Short Stories

कहानी- परिवेश (Short Story- Parivesh)

आज के ज़माने में अपनी संस्कृति और परंपराओं से जुड़ा होना सुखद है. हम सभी एक अलग परिवेश में पले-बढ़े हैं. हमारी अपनी अलग महत्वाकांक्षाएं हैं. ऐसे में बिल्कुल नए परिवेश में ढलना एक दुश्कर कार्य है. शादी के बाद सामंजस्य ज़रूरी है, पर सामंजस्य के नाम पर, जहां पूरे अस्तित्व को दांव पर लगा देना उचित नहीं है, वहीं अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उस घर की सुख-शांति को दांव पर लगाना भी ठीक नहीं है.

“क्या हुआ अदिति? इस तरह मुस्कुरा क्यूं रही है?” दीप्ति के यह पूछते ही अदिति की हंसी छूट गई. बड़ी मुश्किल से ख़ुद को संयत करके बोली, “मैं सोच रही थी कि अगर ईश्‍वर ने इस दिल को ज़ुबां दी होती और साथ में स्वर भी दिया होता तो क्या होता?”

“इस दुनिया में घमासान छिड़ा होता और क्या होता. तू भी न, कितनी बेतुकी बातें सोचती है. वैसे देखा जाए, तो दिल बोलता तो है, बस सामनेवाले के दिल के तार जुड़े होने चाहिए, तभी तो मां-बाप, प्रेमी-प्रेमिका, दोस्त ये सभी एक-दूसरे की भावनाओं को बिन बताए ही समझ लेते हैं, जैसे मैंने समझ लिया है कि यह बेतुकी बात तेरे दिल में ऐसे ही तो नहीं आई है.” दीप्ति की बात सुनकर अचानक ही अदिति संजीदा हो उठी.

कुछ सोचते हुए बोली, “दीप्ति, अक्सर हम रिश्ते बनाने में जल्दबाज़ी कर जाते हैं और जब तक हमें अपनी ग़लती का एहसास होता है, तब तक हम एक कमिटमेंट के बोझ तले दब चुके होते हैं. अगर इस दिल को स्वर मिला होता, तो तुरंत हम एक-दूसरे की बातों को समझकर, रिश्तों को आगे बढ़ाने से पहले एक-दूसरे के दिल की आवाज़ सुनकर सही निर्णय पर तो पहुंचते. स्वार्थ और मजबूरी पर टिके रिश्तों की पहचान तो की जा सकती, क्षणिक जज़्बात को संभालने का मौक़ा तो मिलता. सामनेवाले को स्वयं ही बिन बताए बात समझने का मौक़ा मिलता और ग़लतफ़हमियों की गुंजाइश तो न होती.”

अदिति एक ही सांस में बोलती चली गई, तो दीप्ति ने उसे टोका, “अदिति, तू सिक्के के एक ही पहलू पर विचार कर रही है. दूसरा पहलू तो देख, कितना भयानक है. तेरी इस बेतुकी सोच से मेरे रोंगटे खड़े हो रहे हैं. ईश्‍वर ने सोच-समझकर दिल को ज़ुबां नहीं दी है, ताकि हमारे रिश्तों में परदा पड़ा रहे और सुधार की गुंजाइश बनी रहे, रिश्तों की डोर नाज़ुक होती है. हमारे मन के भीतर चलते सवाल-जवाब और तनाव को ये डोर सह नहीं पाएगी और इसे टूटते देर नहीं लगेगी. सोच अगर इस दिल को ज़ुबां मिल जाए, तो रिश्ते कितनी बेरहमी से चटकेंगे. आज अगर हमें किसी रिश्ते से मुंह मोड़ना भी पड़े, तो कम से कम इतना ध्यान तो रखें कि जीवन में किसी मोड़ पर मुलाक़ात हो, तो मुस्कुराकर एक-दूसरे को पहचानकर आगे बढ़ें, न कि एक कड़वाहट के साथ उपेक्षा से मुंह फेर लें. पर ये बता कि ये फितूर तुझे सूझा कैसे? क्या चल रहा है तेरे मन में?”

