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हिंदी कहानी- मॉनसून (Short Story- Monsoon)

“पुराने ज़माने में जीवन को चार हिस्सों में बांटते थे, जिसका चौथा हिस्सा वानप्रस्थ होता था. सांसारिक मोह-माया से माता-पिता नाता तोड़ लेते थे. अपने बच्चों को घर की बागडोर सौंपते थे. आज के ज़माने में मुमकिन नहीं है, तो ऐसे में मन से ख़ुद को गृहस्थी से अलग कर लेना बेहतर है… सच पूछ तो मां का रोल हमेशा से निभाती आ रही है, इसलिए उसमें परफेक्ट है, पर सास का रोल नया है, इस वजह से उसमें द़िक्क़तें भी हैं और ग़लतियों के चांसेज़ भी.”

मॉनसून के लंबे इंतज़ार के बाद आज श्यामवर्ण मेघों ने उनके आने का संदेश दे ही दिया. योगिता खिड़की के पास आकर खड़ी हुई, तब टप-टप बूंदें टपकने लगी थीं. मिट्टी की सुगंध बदलने लगी थी. हल्की हवा के साथ सोंधी महक ने मन मोह लिया. धीरे-धीरे बूंदों ने रफ़्तार ले ली. बूंदों की ध्वनि के बीच नव्या की आवाज़ आई, “वाह बारिश!” हाथों को फैलाए वो बौराई-सी फुहारों के नीचे खड़ी थी. आर्यन ने उसे रोकने की कोशिश की, “नव्या, बीमार हो जाओगी.”
“कुछ नहीं होगा, तुम भी आओ ना प्लीज़…” योगिता का दिल धड़क गया, कहीं आर्यन चला ना जाए… नव्या को रोकने और ख़ुद भीगने के मोह की दुविधा में फंसे आर्यन को नव्या ने अपने पास खींच लिया था. खिड़की से देखती योगिता आर्यन को रोकना चाहती थी. उसे पता था कि आर्यन को ज़ुकाम जल्दी पकड़ता है, उस पर मॉनसून की पहली बारिश नुक़सानदेह होती है, लेकिन नवविवाहित जोड़े जो आकंठ प्रेम में डूबे हों, उन्हें ये सब दिखता है क्या… वो वहां से हट गई. टीवी देखते अभय सहसा चौंके, “बाहर बारिश हो रही है क्या…?”
“हूं…”
“अरे चलो देखें.” कहते हुए वो तेज़ी से बाहर चले गए. पहली बारिश को देखने का मोह वो संवरण नहीं कर पाए, पर शीघ्र ही मुस्कुराते हुए भीतर आ गए. उनके चेहरे की मुस्कान बता रही थी कि उन्होंने आर्यन और नव्या को भीगते देख लिया है. योगिता खिड़की के पास खड़ी हो गई. उसकी नज़रें नव्या पर टिकी थीं. सच, मॉनसून जैसा ही तो था इस घर में आनेवाली नई बहू का सुखद इंतज़ार. अनेक कल्पनाओं में बसती, विभिन्न रंगों में रची-बसी बहू की कल्पना उसे रोमांचित कर देती. नाते-रिश्तेदारों में भी आर्यन की काल्पनिक पत्नी को लेकर ख़ूब बातें होतीं. आर्यन की पत्नी विभिन्न रिश्तों के चश्मे से देखी जाती. हंसी-मज़ाक भरे चर्चाओं के बीच विराम तब लगा, जब आर्यन ने बताया उसे नव्या पसंद है. उसकी पसंद के आगे फिर कोई प्रयास नहीं किए गए. नव्या थी भी ऐसी कि उसे देखकर कोई मना भी नहीं कर सकता था. उसको देखकर योगिता को अपनी कल्पना फलीभूत होती दिखाई दी. आर्यन के मन को पढ़ लिया था, नव्या उसके अंतस तक समाई हुई थी. बचपन से लेकर अब तक हर इच्छा को पूरा करनेवाली योगिता ने नव्या के लिए हां कर दी. पल-पल जिस आर्यन को बढ़ते देख, जिसने अपनी हर बात सबसे पहले अपनी मां से साझा की, जिसकी आदतों को खाद-पानी दिया, आज उसकी ज़िंदगी में नव्या आ गई और योगिता मां के साथ नव्या की सास बन गई. नव्या के आने के बाद घर का वातावरण ख़ुशगवार और उल्लासित हो गया और एक नई रौनक़ ने जगह ले ली. योगिता भी उस रौनक़ और उल्लास का हिस्सा थी.
