कि मैं लिखती हूं, तो पता है क्या जवाब मिलता है मुझे? वे कहते हैं ये सब तो बकवास है, यह बताओ कि शादी कब कर रही हो? मोहल्ले का एक-एक प्राणी मुझे शादी करने के लिए समझाता रहता है. जब आस-पास के लोग मुझे बेचारगी भरी नज़रों से देखते हैं तो मेरी आत्मा तक छलनी हो जाती है, पड़ोस की चाची, काकी और भाभियों की नज़रें मेरे कपड़ों के अंदर तक जाती हैं, मानो वे जानना चाहती हों कि शादी न हो पाने का कीटाणु कहीं शरीर के अंदर तो नहीं बैठा, जो कपड़ों के बाहर से दिखाई न देता हो. लोग मां-पापा से मिलने आते हैं तो उन्हें इस तरह से सांत्वना देते हैं मानो मैं इस दुनिया से ही विदा हो गई हूं. ‘अरे भाभीजी, धीरज रखिए, होनी को कौन टाल सकता है. जब-जब जो जो होना है, तब-तब सो सो होता है. या फिर ‘अरे भाईसाहब, आप परेशान मत होइए, भगवान सब ठीक कर देगा’ ये सारी बातें सुन-सुन कर मैं थक गई हूं. जानती हो, जो भी मेरे घर आता है, उन सबके पास मेरे लिए कोई-न-कोई रिश्ता होता है. हर कोई मेरे लिए रिश्ता ढूंढ़ता रहता है, मानो इस दुनिया में मेरी शादी से बड़ी कोई समस्या ही   न बची हो. तुम ही बताओ स्वाती, मेरी शादी न होना, क्या इतना अक्षम्य अपराध है? मैं लोगों की नज़रों में ‘बेचारी’ बन गई हूं, जो भी मिलता है अपनी सांत्वना के दो फूल चढ़ा ही जाता है मुझ पर. पर कोई मुझे यह नहीं बताता कि इस सब में मैं कहां ग़लत हूं! मैं त्रस्त हो गई हूं लोगों की बातें सुन-सुन कर. कभी-कभी लगता है कि आज के युग में लड़की होकर पैदा होना ही मेरा सबसे बड़ा अपराध है. और तो और अब तो लोग यह भी कहने लगे हैं कि ज़रूर उसका चाल-चलन ख़राब होगा, तभी तो अब तक कुंवारी बैठी है! इतनी बातें सुन कर, इतने झूठे इल्ज़ाम पाकर भी, अगर च़िड़चिड़ी न होऊं तो क्या करूं? मां-पापा के माथे पर चिंता की लकीरें दिन-ब-दिन गहरी होती जा रही हैं. उन्हें परेशान देखती हूं तो ख़ुद की क़िस्मत को कोसने का मन करता है. मां-पापा का मुंह देख कर चुप रह जाती हूं, वरना मुझे तो अब तक मर जाना चाहिए था! जिस लड़की की शादी न हो, मेरी राय में उन सबको मर ही जाना चाहिए, वरना यह समाज, उसके साथ-साथ उसके परिवारवालों का भी जीना दूभर कर देगा.”

यह भी पढ़ें: रिश्तों से जूझते परिवार

अपने मन की सारी भड़ास निकालने के बाद, प्रभा हांफने लगी थी, मैंने उठ कर उसे पानी का ग्लास थमाया. पानी पीकर वह कुछ संयत हुई. मैंने प्रभा की बातें सुनकर उससे कहा, “प्रभा, अगर तुम्हारी बिरादरी में कोई अच्छा लड़का नहीं मिलता, तो कभी बिरादरी के बाहर जाकर कोशिश क्यों नहीं की अच्छे लड़कों को ढूंढ़ने की?”

प्रभा व्यंग्य भरे स्वर में बोली, “क्या बात कर रही हो स्वाती! लोग अपने समाज का सड़ा-गला भी खाने को तैयार हैं, पर दूसरे समाज का अच्छा खाना भी उन्हें गवारा नहीं हो सकता! लोग क्या कहेंगे? समाज क्या कहेगा? ये कुछ ऐसी बातें हैं, जिनसे ऊपर उठने की हिम्मत आज भी इंसान नहीं जुटा पाता, भले ही कोई घुट-घुट कर मर क्यों न जाए.”

