'रेणु अब घर को पहले जैसा साफ़-सुथरा नहीं रखती, कपड़े समय पर तैयार नहीं मिलते, नाश्ते में कितने दिनों से बस टोस्ट ही खा रहा हूं… जब देखो ख़ुद को आईने के सामने खड़ी निहारती रहती है…’ समीर ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उसकी ख़्वाहिशों के इतने साइड इफेक्ट होंगे.
आज तीज का उत्सव था. सोलह श्रृंगार से सजी-धजी रेणु का रूप देख समीर उस पर मुग्ध हो रहा था, मगर फिर जल्द ही उदास हो गया. साल में दो-चार तीज-त्योहारों पर उसकी पत्नी रेणु इस तरह तैयार होती थी, बाकी दिन वह समीर की भाषा में कहें, तो झल्ली बनकर घूमती थी.
समीर रेणु से बेइतंहा प्यार करता था. वैसे वो बेहद सीधा-सादा फैमिली पर्सन था, लेकिन उसकी एक कमज़ोरी थी- स्त्री का बनाव-श्रृंगार. वह रेणु को किसी फिल्मी पत्नी की तरह हर वक़्त सोलह श्रृंगार किए हुए, नख से शिख तक सजी-संवरी देखना चाहता था. उसको रेणु से बस ये ही एक शिकायत थी कि वो अपने बनाव-श्रृंगार को लेकर पूर्णतया उदासीन थी.
दूसरी ओर रेणु सुदंर, पढ़ी-लिखी सुघड़ गृहिणी थी. वह गृहकार्यों में इतनी उलझी रहती कि उसे अपनी ओर देखने तक का अवसर न मिलता और न ही उसे इसकी आवश्यकता महसूस होती थी. अक्सर दोनों में इस विषय को लेकर वाद-विवाद होता था, पर फिर बात आई-गई हो जाती.
रेणु ने तीज की सभी पूजा-विधियां संपन्न की और फिर झट से सारा श्रृगांर उतार और साड़ी बदल, वही पुराना गाउन पहन लिया. यह देख समीर पुनः खीज उठा. “रेणु यहां आओ, मुझे तुमसे कुछ बात करनी है.” समीर प्यार से रेणु का हाथ पकड़ते हुए बोला, “रेणु तुम कितनी सुंदर हो, मेरा और मेरे घर का कितना ख़्याल रखती हो, मगर तुममें बस एक कमी है, थोड़ा सज-संवरकर ब्याहता की तरह रहा करो.. कभी तो मेरी ख़्वाहिश पूरी करो.”
कुछ देर सोच में पड़े रहने के बाद रेणु गंभीरता से बोली, “समीर, मैंने इस बारे में बहुत सोचा, मुझे लगता है वाक़ई मैंने तुम्हारी भावनाओं की कद्र नहीं की, लेकिन अब आगे ऐसा नहीं. अच्छा तुम एक लिस्ट बनाओ कि तुम्हारी मुझसे क्या अपेक्षाएं हैं, फिर मैं उस लिस्ट का पूरा-पूरा अनुसरण करूंगी.”
इतना सुनते ही समीर ख़ुशी के मारे उछल पड़ा, वो भागा-भागा पैन और पेपर लाया और अपनी इच्छाओं को सूचीबद्ध करने बैठ गया- सुबह आधा घंटा मार्निंग वॉक और आधा घंटा योगा करना है, घर में भी हमेशा सजी-संवरी साड़ी पहने होनी चाहिए… बाल बने होने चाहिए इत्यादि. समीर की सूची बहुत लंबी थी. रेणु सूची पढ़कर मुस्कुराई और बोली, “मैं इस लिस्ट का पालन करूंगी, लेकिन ध्यान रहे तुम कभी भी मुझे बीच में रोकोगे-टोकोगे नहीं.”
समीर कान पकड़कर बोला, “कभी नहीं.”