दो महीने कब बीते, कुछ पता नहीं चला. सभी एक अजब ख़ुमारी में डूबे थे. योगिता को चिंता थी घर और उसकी व्यवस्थाओं को फिर सुव्यवस्थित करने की. घर के नए सदस्य को अतिशीघ्र घर के मुताबिक ढालने की, ख़ासकर आर्यन के मुताबिक… पर हवा कोई और रुख दिखा रही थी. इन दिनों तो आर्यन नव्या के अनुसार ढलता दिख रहा था. छोटी-बड़ी सभी ज़रूरतों के लिए योगिता के नाम की गुहार लगानेवाले आर्यन के आसपास नव्या थी. आजकल आर्यन अपनी पसंद-नापसंद को उतनी तवज्जो नहीं देता था. कभी समझौता न करनेवाला आर्यन अब समझौता करना सीख गया, वो भी ख़ुशी-ख़ुशी.
“तुम्हारा बेटा पूरी तरह से भीग गया है, ज़रा देखो उसे. हल्दीवाला दूध या अदरक-शहद… कुछ बना दो, वरना बीमार हो जाएगा और हां नव्या को भी…”
“अभय, ये अब बच्चे नहीं हैं. कहीं ऐसा ना हो सुबह की तरह…”
“हद है योगिता, तुम अभी तक उस बात को लेकर बैठी हो, नव्या को जानती नहीं हो क्या… उसकी तो आदत है हंसी-मज़ाक करने की, फिर आपस में इनकी मज़ाक करने की उम्र है. तुम ऐसे बुरा मानोगी, तो कैसे चलेगा, ये ठीक नहीं है.” अभय कुछ और कहते उससे पहले योगिता उठकर बाहर बरामदे में आ गई. आर्यन और नव्या जा चुके थे. बूंदों की खनकती आवाज़ से मन से उद्विग्नता शांत होने लगी थी. वो वहीं आरामकुर्सी पर आंखें बंद करके बैठ गई. सुबह हुई बात आंखों के सामने घूमने लगी थी. “अब ये सुबह-सुबह आर्यन को हेल्थ ड्रिंक देने की रूटीन बंद करो, अच्छा नहीं लगता है. अब शादी हो गई है उसकी.”
“ये आदत उसकी कोई आज की थोड़े ही है, अब शादी हो गई है तो क्या… नव्या को भी तो ध्यान नहीं रहता है. कल देखा था ज़बर्दस्ती चाय टेस्ट करवा रही थी आर्यन को… जिसे आज तक उसका स्वाद नहीं मालूम था, वो अपनी पुरानी आदत को छोड़कर चाय पिएगा. नव्या ख़ुद पिए, लेकिन आर्यन की आदत ना डाले तो ठीक है.” बचपन से आर्यन को सुबह उठकर हेल्थ ड्रिंक पीने की आदत है. योगिता ने जब ये बात नव्या को बताई थी, तब भी उसे हंसी आ गई थी. लेकिन आज तो हद ही हो गई थी. योगिता के सामने ही उसे ‘बेबी’ कहकर चिढ़ाने लगी थी. बेचारे आर्यन के लिए कितना एम्बैरेसिंग था. तभी तो उसे बोलना पड़ा, “मम्मी, कल से मुझे ब्रेकफास्ट में मिल्क शेक दे दिया करो, अब बोर हो गया हूं मैं…” कितनी अजीब-सी स्थिति हो गई थी योगिता के लिए, नव्या पर भी गुस्सा आया… “मम्मी, आप सो रही हैं क्या…?” नव्या की आवाज़ कानों पर पड़ी. “क्या हुआ?”
