कहानी- चाहत और तड़प (Short Story- Chahat Aur Tadap)

“बेटा, एक बार अच्छी तरह विचार कर लेना कि कहीं यह कोई धोखा तो नहीं होगा. मान लो तीन महीने में कोई ऐसी घटना न घटे और तुम्हें मन मारकर छवि से विवाह करना पड़े.” “पापा, जो युवती इतनी निडर है कि गुप्त रखनेवाली बात को साफ़ कहकर सगाई कर रही है, तो उसमें कुछ […]

“बेटा, एक बार अच्छी तरह विचार कर लेना कि कहीं यह कोई धोखा तो नहीं होगा. मान लो तीन महीने में कोई ऐसी घटना न घटे और तुम्हें मन मारकर छवि से विवाह करना पड़े.”
“पापा, जो युवती इतनी निडर है कि गुप्त रखनेवाली बात को साफ़ कहकर सगाई कर रही है, तो उसमें कुछ तो नैतिकता होगी.”
धवल को छवि से इतना लगाव हो गया था कि उसने भावी जीवन की अनगिनत कलपनाएं कर रखी थी.

चाहत और तड़प सिर्फ़ सच्चे मन में ही संभव है… वहां पर सब कुछ भीतर ही भीतर घटता रहता है, बाद में हमारा दिमाग़ उसे शब्द देने की कोशिश करता है. हम बार-बार चाहत में बैचेन रहते हैं और ऐसा ही कहते हैं, क्योंकि हमें सही सही अभिव्यक्ति करना नहीं आता. एक सही शब्द, एक सही व्यक्ति, एक सही लम्हा बहुत नसीब से मिलता है, बस उसे खोजना बहुत पड़ता है. धवल आज इसी जद्दोज़ेहद और उधेड़बुन में था. उसने भारी मन से पिता को अपना फोन दिया और एक संदेश पढ़ने को कहा. संदेश छवि का था तो पढ़ने से पहले पिता ने धवल का चेहरा गौर से देखा, उसमें हंसी-मज़ाक वाला कोई भी भाव नहीं था. अब पिता ने इत्मीनान से फोन अपने हाथ में लिया और संदेश पूरा पढ़ लिया. छवि ने अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुनते हुए उस संदेश में अपने अतीत का खुलासा किया और यह बताया था कि वो अठारह साल की उम्र में अपने किराएदार के प्रेम में पड़कर बहुत ग़लतियां कर चुकी थी.
बहुत जल्दी उसको पता लग गया कि वो धोखेबाज न जाने कितनी मासूम लड़कियों को मूर्ख बना चुका है.
जब छवि ने उसको लताडा़ तो उसने वो कमरा छोड़ दिया और मकान खाली करके चला गया.
हालांकि उसके बाद से वो किसी प्रेम संबंध या आकर्षण में नहीं पड़ी और तब से ही घर पर तैयार अपनी आर्ट गैलरी में निरंतर कला साधना कर रही है. फिर भी धवल जैसे सच्चे इंसान को सब बता देना ज़रूरी समझा, इसलिए यह संदेश भेजा.
पिता को पसीना आ गया था. वो ज़रा-सा ग़ुस्से में धवल से बोले, “धवल, कल ही सगाई है और आज यह सनसनी क्यों? अब तुम भी कमाल हो बेटे! गजब करते हो तुम, मुझ बूढ़े बाप को बता दिया. इसको अपने तक रखते और कोई भी फ़ैसला कर लेते.” यह सुनकर धवल उनके पास ही एक कुर्सी खींचकर बैठ गया. वो बोला, “पापा, आप मेरे सबसे अच्छे मित्र हो. आपसे आज तक कुछ भी नहीं छिपाया और छवि भी तो आपकी ही पसंद है ना. हम लोग मामा के गृह प्रवेश मे गए थे. आपने वहां इतनी कलात्मक रंगोली वगैरह बनाती युवती देखी और पूरा दिन आपने उससे बातें कीं. आपको लगा कि जाति धर्म अलग है, मगर यह कितनी सुघड़ और सलीकेदार है. तब आपने मेरी राय मांगी. पता है पापा मुझे ख़ुद उससे पहली नज़र मे प्यार हो गया था तब जब हम दोनों ने उसको देखा और उसने हड़बड़ी में खडे़ होकर नमस्ते किया. फिर मामा ने बताया कि छवि उनके मित्र की बिटिया है. कलाकार है.

