Close

कहानी- मन का कोना (Short Story- Mann Ka Kona)

उसे याद आ रहा था क्लब में कई बार उन दोनों को ‘बेस्ट कपल’ के ख़िताब से नवाज़ा गया था. जब एक ही बिस्तर पर लेटे पति को पत्नी के मन की थाह न हो, उसके मन में कैसा द्वंद्व चल रहा है इससे अनजान पति खर्राटे भरने लगे, तब कैसे वे सर्वश्रेष्ठ पति-पत्नी हो सकते हैं.

 
वक़्त था कि ठहर-सा गया था. रात थी कि गहरा रही थी. फूल, तोहफ़ों, मुहब्बतों और लाल सलामों का सिलसिला था कि थमता नहीं था. अजीब-सा नशा छाता जा रहा था, ज़िस्मानी थकान बढ़ती जा रही थी और दिमाग़ था कि ज़िस्म का हिस्सा होते हुए भी उसकी थकान में शामिल होने से इनकार कर रहा था. पार्टियां तो मेहरा साहब के यहां आए दिन होती ही रहती थीं, परंतु आज की पार्टी बेहद ख़ास है.
ये पार्टी निश्‍चय मेहरा और नीलिमा की पच्चीसवीं सालगिरह की पार्टी है. रंगबिरंगी रेशमी साड़ियों की जगमगाहट और जामों के बीच गहराती रात भी जवां शाम का ही एहसास करा रही है, परन्तु नीलिमा को देखकर कोई नहीं कह सकता था कि ये पार्टी उसी की शान में दी जा रही है. स़फेद लिबास और स़फेद मोतियों की ज्वेलरी में लिपटी नीलिमा भीड़ से अलग-थलग खड़ी है. उसके चेहरे पर न ही सुखी वैवाहिक जीवन गुज़ार लेने का उत्साह है, न ही उमंग, बल्कि एक टीस-सी है. एक पीड़ा की ज़िंदगी के ये अनमोल पच्चीस बरस यूं ही बेमानी से बीत गए. इन पच्चीस वर्षों में अपनी इस महलनुमा कोठी में अपने मन लायक एक कोना भी नहीं तलाश कर पायी.
मन लायक कोना नहीं तलाश कर पाने का मलाल और भी गहरा हो गया, जब उसके घर से बाहर पैर निकालते ही निश्‍चय का विश्‍वास भी उसके प्रति डगमगाने लगा. क्या इतने सालों में निश्‍चय के दिल में भी एक कोना निश्‍चत नहीं कर सकी वह..?

यह भी पढ़ें: हर लड़की ढूंढ़ती है पति में ये 10 ख़ूबियां (10 Qualities Every Woman Look For In A Husband)


पार्टी ख़त्म होने को थी. लोग एक बार फिर से सुखी वैवाहिक जीवन की दुआ देते हुए निकलते जा रहे थे. नीलिमा बेडरूम में आकर कटे वृक्ष की तरह बिस्तर पर गिर पड़ी. निश्‍चय तो बिस्तर पर लेटते ही गहरी नींद में सो गए, परन्तु नीलिमा की आंखों से नींद कोसों दूर थी. उसे याद आ रहा था क्लब में कई बार उन दोनों को ‘बेस्ट कपल’ के ख़िताब से नवाज़ा गया था. जब एक ही बिस्तर पर लेटे पति को पत्नी के मन की थाह न हो, उसके मन में कैसा द्वंद्व चल रहा है, इससे अनजान पति खर्राटे भरने लगे, तब कैसे वे सर्वश्रेष्ठ पति-पत्नी हो सकते हैं.
समय दर समय बदल जाता है, दुनिया बदल जाती है, परन्तु हमारे यहां कुछेक चीज़ें हैं, जो कभी नहीं बदलतीं. उनमें से एक है औरत की हैसियत. कहने के लिए वो भले ही मंगल ग्रह पर पहुंच जाए, परन्तु घर के अन्दर एक देह से ज़्यादा कुछ नहीं है. आदर्श भारतीय परिवार में एक छत के नीचे एक ही बिस्तर पर सोते हुए भी पति-पत्नी कितने बेगाने हो जाते हैं. कितना उबाऊ होता है साथ रहना. साथ ही कितना कठिन है बंधनों को तोड़ना. टूट भी कैसे सकता है? उसका नाम समाज में पति की बदौलत ही है! दो जवान होते बच्चों बरखा और हर्ष की मां है वो. सब कुछ इतना सुव्यवस्थित कि कहीं भी दरकने का निशान तक नहीं.
महज इन छोटी-छोटी सी ख़्वाहिशों के लिए बंधन तोड़ देना बेवकूफ़ी नहीं तो और क्या है? लोगों की नज़र में ये इच्छा छोटी ज़रूर है, परंतु उसकी नज़र में नहीं. वो तो पैदा ही हुई इसी सपने को लेकर. अपना मुक़ाम, अपना वज़ूद हासिल करने का सपना… बीते हुए पल चलचित्र के समान आंखों के सामने तैर गए. शादी से पहले मैनेजमेंट की पढ़ाई के दौरान ‘मेहरा एण्ड मेहरा’ इंडस्ट्रीज़ में उसने ट्रेनिंग की थी. एक मीटिंग के दौरान निश्‍चय के पिता ने कब उसे निश्‍चय के लिए पसंद कर लिया, उसे पता भी नहीं चला. जानकारी तो तब हुई जब इतने बड़े घर से ख़ुद चलकर रिश्ता आया. यक़ीन उसे भी कहां हो रहा था. इस घर की बहू बनने से भी ज़्यादा ख़ुशी उसे अपने संवरते कैरियर के लिए हुई कि अपनी कम्पनी को वह ऊंचाई की बुलन्दियों तक ले जाएगी. परन्तु उसके सपने, सपने ही रह गए थे. शादी के बाद विशाल हवेलीनुमा घर में क़दम रखते ही उसका आत्मविश्‍वास डगमगा उठा. क्या इतने बड़े घर में, इतने सारे लोगों के बीच वह अपना वजूद हासिल कर पाएगी? कहीं इस भीड़ में वह खो ना जाए.