“मम्मी, वो आप उस दिन बता रही थीं हल्दीवाले दूध के बारे में, प्लीज़ बना दीजिए ना… डर लग रहा है कहीं आर्यन को ठंड न लग जाए.”
“क्यों? क्या हुआ?” जानते-बूझते उसने नव्या से प्रश्‍न किया, तो गीले बालों में उंगली फिराती वो बोली, “वो… बारिश में थोड़ा भीग गए हैं.” योगिता बिना उसकी ओर देखे चुपचाप रसोई की ओर गई. दूध लेकर नव्या चली गई थी. योगिता सोच ही रही थी कि अच्छा हुआ, जो ख़ुद ही उसने कहा, “अगर योगिता ले जाती, तो वो आर्यन का फिर मज़ाक बनाती. अधखुले दरवाज़े पर अनायास नज़र उठ गई थी. नव्या आर्यन के सिर को गीले तौलिए से पोंछ रही थी. बरसात बंद हो चुकी थी. आंगन की मिट्टी बरामदे तक आ गई थी. यह मुसीबत है. बारिश का इंतज़ार और बरसने तक की ख़ूबसूरती होती है, जहां बरसना बंद हुआ यथार्थ ढेर सारे कामों के रूप में सामने होता है. सोचते हुए वाइपर उठाया और बरामदा साफ़ करने लगी. तभी अभय की आवाज़ आई, “योगिता, तुम कहां चली गई थी, उमा का फोन आया था. आज क्या उसके घर में कोई फंक्शन है?”
“अरे, मैं तो भूल ही गई, आज तो किटी है उसके घर में… चार बजे बुलाया था, अभी क्या टाइम हो रहा है?”
“पांच बज गए हैं. कोई बात नहीं तुम अभी चली जाओ. आर्यन को बोल देता हूं छोड़ जाएगा.”
“नहीं, मैं ऑटो से चली जाऊंगी. उसे आराम करने दो…”
आनन-फानन में तैयार होकर पहुंची, तो वहां जमावड़ा लगा हुआ था. उमा के बेटे विपुन की होनेवाली बहू के लिए की गई शॉपिंग देखने में सब व्यस्त थे. सब उमा को सास बनने को लेकर छेड़ रहे थे. योगिता को अच्छा लगा. यही रौनक़ उसके घर पर भी कुछ दिनों पहले थी. काम का बोझ और थकान के बाद चेहरे पर रौनक़-उत्साह झलकता रहता था. आज वही रौनक़ उमा के चेहरे पर नज़र आई. योगिता को देखकर वो खिल उठी थी. “आज तुम रात तक रुकोगी, देर से आने की यही सज़ा है.” अब सब योगिता को छेड़ रहे थे. नई सास बनने के अनुभवों के बारे में जानना चाहते थे, लेकिन योगिता आज अपेक्षाकृत चुप थी. चहल-पहल के बीच कब समय बीता, पता ही नहीं चला. सब चले गए थे. उमा ने योगिता को रोक लिया था. “क्या हुआ, तबीयत ठीक है ना? आज कुछ चुप-सी हो…”
“नहीं, ऐसा क्यों लगा… सब मज़े से बातें कर रहे थे, तू बस उनकी सुन रही थी…”
“चल अब तू मुझे अपनी सुना…”
“मतलब?”
“अरे, घर में नई बहू आई है, ऐसे में कितनी बातें होंगी. कुछ सुना यार. नव्या कैसी है? एडजेस्ट कर लिया…”
“बहुत प्यारी है… ध्यान रखती है सबका.”
“तुझे कैसा लगता है? मतलब एक नए सदस्य के आने पर कुछ परिवर्तन तो आता ही है न!”
“वो तो है. सालों से हम जो रूटीन अपना रहे होते हैं, उसमें बदलाव तो अजीब लगता ही है.”
