Uncategorized

कहानी- खाली कमरे के मेहमान (Story- Khali Kamare Ke Mehman)

“पागलोंवाली बात है तो पागलोंवाली ही सही. जानते हैं पापाजी, जब मैंने यूएस की अपनी अच्छी-ख़ासी नौकरी छोड़ अपने माता-पिता के साथ रहने के लिए भारत आने का निर्णय लिया, तो वहां भी सबने मुझे यही कहा कि मैं पागलोंवाली बात कर रहा हूं, मगर मैं जानता था कि मैं जो कर रहा हूं, सही कर रहा हूं.”

पुणे शहर के कोलाहल और प्रदूषण को पीछे छोड़ कार तेज़ी से आगे बढ़ रही थी. जैसे ही सुधाकर को छोटी-छोटी पहाड़ियों और हरियाली के दर्शन शुरू हुए, उन्होंने विंडो ग्लास नीचे कर गहरी सांस इस तरह से खींची जैसे एक ही सांस में पूरे वायुमंडल को अपने फेफड़ों में भर लेना चाहते हों.

“बेटा, एसी बंद कर दो. अब उसकी ज़रूरत नहीं. देखो तो बारिश की हल्की फुहार से आबोहवा में कैसी सोंधी महक घुल गई है. वाह! तबीयत हरी-भरी हो गई.” उन्हें यूं प्रसन्न देख पत्नी सुमन भी मुस्कुराईं.

“तुम्हारे रेडियो में विविध भारती नहीं है क्या?” मौसम सुहावना होता देख उन्होंने एफएम सुन रहे रवि से चैनल बदलने की फ़रमाइश कर डाली. गाना ट्यून हुआ ‘मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया…’,

“वाह! सोने पे सुहागा. मैं ज़िंदगी का साथ…” वे सुमन को देखते हुए गाने के साथ गुनगुनाने लगे. दोनों एक-दूसरे की आंखों में झांककर मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे. आंखों में बेटे द्वारा दिए जानेवाले सरप्राइज़ गिफ्ट का कौतूहल था. कुछ समझ नहीं आ रहा था कि कहां ले जाए जा रहे हैं, फिर भी वे दोनों आनंदित थे.

एक सरकारी महकमे से रिटायर्ड क्लर्क सुधाकर बड़े आदर्शवादी थे. भले ही कितने  अभाव रहे हों, उन्होंने कभी ऊपर की कमाई स्वीकार नहीं की. ऐसे धन को हाथ लगाना भी उनके लिए पाप था. अपनी तीनों संतानों- बड़े बेटे निपुण, बेटी सारिका और छोटे बेटे प्रणव की सीमित संसाधनों में बड़ी मितव्ययिता से परवरिश की थी उन्होंने. जब उनके सहकर्मी रिश्‍वत की कमाई से अपने घर बना रहे थे, तो वे दो कमरों के छोटे से किराए के घर में ही संतुष्ट थे.

सुधाकर के सहकर्मी अक्सर उन्हें उलाहना देते, “ऊपर का तू लेता नहीं और जो तेरी गाढ़ी कमाई है, वह हैसियत से बढ़कर बच्चों की पढ़ाई-लिखाई पर ख़र्च कर रहा है, तो तेरे बुढ़ापे के लिए क्या बचेगा?”

वे बड़ी उम्मीद और आत्मविश्‍वास से सिर उठाकर कहते, “मेरे बच्चे पढ़-लिख गए, तो वे ही मेरे लिए घर बना देंगे. मुझे पाप की कमाई से बना घर नहीं चाहिए.” उनकी आदर्शवादी बातों का ऑफिस में जमकर मखौल उड़ाया जाता, मगर वे ज़रा भी विचलित नहीं होते. उनकी पत्नी सुमन ने भी घर और बच्चों को कुछ इस तरह से संभाला था कि भले ही कुछ जोड़ नहीं पाए, मगर समय के साथ सब ज़िम्मेदारियां सहजता से पूरी होती चली गई थीं.

