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कहानी- फॉल्स पैराडाइज़ (Short Story- False Paradise)

“वैभव, तुम इतने बड़े ओहदे पर हो, इस तरह का हंसी-मज़ाक क्या तुम्हें सूट करता है? डीसेंट रहना चाहिए तुम्हें. क्या बच्चों की तरह संडे को कैरमबोर्ड खेलने बैठ जाते हो. खेलना ही है, तो चेस खेलो या फिर ताश.”

“यह घर है पायल. यहां अगर खुलकर नहीं रहूंगा, तो अपनेपन की फीलिंग कैसे आएगी? मैं तो कहता हूं कि तुम भी हमारे साथ खेला करो. कान में ईयरफोन लगाकर म्यूज़िक सुनने से कहीं ज़्यादा रिलैक्सेशन मिलता है अपनों के साथ छोटी-छोटी ख़ुशियां बांटने में.”

हर ओर गहमा-गहमी थी… उस गहमा-गहमी का असर पड़ोस तक भी पहुंच गया था. शोर इतना ज़्यादा था कि दो बार बोलने पर ही, वह भी चिल्लाकर, बात कानों तक पहुंचती थी, लेकिन ये आवाज़ें, यह कोलाहल, हर तरफ़ फैला यह अस्त-व्यस्त माहौल खल नहीं रहा था. सब आनंदमग्न थे. घर पर आनेवालों की संख्या भी लगातार बढ़ती ही जा रही थी.

शांतिदेवी तो चक्करघिन्नी-सी हर ओर घूम रही थीं. हर एक चीज़ कितने चाव से ख़रीदकर लाई हैं. आख़िर उनके इकलौते बेटे का ब्याह जो है आज. उसका घर बस जाए, बस यही तो उनकी चाहत थी. इसीलिए जब वैभव ने मां से कहा कि वह पायल से शादी करना चाहता है, तो बेटे के निर्णय पर आपत्ति जताए बगैर तुरंत उन्होंने सहमति दे दी थी. उनके पति को हालांकि थोड़ी आपत्ति थी कि पायल कुछ ज़्यादा ही हाई-फाई क़िस्म की लगती है, पर तब शांतिदेवी ने यह कहकर उन्हें तैयार कर लिया था कि उसे हमारे घर आना है, अपने रंग-ढंग में उसे ढाल लेंगे. प्यार मिलेगा, तो वह ख़ुद ही हमारे तौर-तरी़के अपना लेगी.

वैभव को भी पूरा यक़ीन था कि उसकी मां, जो किसी को भी अपना बनाने की क्षमता रखती  हैं, उनके लिए पायल को सहज मन से अपना लेना कठिन नहीं होगा. “वैसे भी सास-बहू के बीच झगड़ा न हो, तो घर में रौनक़ नहीं रहती,” वह अक्सर हंसकर मां को कहता. शांतिदेवी ख़ुद एक प्रोफेसर थीं और वैभव के पिता एक बड़ी कंपनी के डायरेक्टर. बड़ी बहन का विवाह हो चुका था, जो स्वयं डॉक्टर थी और वैभव तो मल्टीनेशनल कंपनी में इंजीनियर था. एक तरह से वैभव की फैमिली को न्युक्लीयर फैमिली कहा जा सकता था, पर कोठी के ऊपर के एक-एक फ्लोर पर उसके बड़े व छोटे चाचा रहते थे और दो कोठी छोड़ उसकी बुआ रहती थीं. आपसी जुड़ाव इतना था कि संयुक्त परिवार ही लगता था वह, इसीलिए तो उत्सवों पर उनके घरों में मेला-सा लग जाता था.

इतनी एजुकेटेड फैमिली की बहू बनना किसी भी लड़की का सपना हो सकता है और पायल तो चाहती ही थी ऐसा ही परिवार, क्योंकि वह ख़ुद एक बड़ी कंपनी में सीईओ थी. कार, मोटा वेतन और समाज में रिस्पेक्ट… सब कुछ था उसके पास.