प्रभा की बातों ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया था कि समाज के कैसे नियम, कैसी मान्यताएं हैं, जो इंसान को सिवाय दुख के कुछ नहीं देते? सामाजिक नियम तो इंसान की सहूलियत के लिए बनाए गए थे, न कि इसलिए कि इन नियमों के जाल में उलझ कर इंसान मर ही जाए. भले ही अपने समाज, अपनी बिरादरी में अच्छा, क़ाबिल लड़का न मिले, पर वे दूसरे समाज के, दूसरी बिरादरी के क़ाबिल लड़कों की ओर देखेगा तक नहीं! यह समस्या स़िर्फ प्रभा की नहीं थी, आज हर दूसरे घर में, कोई-न-कोई प्रभा मिल ही जाती है. मंगल ग्रह पर जाने की तैयारी करता मनुष्य, आज भी कुछ बातों में बरसों पुरानी सड़ी-गली रीतियों को थामे बैठा है. कुछ तो करना होगा, किसी को तो पहल करनी ही होगी, कोई तो क़दम उठाना ही होगा, तभी कुछ बदलाव संभव हो पायेगा. एक दिन में तो दुनिया नहीं बदलेगी, पर फिर भी थोड़ी-थोड़ी कोशिश तो सबको करनी ही होगी. कुछ सोचते हुए मैंने प्रभा से पूछा, “अच्छा प्रभा, क्या ऐसा कोई नहीं जो तुम्हें पसंद करता हो, या जिसे तुम पसंद करती हो?”

प्रभा ने थोड़ा सकुचाते हुए कहा, “है एक- समीर उपाध्याय. वैसे तो किसी बड़ी कंपनी का मैनेजर है, पर मेरे साथ वकालत पढ़ता है. शाम को लगनेवाली क्लास में आता है. आकर्षक है, स्मार्ट है, अच्छा कमाता है. मुझसे ख़ूब पटती है उसकी. इतना हंसमुख है कि पूछो मत. हर समय हंसता-हंसाता रहता है. उसके साथ समय कैसे बीत जाता है, पता ही नहीं चलता. जानती हो स्वाती, जब मैं उसके साथ होती हूं तो अपनी सारी परेशानियां, तक़ली़फें भूल-सी जाती हूं. समीर जब भी मुझे देखने आने वालों के बारे में सुनता है तो मुझसे कहता है कि ‘क्यों किसी और का जीवन बरबाद करना चाहती हो, मैं तो बरबाद हो ही गया हूं, तुम मुझसे ही शादी कर लो.”

मैंने हंस कर कहा, “जब वह इतना खुल कर पूछ रहा है शादी के लिए, तो तुम हां क्यों नहीं कर देती?”

यह भी पढ़ें: क्या आप इमोशनली इंटेलिजेंट हैं?

प्रभा ने थोड़ा बुझे स्वर में कहा, “उसमें दो समस्याएं हैं, एक तो वह हमारी जाति का नहीं है. हम ठाकुर, तो वह ब्राह्मण है. दूसरी बात, मैं उसका यक़ीन नहीं कर पाती, वह हर बात को मज़ाक में कहता है, हर बात का मज़ाक बना देता है, क्या पता यह बात भी उसने मज़ाक में ही कही हो! उसने कभी सीरियसली मुझसे कुछ कहा ही नहीं, तो मैं कैसे मानूं!”

उदास-सी प्रभा का चेहरा मन में लिए, उससे फिर मिलने का वादा कर, मैं वहां से चली आई. प्रभा की बातों से मुझे एक कहानी याद आ गई, शायद बचपन में कहीं पढ़ी थी, जिसका सही अर्थ आज मेरी समझ में आ रहा है. एक उच्च कुल का, बहुत संपन्न ब्राह्मण था, उसकी एक बहुत ही सुंदर और सुशील बेटी थी. जब वह विवाह योग्य हुई तो उसके पिता ने उसके लिए वर खोजना शुरू किया. पर उनके कुल जितना उच्च कुल उन्हें नहीं मिला. बहुत खोजने पर एक परिवार मिला भी, पर वह अधिक सम्पन्न नहीं था. फिर भी ब्राह्मण ने उच्च कुल देख कर अपनी बेटी का विवाह वहां कर दिया. कुछ समय बाद ब्राह्मण ने उससे पूछा, “क्या कर रही हो बेटी?’’

तो उसकी बेटी ने जवाब दिया, “उच्च कुल का रिश्ता भूज कर खा रही हूं.”

दो-तीन दिन बाद, अपने घर में युद्ध स्तर की तैयारियां होते देख प्रभा समझ गई कि आज फिर उसकी नुमाइश लगनेवाली है. उसका मन खिन्न हो उठा. उसका दिल कर रहा था कि वह चीख-चीख कर सबसे कहे कि बंद करो ये सब, बंद करो मुझे सामान की तरह सजाना, दिखाना, और फिर मोल-भाव करना! मैं ज़िंदा हूं, मुझमें भी आत्मा है, मेरी सांसें चलती हैं, क्यों नहीं समझ पाता कोई मेरी तक़लीफ़ को? पर वह ये सब कहती भी तो किससे? अपने मां-पापा का दिल वह तोड़ना नहीं चाहती थी. उनके उत्साह में वह कोई विघ्न नहीं डालना चाहती थी. अत: वह बेमन से तैयार होने चली गई. कुछ समय बाद मेहमान भी आ गए. प्रभा सजी-धजी गुड़िया की तरह, नज़रें झुकाए, उनके सामने आकर बैठ गई.