यह भी पढ़ें: ये काम औरतों का है, ये काम मर्दों का- क्या आप भी लिंग के आधार पर काम को लेकर यही सोच रखते हैं? (Men’s Work, Women’s Work: Division Of Work And Social Inequalities Associated With Gender)


हनीमून से लौटकर सप्ताहभर परिवार के साथ बिताते ही उसे अंदाज़ा हो गया कि सोसायटी में एक ख़ास हैसियत रखनेवाले मेहरा परिवार की नींव अंदर से कितनी खोखली है. ऊपर से अल्ट्रा मॉडर्न नज़र आने वाले परिवार अंदर से कितने दकियानूसी विचार के हैं. बस आधुनिकता का चोला पहन रखा है.
कुछ ही दिनों में वो आए दिन होने वाली पार्टी, शॉपिंग, गहने, कपड़े से ऊब गयी. उसे लगता जैसे उसने सारा दिन यूं ही बिना कोई काम किए बेकार गंवा दिया. बचपन में दी गई डैडी की सीख याद आ रही थी कि हर इंसान को काम करना चाहिए, सार्थक काम. निकम्मा इंसान धरती पर भार स्वरूप होता है. उसे भी कुछ सार्थक काम करना है. अपने आपको साड़ियों, ज़ेवरों में नहीं उलझाना है.
एक दिन निश्‍चय को अच्छे मूड में देखकर उसने अपने विचार रख दिए, “निश्‍चय, मैं सारा दिन घर में बैठे-बैठे बोर हो जाती हूं. मैंने बतौर ट्रेनी काम तो किया ही है, क्यों न अपनी ही कम्पनी ज्वाइन कर लूं.” निश्‍चय आंखों में आश्‍चर्य का भाव लिए उसकी ओर देखने लगे, “क्या कहा…? फिर से कहना… तुम काम करोगी? डैडी और हम तीनों भाई काफ़ी नहीं हैं कम्पनी चलाने के लिए. घर में काम की कौन-सी कमी है, जो तुम बाहर काम करने की सोच रही हो.”
“घर में मेरे करने के लिए कौन-सा काम है?”
“शॉपिंग करने जाओ, पार्टियां ऑर्गेनाइज़ करो. न हो तो किटी ज्वाइन कर लो. तुम्हें वही सब करना शोभा देगा, जो हमारी मम्मी और भाभियां करती आयी हैं.”
“निश्‍चय, तुम मेरी तुलना अपनी गंवार भाभियों से तो बिल्कुल न करो, जिनकी ज़िन्दगी में कपड़े-ज़ेवर और सजने-संवरने के अलावा कुछ है ही नहीं. मैनेजमेंट की डिग्री को यूं ही दीमक चाटने के लिए छोड़ दूं?”
“क्या मेरी भाभियां गंवार हैं? जानती हो, बड़ी भाभी अपने शहर के जाने-माने हार्ट स्पेशलिस्ट डॉ. चोपड़ा की इकलौती बेटी और ख़ुद भी एमबीबीएस डॉक्टर हैं. मंझली भाभी आईआईटी कानपुर की प्रोडक्ट हैं.”
“बड़ी भाभी डॉक्टर हैं…?” उसका मुंह खुला का खुला रह गया. कल ही की तो बात है, किसी पार्टी में जाने के लिए तैयार होकर निकल रही थी कि उसने उनका गाल छूते हुए कहा, “भाभी, यू आर सो क्यूट.” झट से उन्होंने कहा, “नीलू, प्लीज़ मेरे दोनों गाल छू लो, नहीं तो मैं बीमार पड़ जाऊंगी.” ओह… ये सोच क्या इस घर की उपज है? इस घर में रहते-रहते शायद मेरी सोच भी ऐसी ही हो जाएगी. नहीं-नहीं, मैं अपने आपको ऐसा नहीं बनने दूंगी.
नीलिमा चाहती थी कि उसकी आंखों ने कंपनी को ऊंचाई तक ले जाने के जो सपने देखे थे, वो निश्‍चय की आंखों में भी हों. पर ऐसा कहां हो पाया. परिवार की मर्यादा को बनाए रखने के लिए मन मार कर हाउसवाइफ़ बनकर रह गयी वह. उसे लगने लगा जैसे उसका वजूद पानी की तरह हो गया, जैसा बर्तन पाया उसी में ढल गयी.
परन्तु इधर कुछ दिनों से बरखा और हर्ष के हॉस्टल जाते ही एक बार फिर से सोई हुई इच्छा जाग उठी थी. पता नहीं ज़िन्दगी कभी-कभी दोराहे पर लाकर क्यों खड़ा कर देती है. इंसान सोचता कुछ है, परन्तु उसे कार्यरूप में क्यों नहीं परिणत कर पाता. इसी कशमकश में ज़िन्दगी गुज़र जाती है. अधूरी इच्छाएं, अधूरे उमंग, अधूरे सपने को लेकर इंसान कब तक चल सकता है.
यही सोचकर एक एनजीओ ज्वाइन कर लिया. परित्यक्ता, विधवा, गरीब महिलाओं को रोजी-रोटी दिलवाने के लिए उसकी संस्था काम करती थी. बेसहारों को सहारा दिलवाने का सुकून मन के सूने कोने को हरा करने लगा, पर निश्‍चय बेहद नाराज़ रहने लगे. पर कभी-कभी ये भी महसूस होता कि निश्‍चय मुझसे कुछ कहना चाह रहे हैं, पर कह नहीं पा रहे. ख़ैर, किसी को भी कुछ पूरा नहीं मिलता, फिर उसके पास तो कहने को बहुत कुछ है- सुखी, संपन्न घर-गृहस्थी फिर भी मन खाली-सा क्यों है. अब तो लगने लगा है आंखों में जितना आकाश समा जाए, आकाश उतना ही बड़ा होता है. उसके आगे तो सोच और कल्पना ही होती है. मनुष्य बिना रोटी के ज़िंदा नहीं रह सकता. लेकिन वह मात्र रोटी पर भी ज़िंदा नहीं रह सकता. भूखपूर्ण मृत्यु से कहीं अधिक कष्टकारक होती है संबंधरहित ज़िंदगी.
अब वह और नहीं ढो सकती. बच्चे सेटल हो ही गए. समाज की उसे परवाह नहीं है. कल ही इस घुटन से निकलकर बाहर चली जाएगी, यही सोचते-सोचते नींद आ गयी.