“अजीब क्यों? अच्छा लगना चाहिए…”
“हां, अच्छा ही लगता है, पर ये सच है कि हम पहले जैसी निश्‍चिंत ज़िंदगी नहीं जी सकते. अब पहले आर्यन और मैं अपनी पुरानी बातों, अनुभवों, हंसी-मज़ाक को जीवंत करते थे. कितने मज़े से एक-दूसरे की बातों में दख़ल-राय दे देते थे. अब ध्यान रखना पड़ता है. और कहीं ग़लती से आपने अपनी राय दी और इन्होंने एक-दूसरे के सामने बात काट दी, तो स्थिति अटपटी हो जाती है. मन में हमेशा एक बेचैनी-सी रहती है. तिल-सी छोटी बात ताड़ बन मन में कब पलने लगे, कुछ पता नहीं चलता है.”
“हां, ये पेंच तो है… शादी के शुरुआती दिनों में तालमेल बैठाना बहुत ज़रूरी है और आर्यन? वो तो ख़ुश है ना…”
“कुछ ज़्यादा ही ख़ुश है वो… नव्या उसे दिन-रात जो कहे, मिट्टी के माधो-सा नाचता रहता है.” उसकी बात पर उमा ज़ोर से हंसी.
“अब कही ना तूने टिपिकल टीवी सीरियलवाली सास जैसी बात…”
“मज़ाक नहीं सच में… कभी-कभी ग़ुस्सा आता है और मज़े की बात यह है कि अभय उसकी जोरू की ग़ुलामी के मज़े लेते हैं. उस दिन को देख लो, रात ग्यारह बजे थका आया था. शकल देखकर मुझे तरस आ रहा था, लेकिन नव्या थी कि उसे रात को आइस्क्रीम खाने जाना था. मैंने मना भी किया, पर कोई फ़ायदा नहीं…”
“योगिता, मुझे पूरी उम्मीद है कि नव्या के साथ आइस्क्रीम खाकर आने के बाद आर्यन की सारी थकावट दूर हो गई होगी. मेरे ख़्याल से तुम आर्यन के लिए पज़ेसिव हो रही हो.”
“ज़ाहिर-सी बात है, बेटा है मेरा… तुम तो जानती हो मैंने आर्यन की हर छोटी-बड़ी पसंद-नापसंद का ख़्याल रखा है… लेकिन अब वो अपनी आदतों और पसंद-नापसंद से समझौता करता दिख रहा है. जिन आदतों और उसकी ज़रूरतों को मैंने निभाया, उनसे जब वो क़दम पीछे हटाता है, तो ऐसा लगता है जैसे उसने उन आदतों से नहीं, मुझसे एक क़दम पीछे हटाया हो.”
योगिता भावुक हो गई थी. सामान्य-सी दिखनेवाली बातें कैसी जटिल ग्रंथि से मन को जकड़ लेती हैं. “योगिता, आज तेरी बातें सुनकर मुझे अपनी दादी सास की वो नसीहत याद आ रही है, जो वो अक्सर मेरी सास को दिया करती थीं. वो कहती थीं कि पुराने ज़माने में हम जीवन को चार हिस्सों में बांटते थे, जिसका चौथा हिस्सा वानप्रस्थ होता था. सांसारिक मोह-माया से माता-पिता नाता तोड़ लेते थे. अपने बच्चों को घर की बागडोर सौंपते थे. आज के ज़माने में मुमकिन नहीं है, तो ऐसे में मन से ख़ुद को गृहस्थी से अलग कर लेना बेहतर है… सच पूछ तो, मां का रोल हमेशा से निभाती आ रही है, इसलिए उसमें परफेक्ट है, पर सास का रोल नया है इस वजह से उसमें द़िक्क़तें भी हैं और ग़लतियों के चांसेज़ भी.” योगिता हंसते हुए बोली. “तू ऐसी कोई जगह बता… जहां से हम सास बनने की ट्रेनिंग ले लें.”