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पापा याद है ना आपने ही कहा था कमाल है एक ही शहर में रहते हैं, लेकिन आज तक पता नहीं चला. तब मामा ने बताया था कि वो सात साल से यहां रह रहे हैं. पहले आर्मी की नौकरी थी रानीखेत रहते थे.”
“ओह, हां…” पिता ने धवल को देखा और पूछा, “धवल बेटा, रिश्ते में जुड़ना और ख़ुद को जोड़े रखना सबसे सरल कला है. लेकिन यह ‘कलाकारी’ से नहीं ‘दिलदारी’ से ही आती है. सुनो धवल अब वो पुरानी बातें क्यों दोहरानी हैं. ये बताओ कि कल सगाई करनी है या नहीं?”
“पापा सगाई तो कर ही लेते हैं, पर तीन महीने बाद विवाह की तारीख़ तय करते हैं. मुझे लग रहा है कि तब तक शायद कोई ऐसी बात हो, जिससे समय ही अपना फ़ैसला कर दे. पापा विवाह तो वैसे भी कोर्ट में ही करना है.”
“अच्छा,-ठीक है, धवल तुम्हारे निर्णय पर मैं पूरा विश्वास करता हूं. अपनी सहमति देता हूं “
वैसे धवल एक बात हमेशा याद रखना कि इंसान ग़लतियों का ही पुतला है. हम सब ग़लती को सुधारकर ही बेहतरीन बनते हैं. वो परिवार बहुत ही सरल और सहज है. तुम कठोर बनने से पहले सौ बार सोचना.”
“शुक्रिया पापा, देखिए ना यह सगाई भी तो पांच लोगों के बीच में होगी. पापा हम लोग अब समय के उदाहरण पर निर्भर रहेंगे.”
“बेटा, एक बार अच्छी तरह विचार कर लेना कि कहीं यह कोई धोखा तो नहीं होगा. मान लो तीन महीने में कोई ऐसी घटना न घटे और तुम्हें मन मारकर छवि से विवाह करना पड़े.”
“पापा, जो युवती इतनी निडर है कि गुप्त रखनेवाली बात को साफ़ कहकर सगाई कर रही है, तो उसमें कुछ तो नैतिकता होगी.”
धवल को छवि से इतना लगाव हो गया था कि उसने भावी जीवन की अनगिनत कलपनाएं कर रखी थी.
वो छवि को फोन करके अक्सर यही कहता रहता कि छवि मेरी इस सपाट-सी ज़िंदगी में सारी ख़ुशियां तुम्हारे बहाने से ही आ रही हैं. आज तक तो मशीन जैसा काम पर लगा रहता था, पर अब यह दिल तुमको सोचते ही धड़कने लगता है.
छवि अब तुम जल्दी ही मेरे कमरे पर कब्ज़ा कर लो. फिर देखना यह ज़िंदगी कैसे बहार बनती है. आधी तो तुमको सताने में निकाल दूंगा और बाकी तुमको मनाकर मनुहार कर अर्थपूर्ण कर लूंगा…
मगर आज जाने कौन-सा केमिकल लोचा हो गया था कि उसने यह संदेश पढ़कर न उसको संदेश भेजा और ना ही फोन किया.
धवल ने छवि के पापा को ज़रूर फोन किया और यह कहकर समय तय कर दिया कि कल वो समय पर सगाई करने आ रहे हैं.
छवि के पिता को छवि के खुलासे की कतई कोई जानकारी नहीं थी. वो धवल के इस फोन से ज़रा चौंक भी गए, क्योंकि सगाई का यह समय तो एक महीना पहले तय थात, तो फिर धवल ने इतना ज़ोर देकर यह सहमति फिर से क्यों दी होगी. कहीं कोई मांग या कोई ख़ास फ़रमाइश तो नहीं होगी… उनका दिल घबराया और उन्होंने तुरंत धवल के पिता से भी बात कर ली, मगर उस बातचीत में सब कुछ सहज ही था और उन्होंने चैन की सांस ली.