प्रश्‍न उछालकर दीप्ति किचन की ओर चली गई और अदिति का मन उस प्रश्‍न में उलझ गया. क्या बताए वह दीप्ति को कि जिस जतिन के साथ एक महीने पहले तक उसने हर हाल में साथ जीने-मरने की क़समें खाई थीं, आज उसी रिश्ते पर उसका मन पुनर्विचार करने को मजबूर हो गया है.

दीप्ति और अदिति दोनों कॉलेज के दिनों की सहेलियां हैं. दीप्ति एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करती है, वहीं अदिति एमबीए कर रही है और आजकल दीप्ति के साथ ही रह रही है. एक-दूसरे की राज़दार होने के साथ-साथ वे एक-दूसरे को भरपूर स्पेस भी देती हैं. इसके अलावा समय-समय पर एक-दूसरे की समस्याओं के समाधान के लिए उचित मार्ग भी सुझाती हैं.

एमबीए के दूसरे साल में इंडस्ट्रियल-ट्रेनिंग के दौरान अदिति की मुलाक़ात जतिन से हुई. एक बड़ी कंपनी को सहजता से चलाते हुए जतिन के सभ्य और आकर्षक व्यक्तित्व से प्रभावित अदिति उसे कब दिल दे बैठी, पता ही न चला. मॉडर्न और कुछ कर दिखाने की तमन्ना रखनेवाली अदिति के मोहपाश ने जतिन को कब बांध लिया, वो जान ही नहीं पाया.

यह भी पढ़ेपहचानें रिश्तों की लक्ष्मण रेखा (Earn To Respect Relationship And Commitment)

अदिति के जन्मदिन पर जतिन उसे डिनर पर ले गया, उस दिन वह साड़ी में बिल्कुल अलग अंदाज़ में दिख रही थी. हमेशा वेस्टर्न कपड़ों में दिखनेवाली अदिति को इस रूप में देखकर जतिन ख़ुद को रोक नहीं पाया. रूमानियत से भरा वह अदिति को प्रपोज़ कर बैठा, जिसे अदिति ने भी सहर्ष स्वीकार कर लिया.

दोनों इस रोमांच से गुज़र ही रहे थे कि तभी जतिन का बर्थडे आ गया. दीप्ति और अदिति बड़े उत्साह से केक और बुके लेकर उसे सरप्राइज़ देने उसके घर पहुंचीं, तो वे ख़ुद सरप्राइज़ हो गईं. जब उन्होंने जतिन के घर में एक शांत और पारंपरिक माहौल देखा, तब उनका उत्साह शीघ्र ही ठंडा पड़ गया.

उन्हें यूं आया देख जतिन कुछ संकोच में पड़ गया. तभी वहां जतिन की मां आ गईं. सादगी और स्नेह से भरी जतिन की मां से अदिति काफ़ी प्रभावित हुई. बातों ही बातों में जतिन ने बताया कि बिज़नेस क्लास से जुड़े होने के कारण उसका परिवार आज भी संयुक्त रूप से रहता है.

घर का संचालन उसकी मां की देख-रेख में घर की दोनों बहुओं द्वारा किया जाता है, तो घर में सभी भाई बिज़नेस में उनके पिता के अनुभवों के आधार पर चलते हैं. कितनी भी डिग्रियां वे हासिल कर लें, वे सभी उनके अनुभवों के आगे बेकार हैं. जतिन की मां ने बड़े उत्साह से बताया कि जतिन के भाई की शादी हाल ही में हुई है. अपनी बहू के बारे में बताते हुए उनकी आंखों में संतुष्टि व प्रसन्नता के चिह्न थे.

अदिति ने घर के रख-रखाव को देखकर कहा, “आंटी, आपने घर को कितने पारंपरिक तरी़के से रखा है.”

तो वो हंसते हुए बोलीं, “बेटी, परंपराओं की ये अमूल्य निधि ही हमारे घर की पहचान है. हम सभी परिवारजनों ने इसे सुरक्षित रखने में अपना-अपना योगदान दिया है. ईश्‍वर की कृपा से मेरी दोनों बहुओं ने भी मेरा बड़ा साथ दिया है.” यह कहते हुए उनकी आंखों में संतोष उतर आया था.