लड़के की मां ने लड़के से कहा, “हमें तो लड़की पसंद है, अब तुम बताओ, तुम्हारी क्या राय है?”

लड़के ने कहा, “किसी और का जीवन बरबाद करने से क्या फ़ायदा? इनसे शादी करके मैं अपनी ही कुर्बानी देने के लिए तैयार हूं.”

जानी-पहचानी बात और जानी-पहचानी आवाज़ सुन कर प्रभा चौंक पड़ी. उसने नज़रें उठाकर देखा तो सामने समीर बैठा मुस्कुरा रहा था.

वह चौंककर बोली, “समीर…तुम…?”

उसने अचरज से अपने मां-पापा की ओर देखा, वे दोनों मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे. उनकी आंखो में स्वीकृति का भाव था. प्रभा ठीक से कुछ समझ पाती, इसके पहले ही वहां हंसती-खिलखिलाती स्वाती आ गई.

प्रभा को आश्‍चर्य में पड़ा देखकर स्वाति ने कहा, “हां भाई, ये सब मेरा ही किया हुआ है. दरअसल, समीर मेरे बड़े भाई अक्षत के दोस्त हैं. बातों-ही-बातों में जब इन्होंने तुम्हारा ज़िक्र किया, तो मैं चौंक पड़ी. समीर तुम्हें बहुत पसंद करते थे और मज़ाक-ही-मज़ाक में कई बार तुमसे अपने दिल की बात कह भी चुके थे, पर तुमने कभी कुछ समझा ही नहीं. मैं उस दिन तुम्हारा मन जानने के लिए ही आई थी. फिर तुम्हारी रज़ामंदी मिलने के बाद, तुम्हारी परेशानी जानने के बाद, मैंने अंकल-आंटी को सारी बातें बताईं, तो अपनी बेटी की ख़ुशी के लिए वे भी तैयार हो गए. बस यही कहानी है, जिसका परिणाम तुम्हारे सामने, समीर के रूप में बैठा है.”

प्रभा ने बहुत कृतज्ञ नज़रों से स्वाती की ओर देखते हुए, मन-ही-मन उसे धन्यवाद कहा.

स्वाती ने धीरे से प्रभा से कहा, “प्रभा अब कोई नहीं कहेगा कि ‘बेचारी कुंवारी है’ अब तो लोग कहेंगे, बेचारी प्रभा, शादीशुदा हो गई है.”

उसकी बात सुन कर प्रभा खिलखिलाकर हंस पड़ी.

– कृतिका केशरी

अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करें – SHORT STORIES

 

 

 

Usha Gupta

Share
Published by
Usha Gupta

Recent Posts

रंग माझा वेगळा : सव्वा लाख सुनांची सासू… कोण होत्या त्या? असं काय केलं त्यांनी? (Mother-In-Law Of 1.25 Lakh Daughter-In-Laws : Who Is She? What Did She Achieve?)

आज १६ सप्टेंबर. पाकशास्त्रात अद्वितीय कामगिरी केलेल्या एका जगावेगळ्या कर्तबगार महिलेचा जन्मदिन! त्या आहेत ‘रुचिरा’…

March 25, 2024

जलसामध्ये मोठ्या उत्साहात साजरी झाली बच्चन कुटुंबाची होळी, नव्याने शेअर केले खास फोटो ( Navya Naveli Nanda Share Inside Pics Of Bachchan Family Holi)

प्रत्येकजण होळीच्या रंगात आणि आनंदात मग्न असल्याचे पाहायला मिळत आहे. २४ मार्च रोजी होळी साजरी…

March 25, 2024

मराठमोळा अभिनेता सिद्धार्थ जाधव आता हॉलिवूड गाजवणार (Siddharth Jadhav Upcoming Hollywood Movie The Defective Detectives)

मराठमोळा अभिनेता सिद्धार्थ जाधव एका हॉलिवूड सिनेमात झळकणार असल्यामुळे चाहत्यांना आनंद झाला आहे. आता सर्वांना…

March 25, 2024

मृणाल दुसानीस तब्बल ४ वर्षांनी अभिनय क्षेत्रात करणार कमबॅक, स्वत:च केलं स्पष्ट ( Marathi Actress Mrunal Dusanis Talk About Her ComeBack In Industry)

मराठी मनोरंजन सृष्टीची लोकप्रिय नायिका मृणाल दुसानीस सध्या चर्चेत आहे. तिचा नवरा नीरज कामानिमित्त परदेशात…

March 25, 2024

हास्य काव्य- श्रीमतीजी की होली (Poem-Shrimatiji Ki Holi)

होली की चढ़ती खुमारी मेंचटकीले रंगों भरी पिचकारी मेंश्रीमान का जाम छलकता हैकुछ नशा सा…

March 24, 2024
© Merisaheli