Others

कहानी- सच (Story- Sach)

 


“अपने नसीब में ये सब सुख कहां? अलका को हमारा ध्यान ही कब रहता है? जब घर में रहती है, तो सारा समय इधर-उधर ही करती रहती है, इस तरह साथ में चाय-पकौड़े खाए पता नहीं कितना समय हो गया.”

5.30 वाली बस में चढ़ने में अलका सफल हो गयी थी. खिड़की के पास वाली सीट पर बैठते हुए वह अपने बारे में सोचने लगी. हर रोज़ सुबह 9 बजे तक किशोर और दोनों बच्चों की ज़रूरतों को पूरा कर वह भागते हुए बस स्टैण्ड पहुंचती है. ऐसा नहीं है कि वह टैक्सी नहीं ले सकती, पर टैक्सी और बस के किराए में बहुत अन्तर है. घर में काम भी है, लेकिन किशोर कार से ऑफ़िस जाते हैं.
अलका तो घर-गृहस्थी में ही मग्न थी. किशोर ने नया फ्लैट लिया. कार भी आ गयी तो किश्तें चुकाने के लिए किशोर के आग्रह पर ही उसने नौकरी कर ली. प्रतिभावान तो वह प्रारम्भ से ही थी, इसलिये जल्द ही उसे एक अच्छी नौकरी भी मिल गयी.
आज और दिन की अपेक्षा वह थोड़ा जल्दी घर आ गयी, वरना रोज़ शाम 7.00 बजे के पहले वह नहीं पहुंच पाती. घर में घुसते ही सबसे पहले लॉन पर नज़र पड़ी, जो बेतरतीबी से फैला था. माली कई दिनों से नहीं आ रहा था. चूंकि बगल वाली मिसेज़ वर्मा के यहां भी वही काम करता था, इसलिए वह मिसेज़ वर्मा के यहां पूछने चली गई.
अंदर से आती परिचित हंसी की आवाज़ सुनाई पड़ी, उत्सुकता से खिड़की से अन्दर झांका तो किशोर और दोनों बच्चे मिस्टर वर्मा के परिवार के साथ बैठे थे. वह भी मुस्कुराते हुए अन्दर जाने ही वाली थी कि अचानक ये वाक्य सुनकर रुक गयी, “अपने नसीब में ये सब सुख कहां? अलका को हमारा ध्यान ही कब रहता है? जब घर में रहती है तो सारा समय इधर-उधर ही करती रहती है, इस तरह साथ में चाय-पकौड़े खाए पता नहीं कितना समय हो गया.”
तभी बेटी रिया ने भी हृदय में दंश करते हुए कहा, “सच में आंटी आप कितनी अच्छी हैं, अप्पू और पूजा को कितना समय देती हैं. हम तो मां के प्यार को तरस गए हैं.”
“नहीं बेटा ऐसा नहीं है, उनका और मेरा कार्यक्षेत्र अलग है, इसलिये वह समय नहीं दे पातीं.” मिसेज़ वर्मा ने अलका की सहेली होने का धर्म निभाया, कम से कम कोई कटु वाक्य तो नहीं कहा.
अलका माली को तो भूल ही चुकी थी. उसकी जीवन बगिया में इतने कांटे हैं, इसकी तो उसे भनक भी नहीं थी.
दरवाज़े का ताला खोलकर वह सो़फे पर धम्म से बैठ गयी. अलका अनवरत रो रही थी. हृदय में आघात हुआ था, जिनकी ख़ुशियों के लिए दिनभर मरती-खपती रहती है, उन्हें ही उसकी परवाह नहीं थी और किशोर… कितनी विनती करके उसने अलका को नौकरी के लिए मनाया था.
थोड़ी देर में किशोर और बच्चे आ गये, “अरे आज तुम जल्दी आ गयीं….? सब ठीक तो है, चेहरा उदास क्यों है?” किशोर की सहानुभूति अलका को खोखली लगी.
रातभर अलका ठीक से सो भी नहीं पायी. उसने सोच लिया था कि वह नौकरी ही छोड़ देगी.
ऑफ़िस में भी वह तनाव में थी. उसकी सबसे अच्छी दोस्त मेघा ने जब कुरेदा तो अलका ने रोते हुए सारी बातें बता दीं. मेघा ने अलका को समझाया, “तू एक महीने की छुट्टी ले ले. इस्तीफ़ा देने की ज़रूरत नहीं. हां घर में कहना कि नौकरी छोड़ दी है, अगर तेरे पति ऑफ़िस में पूछताछ करते हैं तो मैं संभाल लूंगी.” अलका छुट्टी की अर्जी मेघा को देकर घर पहुंच गयी.
क़रीब 3 बजे अलका घर पहुंच गयी. कामवाली थी, जिसे अलका ने स़िर्फ उन लोगों की सुविधा के लिये लगवाया था, उसको कल से काम पर आने को मना कर दिया. वह योजना बनाने लगी. वह ऐसा मकड़जाल बुनना चाहती थी, जिसमें उलझ कर ही उसके घर वाले सच को देख पाएंगे.
नियत समय पर बच्चे और किशोर घर आए, लेकिन अलका को असमय देख कर बुरी तरह चौंक गए. बच्चों ने अपना सारा स्कूल का सामान इधर-उधर फेंका और राधा-राधा आवाज़ देने लगे. “मैंने उसे छुट्टी दे दी है.”