बड़ी भावुकता के साथ जब उन्होंने कहा, “ये भगवान का आशीर्वाद ही है कि यत्नपूर्वक संजोई परंपराओं की अमूल्य निधि को मेरा परिवार आगे बढ़ा रहा है.” यह सुनकर जहां अदिति कुछ सोच में पड़ गई, वहीं दीप्ति उनके घर के परिवेश को देखकर उत्साहित नज़र आ रही थी और तारी़फें करते नहीं थक रही थी.

जतिन की मां उन्हें भोजनकक्ष की ओर ले गई, जहां डायनिंग टेबल की जगह आकर्षक चौकियां लगी हुई थीं, जिनमें सुंदर नक्काशी की हुई थी. थालियों में लगा राजसी नाश्ता देखकर तो उनकी आंखें फैल गईं. अदिति और दीप्ति ने जींस पहनी थी, इसलिए  नीचे बैठने में कुछ दिक़्क़त हुई. जतिन की मां ने बड़े मनुहार के साथ उन्हें नाश्ता करवाया.

रोज़ ब्रेड-बटर पर आश्रित दीप्ति के लिए आज का ब्रेकफास्ट किसी फाइव स्टार होटल के नाश्ते से कम नहीं था. तभी जतिन की दोनों भाभियां आम रस लेकर आईं. सिर पर पल्ला लिए उन्हें देख अदिति कुछ और सिमट गई. उनके घर के पारंपरिक माहौल में वह स्वयं को असहज महसूस करने लगी थी.

यह भी पढ़ेलघु उद्योग- जानें सोप मेकिंग बिज़नेस की एबीसी… (Small Scale Industry- Learn The Basics Of Soap Making)

“आप कुछ और लीजिए न.” छोटी बहू के पूछने पर जतिन की मां बोली, “तुम लोग बातें करो, मैं कुछ देर में आऊंगी.” अदिति ने दोनों बहुओं के चेहरे को ध्यानपूर्वक पढ़ा, लेकिन उन चेहरों में थकावट और शिकायत का रंचमात्र भी चिह्न नहीं था. अदिति से रहा नहीं गया और वह बोल पड़ी, “सिर पर पल्ला रखने से कभी आपको उलझन नहीं होती है?”

“नहीं, बिल्कुल भी नहीं. ऐसा नहीं है कि हम आज की आधुनिक दुनिया से अपरिचित हैं. हम सबके लिए ये बड़े सम्मान की बात है कि हम अपने परिवार की गरिमा का ख़्याल रखें और अपनी संस्कृति की धरोहर को संभालें.” सहज और आत्मविश्‍वास के साथ कही बात ने अदिति को निरुत्तर कर दिया.

तभी पास खड़े जतिन ने कहा, “इस घर के परिवेश में अब तक सभी बहुएं सहर्ष और सहज ही ढल गई हैं.” यह कहते हुए उसने अदिति के चेहरे को पढ़ने की कोशिश की. चलते समय सभी ने जतिन के जन्मदिन पर घर आने के लिए उन्हें धन्यवाद दिया था. जतिन के परिवार को नज़दीक से समझने के बाद जहां दीप्ति उत्साहित थी, वहीं अदिति किसी और सोच में पड़ी थी.

जाने क्यूं उस परिवेश की भूरि-भूरि प्रशंसा के बावजूद स्वयं को उस माहौल में ढालने के ख़्याल से ही वो तनावग्रस्त महसूस करने लगी थी. वह ख़ुद से प्रश्‍न करने लगी कि क्या ये वही जतिन है, जिससे उसने प्यार किया था? या फिर उनका प्यार उस मुक़ाम पर नहीं पहुंच पाया, जिसमें सामंजस्य के लिए किसी और सोच-विचार की कोई जगह नहीं होती है? क्या उसका प्यार अभी कच्चा है? जिस जतिन को उसने दिल दिया था और जो उस दिन अपने घर पर मिला था, दोनों के बीच अंतर को पाटने की कशमकश में पूरा दिन निकल गया.

“अदिति, आज खाना नहीं खाना क्या?”

