Short Stories

कहानी- एम्पटी नेस्ट सिंड्रोम (Short Story- Empty Nest Syndrome)

“जीवन, बस कुछ रिश्तों तक सीमित नहीं होता कि उनके दूर हो जाने से सब त्म हो जाए. जीवन बहुत मूल्यवान है. इसका विस्तार करो. यह अवसाद से घिरने के लिए नहीं है. ईश्‍वर के दिए इस अनुपम उपहार का सम्मान करो, प्रेम करो.” एक गहरी सांस लेकर प्रकाश चुप हो गए.

“अरे भई, चाय मिलेगी कि नहीं आज की तारीख़ में.” अख़बार से नज़रें हटाकर रसोईघर की टोह लेते हुए प्रकाश ने ऊंची आवाज़ में पूछा.

कोई जवाब नहीं आया. प्रकाश रसोईघर के दरवाज़े की तरफ़ देखते रहे. कुछ पलों के बाद दोबारा आवाज़ देने ही वाले थे कि आशा एक ट्रे में चाय के दो कप लिए आते दिखी. टेबल पर ट्रे रखकर आशा ने एक कप प्रकाश को दिया और दूसरा कप ख़ुद लेकर सामनेवाले सोफे पर बैठ गई.

सुबह बड़ी ख़ुशगवार थी. अक्टूबर की सुबहें वैसे भी बड़ी मनोहारी होती हैं. बरसात के बाद का धुला-धुला आसमान,

खिली-खिली प्रकृति, ठंड की हल्की ख़ुमारी ओढ़े हवा और पंछियों की उन्मुक्त विभोर कर देनेवाली चहचहाट, नर्म पड़ती धूप.

प्रकाश का मन ख़ुश हो गया. वो आशा से बातें करने लगे. मौसम की ख़ूबसूरती की बातें, बीते वर्षों की बातें, प्रकृति में हुए बदलाव की बातें, आशा के भाई-बहनों के बारे में चर्चा आदि, लेकिन आशा का मन किसी भी चर्चा में नहीं रमा. प्रकाश की बातें वह बड़े ऊपरी मन से सुन रही थी और कभी-कभार गर्दन हिला देती या ‘हूं-हां’ कर देती. चाय ख़त्म होने के साथ ही प्रकाश की बातों का स्टॉक भी ख़त्म हो गया. आशा भी खाली कप और ट्रे उठाकर वापस रसोईघर में चली गई.

प्रकाश एक गहरी सांस भरकर कुछ पल सोच की मुद्रा में गंभीर होकर बैठे रहे. फिर आहिस्ता से उठकर मॉर्निंग वॉक पर निकल गए. पिछले कई महीनों से वे देख रहे थे कि आशा बहुत चुप-चुप-सी रहने लगी है. बहुत ज़्यादा बातें करने की आदत तो वैसे भी आशा की कभी नहीं रही, लेकिन फिर भी उसके चेहरे पर छाई प्रसन्नता और संतोषभरी मुस्कान से घर में एक उजाला-सा छाया रहता था. बात भले ही कम करती थी, तो क्या हुआ, श्रोता तो बहुत अच्छी थी. ध्यान और रुचि से सामनेवाले की बात सुनती थी. पर अब इतने बेमन से सुनती है कि प्रकाश आहत-सा महसूस करने लगते हैं. कोई कुछ बात करना चाहता है और सामनेवाले को मानो आपमें और आपकी बातों से कोई सरोकार ही नहीं है. हार कर प्रकाश भी चुप हो जाते. आशा की मन:स्थिति को वे भी समझते थे. जब से दोनों बेटे नौकरी करने के लिए बाहर सेटल हुए हैं, तब से घर बिल्कुल वीरान लगने लगा है. दो साल हो गए बड़े बेटे को बैंगलुरू में सेटल हुए और एक साल हो गया है छोटे बेटे को हैदराबाद में सेटल हुए. छोटा बेटा तो काम के सिलसिले में कंपनी की तरफ़ से 10 महीनों से जापान गया हुआ है. जब दोनों पढ़ाई कर रहे थे, तब परीक्षा के बाद छुट्टियों में वे घर आते रहते थे, लेकिन नौकरी लगने के बाद काम की व्यस्तता इतनी बढ़ गई है कि अब तो  घर आना भी बंद हो गया. तभी से आशा चुप-चुप रहने लगी है. पहले प्रकाश ने यह सोचकर ध्यान नहीं दिया कि कुछ दिनों में आशा को भी आदत हो जाएगी इन नई परिस्थितियों की, लेकिन अब उन्हें चिंता होने लगी. आशा का न काम में मन लगता और न तो वह ठीक से खाना खा रही है. ऐसे तो बीमार पड़ जाएगी.