आज की तारीख़ में निपुण और उसकी पत्नी ईला, दोनों अमेरिका में सॉफ्टवेयर इंजीनियर थे. उसके दो किशोरवय बच्चे थे. सारिका नागपुर के एक कॉलेज में बॉटनी की लेक्चरर थी. वह भी अपने पति और बेटे के साथ सुखी जीवन व्यतीत कर रही थी. छोटे बेटे प्रणव की मुंबई में रिक्रूटमेंट कंसल्टेंसी फर्म थी, जिसमें उसकी पत्नी रागिनी भी उसका सहयोग करती थी. तीनों बच्चों के डाली-पत्ते लगने के बाद पुणे में दोनों पति-पत्नी अकेले रह गए थे. निपुण और प्रणव ने न जाने कितनी बार उन्हें अपने साथ शिफ्ट हो जाने को कहा, मगर अपने पुराने शहर का मोह क्या छूटता है कभी. सो दोनों पुणे छोड़ कहीं और जाने को तैयार न थे. साल में एक बार सभी बच्चे मिलने आ जाते. फोन पर तो बात होती ही रहती. बस, वे दोनों इसी से संतुष्ट थे.

सुधाकर और सुमन, दोनों मानकर बैठे थे कि अब वे ही एक-दूसरे के बुढ़ापे का सहारा हैं. मगर छह महीने पहले निपुण ने एक अप्रत्याशित निर्णय सुनाया कि वह सालभर के अंदर-अंदर पुणे शिफ्ट हो जाएगा और उन लोगों के साथ ही रहेगा. पहली बार में उनको बेटे की बात पर विश्‍वास नहीं हुआ. सोचा, वह भला अपनी इतनी अच्छी नौकरी और लक्ज़री लाइफ छोड़ वापस भारत क्यों आने लगा? और बात स़िर्फ अकेले उसकी नहीं थी, उनके दोनों बच्चे अमेरिका में पढ़ रहे थे. ईला भी जॉब करती थी. ऊपर से ईला की तो इकलौती बहन भी उसी के शहर में रहती थी, फिर वह क्यों आने लगी सब छोड़-छाड़कर?

दोनों ने इसे क्षणिक भावावेश मानकर बात आई-गई कर दी. मगर आज सुबह सुमन के 68वें जन्मदिन के अवसर पर निपुण का पुनः फोन आया, “पापा-मम्मी, शाम चार बजे तैयार रहना. मेरा दोस्त रवि आएगा आपको लेने के लिए, आपको उसके साथ कहीं जाना है. कहां जाना है यह सरप्राइज़ है. दरअसल, आपका सरप्राइज़ गिफ्ट है.” अब बेटे ने जो करने को कहा, वह उन्होंने किया. रवि आया और उन्हें कार में बैठाकर ले गया. वह सफ़र अभी भी जारी था.

यह भी पढ़ेबेहतर रिश्तों के लिए करें इन हार्मोंस को कंट्रोल (Balance Your Hormones For Healthy Relationship)

“बेटा, अब तो बता दो कहां ले जा रहे हो, बड़ी देर हो गई है चले हुए?” व्याकुल सुधाकर ने पुनः पूछा.

“बस, अंकलजी आ गया.” कहते हुए रवि ने एक बड़े-से घर के सामने कार रोक दी. “आंटीजी, ये घर देख रही हैं ना आप, यही है आपका बर्थडे गिफ्ट. ये आलीशान डुप्लेक्स घर, आपके बेटे की तरफ़ से.” रवि ने जब उस घर की ओर इशारा करते हुए कहा, तो दोनों को विश्‍वास ही नहीं हुआ. ‘ज़रूर इसे समझने में कोई ग़लती हुई है, इतना बड़ा घर… कोई मज़ाक है क्या…’ दोनों विस्मित से एक-दूसरे की ओर देखने लगे.

“रुको बेटा, मैं निपुण को फोन लगाता हूं. तुम्हें ज़रूर कुछ ग़लतफ़हमी हुई है.” वे कह ही रहे थे कि ख़ुद निपुण का फोन आ गया.

“कहिए पापा, कैसा लगा सरप्राइज़ गिफ्ट? अंदर से देखा क्या? रवि के पास चाबी है, वह आपको दिखा देगा.” निपुण की बात सुन सुधाकर स्तब्ध रह गए. सुमन को आंखों ही आंखों में कहा, रवि सही कह रहा है.