“वैभव, मुझे तुम्हारी फैमिली बहुत अच्छी लगती है, एकदम मॉडर्न विचार हैं तुम्हारे मम्मी-पापा के. मुझे नहीं लगता कि उनके साथ एडजस्ट करने में कोई प्रॉब्लम आएगी. तुम तो जानते ही हो कि मुझे दख़लअंदाज़ी पसंद नहीं है.” अक्सर पायल वैभव से कहती, तो वह हंस पड़ता. “डोंट वरी पायल, जब तुम मेरे साथ-साथ मेरे मम्मी-पापा को अपना लोगी, तो दिक़्क़त नहीं आएगी.”

शादी के दौरान वैभव और पायल की ख़ुशी देखते ही बनती थी. पायल अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी और पिता का चूंकि बहुत बड़ा बिज़नेस था, तो पैसों की कभी कोई कमी नहीं रही. फाइव स्टार होटल में उन्होंने शादी की. वैभव के सारे रिश्तेदारों को महंगे गिफ्ट्स दिए और पायल को एक से बढ़कर एक चीज़ उन्होंने दी.

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वैभव ने पायल से शादी उसके पैसों के कारण नहीं, उसकी योग्यता की वजह से की थी, इसलिए वह दहेज के ख़िलाफ़ था. शांतिदेवी को भी पायल के घरवालों का दिखावा खटका था, पर उन्होंने इस बात को यह सोचकर नज़रअंदाज़ कर दिया था कि पायल इकलौती संतान है, तो उसके माता-पिता के भी अरमान होंगे.

शादी के बाद बहुत धूमधाम से पायल का स्वागत किया गया. बहन ने द्वार रोकने का नेग भी लिया और रिश्ते की भाभियों ने देवर से छेड़छाड़ भी की. सारी रस्में भी हुईं और फिर सुबह चार बजे वैभव और पायल को अपने कमरे में जाने का मौक़ा मिला.

“उफ़्, मैंने नहीं सोचा था कि एक प्रोफेसर होने के बावजूद तुम्हारी मां इतने पुराने विचारों की होंगी. आजकल कौन इतनी रस्में करता है. वैभव, ताज्जुब हो रहा था कि तुम भी उन सब रस्मों को एंजॉय कर रहे थे. कितनी थक गई हूं मैं. पूरी रात बर्बाद हो गई. कितनी भीड़ है तुम्हारे घर में. इतने रिश्तेदार, बाप रे, मैं यह सब बर्दाश्त नहीं कर सकती. हर किसी के पांव छुओ… तुम्हारा परिवार अभी भी इन परंपराओं में जकड़ा हुआ है.

एक हमारा परिवार है, छोटी फैमिली. मम्मी-पापा इन सब चक्करों में नहीं पड़ते. देखा था न शादी में स़िर्फ बिज़नेस के लोग ही थे. परिवार के लोग कम ही थे. अब मुझे सोने दो.”  पायल ने नाइटी पहनते हुए कहा और गुडनाइट कह एक ओर करवट लेकर सो गई. वैभव उसकी बात सुन परेशान हो उठा. फिर उसने सोचा कि वह थक गई है, इसलिए ऐसा रिएक्ट कर रही है.

अगले दिन रात की फ्लाइट से वे सिंगापुर के लिए निकल गए. हफ़्ते बाद जब वे लौटे, तो पायल की ख़ुशी देखते ही बनती थी. वैभव के मम्मी-पापा और बहन के लिए वह गिफ्ट लाई थी. “बेटा, अगली बार अगर गिफ्ट लाओ, तो दोनों चाचा के परिवारों के लिए भी लाना.” शांतिदेवी ने टोका, तो पायल हैरानी से बोली, “पर मम्मी, दे आर नॉट आवर फैमिली.”

