कहानी- पूर्वाग्रह… (Short Story- Purvagrah…)

ऑफिस में उन्हें हाल ही में प्रमोशन मिला था, तो ज्वाइन करके उन्होंने आठ दिन की छुट्टी ले ली थी. सोचा चलकर कुछ दिन नई बहू के पास रहूंगी, तो सास-बहू जरा एक-दूसरे को जान-समझ लेंगी, लेकिन यहां तो आते ही बहू के निराले रंग दिखने लगे.

शाम के सात बजे तक विमला का मन अत्यंत क्षुब्ध हो गया. बेटा तो टूर पर गया हुआ था, लेकिन बहू को तो पता था कि वह आज आने वाली है. ऑफिस से छुट्टी तो ली नहीं उल्टे समय से घर पर भी नहीं आई. चाबी पड़ोस में रखकर फोन कर दिया कि बहुत ज़रुरी काम है, आज इसलिए ऑफिस जाना पड़ रहा है. वह तो भला हो पड़ोसियों का चाबी लेने गई, तो चाय-नाश्ता करवा दिया, वरना चार बजे पहुंचते ही चाय भी ख़ुद ही बनाकर पीनी पड़ती.
ऑफिस में उन्हें हाल ही में प्रमोशन मिला था, तो ज्वाइन करके उन्होंने आठ दिन की छुट्टी ले ली थी. सोचा चलकर कुछ दिन नई बहू के पास रहूंगी, तो सास-बहू जरा एक-दूसरे को जान-समझ लेंगी, लेकिन यहां तो आते ही बहू के निराले रंग दिखने लगे.


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अपमान से वह क्षुब्ध सी हो गई. मन में पूर्वाग्रहों के कुछ नाग फन उठाने लगे ज़रूर… जान-बूझकर ऐसा कर रही होगी, ताकि मैं यहां से जल्दी चली जाऊं. निर्मला की बहू ने भी ऐसा ही किया था और करुणा की बहू ने तो ऑफिस का टूर है कहकर मायके ही जाकर बैठ गई थी. मेरी बहू भी वैसी ही निकली और उनके मन ने भी बहू की एक छवि गढ़ ली मन ही मन.
7:30 बजे आख़िर बहू आ ही गई. दरवाज़ा खुलते ही…
“सॉरी मां, बहुत शर्मिंदा हूं देर हो गई मोबाइल की बैटरी ख़त्म हो गई,
तो ऑफिस से निकलने के बाद फोन भी नहीं कर पाई. प्रमोशन की बहुत बहुत बधाई.”
ताजे फूलों की ख़ुशबू बिखेरता एक ख़ूबसूरत बुके विमला के हाथ में था और बहू उन्हें प्रणाम करने के लिए झुकी हुई थी. विमला के हाथ ने अनायास बहू का सिर सहला दिया. अप्रत्याशित सुख का एक झोंका उन्हें सहला गया.
“और यह देखो मैं आपके लिए साड़ी लाई हूं, इसलिए देर हो गई. मुझे कोई साड़ी पसंद ही नहीं आ रही थी आख़िर बड़ा ढूंढ़ने के बाद जाकर यह साड़ी पसंद आई. बताओ ना मां आपको पसंद आई कि नहीं.” बहू ने हाथ में पकड़े पैकेट से एक ख़ूबसूरत सिल्क की साड़ी निकाल कर विमला के कंधे पर फैला दी.
भीगी आंखों और ख़ुशी से रुंधे गले से उन्होंने कहा, “बहुत सुंदर है बिटिया.”
“सच में?” बहू का चेहरा खिल गया.
“सारे काम आज पूरे करके ऑफिस से आठ दिन की छुट्टी ले ली है मैंने. अब मैं पूरा समय आपके ही साथ रहूंगी. कितनी बातें करनी है आपसे. कितना कुछ सीखना है. चलिए अब तो सबसे पहले मैं आपकी पसंद का खाना बनाने रसोईघर में जाती हूं.”


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नन्हीं बच्ची की तरह वह उनके गले में बांहें डाल कर झूल गई.
उसकी पीठ पर स्नेह से हाथ फेरती विमला उसके साथ ही रसोईघर की तरफ़ चल दी. मन के सारे पूर्वाग्रह ख़ुशी के आंसुओं के साथ धुलते जा रहे थे.

डॉ. विनीता राहुरीकर

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Usha Gupta

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