“मगर बेटा ये…”

“अगर-मगर कुछ नहीं पापा, ये घर मैंने ख़रीदा है. इंडिया शिफ्ट होने के बाद हम सब यहीं रहेंगे. आप उस घर के मालिक हो, मालिक की तरह अंदर जाना. चलिए पापा, कुछ ज़रूरी काम है, बाद में फोन करता हूं. घर देखकर बताइएगा कैसा लगा.” कहकर निपुण ने फोन रख दिया.

‘मालिक की तरह.’ सुधाकर अभिभूत हो उठे. कानों में बरसों पुराने साथियों की फ़ब्तियां गूंजने लगीं, ‘देखा, मैं ना कहता था, मेरा घर मेरे बच्चे बना देंगे.’ वे पुनः बुदबुदाए. कितना सुखद क्षण था वह उनके जीवन का. पूरी उम्र की तपस्या का जैसे आज फल मिला था. उस फल को चखने दोनों सधे क़दमों से घर के अंदर दाखिल हुए.

“अंकलजी, इस घर के इंटीरियर का काम निपुण ने मुझे ही सौंपा है. यह काम मुझे चार महीनों में पूरा करना है, वह चाहता है आपकी शादी की सालगिरह पर गृहप्रवेश हो जाए. तब तक वह भी यहां शिफ्ट हो जाएगा.”

“मगर बेटा यहां आकर करेगा क्या, हमें तो कुछ नहीं बताया, तुम्हें कुछ पता है क्या?”

“ज़्यादा कुछ तो नहीं, मगर कह रहा था यहां आकर अपनी एक कंपनी खोलना चाहता है. दोनों पति-पत्नी एक ही फील्ड में हैं, मिलकर चला लेंगे. बच्चे तो वैसे भी अगले साल से अमेरिका के एक हॉस्टल में रहेंगे.”

“अच्छा, ऐसी बात है.” सुधाकर घर का निरीक्षण करते हुए बोले.

“अंकलजी, यहां नीचेवाले फ्लोर पर तीन कमरे हैं. तीन कमरे ऊपर हैं. ऊपरवाला हिस्सा निपुण का है. एक-एक कमरा दोनों बच्चों का और एक उनका है. नीचे का यह कमरा आपका है.”

“इतना बड़ा कमरा!” सुमन की आंखें चौंधिया गईं. इतनी बड़ी जगह में तो अब तक उसने पूरे परिवार को पाला था.

“और बाकी दो कमरे?” सुधाकर ने पूछा.

“इनमें एक गेस्टरूम है, बाकी दूसरा आपके कमरे जितना ही बड़ा है, इसे भी निपुण ने आपके कमरे जैसा ही तैयार करने को कहा है, पर यह किसका है, मुझे नहीं पता.” रवि ने कहा.

नीचे के कमरों के बाहर बरामदा और उससे आगे बड़े-से लॉन के लिए भी जगह थी.

“आंटीजी, लॉन की एक साइड में आपके लिए मंदिर बनेगा. उसे मैं आपसे डिज़ाइन अप्रूव कराकर ही बनवाऊंगा.” सुनकर सुमन के चेहरे पर बच्चों जैसी ख़ुशी दौड़ पड़ी. वह मन ही मन अपने लायक बेटे की बलाइयां ले रही थीं, जिसने उनका इतना ध्यान रखा था.

“पूरे घर को अच्छे से देख-परख दोनों मंत्रमुग्ध से घर की ओर लौट पड़े. नया आलीशान घर, घर के पीछे दिखती पहाड़ियां और हरियाली… और सबसे बड़ी बात, उस घर में उनके बेटे-बहू उनके साथ रहनेवाले थे. उनके बुढ़ापे का सहारा बननेवाले थे. आज उनके पैर ज़मीन पर नहीं पड़ रहे थे. वे स्वयं को दुनिया के सबसे ख़ुशनसीब माता-पिता मान रहे थे.

यह भी पढ़ेलघु उद्योग- चॉकलेट मेकिंग- छोटा इन्वेस्टमेंट बड़ा फायदा (Small Scale Industry- Chocolate Making- Small Investment Big Returns)

घर पहुंचकर सुमन चाय ले आई, मगर सुधाकर अभी भी जैसे उसी घर में चक्कर लगा रहे थे. “अकेले बैठे क्या सोच मुस्कुरा रहे हैं मकानमालिक साहब.” पत्नी के मुंह से यह नया संबोधन सुनकर सुधाकर गर्वित हो उठे.