अपनी सोच में डूबे वे कब पासवाले पार्क में पहुंच गए, उन्हें पता ही नहीं चला. जब पीछे से वीरेंद्र ने आवाज़ लगाई, तब प्रकाश की तंद्रा भंग हुई. वीरेंद्र पास की बिल्डिंग में ही रहते थे और रोज़ सुबह पार्क में आकर मिलते. दोनों आज भी रोज़ की तरह पार्क के चक्कर लगाने लगे और फिर एक बेंच पर बैठकर बातें करने लगे. दो मिनट की बातचीत में ही वीरेंद्र ने भांप लिया कि प्रकाश कुछ उदास है.

यह भी पढ़ेरिश्तों में मिठास बनाए रखने के 50 मंत्र (50 Secrets For Happier Family Life)

“क्या बात है यार! सब ठीक तो है. कुछ उदास लग रहे हो?” वीरेंद्र ने आत्मीयता से पूछा.

“आशा को लेकर परेशान हूं थोड़ा.” प्रकाश ने बोझिल होकर जवाब दिया.

“अरे, क्या हुआ भाभी को?”

“महीनों हो गए, डिप्रेस जैसी हो गई है. न बात करती है, न ही कुछ खाती-पीती है ढंग से. अजीब-सी होती जा

रही है दिन-ब-दिन. पांच साल की सर्विस और बची है मेरी, लेकिन समझ नहीं आ रहा है कि नौकरी करूं या नहीं.” प्रकाश के स्वर में चिंता थी.

वीरेंद्र ने कुछ देर सोचने के बाद कहा, “मेरा एक मित्र मनोवैज्ञानिक है. हम चलकर उससे बात कर सकते हैं. शायद वह कुछ हल बताए इस समस्या का. पहले हम दोनों ही मिल आते हैं, फिर अगर ज़रूरत पड़ी, तो भाभी को भी ले जाएंगे. डॉक्टर की तरह नहीं एक मित्र की तरह ही बात करेंगे.”

वीरेंद्र का सुझाव प्रकाश को पसंद आया. दूसरे दिन ही दोनों डॉ. दीपेश के पास बैठकर आशा की समस्या पर विचार कर रहे थे. सारी बातें ध्यानपूर्वक सुनने के बाद दीपेश ने कहना शुरू किया.

“महत्वाकांक्षी बच्चों के शहर या देश के बाहर सेटल हो जाने के कारण शहरों की महिलाएं इस अवसाद का शिकार होने लगी हैं. इसे ‘एम्पटी नेस्ट सिंड्रोम’ कहते हैं. 40 से ऊपर की महिलाएं, जो शिक्षित भी हैं, लेकिन विवाह के बाद उन्होंने अपना ध्यान स़िर्फ परिवार और बच्चों पर पूरी तरह केंद्रित कर दिया था. पति के नौकरी या व्यवसाय में व्यस्त हो जाने तथा बच्चों की शिक्षा या नौकरी के चलते बाहर सेटल हो जाने के कारण एक बड़ा वैक्यूम या शून्यता महसूस करती हैं, जिसमें उनकी असली पहचान खो जाती है. वे अचानक महसूस करने लगती हैं कि उनकी कोई वैल्यू ही नहीं है. वे अकेली हो गई हैं. साथ ही इस उम्र में हार्मोनल चेंजेस भी अपना प्रभाव डालते हैं.”

