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हिंदी कहानी- डेस्टिनी (Story- Destiny)

”याद रखो, प्रकृति हमारी हर समस्या का निदान अपने समय पर और अपने ढंग से करती है, जबकि हमारे भीतर ही सब्र नहीं होता. हम अपनी समस्या का हल तुरंत और अपने अनुरूप चाहते हैं. यही है हमारे दुखों का कारण. हर इंसान की अपनी एक डेस्टिनी होती है और देर-सबेर उस तक वो अवश्य पहुंचता है.”

 

कहते हैं, ‘प्रकृति में ईश्‍वर का वास होता है.’ जीवन की आपाधापी, दुखों और तनावों से ग्रसित मन प्रकृति के सामीप्य में सुकून पाता है. प्रकृति उसे जीवन के संघर्ष से लड़ने का साहस प्रदान करती है. उसे उसकी परेशानियों से उबरने का रास्ता सुझाती है.
कैलीफ़ोर्निया से न्यूयॉर्क और न्यूयॉर्क से बफैलो सिटी पूरे नौ घंटे की हवाई यात्रा तय करके मैं, स्टेसी प्रकृति से रू-ब-रू होने चली आई थी. न्याग्रा फॉल, जो प्रकृति का एक अद्भुत करिश्मा है, उसके निकट कुछ समय बिताकर मैं अपने थके मन को कुछ विश्राम देना चाहती थी. पति एरिक और चार वर्षीया बेटी एना भी मेरे साथ थे. अमेरिका और कनाडा के बीच इंटरनेशनल बॉर्डर बनाती न्याग्रा नदी, जिस पर 167 फ़ीट की ऊंचाई से गिरता विश्‍व का सबसे बड़ा फॉल, जो अपने तीन हिस्सों- अमेरिकन फॉल, ब्राइडल वेल फॉल और हार्स शू फॉल की वजह से बहुत विशाल दिखाई दे रहा था. यहां के दो प्रमुख आकर्षण ‘केव ऑफ द विंड्स’ और बोट द्वारा ‘मेड ऑफ द मिस्ट’ के रोमांचक अनुभव के पश्‍चात् एरिक और एना के साथ मैं पार्किंग की ओर बढ़ रही थी, लेकिन मेरा मन अब भी उन्हीं विहंगम दृश्यों में खोया हुआ था.
अमेरिकन फॉल और ब्राइडल वेल फॉल पर बनते इंद्रधनुष को देखकर जिस अनिर्वचनीय सुख की अनुभूति मुझे हुई थी, उसे शब्दों में बयां कर पाना संभव नहीं था. अमेरिका का मौसम ऐसा है कि वहां पतझड़ आने से पूर्व पेड़ों के पत्ते अपना रंग बदलना शुरू कर देते हैं. पेड़ों पर लगे लाल, नारंगी, पीले, जामुनी कितने ही रंगों के पत्ते चारों ओर सौंदर्य की छटा बिखेर रहे थे.
चलते-चलते मेरी नज़र बेंच पर बैठी एक भारतीय स्त्री पर पड़ी, जो चारों ओर बिखरे इस अपूर्व सौंदर्य से बेख़बर अपने ही विचारों में खोई हुई थी. साथ बैठे एक युवक-युवती, बातचीत में मशगूल थे. युवती को देखकर मुझे लगा, मानो मैंने उसे कहीं देखा है. मेरे देखते ही देखते वे तीनों अपनी कार की ओर बढ़ गए और मैं भी अपने होटल लौट आई.
लंच के पश्‍चात् एरिक और एना अपने रूम में आराम करने चले गए और मैं होटल के लॉन में कुनकुनी धूप का आनंद लेने के लिए चेयर पर जा बैठी. मुझे यह देखकर सुखद आश्‍चर्य हुआ कि जिस भारतीय स्त्री को मैंने थोड़ी देर पहले देखा था, वो अपने बच्चों के साथ बराबर वाली चेयर पर बैठी थी.
मेरे कानों में बेटे की आवाज़ आई, “मम्मी, तुम ख़ुश दिखाई नहीं दे रही हो. हर समय सोचते रहने से क्या तुम्हारी समस्या हल हो जाएगी? कम से कम यहां आकर तो एंजॉय करो.”
“मैं बहुत ख़ुश हूं बेटा और चिंता भी नहीं कर रही हूं. पता नहीं क्यों तुम भाई-बहन को ऐसा लगता है?” युवक ने अपने कंधे उचकाए, फिर उठकर अंदर चला गया.