“ट्रेनिंग की नहीं, बल्कि समझने की ज़रूरत है कि अब बेटे को अपनी पकड़ से मुक्त करने का और उसकी डोर बहू को थमाने का व़क्त है, ताकि खुलकर जीएं. आर्यन के लिए जितना करना था, कर चुकी, अब नव्या पर विश्‍वास कर. छोटी-छोटी-सी पनपी दरारें शायद अभी न दिखें, पर बाद में रिश्तों पर पड़ी नज़र आती हैं. उनके साथ रहो. मांगने पर सलाह भी दो… इतना स्पेस दो कि वो अपनी नई ज़िंदगी को जी सकें बिना इस डर के कि कोई लगातार उन पर अपनी निगाह बनाए है. एक बात बता, क्या अभय को भी तेरी तरह प्रॉब्लम है.”
“उन्हें क्यों होगी…? वो कोई बारीक़ियां नहीं पकड़ते.”
“वो इसलिए नहीं पकड़ते हैं, क्योंकि पिता अपने बेटे की निजी ज़िंदगी में उतना नहीं उलझता, जितना मां उलझती-फंसती है. फालतू के क्लेशों से बचने के लिए ख़ुद को ऐसे कामों में व्यस्त रखो, जो अब तक नहीं कर पाए. कितनी ऐसी जगहें हैं, जहां हम घर के झमेलों में जा नहीं पाते हैं. बच्चे ही क्यों, हम भी जीएं अपनी नई जिंदगी.” उमा की बात पर योगिता मौन थी. कॉलबेल बजी, तो देखा आर्यन खड़ा था. “मम्मी, आप हमें लापरवाह कहती हैं और ख़ुद देखो, एक फोन भी नहीं किया और ना फोन उठाया. हम सब परेशान हो रहे थे.” आर्यन के उलाहने पर उमा मुस्कुरा पड़ी.
योगिता ने पर्स टटोला तो देखा मोबाइल डिस्चार्ज था. आर्यन बोल रहा था, “आप फोन चार्ज तो करती नहीं हैं. ये काम नव्या को सौंपता हूं.” उसकी बात पर योगिता के चेहरे पर मुस्कान खेल गई. बेटे का यूं उलाहना देना अच्छा लगा. आर्यन के साथ घर में क़दम रखते ही नव्या भी शुरू हो गई, “मम्मी, हम लोग कब से इंतज़ार कर रहे थे. आज किसी ने अब तक चाय भी नहीं पी.”
“क्यों चाय क्यों नहीं पी?” योगिता हैरान थी.”
“पापा ने कहा वो आपका इंतज़ार करेंगे, तो हमने सोचा हम भी इंतज़ार कर लेते हैं. आज खाना बन गया, पर चाय नहीं बनी.” नव्या हंसते हुए कह रही थी, तभी उसे कुछ ध्यान आया. “आप बताकर नहीं गई थीं, तो आज खाना मैंने बिना पूछे बना लिया…”
“वो भी ख़ुद की पसंद का… मटर-पनीर, पनीर में कोई मटर डालता है…” आर्यन बोल रहा था और योगिता मुस्कुराती हुई उनकी चुहल सुन रही थी. जानती थी आर्यन को मटर बिल्कुल पसंद नहीं है. पता नहीं उमा से बात करने के बाद उत्पन्न नई ताज़गी थी या कोई और वजह, लेकिन आर्यन को मटर पसंद न होने के बावजूद नव्या ने उसे बनाया, इस बात से उसे झुंझलाहट महसूस नहीं हुई है.
“मैं आपकी कटोरी में एक भी मटर आने नहीं दूंगी बस…” नव्या बोल रही थी. चाय पीते योगिता की नज़र एक बार छत के कोनों से टपकती बूंदों पर गई. “अभय, मॉनसून आ गया है. अभी देख लो कहां-कहां से पानी टपक रहा है, पहले ही ठीक करा लो, नहीं तो द़िक्क़त होगी, अभी शादी में तो रंग-रोगन करवाया है दीवारें ख़राब हो जाएंगी.”


         मीनू त्रिपाठी

 

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Usha Gupta

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