“हां, आजकल एकल परिवार के चलन के बाद से महिलाओं के अकेले रह जाने की समस्या और भी बढ़ गई है. पहले संयुक्त परिवार होने से स्त्रियां घर में ही अपनी समस्याओं, भावनाओं को

एक-दूसरे से कह-सुनकर अपना मन हल्का कर लेती थीं. अपने बच्चे बाहर भी चले गए, तब भी अन्य सदस्यों के रहने से वे शारीरिक-मानसिक रूप से व्यस्त रहती थीं, तो अकेलेपन या अवसाद से दूर रहती थीं.” वीरेंद्र ने कहा.

“हां सही है. ‘एम्पटी नेस्ट सिंड्रोम’ आधुनिक एकल परिवारों की ही देन है. दरअसल, अधिकांश महिलाओं की आदत होती है कि वे अपने लिए कुछ नहीं रखतीं. सब कुछ पति-बच्चों में बांट देती हैं. वे भूल जाती हैं कि वे ख़ुद भी ख़ुद का प्यार पाने की सबसे पहली अधिकारी हैं. वे सारा प्यार तो परिवार को बांट देती हैं. नतीजा, उनके जाने के बाद वे शून्य से घिर जाती हैं, क्योंकि उन्होंने स्वयं से प्यार करना, अपने लिए जीना कभी सीखा ही नहीं.” दीपेश ने बताया.

“तो इसका हल क्या है? आशा को इस अवसाद से कैसे उबारूं?” प्रकाश ने परेशान होकर पूछा.

“कोई पुरानी हॉबी हो, जो व्यस्तता के चलते छूट गई हो. क्लब आदि जॉइन करे, ताकि अधिक से अधिक व्यस्त रह सके, लेकिन यह सब करने से पहले ‘लव योर सेल्फ’ यानी ‘ख़ुद से प्यार करो’ की सोच विकसित करना ज़रूरी है. मात्र त्याग की मूर्ति बने रहने से कुछ नहीं होगा.” दीपेश ने बताया.

उसे धन्यवाद देकर वीरेंद्र और प्रकाश बाहर निकले. प्रकाश परेशान थे. आज तक तो उन्हें पता ही नहीं कि आशा की कोई ऐसी हॉबी भी है. कभी किसी चीज़ में रुचि लेते देखा भी नहीं उसे, सिवाय घर के कामों और बच्चों के. न संगीत आदि सुनने में ही कभी दिलचस्पी देखी. ऐसे में उसके लिए क्या किया जाए. ‘लव योर सेल्फ’ की सोच कैसे पैदा की जाए उसके भीतर? जब वह ख़ुद से प्यार करना सीखेगी, तभी ख़ुद की पसंद का कोई काम करके ख़ुश रह पाएगी. पर यही तो सबसे कठिन था, उसे ख़ुद से प्यार करना कैसे सिखाया जाए? इस समस्या से भी वीरेंद्र ने ही उसे बाहर निकाला.

यह भी पढ़ेमन की बात- एक छोटा बच्चा (Motivational Story- Ek Chhota Bachcha)

“मेरे एक आत्मीय परिचित हैं राठौड़जी. आयु में बड़े हैं, लेकिन पति-पत्नी दोनों ही बहुत ज़िंदादिल और मिलनसार हैं. भाभीजी को उनसे मिलवाने ले चलते हैं.” वीरेंद्र ने कहा.

“लेकिन उससे क्या होगा?” प्रकाश ने पूछा.

“तुम चलो तो.” वीरेंद्र ने ज़ोर दिया.