उसके जाते ही बेटी ने मम्मी को आड़े हाथों लिया, “मम्मी, स़िर्फ तुम्हें ख़ुश देखने के लिए भाई ने छुट्टी लेकर यहां आने का प्रोग्राम बनाया, वरना अगले महीने पापा के आने पर तो हमें यहां आना ही था. मम्मी, यह कोई इतनी बड़ी प्रॉब्लम नहीं है, जितनी तुमने बना ली है. तुम्हारे चेहरे पर हर व़क़्त तनाव रहता है.” मम्मी ने असहाय भाव से बेटी की ओर देखा. न जाने किस भावना के वशीभूत होकर मैं उनके क़रीब पहुंच गई.
“हैलो, आई एम स्टेसी फ्रॉम कैलीफ़ोर्निया.”
“माई सेल्फ नयना.” लड़की ने तपाक् से हाथ मिलाते हुए मेरा स्वागत किया और अपनी मम्मी की ओर संकेत करके बोली, “शी इज़ माई मदर शिवांगी.” मैं मुस्कुरा दी और बोली, “क्या मैं कुछ देर के लिए आप दोनों को ज्वाइन कर सकती हूं?” “ओह श्योर व्हाय नॉट.” नयना ने अपनी ख़ुशी ज़ाहिर की.
मैं समीप पड़ी चेयर पर बैठ गई और नयना के ख़ूबसूरत चेहरे को निहारते हुए हिंदी में बोली, “लगता है, मैंने तुम्हें पहले भी कहीं देखा है. क्या तुम कभी कैलीफ़ोर्निया गई हो?”
“नो, नेवर.” नयना मुझे हिंदी बोलते देख अचंभित थी. शिवांगी भी हैरान होते हुए बोली, “स्टेसी, तुम कितनी अच्छी हिंदी बोल लेती हो.”
मैं मुस्कुराई, “मुझे बचपन से विभिन्न भाषाएं सीखने का शौक़ है. इंग्लिश के अलावा मैं हिंदी, फ्रेंच और जर्मन भली-भांति बोल सकती हूं.” मैं एक क्षण के लिए रुकी फिर बातों का सूत्र आगे बढ़ाते हुए बोली, “आप दोनों क्या अमेरिका में रहते हैं?”
नयना बोली, “नहीं, हम लोग दिल्ली में रहते हैं. एक महीना पहले न्यूयॉर्क आए हैं. न्यूयॉर्क में मेरा भाई सॉफ़्टवेयर इंजीनियर है. उसके बाद तो मैं, नयना और शिवांगी से काफ़ी देर तक बातें करती रही. जल्दी ही हम आपस में काफ़ी घुल-मिल गए. लगता ही नहीं था कि हम लोग दो अलग-अलग देशों से हैं और जीवन में पहली बार मिले हैं. हां, एक बात अवश्य थी, नयना जितना हंस-बोल रही थी, उतनी ही शिवांगी बुझी-बुझी-सी लग रही थी. ऐसा लगता था जैसे कोई चिंता है, जो उसे अंदर ही अंदर जकड़े हुए है.
मैंने कहा, “शिवांगी, मुझे लग रहा है कि तुम कुछ परेशान हो?” इस पर नयना हंस पड़ी. “मम्मी की तो पूछो मत. इन्हें अपनी परेशानियों से बहुत प्यार है, इसलिए हर वक़्त उन्हें गले लगाए रखती हैं. एक्सक्यूज़ मी स्टेसी. मैं ज़रा बाथ लेकर आती हूं. तब तक तुम और मम्मी गप्पे मारो.” नयना उठकर चली गई.
उसके जाने के बाद मैंने कहा, “शिवांगी, न जाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा है कि मैं तुम्हारी मदद कर सकती हूं. मुझे अपनी प्रॉब्लम तो बताओ.”
“सो काइंड ऑफ यू स्टेसी, लेकिन ऐसी कोई प्रॉब्लम नहीं है.” मुझे लगा अनजाने में ही मैं उनकी व्यक्तिगत ज़िंदगी में झांकने की चेष्टा कर रही थी, इसलिए मैंने उस बात को वहीं ख़त्म कर दिया.