समीर को अगले दिन का बेसब्री से इतंज़ार था, उसकी हसीन कल्पनाएं जीवंत होने जा रही थी. वह बहुत ही अच्छे मूड में सोया. अगली सुबह उसने बिस्तर पर पलटकर देखा, तो रेणु गायब थी. समीर ने सोचा शायद तैयार हो रही होगी.. वह अभी नहाई-धोई, सजी संवरी-सी उसके पास आएगी और गालों पर एक चुंबन अंकित कर बड़े ही प्यार से उठने को कहेगी, लेकिन 10 मिनट बीत गए और ऐसा कुछ भी नहीं हुआ.
झक मारकर समीर स्वंय ही उठ गया. देखा तो रेणु घर में नहीं थी, तभी उसे याद आया कि उसकी लिस्ट में सबसे पहला पॉइंट मार्निंग वॉक का था.
"बीबीजी दूध लेलो." तभी बाहर से दूधवाले ने आवाज़ लगाई. उससे निपट वह अभी अख़बार लेकर बैठा ही था कि बाहर से दोबारा हाक लगी, "कचरा…"
“हद है इन लोगों को सुबह-सुबह कुछ और काम नहीं है क्या…” समीर अख़बार पटकते हुए उठा और कचरा देकर बैचेनी से घड़ी देखने लगा.
तभी हांफती हुई रेणु घर के अंदर दाख़िल हुई और सोफे पर मरणासन-सी पसर गई. लगता है अभी चाय का कोई चांस नहीं है.. ऐसा सोचकर समीर सीधा नहाने चला गया. नहाकर सोचा रेणु चाय बना रही होगी, मगर वो रसोई में नहीं थी. देखा तो रेणु टैरेस पर योगा में तल्लीन थी. मरता क्या न करता ख़ुद ही चाय बनाने के लिए चल दिया. उसने वादा जो किया था टोका-टाकी न करने का.
समीर नाश्ते का इंतज़ार कर रहा था, “सॉरी, आज ज़्यादा समय नहीं मिल पाया, इसलिए बस पुलाव ही बनाया है. ऑफिस के लिए भी पुलाव ही रख दिए हैं.” रेणु पुलाव परोसते हुए सफ़ाई देने लगी. अपनी ख़्वाहिशों के साइड इफेक्ट झेलते हुए वह ऑफिस रवाना हो गया. वहां भी समीर का मूड उखड़ा रहा.
शाम को घर लौटा, तो रेणु को देख हैरान रह गया. आज वो किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी.
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आसमानी शिफॉन साड़ी, खुले बाल, चूड़ियों से भरे हाथ, बिंदिया और सिंदूर से सजा माथा… रेणु का यह रूप देखकर उसके चेहरे की खोई मुस्कान लौट आई. उसने रेणु को बांहों मे भरकर चूम लिया. समीर का उस पर यूं मोहित होना रेणु को भी अच्छा लग रहा था. “चलो यार एक कप अच्छी-सी चाय पिला दो, आज सुबह तुम्हारे हाथ की चाय पी कर नहीं गया, तुम्हारी कसम बहुत बुरा दिन गुज़रा…” समीर रेणु के हाथों को चूमते हुए बोला.
“चाय… दरअसल मैं आज रसोई साफ़ नहीं कर पाई. अब इतनी अच्छी साड़ी पहनकर गंदी रसोई में चाय बनाऊंगी, तो सब ख़राब हो जाएगी. चलो आज कही बाहर चलकर चाय पीते हैं. खाना भी बाहर ही खाएंगे."
रेणु का प्रस्ताव सुन समीर हैरान रह गया, “अरे अभी-अभी तो ऑफिस से थका-हारा आकर बैठा हूं. अभी कैसे बाहर चलू.”
“अभी तो कह रहे थे कि तुम्हें ऐसे देखकर एकदम फ्रेश हो गया.. तो क्या झूठ बोल रहे थे.” रेणु इठलाते हुए बोली. अपने ही वक्तव्यों के जाल में उलझे समीर को रेणु के सामने नत्मस्तक होना पड़ा.