“आ… हां.” अदिति मानो नींद से जागी हो. खाने की मेज़ पर छाई चुप्पी को दीप्ति ने तोड़ा, “अदिति, तेरे दिल में जो भी है, उसे जल्द-से-जल्द जतिन को बताना बेहतर है. आज के ज़माने में अपनी संस्कृति और परंपराओं से जुड़ा होना सुखद है. हम सभी एक अलग परिवेश में पले-बढ़े हैं. हमारी अपनी अलग महत्वाकांक्षाएं हैं. ऐसे में बिल्कुल नए परिवेश में ढलना एक दुश्कर कार्य है. शादी के बाद सामंजस्य ज़रूरी है, पर सामंजस्य के नाम पर, जहां पूरे अस्तित्व को दांव पर लगा देना उचित नहीं है, वहीं अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उस घर की सुख-शांति को दांव पर लगाना भी ठीक नहीं है. सच-सच बताना अदिति उनके घर में जो शांति और सुकून था, क्या वो पहली बारिश की बूंदों के बाद उठी सोंधी महक-सा नहीं था? पर बावजूद इसके तुम तनाव में थीं, क्योंकि तुम स्वयं को उन परिस्थितियों में रखकर देख रही थीं, जबकि मैंने उस महक को भीतर तक महसूस किया, क्योंकि मैं जानती थी कि मैं यहां थोड़ी देर के लिए रुकी हूं. मेरी एक अलग दुनिया बाहर इंतज़ार कर रही है, पर तुम वहां ठहरकर अपने मन मुताबिक दुनिया की खोज कर रही थी. अगर तुम अपनी ज़रूरतों के हिसाब से चलोगी, तो ये तुम्हारी स्वार्थपरता होगी, क्योंकि अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए तुम्हें उस घर की चूलें हिलानी पड़ेंगी.”

“पर एक बात बताओ दीप्ति, क्या कभी उस घर में परिवर्तन नहीं हुआ होगा?” “परिवर्तन ज़रूर आया होगा, पर वो तूफ़ान बनकर नहीं आया होगा. उसने अपनी पैठ धीमी गति से की होगी. जतिन के परिवार में, जो स्त्रियां हैं, वे सभी उसी मिलते-जुलते परिवेश से आई हैं. उनका उस परिवार में घुल-मिल जाना मुश्किल नहीं है. वो घर ऐसे लोगों पर टिका है, जो स्वयं से पहले दूसरों के बारे में सोचते हैं. जतिन के घर जाकर एक सुकून का एहसास होता है, पर उसके पीछे न जाने कितने लोगों का योगदान है. तुम्हारा और जतिन का रिश्ता अभी कितना आगे बढ़ा है, यह तुम्हारा व्यक्तिगत मामला है. अगर अब तुम उस घर जाना चाहती हो, तो उस घर के परिवेश को, जो वहां की पहचान है, मन से स्वीकारना होगा. उसे ज्यों का त्यों कैसे रख पाओगी, इस पर विचार कर लेना.”

दीप्ति की बातों से अदिति के मस्तिष्क में मंथन उद्वेलित हो चुका था. काफ़ी सोच-विचार के बाद रात तक अदिति निर्णय ले चुकी थी. सुबह उठते ही उसने जतिन को फोन किया. तय समय पर दोनों कॉफी हाउस में थे. आज जहां अदिति तनावरहित थी, वहीं जतिन कुछ असमंजस की स्थिति में था.

जतिन के कुछ बोलने से पहले अदिति बोल पड़ी, “आज मैं जो कुछ कहूंगी, मुझे विश्‍वास है तुम समझने की कोशिश करोगे. जतिन इसमें कोई दो राय नहीं है कि तुम्हारे घर के परिवेश और वातावरण ने मुझे बहुत प्रभावित किया. आज के समय में भी अपनी संस्कृति को संभालना सुखद अनुभव है. जिन परंपराओं का निर्वाह तुम्हारे परिवार में हो रहा है, उनके साथ ज़्यादती होगी अगर मैं तुम्हारे परिवार में शामिल हुई तो… क्योंकि तुम्हारे और मेरे परिवेश में एक बड़ा अंतर है. उस अंतर को पाटने के लिए मैं तुम्हारे परिवार या स्वयं के अस्तित्व को दांव पर नहीं लगाना चाहती हूं. मैं तुम्हारे घर पर आकर सुकून के कुछ क्षण तो बिता सकती हूं, पर पूरी ज़िंदगी नहीं, क्योंकि मेरी अपनी अलग उड़ान है, मुझे अपनी मंज़िल तक पहुंचना है.”