“सच सुमन, सब कुछ एक सपने जैसा लग रहा है. निपुण का यहां आना, हमारे साथ रहने के लिए नया घर लेना, मुझे मालिक कहना, बड़ा अजीब लग रहा है. अभी तक तो हमेशा किराएदार ही बनकर रहा हूं.”

“तो अब मालिक बनने की आदत डाल लीजिए. मैं तो पहले ही कहती थी, हमारे बच्चे लाखों में एक हैं, नए ज़माने की हवा उन्हें नहीं लगी. आपने हमेशा उनका कितना ख़्याल रखा, अब उनकी बारी है. वैसे मानना पड़ेगा, हमारी बहू ईला भी लाखों में एक है, वरना आज के ज़माने में अपनी जमी-जमाई गृहस्थी छोड़ सास-ससुर के साथ रहने कौन बहू आती है. उसने हमें हमेशा ही अपने माता-पिता जैसा आदर दिया है.”

“वो तो है. अच्छा एक बात बताओ, वो हमारे साथवाला कमरा किसके लिए रख छोड़ा है निपुण ने? रवि ने भी कुछ नहीं बताया.”

“और किसके लिए होगा, प्रणव के लिए ही होगा, बहुत प्यार करता है वह अपने छोटे भाई से. सोचा होगा, जब भी वह मुंबई से आएगा, अपने कमरे में ही रुकेगा.”

सुमन पूरे आत्मविश्‍वास से बोली.

“पता नहीं क्यों मुझे लगता है वह कमरा सारिका के लिए है. याद है ना पिछले रक्षाबंधन पर जब दोनों मिले थे, निपुण ने उसे कहा था, अगली बार तुझे ऐसा गिफ्ट दूंगा, हमेशा याद रखेगी.” सुधाकर कुछ सोचते हुए बोले.

“हां, कहा तो था, पर फिर भी मुझे लगता है प्रणव का ही होगा. बेटियां तो

दो-चार दिन के लिए मायके आती हैं और फिर उसके लिए गेस्टरूम तो है ही. हो सकता है निपुण की योजना हो कि यहां आकर वह प्रणव को भी मुंबई से यहां अपने पास बुला लेगा और दोनों भाई साथ मिलकर कुछ काम कर लेंगे. इस तरह से पूरा परिवार एक साथ रह सकेगा.”

“हां, तुम्हारी बात में दम तो है. हो सकता है ऐसा ही हो.” सुधाकर बोले.

“हो सकता है नहीं, बल्कि सौ प्रतिशत ऐसा ही है, तुम देख लेना.” सुधा ने भविष्यवाणी कर दी थी.

देखते-देखते पांच महीने गुज़र गए. नए घर का इंटीरियर पूरा हो गया था. आज गृहप्रवेश की पूजा थी, अतः उसे फूलों और झालरों से ख़ूब सजाया गया था. निपुण, प्रणव, सारिका तीनों सपरिवार आ चुके थे. सारिका के सास-ससुर, बहू ईला, रागिनी के माता-पिता, और बाकी सभी मेहमान भी आ चुके थे. पूजा के बाद प्रीतिभोज का आयोजन था. गृहप्रवेश की पूजा संपन्न हुई. सुमन ने बहू ईला और रागिनी के साथ घर में विधिवत् प्रवेश किया. पूरा घर खुला था सिवाय उस एक बंद कमरे के जिसका कौन मेहमान है, यह अभी भी मिस्ट्री थी. उस कमरे के दरवाज़े पर लाल रिबन लगा हुआ था. सभी निपुण से पूछ रहे थे, ‘अभी तो बता दो कि यह सुंदर कमरा किसके लिए सजा है.’ मगर वह चुप था. सुधाकर धीरे से सुमन के कान में फुसफुसाए, “हमें पता है इसका सरप्राइज़, इस रिबन को यह अपने छोटे भाई के हाथ से ही कटवाएगा.” और मुस्कुरा उठे. सुमन भी दोनों बेटों के साथ रहने की कल्पना से आह्लादित थी.