समय अपनी रफ़्तार से गुज़र रहा था. रेणु ने अपनी दिनचर्या को लिस्ट के हिसाब से ढाल लिया. अब वो घर से ज़्यादा स्वयं पर ध्यान देने लगी थी. उसी अनुपात में उसके ख़र्चों में भी वृद्धी होने लगी, "आज मुझे फेशियल कराने जाना है, ज़रा 500 सौ रुपए देना… मुझे कुछ कॉस्मेटिक ख़रीदनी है, 1000 रुपए चाहिए, साड़ी की मैचिंग लिप्स्टिक और चूड़ियां लेनी हैं 700 और…" उसकी मांगे अंतहीन होती जा रही थी.
'रेणु अब घर को पहले जैसा साफ़-सुथरा नहीं रखती, कपड़े समय पर तैयार नहीं मिलते, नाश्ते में कितने दिनों से बस टोस्ट ही खा रहा हूं… जब देखो ख़ुद को आईने के सामने खड़ी निहारती रहती है…’ समीर ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उसकी ख़्वाहिशों के इतने साइड इफेक्ट होंगे. एक दिन उसने रेणु को टोकते हुए कहा, “रेणु, ज़रा घर साफ़ रखा करो. देखो मेज पर कितनी धूल जमी है. पूरा घर जालों से भर गया है. क्या तुम्हें ये सब नज़र नहीं आता?”
“नज़र तो आता है, मगर क्या करूं समय ही नहीं मिलता.”
“पहले कैसे सब कर लेती थी?”
“पहले की बात ओर थी. पहले मेरा सारा समय इन्हीं बेकार के कामों में निकल जाया करता था.मैं ख़ुद पर ज़रा भी ध्यान नहीं दे पाती थी… ख़ुद भी थकती थी और तुम्हें भी नाराज़ कर देती थी, मगर तुमने मेरी आंखें खोल दी… देखो मैं तुम्हारी लिस्ट पर सौ प्रतिशत अमल कर रही हूं. अब तो तुम ख़ुश हो ना?” रेणु समीर की गर्दन में बांहें डालते हुए बोली.
“वो तो ठीक है मगर…घर…?”
“तुम घर की चिंता मत करो. मैंने कल एक फुल डे मेड को बुलाया है. 4-5 हज़ार लेगी, पर सब काम संभाल लेगी."
“क्या..? 4-5 हज़ार?” पहले ही एकाएक इतने ख़र्चें बढ़ गए हैं कि घर चलाना मुश्किल हो रहा है, ऊपर से ये नई फ़रमाईश… समीर ने स्वयं को इतना असहाय कभी महसूस नहीं किया था. आज उसे सजी-संवरी रेणु बिल्कुल अच्छी नहीं लग रही थी. उसे वही पुरानी झल्ली रेणु याद आ रही थी. वह हर वक़्त सोचता कि अपने घर की गाड़ी को वापस पटरी पर कैसे लाए, मगर उसे कुछ समझ ना आता.
नहीं… बस बहुत हुआ, मैंने ही अपनी सुखी गृहस्थी को तीतर-बीतर किया है और अब मैं ही इसे ठीक करूंगा. समीर ने दृढ़ निश्चय किया. रात को रेणु जब बेडरूम में आई, तो वह बोला, “रेणु मुझे तुमसे कुछ ज़रूरी बात करनी है.”
“अब क्या हुआ..?” रेणु लापरवाही से बोली.
“प्लीज़ मुझे मेरी पहलीवाली रेणु लौटा दो. वो जो सीधी-साधी थी. मेरा और मेरे घर का ख़्याल रखती थी. जिसके हर काम में प्यार झलकता था. मुझे नहीं चाहिए किसी फिल्मी हीरोइन जैसी बीवी. मुझे नहीं चाहिए झूठा साज-सिंगार. तुम जैसी थी बहुत अच्छी थी… फाड़कर फेंक दो वो लिस्ट… अब मैं तुमसे कभी कोई फ़रमाइश नहीं करूंगा…” समीर भावावेश में बहा चला जा रहा था.
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यह सुन रेणु के चेहरे पर विजयी मुस्कान तैर आई. उसके लिए ये पल असीम आनंददायक था. आज उसने समीर को ग़लत ठहराकर स्वयं को सही साबित कर दिया था. थोड़ी ना-नुकर के बाद रेणु ने समीर के पछतावे +भरे निवेदन को स्वीकार कर लिया.