अदिति ने अपने दिल की बात कहकर जतिन की ओर देखा, तो ऐसा लगा कि कुछ देर पहले उसके चेहरे पर छाए असमंजस के बादल छंट गए और मुस्कान के रूप में सुनहरी धूप ने जगह ले ली हो.

दिल से एक बोझ उतरने से वह तनावमुक्त दिखा, “थैंक्स अदिति, तुमने जिस सहजता के साथ अपनी बात कही, उसके लिए मैं तुम्हारा शुक्रगुज़ार हूं. जीवन में कुछ निर्णय समझदारी से लिए जाते हैं. उस दिन जब तुम मेरे घर आईं, तब भावी बहू के रूप में तुम्हें देखकर मैं तनावग्रस्त हो गया था. मैंने भावावेश में आकर तुम्हें प्रपोज़ तो कर दिया, पर उसके बाद एक दिन भी चैन से नहीं बैठा हूं. मैं हर पल तुम्हें अपने परिवार में फिट करने की जद्दोज़ेहद में लगा रहता था. तुम्हें अपने परिवार में सम्मिलित करके मैं स्वयं, तुम्हारे और अपने परिवारजन, किसी के साथ भी न्याय नहीं कर पाता. रिश्ता वही है, जो सहजता से निभे, वरना समझौता अधिक दिन तक नहीं टिकता है. सच तो यह है कि मैं ऊपर से कैसा भी दिखूं, पर अंदर से मेरा मन अपने परिवेश से भीतर तक जुड़ा हुआ है.”

“ये सच है जतिन कि तुम्हारी पहचान ने मुझे बहुत प्रभावित किया है. मैं अपने जीवन में उसके कुछ अंश ज़रूर डालना चाहूंगी, पर पूरी तरह से उसमें ढलना मुमकिन नहीं है, क्योंकि मेरी परवरिश अलग ढंग से हुई है. मेरी आकांक्षाएं भिन्न हैं. सच, आज कितने दिनों के बाद हम तनावमुक्त हुए हैं. ऐसा लग रहा है, हम दोनों ने आज अपने सिमटे पंख खोल दिए हों.”

दीप्ति की उचित सलाह पर जतिन और अदिति ने अपना रिश्ता तोड़ा तो ज़रूर था, पर उसमें कड़वाहट नहीं, समझदारी और दूरदर्शिता की मिठास थी. जहां अदिति जतिन के परिवार में पूरी गरिमा के साथ निभाई जानेवाली परंपराओं की मीठी छाप लेकर घर लौटी थी, वहीं जतिन अदिति की क़ाबिलियत तथा उसकी उड़ान को शुभकामनाओं से भरकर अपने परिवार के पास वापस लौट चुका था.

      मीनू त्रिपाठी

अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करें – SHORT STORiES

Usha Gupta

Share
Published by
Usha Gupta

Recent Posts

बुरे दिन वापस दे दो…. किरण मानेंची पोस्ट चर्चेत ( Kiran Mane Share Post For Current Situation In Maharashtra)

कुठे कुठला उमेदवार हवा होता-नको होता, या वादात आपण सर्वसामान्य माणसांनी अडकायला नको. महाराष्ट्रात या…

April 11, 2024

संकर्षण सोबत लग्न करण्याची इच्छा पण आईने…. अभिनेत्याची चाहतीसाठी खास पोस्ट ( Sankarshan Karhade Share Post For His Fan, Who Wants To Marry Him)

अभिनेता संकर्षण कऱ्हाडे सोशल मीडियावर खूप सक्रिय असतो. नुकताच त्याने त्याला साताऱ्याला आलेला त्याच्या खास…

April 11, 2024

कहानी- पहचान (Short Story- Pahchan)

"... आप सोचते होंगे डायरी में अपनी कुशलता दिखानेवाली की क्या पहचान! लेकिन चाहे मेरे नाम…

April 11, 2024
© Merisaheli