अगली सुबह मेरी नींद जल्दी खुल गई. एरिक और एना अभी सोए हुए थे. रूम के बाहर आकर देखा. चारों ओर धुंध छाई हुई थी. मैंने अपने कोट के कॉलर खड़े किए. कानों को मफ़लर से ढंका और बाहर लॉन में चली आई. रात में ब़र्फ गिरी थी. हरी-हरी घास पर पड़े हुए ब़र्फ के छोटे-छोटे कण ऐसे प्रतीत हो रहे थे, मानो मखमली गलीचे पर श्‍वेत रंग के मोती टंके हुए हों. प्रकृति के इस अनुपम सौंदर्य में मैं खो-सी गई थी कि तभी अपने कंधे पर किसी का स्पर्श महसूस कर मैं पलटी. देखा, हाथ में चाय के दो मग लिए शिवांगी खड़ी थी. मैंने मुस्कुराकर उसे थैंक्स कहा और चाय उसके हाथ से ले ली. गर्म-गर्म चाय से काफ़ी राहत मिली.
शिवांगी बोली, “लगता है तुम बहुत जल्दी उठ जाती हो.”
“हां, सुबह जल्दी उठकर प्रकृति के नज़दीक बैठना, उसे महसूस करना मुझे बहुत अच्छा लगता है. इससे मन को बहुत शांति मिलती है.” शिवांगी ख़ामोश होकर कुछ सोचने लगी. मन की उधेड़बुन चेहरे से साफ़ झलक रही थी.
मैंने टोका, “बात करते-करते तुम कहां खो जाती हो?”
“कहीं नहीं. कल सारी रात सो नहीं पाई. सोचती रही, क्या मैं तुम्हें अपनी प्रॉब्लम बता सकती हूं?”
“ऑफकोर्स बता सकती हो शिवांगी. मैं तुम्हारी कोई मदद कर पाई, तो मुझे बहुत ख़ुशी होगी.” मैंने आत्मीयता से शिवांगी का हाथ थामा और उसे लेकर वहां पड़ी चेयर पर बैठ गई. शिवांगी धीरे-धीरे अपने मन की परतें खोलने लगी.
“मेरी परेशानी और चिंता की वजह नयना का सेटलमेंट है. पांच वर्ष पूर्व इसका विवाह हुआ था. घर-परिवार अच्छा था. नयना बहुत ख़ुश थी, लेकिन सुख इसकी क़िस्मत में नहीं था. विवाह को तीन माह ही बीते थे कि एक सुबह इसका पति ऑफ़िस गया और फिर कभी घर लौटकर नहीं आया. रास्ते में ही एक बस से उसकी बाइक का एक्सीडेंट हो गया और घटनास्थल पर ही उसकी मौत हो गई.
उस दिन से ही नयना की ज़िंदगी बिल्कुल बदल गई. पति दुनिया से क्या गया, इसका सारा सुख-चैन ही समाप्त हो गया. सास-ससुर बात-बात पर लानत और प्रताड़ना देते. नित नए-नए झूठे आरोप इस पर लगाए जाते. इन सबसे तंग आकर हम इसे अपने साथ घर ले आए.
स्टेसी, उस समय नयना को संभालना बहुत कठिन था. हर व़क़्त गुमसुम और उदास रहती थी. उसे दुख से उबारने के लिए हमने उसका मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट में एडमिशन करवा दिया. दो वर्ष के कोर्स के बाद नयना की दिल्ली में अच्छी जॉब भी लग गई. अब पिछले दो वर्षों से मैं उसकी शादी के लिए कोशिश कर रही हूं, लेकिन कहीं कोई बात नहीं बनी. पिछले दिनों एक जगह से काफ़ी उम्मीद बंध गई थी. लड़का इंजीनियर था. दो-तीन महीने तक नयना से बातें भी करता रहा. उसके मां-बाप ने भी इस रिश्ते को अपनी सहमति दे दी थी, किंतु फिर न जाने क्या हुआ कि लड़के का फ़ोन आना बंद हो गया. शायद उसे कोई दूसरी लड़की मिल गई होगी.
स्टेसी, नयना के विवाह को लेकर ही मैं बहुत तनाव में रहती हूं. अक्सर रात-रातभर नींद नहीं आती. कहीं मन नहीं लगता. सोचती हूं, ईश्‍वर ने मेरे ही साथ ऐसा क्यों किया?”
शिवांगी की बातें सुनकर मैं कुछ पल ख़ामोश रही, फिर बोली, “मैंने किसी इंडियन राइटर की बुक में पढ़ा है- ‘एक आदमी अपने सिर पर बोझा लादे ट्रेन में सफ़र कर रहा था. लोगों ने उसे समझाया कि वो अपना बोझा सिर से उतारकर नीचे रख दे, लेकिन वो नहीं माना और सिर पर गठरी लादे पूर्ववत् खड़ा रहा.’ हम सबका भी यही हाल है. हम भी अपने सिर पर चिंताओं की गठरी लादे अपने जीवन का सफ़र तय कर रहे हैं. क्यों नहीं सब कुछ नियति पर छोड़कर हम भारमुक्त हो जाते?