“पायल, बेशक हम लोग अलग-अलग फ्लोर पर रहते हैं, पर हैं एक ही परिवार. इसलिए अगली बार ध्यान रखना.” ऐसी कोई न कोई घटना रोज़ ही हो जाती. पायल ने तो यह सोचकर वैभव से शादी की थी कि उसके घर में एक खुला वातावरण होगा, वह अपने तरी़के से जी सकेगी. हालांकि उसके आने-जाने या मनचाहे कपड़े पहनने पर किसी ने रोक नहीं लगाई थी, न ही रात की पार्टियां  अटेंड करने पर किसी को आपत्ति थी, फिर भी उसे लगता था कि वह आज़ादी से सांस भी नहीं ले पा रही है. वह घर आती, तो कभी कोई चाची बैठी होती, कभी कोई ननद या देवर. वैभव को उनसे हंसी-मज़ाक करते देख वह चिढ़ जाती.

“वैभव, तुम इतने बड़े ओहदे पर हो, इस तरह का हंसी-मज़ाक क्या तुम्हें सूट करता है? डीसेंट रहना चाहिए तुम्हें. क्या बच्चों की तरह संडे को कैरमबोर्ड खेलने बैठ जाते हो. खेलना ही है, तो चेस खेलो या फिर ताश.”

“यह घर है पायल. यहां अगर खुलकर नहीं रहूंगा, तो अपनेपन की फीलिंग कैसे आएगी? मैं तो कहता हूं कि तुम भी हमारे साथ खेला करो. कान में ईयरफोन लगाकर म्यूज़िक सुनने से कहीं ज़्यादा रिलैक्सेशन मिलता है अपनों के साथ छोटी-छोटी ख़ुशियां बांटने में.”

“वैभव, बिहेव लाइक ऐन एजुकेटेड पर्सन. मैं देख रही हूं कि तुम्हारी फैमिली में सभी ऐसे हैं. बड़े चाचा आईएएस अफ़सर हैं, पर व्यवहार एक लोअर मिडिल क्लास की तरह करते हैं. और तो और, तुम्हारी छोटी चाची इंटीरियर डिज़ाइनर हैं, पर घर में ख़ुद कितनी सादगी से रहती हैं. क्लास नाम की भी कोई चीज़ होती है, वी नीड टू मेंटेन इट. इलीट क्लास के लोग कम बोलते हैं, सोफिस्टीकेटेड ढंग से रहते हैं, लाइक माई पैरेंट्स.”

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“हां, जो मुस्कुराते भी नाप-तौल के हैं. मुझे समझ नहीं आता कि तुम हर बार एजुकेटेड लोगों का ताना क्यों देने लगती हो? हम अगर शिक्षित हैं, तो क्या अपने संस्कारों को न मानें, संबंधों की कद्र न करें और सहजता से न जीएं, ऐसा किस क़िताब में लिखा है?”

धीरे-धीरे पायल और वैभव की बहस उनके संबंधों में कड़वाहट लाने लगी थी. पायल की महत्वाकांक्षा और ख़ुद को सबसे परफेक्ट और स्मार्ट मानने का सुपीरियॉरिटी कॉम्प्लैक्स उसे वैभव के साथ-साथ सबसे दूर कर रहा था. पूरा परिवार जब एक साथ बैठा होता, तो वह अपने कमरे में बैठी लैपटॉप पर काम कर रही होती. रिश्तों की सोंधी सुगंध को नकारती वह एक ऐसे फॉल्स पैराडाइज़ में जी रही थी, जिसमें ऊपरी चमक-दमक और अपने को बेहतर साबित करने की होड़-सी लगी रहती है, जिसमें बच्चों से भी एक दूरी बनाकर रखना तहज़ीब माना जाता है. पायल ने भी शायद कभी नज़दीक़ से अपने पैरेंट्स के प्यार को महसूस नहीं किया था, इसलिए वह समझ नहीं पा रही थी कि रिश्तों की महक ज़िंदगी को सुवासित करने की कितनी क्षमता रखती है.

शांतिदेवी पायल के साथ एडजस्ट करने की कोशिश करतीं, पर पायल बदलने को तैयार ही नहीं थी. एक-दो बार उन्होंने वैभव से बातों-बातों में कहा भी कि अगर वह चाहे, तो अलग रह सकता है, पर वैभव के लिए ऐसा सोचना भी असंभव था. उसे मां की गोद में सिर रखकर लेटना अभी भी अच्छा लगता था, उसे पापा के साथ सैर करने में मज़ा आता था और बहन की चुटिया खींचने में वह शर्म महसूस नहीं करता था. पायल ये सब देख चिढ़ जाती.