बहुत दिनों के बाद समीर को सुकूनभरी गहरी नींद आई थी. सुबह आंखें खोली देखा, तो पाया कि रेणु पहले की तरह गृहकार्यों में व्यस्त थी. उसने राहत की सांस ली. आज टेबल पर पहले की तरह उसका मनपसंद नाश्ता लगा था. नाश्ता करके वह ख़ुशी-ख़ुशी ऑफिस चला गया. शाम को वापस घर आते हुए वह सोच रहा था. 'आज तो घर में वही पुरानी झल्ली रेणु मिलेगी… बाल बिखरे होगे, पुराना-सा सूट पहना होगा, किसी न किसी काम में उलझी होगी… मगर घर पहुंचकर देखा, तो स्तब्ध रह गया. सामने सजी-धजी रेणु सामने खड़ी थी. उसे इस रूप में देख समीर भयभीत हो उठा, तो क्या रेणु ने मुझे माफ़ नहीं किया..? वो डरते-डरते घर के अंदर आया, तो पाया कि घर शीशे की तरह चमक रहा था. सब कुछ पहले की तरह व्यवस्थित था.
रेणु चाय लेकर आई और समीर का हाथ पकड़ते हुए बोली, “समीर, मुझे भी आज तुमसे कुछ ज़रूरी बात करनी है.”
रेणु की बात सुन समीर ऐसे अलर्ट होकर बैठ गया जैसे अभी उस पर कोई मुसीबत आनेवाली हो, “ऐसी क्या बात है. मुझसे फिर कोई अपराध हो गया क्या?”
“अपराध तुमसे नहीं, बल्कि मुझसे हुआ है… कल तुम ख़ुद को दोषी मानते हुए मुझसे माफ़ी मांग रहे थे… क्या है तुम्हारा दोष, बस ये ही ना कि तुम अपनी पत्नी को सुंदर रूप में देखना चाहते हो… ये तो कोई दोष नहीं है, ये तो तुम्हारा मेरे प्रति लगाव है… दोषी तुम नहीं, बल्कि मैं हूं. मैंने तुम्हारी मासूम ख़्वाहिश का मज़ाक उड़ाया है. उनका का दमन किया है.”
“अरे ये क्या कह रही हो.” समीर उसे टोकते हुए बोला।
“नहीं मुझे कह लेने दो… मुझे तुम्हारी बार-बार एक ही रट से चिढ़ हो गई थी, इसलिए मैंने तुम्हें सबक सिखाने की सोची… तुम्हें नीचा दिखाने के लिए जान-बूझकर घर को अनदेखा किया. फ़िजूलख़र्ची की. तुम्हें समय देना बंद कर दिया…” रेणु की पलकें आंसुओं से भीग चुकी थी.
“अगर एक स्त्री सच्चे दिल से चाहे, तो घर को भी संवारकर रख सकती है और ख़ुद को भी, मगर मैंने ऐसा नहीं किया… अगर हो सके तो मुझे माफ़ कर दो…”
“नहीं… नहीं… ऐसा मत कहो… तुम मुझे माफ़ कर दो. मैंने अपना इच्छाएं जबरन तुम पर लादना चाही. कभी घर के कामों में तुम्हारा हाथ नहीं बंटाया… लेकिन अब ऐसा नहीं होगा. अब मैं तुम्हारा पूरा ध्यान रखूंगा.” समीर रेणु को गले लगाकर कहता जा रहा था.
“अच्छा चलो ऐसा करते हैं कि एक नई लिस्ट बनाते हैं, जिसमें लिखेंगे कि हमको एक-दूसरे का कैसे ख़्याल रखना है.”
“हे भगवान फिर वही लिस्ट…” रेणु ने अपने माथे पर ज़ोर से हाथ पटका और फिर दोनों हंसने लगे. उनकी हंसी में ना जाने कितनी मासूम ख़्वाहिशों की खिलखिलाहट भी शामिल थी.
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