शिवांगी, हर इंसान के जीवन में सुख और दुख दोनों आते हैं. समस्याएं भी सभी के जीवन में आती हैं, किंतु इस ‘क्यों’ का जवाब किसी के पास नहीं होता. ज़रा सोचो, तुम्हारे हर समय तनावग्रस्त रहने से क्या नयना ख़ुश रह सकेगी? नहीं न. हो सकता है, तनावग्रस्त रहकर तुम उसके लिए कोई ग़लत निर्णय ले लो. इसीलिए ख़ुश रहने का प्रयास करो. दुखों की चादर को अपने चारों ओर इस क़दर भी न लपेट लो कि ख़ुशियों का झोंका उसमें प्रवेश ही न कर पाए.
एक बात और, हर समय अपनी ही समस्याओं में घिरे रहने से अच्छा है, हम अपनी सोच की दिशा बदल दें. दूसरों के दुखों से, उनकी समस्याओं से जुड़ने का प्रयास करें. शिवांगी, तुम देखोगी, दूसरों के जीवन में इतने दुख हैं कि उनके सामने तुम्हारा दुख कुछ भी नहीं है.”
“स्टेसी, यह सब कहना बहुत आसान है, पर करना उतना ही मुश्किल. दूसरों को तो हम कुछ भी उपदेश दे सकते हैं, लेकिन जब स्वयं पर पड़ती है, तभी एहसास होता है. बुरा मत मानना स्टेसी, अभी तुम्हारी नई-नई गृहस्थी बसी है. एना भी अभी छोटी है. अभी तुम्हारा समस्याओं से सामना नहीं हुआ है. तनाव जैसी कोई चीज़ तुम्हारे जीवन में नहीं होगी. इसीलिए तुम बड़ी-बड़ी बातें कर रही हो.”
मैं एक पल ध्यान से शिवांगी का चेहरा देखती रही, फिर बोली, “इस दुनिया में ऐसा कोई इंसान है भला, जिसने कभी कोई दुख न देखा हो. दूसरों की तो क्या कहूं, चलो मैं तुम्हें अपने ही बारे में बताती हूं. एरिक के साथ मेरे विवाह को आठ माह ही बीते थे कि एक एक्सीडेंट में एरिक का पैर बुरी तरह कुचल गया. चार महीने तक वो हॉस्पिटल में पड़ा रहा. डॉक्टरों ने ऑपरेशन करके पैर में स्टील की रॉड डाली, इसीलिए अब एरिक स्टिक लेकर चलते हैं. उसके एक वर्ष बाद एना का जन्म हुआ. जन्म से ही एना की बाईं आंख में रोशनी कम थी. एक वर्ष की होते-होते वो बीमार रहने लगी. पता चला, एना के दिल में छेद था. चार माह पूर्व ही उसका बहुत बड़ा ऑपरेशन हुआ है. ईश्‍वर का लाख-लाख शुक्र है, उसकी जान बच गई.”
मेरी बातों ने शिवांगी को अचंभित कर दिया. उसकी आंखों में नन्हीं एना का ख़ूबसूरत प्यारा-सा चेहरा तैर गया. धीमे स्वर में बोली, “स्टेसी, तुम्हें देखकर लगता नहीं कि इस छोटी-सी उम्र में तुम पर दुखों के इतने पहाड़ टूटे हैं, फिर भी तुम हर पल मुस्कुराती रहती हो. दुनिया में हर इंसान तुम्हारे जैसा हिम्मतवाला नहीं हो सकता.”
“शिवांगी, मुझे प्रकृति पर पूरा विश्‍वास है और यह विश्‍वास ही मेरी ताक़त है. कर्म करना इंसान का फ़र्ज़ है, किंतु उसके परिणाम की चिंता नियति पर छोड़ देनी चाहिए. देखो न, एना का जिस समय ऑपरेशन हुआ, मैं और एरिक बहुत परेशान थे. हमारी आर्थिक स्थिति भी डांवाडोल थी. ऐसे में इतने बड़े ऑपरेशन का ख़र्चा उठाना हमारे बस की बात नहीं थी, लेकिन मुझे पूरा विश्‍वास था, प्रकृति कोई न कोई राह अवश्य दिखाएगी. ऐसे में एरिक का मित्र हमारी मदद के लिए आगे बढ़ा. उसने हमें अपना भरपूर सहयोग दिया. फिज़ीकली और फ़ाइनेंशियली भी, यहां तक कि वो अपने पर्सनल काम भी भुला बैठा.