दूसरे दिन वीरेंद्र, प्रकाश और आशा को एक क्लब में ले गया और राठौड़जी तथा उनकी पत्नी से मिलवाया. दोनों इतने ख़ुशमिज़ाज थे कि बात-बात पर ठहाके लगाते. उनके आसपास के सभी लोग ख़ुश दिख रहे थे. दोनों आशा से बहुत आत्मीयता से मिले. उनके कारण पूरे क्लब का माहौल ख़ुशनुमा रहता. ऐसा लग रहा था जैसे दोनों मुक्त हाथों से सबको ख़ुशियां बांट रहे थे. दोनों के चेहरों पर एक तेजस्वी उजाला था. आशा वहां भी अनमनी-सी ही रही. न हंसी, न किसी गतिविधि में शामिल हुई. दो-तीन घंटे बाद प्रकाश उसे लेकर घर आ गए.

“कैसा लगा मिस्टर राठौड़ और उनकी पत्नी से मिलकर? कितने ख़ुशमिज़ाज हैं न दोनों. ज़िंदादिल, जीवन के आनंद से भरपूर.” प्रकाश ने कहा.

“जब जीवन में कोई तनाव, परेशानी,

अकेलापन न हो, तो कौन भला ख़ुश न रहेगा.” आशा उदास स्वर में बोली.

“तुम्हें पता है आशा, वीरेंद्र ने बताया मुझे क्लब में. मिस्टर राठौड़ का बड़ा बेटा भारतीय सेना में मेजर था. डेढ़ बरस पहले सीमा पर तैनात था. आतंकवादियों से लड़ते हुए शहीद हो गया. 28 वर्ष की अल्पायु में उनका जवान बेटा चल बसा. क्या उन्हें दुख नहीं होगा बेटे की मृत्यु का?” प्रकाश दर्दभरे स्वर में बोले.

आशा अचानक स्तब्ध-सी हो गई.

“और पिछले आठ माह से उनका छोटा बेटा भी कश्मीर के अति संवेदनशील इलाके में तैनात है, जहां क़दम-क़दम पर मौत का ख़तरा सिर पर मंडराता रहता है. तुम्हारे दोनों बेटे तो अच्छी नौकरियों पर ख़ुशहाल हैं ना, सुरक्षित हैं. तब भी तुम उनकी याद में अवसाद से घिरी हो. बताओ क्या तुम्हारा दर्द सच में राठौड़जी और उनकी पत्नी के दर्द से बड़ा है? प्रकाश ने प्रश्‍न किया.

आशा  का  सिर  झुक  गया  और  वह कुछ बोल नहीं पाई.

“तब भी दोनों इतने प्रसन्न रहते हैं कि स़िर्फ ख़ुद ही नहीं, दूसरों को भी ख़ुशियां बांटते हैं, क्योंकि उन्होंने प्रेम का मार्ग चुना ख़ुद के लिए. वे स्वयं से प्रेम करते हैं, तभी वे दूसरों को भी प्रेम करके ख़ुश रहते हैं. वे जीवन का मूल्य समझते हैं, तभी उन्होंने ख़ुद को अपने परिवार तक सीमित, संकीर्ण न रखकर प्रेम बांटकर अपना परिवार बढ़ा लिया. वे न जाने कितने बेसहारा लोगों को सहारा देते हैं. दुखियों को सांत्वना देते हैं. जीवन, बस कुछ रिश्तों तक सीमित नहीं होता कि उनके दूर हो जाने से सब ख़त्म हो जाए. जीवन बहुत मूल्यवान है. इसका विस्तार करो. यह अवसाद से घिरने के लिए नहीं है. ईश्‍वर के दिए इस अनुपम उपहार का सम्मान करो, प्रेम करो.” एक गहरी सांस लेकर प्रकाश चुप हो गए.