यह भी पढ़ें: हाउसवाइफ के लिए 10 बेस्ट करियर (10 Best Careers For Housewives)


सुबह आंखें खुलीं तो निश्‍चय को चाय का प्याला लिए अपने सामने खड़े पाया. “क्या बात है नीलू, आज बड़ी देर तक सोयी.”
“निश्‍चय, मेरी बातें ध्यान से सुनो…” निश्‍चय ने बोलने से पहले अपनी हथेलियों से उसका मुंह बंद कर एक पेपर उसकी तरफ़ बढ़ा दिया. “खोलो नीलू, अपने पच्चीसवें सालगिरह का ग़िफ़्ट खोलकर देखो, तुम्हारे नाम से लिया गया एनजीओ, जिसे तुम ख़ुद चलाओगी.” फिर थोड़ा रुककर बोले, “तुम्हें आश्‍चर्य हो रहा है, लेकिन ऐसा न था कि मुस्कुराते होंठों के साथ तुम्हारी सूनी नज़रों का दर्द मुझसे अछूता था. पर बिजनेस की व्यस्तता कहें या घर के लोगों का लिहाज़ कि चाहकर भी तुम्हारे लिए कुछ कर नहीं पा रहा था. देर से ही सही…. तुम्हारे कुछ….” नीलिमा ने निश्‍चय के मुंह पर हाथ रख दिया.
ख़ुशी से उसकी आंखों से आंसू बहने लगे. उसे लगने लगा, आकाश तो उसकी आंखों से कहीं आगे भी है.

- रंजना किशोर

अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES

अभी सबस्क्राइब करें मेरी सहेली का एक साल का डिजिटल एडिशन सिर्फ़ ₹599 और पाएं ₹1000 का कलरएसेंस कॉस्मेटिक्स का गिफ्ट वाउचर.

Share this article