दोपहर ऑफिस से लौटकर शांभवी दबे पांव अपने घर में घुसी यह सोच कर कि अभी पापा आराम कर रहे होंगे कि तभी रोने की आवाज़ सुनकर चौंकते हुए लगभग दौड़ती हुई वह उनके कमरे के अधभिड़े दरवाज़े के सामने पहुंचकर ठिठक कर रह गई.
भीतर पापा बिलखते बुदबुदा रहे थे, “देवकी! तुम मुझे छोड़कर क्यों चली गई? इतना भी नहीं सोचा कि मैं तुम्हारे बिना अकेले कैसे पहाड़-सी ज़िंदगी काटूंगा…” पापा की यह हालत देख शांभवी का कलेजा मुंह को आ गया और वह तुरंत भीतर गई और उनके हाथों को थाम बोली, “पापा… पापा… होश में आइए. आप यूं हिम्मत हारेंगे, तो मैं कैसे जिऊंगी?”
दोनों बाप-बेटी बहुत देर तक मां के ग़म में आंसू बहाते रहे, बस तभी से उसके अंतर्मन में तीव्र विचार मंथन चल रहा था.
अभी दो-तीन महीनों से जब से पापा रिटायर हुए हैं, बेहद उदास रहने लगे हैं. मां के सामने कितना ख़ुश रहा करते थे. दो बरस पहले उनके अचानक बेकाबू कोरोना से चले जाने के बाद से दिनोंदिन एकाकीपन की अंधी खोह में धंसते जा रहे हैं.
वह स्वयं एक एमएनसी में उच्च पद पर कार्यरत थी. सुबह नौ बजे की घर से निकली रात के सात बजे थकी-हारी घर आती. शनिवार-रविवार की छुट्टियां अमूमन मंगेतर पार्थ के नाम रहतीं.
तो पापा को कैसे सामान्य करे वह?
रातभर वह बेहद उद्विग्न रही कि तभी तड़के ही उसकी क़रीबी सहेली ने उसे शाम को अपनी उम्रदराज़ विधवा मौसी की शादी के लिए निमंत्रित किया. उसकी मानसिक कशमकश को ठहराव मिल गया. अगर वह भी पापा की दूसरी शादी करवा दे तो?
पापा शुरू से ही एक अंतर्मुखी क़िस्म के शांत और मितभाषी शख़्स थे. उनकी ज़िंदगी पत्नी और बेटी पर शुरू होती और वहीं ख़त्म हो जाती. संगी-साथी भी गिने-चुने थे.
तो पापा की शादी करवाना ही सबसे सही विकल्प रहेगा. उसने आनन-फानन में लैपटॉप पर एक वरिष्ठ नागरिकों की मैट्रिमोनियल साइट पर पापा का अकाउंट बनाया. फिर वहां विवाह योग्य प्रौढ़ महिलाओं की प्रोफ़ाइल चेक करने लगी. तभी स्क्रीन पर एक बेहद सौम्य, गरिमावान चेहरा आया, जिसने उसके मन में हलचल मचा दी. उसने स्क्रॉल कर आगे बढ़ना चाहा, लेकिन उसका मन तो उस सौम्य सलोने चेहरे ने चुरा लिया था.
वह प्रोफ़ाइल एक तलाक़शुदा घरेलू महिला की थी. अगले सप्ताह वह पार्थ के साथ उस मृदु व्यक्तित्व की स्वामिनी मनसा के सामने बैठी थी.
वह गाहे-बगाहे लंच के समय मनसा के घर उसे जानने-बूझने के उद्देश्य से चली जाती. मनसा को भी शशिकांतजी का प्रोफाइल अच्छा लगा.
संयोग से पार्थ के ऑफिस की एक सहकर्मी के कोई क़रीबी रिश्तेदार ठीक मनसा के घर के सामने रहते थे. उनसे उसके सहृदय, उदार व सहयोगी स्वभाव के बारे में सुनकर शांभवी जल्द से जल्द उन्हें अपनी मां बना कर अपने घर ले आने को लालायित हो उठी. लेकिन अब पापा को दूसरी शादी के लिए कैसे मनाए, यह चिंता उसे खाए जा रही थी.