जब सुबह प्रकाश की नींद खुली, तो उन्होंने देखा कि घर में उनके फेवरेट पुराने गाने बज रहे थे. वे हाथ-मुंह धोकर आए, तो आशा चाय की ट्रे लेकर खड़ी थी. ट्रे में सुंदर नए कप रखे थे, जिन पर सूरजमुखी के फूल बने हुए थे. आशा ने भी सुंदर चटक रंग की साड़ी पहनी थी. उसके चेहरे की मुस्कुराहट ने पिछले महीनों की सारी अवसादपूर्ण मलीनता को धो दिया.

“सुनो, आज बुक स्टोर चलेंगे. मुझे किताबें, ख़ासकर बंगाली लेखकों के उपन्यास पढ़ने का बहुत शौक़ था. शरत बाबू, आशापूर्णा देवी को अब ़फुर्सत से पढ़ना चाहती हूं और हर छुट्टीवाले दिन हम भी क्लब चला करेंगे. आपने सही कहा, अपने बच्चों की ज़िम्मेदारी से मुक्त होने के बाद समाज के विकास में योगदान देना ही जीवन की सार्थकता है. बच्चे तो अपने नए जीवन में ख़ुश हैं और हम उनकी याद में अवसाद में घिर जाएं, ये ठीक नहीं है. जीवन का और भी कोई उद्देश्य होना चाहिए. अब हम भी राठौड़ दंपति के साथ मिलकर काम करेंगे.” आशा उत्साह से बोली.

“हां ज़रूर, जैसा तुम कहो. आज तुम्हें फिर पुराने रूप में देखकर मुझे बहुत ख़ुशी हो रही है.”

प्रकाश ने कहा तो आशा ने मुस्कुराकर उनके कंधे पर सिर रख दिया. खिड़की से आती सुनहरी, उजली किरणें पूरे कमरे में फैल गईं.

डॉ. विनीता राहुरीकर

अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करें – SHORT STORiES

Usha Gupta

Share
Published by
Usha Gupta

Recent Posts

कहानी- बिट्टन बुआ‌ (Short Story- Bittan Bua)

बुआ एकदम गंभीर हो गईं, "देख! सबसे ख़राब औरत पता है कौन सी होती है,…

March 29, 2024

 ये रिश्ता क्या केहलाता है फेम अभिनेत्रीने अनोख्या अंदाजात केलं फोटोशूट, दिसला संपूर्ण परिवार (Mom-To-Be Mohena Kumari Shares Maternity Photoshoot Pics With Whole Family)

'ये रिश्ता क्या कहलाता है' या लोकप्रिय टीव्ही शोमध्ये कीर्ती मनीष गोयनची व्यक्तिरेखा साकारून घराघरात…

March 29, 2024

आवरा तुमची भूक (Curb Your Appetite)

खाण्यापिण्याचे शौकीन असणार्‍यांना, आपला जन्म खाण्यासाठीच झाला आहे, असे वाटते. त्यामुळे होतं काय की, भूक…

March 29, 2024

‘टायटॅनिक’मधील रोजचा जीव वाचवणाऱ्या ‘त्या’ आयकॉनिक दरवाज्याचा लिलाव; रोजच्या ड्रेसचीही लागली बोली (‘Titanic’ door that saved Kate Winslet sells for whopping $718,750)

काही चित्रपट असे असतात, ज्यांनी प्रेक्षकांच्या मनात एक विशेष स्थान निर्माण केलेले असते. टायटॅनिक (Titanic)…

March 29, 2024

शिमग्याची पालखी आणि कोकणातलं घर…. रवी जाधव यांनी शेअर केला खास व्हिडिओ ( Ravi Jadhav Share Kokan Shimga Video)

मराठी आणि आता हिंदीतलेही लोकप्रिय दिग्दर्शक रवी जाधव यांनी नुकताच आपल्या कोकणाच्या घरी शिमग्याचा आनंद…

March 29, 2024
© Merisaheli