आज अभी वो न्यूयॉर्क से यहां पर आनेवाला है. आज शाम को हमारा कनाडा जाने का प्रोग्राम है. तुम शायद जानती होगी, कनाडा की ओर से न्याग्रा फॉल और अधिक ख़ूबसूरत दिखाई देता है. ख़ासकर रात में बिजली की रोशनी में जगमगाते न्याग्रा फॉल को जो एक बार देख ले, उसे जीवनभर नहीं भूल पाता.”
मैं और शिवांगी अपनी बातों में खोए हुए थे कि एरिक ने आकर बताया, “स्टेसी, राहुल आ गया है.” मैं उत्साहित हो चेयर से उठने लगी. तभी शिवांगी की धीमी-सी आवाज़ मेरे कानों में पड़ी. “राहुल, उस लड़के का नाम भी राहुल था.” मैं सहसा ठिठक गई. “क्या करता था वो?” मैंने पूछा. शिवांगी बोली, “सॉफ़्टवेयर इंजीनियर था. अमेरिकन टेलिकॉम कंपनी ए टी एंड टी में सर्विस कर रहा था. तुम्हारे कैलीफ़ोर्निया में ही.”
मेरी आंखों में सहसा चमक आ गई. अब मैं समझ पाई कि क्यों मुझे ऐसा लग रहा था कि मैंने नयना को कहीं देखा है. हां, मैंने राहुल के पास नयना की फ़ोटो देखी थी. ‘एक्सक्यूज़ मी’ कहते हुए मैं होटल के अपने कमरे में आई. एरिक और राहुल को सब कुछ बताया, तो वे दोनों भी आश्‍चर्यचकित रह गए. उन दोनों के साथ मैं शिवांगी के पास आई. नयना और उसका भाई भी वहीं मौजूद थे.
मैंने कहा, “शिवांगी जानती हो, तुम लोगों का अचानक न्याग्रा फॉल आने का प्लान क्यों बना, क्योंकि नयना की डेस्टिनी उसे बुला रही थी. क्यों, यही है न तुम लोगों का राहुल?” कहकर मैंने राहुल को आगे कर दिया. राहुल को अचानक अपने सामने पाकर वे तीनों अचंभित रह गए. सबको विश करके राहुल खेदपूर्वक बोला, “सॉरी आंटी, इतने दिनों तक मेरे नयना से संपर्क न रख पाने के कारण आप लोगों को दुख पहुंचा. मैं भी क्या करता, पिछले दिनों इतना व्यस्त रहा कि किसी से कॉन्टैक्ट नहीं रख सका.”
“हां, स्टेसी ने बताया, लेकिन एना ठीक हो गई, इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है?” शिवांगी ने कहा. वे तीनों बहुत ख़ुश थे और अब भी एकटक राहुल को निहार रहे थे. उन्हें विश्‍वास ही नहीं हो रहा था कि राहुल इस तरह अचानक उनके सामने आ खड़ा हुआ था. मैंने कहा, “अब इससे पहले कि यह फिर कहीं खो जाए, शीघ्र न्यूयॉर्क जाकर इन दोनों की एंगेजमेंट कर दो.” सभी लोग हंस पड़े. शिवांगी की तरफ़ मुड़कर मैंने कहा, “शिवांगी, तुम व्यर्थ ही इतने तनाव में थी. याद रखो, प्रकृति हमारी हर समस्या का निदान अपने समय पर और अपने ढंग से करती है, जबकि हमारे भीतर ही सब्र नहीं होता. हम अपनी समस्या का हल तुरंत और अपने अनुरूप चाहते हैं. यही है हमारे दुखों का कारण. हर इंसान की अपनी एक डेस्टिनी होती है और देर-सबेर उस तक वो अवश्य पहुंचता है.”
“तुम बिल्कुल ठीक कह रही हो स्टेसी. तुम्हारी वजह से मेरी इतनी बड़ी समस्या सुलझ गई. नयना को उसकी डेस्टिनी मिल गई. मैं इससे अधिक तुम्हें क्या आशीर्वाद दूं कि मेरी उम्र भी एना को लग जाए.” शिवांगी मेरे प्रति कृतज्ञता से भर उठी थी. उसकी आंखों में आंसू भर आए, जिनमें ख़ुशियों के सैकड़ों दीप झिलमिला उठे थे.


                  रेनू मंडल

 

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