“क्यों…?” किशोर ने हैरान होकर पूछा, …“क्योंकि मैं कल से घर पर ही हूं. मैंने नौकरी छोड़ दी है. तुम तो सब कुछ अच्छे से संभाल लेते हो और बच्चे भी मां की ममता को तरस गए हैं, इसलिए…” न चाहते हुए भी उसके स्वर में तीखा व्यंग्य आ गया.
उन्हें अचंभित छोड़ वह अपने कमरे में आ गई. दूसरे दिन सुबह से ही उसने अपनी चालें चलनी शुरू की. दुख तो हो रहा था, लेकिन ज़रूरी था. रिया और अभि को अपने सारे काम ख़ुद ही करने पड़े. टिफिन में परांठा-सब्ज़ी देख रिया ने पूछा, “क्या ये ले जाना है?”
“क्यों… क्या ये खाना नहीं है?” अलका ने गंभीर स्वर में कहा, “रोज़ ही बाज़ार का खाना लेने के चक्कर में साधारण खाना तो तुम लोग भूल ही चुके हो.”
बच्चे तो कुछ दिनों में ही सुधर चुके थे. किशोर सामान्य था. हां, उसने ऑफ़िस में कोई पूछताछ नहीं की थी. अलका के मन का एक कोना भीगा- चलो मुझ पर विश्‍वास तो किया.
हर महीने किशोर अपनी तनख़्वाह का कुछ भाग बैंक में जमा करता था. उसने सोचा इस महीने से वो ये बन्द कर देगा और उसे घर के ख़र्चों में जोड़ देगा. फ्लैट की किश्त, कार लोन, घर के नौकर का वेतन, लाइट का बिल, ये सब अलका ही भरती थी. जब उसने हिसाब लगाया तो चकित रह गया कि अलका कुछ पैसे छोड़, बाकी सारी तनख़्वाह इन पर ही ख़र्च कर देती है. किशोर ने सोचा एक-दो महीने तो वह बैंक से निकालकर चला लेगा, लेकिन आगे क्या होगा?
किशार ग़ुस्से से भरा अलका के पास पहुंचा. वह कपड़े तह कर रही थी. किशोर ने ग़ुस्से से पूछा, “कम से कम नौकरी छोड़ने से पहले एक बार मुझसे पूछ तो लिया होता?”
अलका तो इसी दिन का इंतज़ार कर रही थी. शांत रहते हुए उसने उत्तर दिया, “मेरे बारे में कौन सोचता है? किशोर तुम्हीं ने तो मिसेज़ वर्मा से कहा था कि मैं शौक़िया नौकरी करती हूं, तो अब तुम्हें तकलीफ़ क्यों हो रही है.” बच्चे तेज़ आवाज़ सुनकर कमरे में आ गये. “तुम्हीं ने मुझे नौकरी करने को कहा था. मेरी भी कुछ इच्छाएं हैं. मैं हर रोज़ बस से ऑफ़िस आती-जाती हूं, जिस कार की किश्तें मैं हर महीने दे रही हूं, उसमें मैं कितनी बार बैठी हूं शायद मुझे याद भी नहीं. हर रविवार को घर की सफ़ाई, तुम लोगों की चीज़ें व्यवस्थित करना, सारे ह़फ़्ते के कपड़े ठीक करना, खाना बनाना- ये सारे काम मैं ख़ुद ही करती हूं. तुम तीनों ये कहकर बाहर चले जाते हो कि आज तो इनका सफ़ाई अभियान है. क्यों… क्या किसी रविवार को तुम लोग मेरी सहायता नहीं कर सकते थे? कभी मेरे ख़र्चों का हिसाब लगाया?
आज जब ख़र्चें लेकर बैठे तो तुरन्त मेरी याद आ गयी और मेरी ख़बर लेने चले आए. इन बच्चों के लिए प्राय: तरह-तरह की चीज़ें ले आती स़िर्फ अपना अपराधबोध कम करने के लिए, क्योंकि इन्हें समय नहीं दे पाती थी. पर जो ऐशोआराम की ज़िंदगी ये जी रहे हैं, वैसी मैं और तुम नहीं जीये हैं किशोर. फिर इन्हें भी संघर्ष करने दो. फ्लैट, कार ये सारी चीज़ें मैंने तो नहीं कहा था एक के बाद एक लेने को.”
अलका हांफ रही थी, किशोर भौंचक्क खड़ा था. सच में अपनी अलका के प्रति वह कितना निष्ठुर हो गया था. उसकी ज़रूरतों का कोई ख़याल ही नहीं रहा. किशोर ने अलका का हाथ पकड़ते हुए कहा, “मुझे माफ़ कर दो. बस, एक बार मौक़ा दे दो. मैं सारे ख़र्चे वहन करूंगा.”
अलका शांत हो चुकी थी, बच्चे उसके पास खड़े थे. “मैंने नौकरी नहीं छोड़ी. छुट्टी ली है. सब कुछ पूर्ववत ही चलेगा. मैं तो स़िर्फ तुम लोगों को सच दिखाना चाहती थी. अपने प्यार का एहसास कराना चाहती थी.” वो सोच रही थी इस्तीफा न देकर उसने अच्छा ही किया. आख़िर इन लोगों को वह बीच मझधार में तो नहीं छोड़ सकती, ये उसके अपने ही तो हैं.