तभी निपुण ने सबको इकट्ठाकर एक उद्घोषणा शुरू की. “आज सुबह से सभी मुझसे एक ही सवाल पूछ रहे हैं, यह लाल रिबन लगा कमरा किसका है? आप सभी को यह जानने की बड़ी उत्सुकता है कि आख़िर इस खाली कमरे का मेहमान कौन है, माफ़ कीजिए मेहमान नहीं, बल्कि मालिक कहना चाहिए. कौन है जो इसमें हमारे साथ रहेगा, तो अब मैं इस रहस्य से पर्दा उठाता हूं, वे हैं मेरे दूसरे मम्मी-पापा यानी मेरे आदरणीय सास-ससुर. यह कमरा उन्हीं के लिए बना है और आज मैं उन्हीं को समर्पित करता हूं. मैं उनसे विनती करता हूं कि वे आएं और इस रिबन को काटकर इस कमरे में गृहप्रवेश करें.”

यह सुनते ही सबके मुंह खुले के खुले रह गए. निपुण की इस योजना की ख़बर तो ईला को भी नहीं थी, वह भी इस उद्घोषणा से स्तब्ध रह गई… और सुधाकर एवं सुमन.., उन्होंने तो यह कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि निपुण ऐसा कुछ भी कर सकता है. ‘बेटी के माता-पिता कब उसकी ससुराल आकर रहते हैं, चलो कुछ दिनों के लिए आ भी गए, मगर मेहमान बनकर ही आते हैं और मेहमानों की तरह चले जाते हैं. मालिक की तरह हक़ से तो कभी नहीं रहते. और क्या ये अच्छा लगता है? लोग क्या कहेंगे? ये सब अमेरिका में चलता होगा यहां नहीं, दुनिया क्या कहेगी?’ सुमन के भीतर स्वसंवादों की लहर दौड़ रही थी. ‘इसे अकेले में ले जाकर समझाना पड़ेगा…’ वह सोच ही रही थी कि ईला के माता-पिता स्वयं निपुण का विरोध करने लगे.

“ये क्या कह रहे हो बेटा, हम यहां कैसे रह सकते हैं. ये हमारी बेटी का ससुराल है.”

“क्यों नहीं रह सकते पापाजी? एक तरफ़ तो आप मुझे बेटा बोल रहे हैं और दूसरी तरफ़, कैसे रह सकते हैं, सोच रहे हैं. इस घर में जैसे मेरे माता-पिता रहेंगे, वैसे ही आप दोनों रहेंगे. जिस हक़ से वे रहेंगे, उसी हक़ से आप भी रहेंगे. ये खाली मेरा ही नहीं, आपकी बेटी का भी घर है.”

“ये तो तुम बिल्कुल पागलोंवाली बातें कर रहे हो, ऐसा भी कभी होता है क्या, ईला तुम ही समझाओ अपने पति को.” सुमन को लगा जैसे उनके समधी ने उसके मुंह की बात छीन ली. वह मन ही मन ख़ुश हुई.

“पागलोंवाली बात है तो पागलोंवाली ही सही. जानते हैं पापाजी, जब मैंने यूएस की अपनी अच्छी-ख़ासी नौकरी छोड़ अपने माता-पिता के साथ रहने के लिए भारत आने का निर्णय लिया, तो वहां भी सबने मुझे यही कहा कि मैं पागलोंवाली बात कर रहा हूं, मगर मैं जानता था कि मैं जो कर रहा हूं, सही कर रहा हूं. मैंने अपने पापा से और आपसे भी कितनी बार कहा हमारे पास आ जाओ, मगर आप नहीं माने. अब आप लोगों की उम्र हो चली है. आए दिन कुछ-न-कुछ बीमारी लगी रहती है. मैं और ईला वहां बैठे-बैठे कुछ नहीं कर सकते. मेरे पैरेंट्स की देखरेख करने के लिए तो फिर भी यहां प्रणव और सारिका हैं, मगर आपकी तो दोनों ही बेटियां बाहर हैं. आपको तो यहां देखनेवाला कोई नहीं, इसलिए मैंने सोचा, क्यों न आप भी हमारे साथ ही रहें. इस तरह से मैं और ईला अपने दोनों पैरेंट्स का ख़्याल रख पाएंगे.”

यह भी पढ़ेमन की बात लिखने से दूर होता है तनाव (Writing About Your Emotions Can Help Reduce Stress)

“लेकिन बेटा, दुनिया क्या कहेगी? हमें उलाहना देगी कि कैसे मां-बाप हैं, बेटी की ससुराल आकर पड़ गए?”