खैर युवा मन की कोई तरंग होगी, इसलिए धवल ने फोन किया होगा, यह सोचकर वो अपने काम पर लगकर तैयारी में रम गए.
उधर छवि भी कम बैचेन नहीं थी. उसको मालूम था कि सारे जहां में धवल जैसा हमसफ़र नहीं मिलेगा और फिर नियति ने तो उसको ख़ुद उस दिन धवल उपहार में दिया था. वो मन ही मन यही सोच रही थी कि अगर धवल ने इंकार कर दिया, तो वो अगले जन्म तक उसका इंतज़ार करेगी और इस जन्म में पल-पल कला की साधना को समर्पित कर देगी. वो घबरा कर सांस ले रही थी कि पापा से छवि को इन दोनों फोन वार्तालाप का पता चला, तो उसने चैन की सांस ली और मीठे-मीठे सपनों मे खो गई.
वो ज़रा-सा ही परेशान हुई कि धवल ने उसको न तो फोन किया और न ही मैसेज भेजा. खैर कहीं बहुत उलझे होंगे… यह सोचकर वो भी मगन हो गई. धवल पूरा दिन बैचेन ही रहा. वो एक दिन भी छवि से बात किए बगैर रह नहीं पाता था. अब कल सीधे सगाई में ही बात करूंगा… यह सोचकर वह ज़रूरी काम निबटाने बाज़ार चला गया.
आज वो लंबी ड्राइव करता हुआ शहर के सबसे पुराने बाज़ार चला गया. उसे अचानक ही होश आया कि वो छवि के घर से बस एक किलोमीटर दूर है. मगर उसने ख़ुद को व्यावहारिक बनाया और जिस दुकान से सामान लेना था, वहां पहुंच गया.
गुलाबजल, इलायची, जायफल आदि उसने पैक करवा ली. अचानक बहुत तेज़ तूफ़ान आ गया. दुकानदार ने कहा कि यह मिट्टी से भरा तूफ़ान है दस मिनट बैठ जाओ, फिर चले जाना. धवल को कोई परेशानी नहीं थी, उसे यूं भी गरम मसालों की ख़ुशबू अच्छी लगती थी. वो कुर्सी पर आराम से बैठ गया. तभी दुकानदार के पास एक फोन आया. किसी ग्राहक का फोन था. सामान की होम डिलीवरी के लिए आग्रह कर रहा था. धवल अचंभे में था कि ग्राहक से साहब कहकर वो दुकानदार सारा ऑर्डर ले रहा था. बात ख़त्म करते हुए दुकानदार बोला, “साहब छवि बिटिया को हमारा प्रणाम कहिएगा.” फिर वो अपने सहायक को सामान की सूची देने लगा.

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धवल कुछ बैचेन हो गया. छवि… अभी उसने छवि को प्रणाम कहा. क्यों कहा?.. यह तो छवि से बीस साल बड़ा होगा, फिर…
“आपने किसी छवि का नाम लिया अभी ” धवल ने आख़िरकार पूछ ही लिया. छवि, यह नाम सुनकर वो दुकानदार पहले चौंका, फिर उत्साहित होकर बोला, “छवि मैडम का नाम… जी हां, छवि जी का सामान भिजवाना है. वो तो साक्षात देवी हैं. मेरी बेटी को विजुअल आर्ट स्कूल मे दाख़िला मिल जाए इसके लिए उसे इतनी बारीक़ी से कला का अभ्यास कराया कि उसका तुरंत दाख़िला हो गया. सच कहूं तो आज के ज़माने के हिसाब से लगभग अनपढ़ आदमी हूं. बस दसवीं तक स्कूल जैसे-तैसे ही गया और फिर यहां खानदानी दुकान पर बैठ गया. छवि मैडम ने तो कितनी बच्चियां गोद ले रखी हैं. उनकी एक आर्ट गैलरी है, वहां नीलामी में पेंटिंग सुधी हाथों में बिक जाती है, मगर वो सब रुपया दान कर देती हैं. बेसहारा बच्चियों को तराशकर योग्य बनाती हैं. छवि मैडम लेकिन बहुत दयालु हैं.” दुकानदार जैसे ही पल भर को ख़ामोश हुआ.
“जी, अच्छा अब तूफ़ान थम गया है.” कहकर धवल वहां से चल दिया. किसी सुकूनदायक मरहम जैसे होते हैं कुछ लोगों के नाम. कोई भी बोलता है, पर सुननेवाले का हर दर्द गायब हो जाता है… यह सोचता हुआ धवल कार चलाता रहा.
उसका दिल बार-बार छवि की तरफ़ झुका जा रहा था. उसे दोबारा छवि से ढेर सारा प्यार हो गया था.
घर आकर उसने पापा को आज दोपहर का वह सब क़िस्सा कह सुनाया. पापा हंसने लगे और बोले, “बेटे, यह संसार ऐसी ही घटनाओं से भरा है. अगर तुम वहां नहीं जाते और तूफ़ान नहीं आता, तो कल सगाई में तुम ज़रा अनमने से रहते. उससे छवि को दुख होता. सबसे कुछ न कुछ ग़लती हो जाती है. सब भूलकर आगे की सोचो और हां धवल मेरी पसंद कभी ग़लत नहीं हो सकती. वो बच्ची बहुत ही होनहार है. तुम उसके साथ सुखी रहोगे. ”
धवल ने प्यार से पापा का हाथ पकड़ लिया. वो बोला, “पापा, हम दोनों आपके साथ जीवन आनंद से गुज़ारेंगे.” पापा ने नम आंखों से उसके गाल पर थपकी दी.

– पूनम पांडे

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Photo Courtesy: Freepik


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