– रूपाली
अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करेंSHORT STORIES
Usha Gupta

Share
Published by
Usha Gupta

Recent Posts

नाती टिकविण्यासाठी वेळ कसा काढाल? (How Do You Find Time To Maintain A Relationship?)

आजकालच्या जोडप्यांना एकमेकांसाठी वेळ नाही-फुरसत नाही. घर-ऑफिस, पोरंबाळं, त्यांचं संगोपन आणि घरातील रामरगाडा यांच्या कचाट्यात…

April 12, 2024

अभिनेते सयाजी शिंदे यांच्यावर अँजिओप्लास्टी, आता प्रकृती स्थिर (Sayaji Shine Hospitalied, Actor Goes Angioplasty In Satara)

आपल्या खणखणीत अभिनयाने मराठीसह हिंदी चित्रपटसृष्टी गाजवणारे अभिनेते सयाजी शिंदे यांच्यावर अँजिओप्लास्टी करण्यात आली आहे.…

April 12, 2024

घरी आलेल्या पाहुण्यांच्याबाबतीत प्रकर्षाने पाळला जातो हा नियम, खान ब्रदर्सनी सांगितलं सत्य (No One go hungry from Salman Khan’s house, father Salim Khan has made these rules for the kitchen)

सलमान खान आणि त्याचे वडील सलीम खान यांच्या दातृत्वाचे अनेक किस्से बरेचदा ऐकायला मिळतात. भाईजान…

April 12, 2024

महेश कोठारे यांनी केली ‘झपाटलेला ३’ची घोषणा (Director Mahesh Kothare Announces Zapatlela-3)

अभिनेते महेश कोठारे यांच्या संकल्पनेतून तयार झालेला 'झपाटलेला' हा चित्रपट तुफान हिट ठरला होता. आता…

April 11, 2024
© Merisaheli