“तुम लोग पढ़े-लिखे गंवार हो.” वह कहती तो वैभव खून का घूंट पीकर रह जाता. वह अजीब-सी मनोस्थिति से जूझ रहा था. उनकी शादी हुए छह महीने बीत चुके थे, लेकिन पायल अभी भी एडजस्ट नहीं हुई थी. सच तो यह था कि वह एडजस्ट होना चाहती ही नहीं थी, इसलिए वैभव पर ज़ोर डालती रहती कि उन्हें अपने फ्लैट में जाकर रहना चाहिए, जो उसके पापा ने उसके नाम से ख़रीदा था.

“तुम्हें यहां क्या दिक़्क़त है? तुम देर रात घर लौटती हो, टाइट जींस पहनती हो और स़िर्फ अपने करियर के बारे में सोचती हो. कभी सोचा है कि तुमने आज तक किचन में पैर तक नहीं रखा है. मम्मी ने कभी तुम्हें इस बात का ताना दिया क्या? तुम अपने मन की करती हो, दूसरों की भावनाओं के बारे में कभी सोचती तक नहीं हो. फिर क्यों अलग होना चाहती हो? आख़िर किस चीज़ की कमी है तुम्हें यहां?” एक दिन वैभव का आक्रोश फट गया था.

“मैं किचन में क्यों जाऊं? असल में क़ामयाब हो जाने के बावजूद तुम लोगों की सोच मिडिल क्लास ही है, आगे बढ़ने के बारे में सोचना ही नहीं चाहते.” उस दिन पायल ने सारी मर्यादाएं पार कर दी थीं और सूटकेस लेकर मायके चली गई थी. वैभव ने जब फोन किया था, तब पायल ने यही कहा था कि जिस दिन अलग होने की सोचो, तभी मैं वापस आऊंगी, वह भी अपने फ्लैट में.

पायल को गए एक महीना बीत गया था. वैभव की चुप्पी के साथ घर में भी सन्नाटा पसरा रहता. एक दिन शाम के समय पायल का फोन आया. वह रो रही थी. “वैभव, पापा के बिज़नेस में भारी नुक़सान हो गया है. बैंक से जो लोन लिया था, वह चुका नहीं सके, तो बैंक हमारे घर पर कब्ज़ा कर रहा है. हमारी मदद करने के लिए कोई नहीं है. कोई भी रिश्तेदार और मित्र मदद नहीं कर रहे. आएगा भी क्यों, पापा ने उनसे कभी संबंध बनाकर ही नहीं रखे थे. प्लीज़ हेल्प मी, मेरी कंपनी भी ज़्यादा लोन नहीं दे रही है. जो मेरी सेविंग्स हैं, वह काफ़ी नहीं हैं. हमारा सब कुछ बिक चुका है.”

पायल के घर पहुंचने में वैभव के सारे परिवार ने एक पल की भी देर नहीं की. किसी ने एक बार भी उसके कटु व्यवहार का उलाहना नहीं दिया. वैभव ने मां को देखा, तो वह बोलीं, “बेटा है तो वह अपनी ही न. भूल जा पिछली बातें. अभी उसे हमारी आवश्यकता है.” बड़े चाचा ने अपने रसूख़ से मकान पर कब्ज़ा होने से रोका और सबने मिलकर कर्ज़ की थोड़ी रक़म की अदायगी कर उसे चुकाने की मोहलत भी बढ़वा ली.

पायल की आंखों से निरंतर आंसू बह रहे थे. हालांकि अभी भी वह शब्दों से माफ़ी मांगने में हिचक रही थी, पर उसके झर-झर बहते आंसू कह रहे थे कि वह अपने फॉल्स पैराडाइज़ से बाहर निकल आई है. शांतिदेवी के गले से लगते ही उसे महसूस हुआ कि रिश्तों की सोंधी महक कैसी होती है. पहली बार उसे महसूस हुआ था कि ममता का आंचल कितना सुकूनदायक और सुरक्षित होता है.

सुमन बाजपेयी

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