अगले ही दिन उसे अपनी इस उलझन का तोड़ भी मिल गया. उस दिन पार्थ के माता-पिता छह माह बाद उन दोनों की शादी की तारीख़ पक्की कर चले गए. उनके जाते ही शांभवी ने पापा को अपना निर्णय सुना दिया, “पापा, मैं शादी तभी करूंगी, जब पहले आप शादी करेंगे. शादी के बाद हम दोनों को फ्रांस और इटली घूमने जाना है. इधर प्रमोशन के बाद मेरे और पार्थ के अमेरिका के भी कई चक्कर लगनेवाले हैं. आपका ब्लड प्रेशर हमेशा हाई रहता है. ऐसे में आपको अकेला छोड़कर शहर के बाहर जाने की सोच भी नहीं सकती. इसलिए अब आपको शादी करने का फ़ैसला लेना ही पड़ेगा.”
“क्या पागल तो नहीं हो गई हो? अब इस उम्र में शादी? यह क्या ऊलजुलूल बातें कर रही हो?”
इस पर शांभवी ने उन्हें मनसा के बारे में सब कुछ बताते हुए कहा, “पापा, वह आपके लिए एकदम आइडियल साबित होंगी. आप एक बार उनसे मिलकर तो देखिए.” लेकिन शांभवी के पिता ने मात्र एक वाक्य से उसकी बातों को खारिज कर दिया कि वह हर्गिज़ दूसरी शादी की सोचेंगे तक नहीं.
उसे पिता को मनाते-मनाते पूरा एक माह होने आया, लेकिन वह टस से मस न हुए. उस दिन उसने पार्थ को घर बुला लिया और पापा से कहा, “पापा, अगर आप अपनी दूसरी शादी के बारे में नहीं सोचेंगे, तो मैं भी शादी नहीं करूंगी. इस निर्णय में पार्थ भी मेरे साथ हैं.” उन दोनों ने एक ही सुर में उन पर दबाव बनाया कि वह बस एक बार मनसा आंटी से मिल लें.
बेटी और भावी दामाद के सामने शशिकांतजी की एक न चली और विवश होकर उन्हें मनसा से मिलने की स्वीकृति देनी पड़ी.
मनसा आंटी का मधुरभाषी मीठा स्वभाव शशिकांतजी को प्रभावित करे बिना नहीं रहा. समय के साथ वे दोनों बहुत अच्छे मित्र बन गए.
मनसा और शशिकांतजी की दोस्ती हुए कुछ माह होने आए.
शांभवी के विवाह की तारीख नज़दीक आती जा रही थी.
मनसा का साथ पाकर शशिकांतजी ख़ुश रहने लगे थे. पिता को लेकर शांभवी की दुश्चिंताएं बहुत हद तक ख़त्म होने आई थीं, लेकिन अभी निर्णायक कदम बाकी था.
शांभवी इतने दिनों से पापा को उनकी शादी के लिए मनाने में लगी हुई थी, लेकिन वह हर बार बस यह कहकर उसे चुप करा देते की शादी की ज़रूरत नहीं है. वह मनसा के साथ यूं ही दोस्ती से बहुत ख़ुश हैं.
उसने और पार्थ ने सलाह कर आगामी रविवार को दोनों को परिणय सूत्र में बांधने का निर्णय लिया.
आज रविवार है.
देर रात सुर्ख लाल जोड़े में लिपटी नई मां और पापा को गृह प्रवेश करते देख उसकी आंखें भीग आईं. सीने में जन्मदात्री मां की मीठी यादों की कसक टीसने लगी. पिता की आंखें भी नम थीं.
तभी उसने मनसा मां को कलेजे से लगाते हुए पिता से कहा, “पापा, मां वापस आ गईं.” बाकी के शब्द आंसुओं में बह गए.
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