“दुनिया तो तब भी कुछ न कुछ कहेगी, जब आपके यहां न आने की स्थिति में मैं ईला को आपके पास छोड़ दूंगा. फिर वही दुनिया कहेगी कि शादी के इतने सालों बाद बेटी मायके आकर पड़ गई. अब निर्णय आपके हाथों में है. यह तो तय है कि इस उम्र में मैं अपने दोनों पैरेंट्स को अकेले रहने के लिए नहीं छोड़ूंगा. या तो आप यहां आएंगे या हम दोनों में से कोई एक आपके साथ रहेगा, निर्णय आपके हाथों में है. आप अपने बेटी-दामाद को अलग रखना चाहते हैं या उनके साथ रहना चाहते हैं.” निपुण ने ऐसा इमोशनल ब्लैकमेल किया कि उसके सास-ससुर निरुत्तर हो गए.

यह सुनकर ईला की आंखें भर आईं. आंखों से छलके आंसू जैसे निपुण के निर्णय के प्रति कृतज्ञता ज़ाहिर कर रहे थे. उसकी सराहना कर रहे थे. सच, अमेरिका में वह अपने पैरेंट्स के गिरते स्वास्थ्य को लेकर कितनी चिंतित रहती थी. हर पल लगता था, उन्हें कहीं कुछ हो न जाए. अपनी गृहस्थी और नौकरी छोड़ बार-बार भारत भी नहीं आ सकती थी, मगर आज निपुण ने यह अप्रत्याशित क़दम उठाकर उसकी सारी चिंताएं ही दूर कर दी थीं.

ईला अपने पैरेंट्स के पास जाकर बोली, “आपने मेरे लिए हमेशा किया ही है. मुझे बेटों की तरह पाला, मेरे नाज़ उठाए, मुझे आत्मनिर्भर बनाया, मेरा हमेशा ध्यान रखा. अब मेरी बारी है आपका ध्यान रखने की. चलिए ज़िद मत कीजिए, मान जाइए, आपको मेरी क़सम.” ईला के प्यारभरे अनुरोध के आगे उसके माता-पिता झुक गए.

उनके हाथों से उनके नए आशियाने का रिबन कट रहा था. उस खाली कमरे में गृहप्रवेश की रस्म निभाई गई. सभी निपुण के इस कृत्य की मुक्तकंठ से प्रशंसा कर रहे थे, कुछ लोग थे जिन्हें यह बात हज़म नहीं हो रही थी, वे कोने में खड़े खुसुर-फुसुर कर रहे थे. सुधाकर और सुमन मूकदर्शक बने खड़े थे. जाहिर है, उनको समझने और संभलने में थोड़ा व़क्त लगेगा. मगर जब समझेंगे, तो सबसे ज़्यादा वे ही अपने बेटे-बहू पर गर्व करेंगे.

       दीप्ति मित्तल

अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करें – SHORT STORI

Usha Gupta

Share
Published by
Usha Gupta

Recent Posts

प्रेरक कथा- राजा की बीमारी (Short Story- Raja Ki Bimari)

साधु ने कहा कि वह जंगल में ही रहना चाहते हैं, वह किसी राजा का…

March 28, 2024

जोडीनं घ्या आनंद (Enjoy Together)

जोडीदारापेक्षा चांगला फिटनेस पार्टनर कोण होऊ शकतो? या प्रकारे दोघांनाही फिटनेस राखता येईल, शिवाय सध्याच्या…

March 28, 2024

जोडीनं घ्या आनंद

जोडीनं घ्या आनंदजोडीदारापेक्षा चांगला फिटनेस पार्टनर कोण होऊ शकतो? या प्रकारे दोघांनाही फिटनेस राखता येईल,…

March 28, 2024

मन्नत आणि जलसापेक्षाही आलिशान असणार आहे कपूरांचं घर? (Ranbir Kapoor Aalia Bhatt New Home Named As Their Daughter Raha Getting Ready In Bandra)

बॉलीवूडमधील क्युट कपल म्हणजेच रणबीर कपूर आणि आलिया भट्ट हे त्यांच्या अफेरपासूनच  फार चर्चेत होतं.…

March 28, 2024
© Merisaheli