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कहानी- सपनों के पार (Short Story- Sapnon Ke Paar)

“तुम्हें समझाया था इन रियालिटी शोज़ के चक्कर में मत पड़ो, यहां पर असफल होने के बाद युवा तो युवा, छोटे-छोटे बच्चे भी कई बार तनाव व डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं. सैकड़ों-हज़ारों में कोई ख़ुशक़िस्मत ही होता है, जिसे अपने परिश्रम व कला का सम्मान मिलता है.”

मौक़ा था शादी के स्वागत समारोह का. चूंकि शादी रमन के दोस्त के बेटे की थी, अतः परिवार सहित जाना आवश्यक था. तनुजा ने अपनी पांच वर्षीया बेटी को स़फेद झालरों से सजी लंबी स्कर्ट पहनाई, जिसमें वह बेहद आकर्षक लग रही थी. जब वे आयोजन स्थल पर पहुंचे, तब पार्टी पूरे शबाब पर थी. परिचितों व मित्रों को मिलने के बाद वे वर-वधू को आशीर्वाद देने स्टेज पर पहुंचे.

स्टेज के क़रीब ही डांसिंग फ्लोर पर काफ़ी बच्चे थिरक रहे थे. डीजे पर तेज़ आवाज़ में ऐसे गीत बज रहे थे, जो थिरकने के लिए आमंत्रित करते हैं. स्टेज पर उतरते ही सिया बोली, “मम्मी, मुझे भी डांस करना है.” रमन तो दोस्तों के साथ बातचीत में मसरूफ़ हो गए, लेकिन तनुजा वहीं कतार में रखी कुर्सी पर बैठ गई. उसने सिया को बच्चों के साथ डांस करने की इजाज़त दे दी. सिया पूरी मस्ती व आनंद के साथ अन्य बच्चों के साथ थिरक रही थी. व्हाइट ड्रेस में वह परी-सी लग रही थी. तनुजा के चेहरे पर गर्व मिश्रित ख़ुशी नज़र आने लगी.

“यह आपकी बेटी है?” आवाज़ सुनकर तनुजा ने पलटकर देखा, पिछली सीट पर बैठी महिला उससे ही पूछ रही थी.

“जी हां, यह हमारी बेटी सिया है.” तनुजा ने विनम्रता से जवाब दिया.

“आपकी बेटी बड़ा अच्छा डांस कर रही है. क्या वो डांस क्लास जाती है?”

“नहीं, वो तो टीवी पर ही डांस देख-देखकर करती रहती है.”

“आपकी बेटी में काफ़ी टैलेंट है. आजकल तो टीवी पर बच्चों के लिए कितने ही रियालिटी टैलेंट शोज़ चल रहे हैं. डांस और सिंगिंग में तो बच्चे कमाल ही कर रहे हैं. तो क्यों नहीं आप भी अपनी बेटी के लिए कोशिश करतीं? फिर इन शोज़ में इनाम में बड़ी रक़म मिलने के साथ-साथ लोकप्रियता, पहचान भी मिलती है. क्या आप वे प्रोग्राम देखती हैं?” उस महिला ने पूछा.

“कभी-कभी ही देखते हैं, पर उसमें हिस्सा लेने के लिए क्या करना पड़ता है? हमें तो कुछ भी पता नहीं. सच कहूं, तो हमने कभी इस ओर ध्यान ही नहीं दिया…” तनुजा कुछ सकुचाते हुए बोली.

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“आप नियमित प्रोग्राम देखते रहिए. बीच-बीच में सूचनाएं दी जाती हैं कि ऑडीशन कब और कहां होगा. नियम-शर्तों के बारे में भी बताया जाता है.” वह महिला शायद काफ़ी जानकारी रखती थी. तनुजा ने स्वीकृति में सिर हिला दिया.

बात आई-गई हो गई. उस दिन तनुजा टीवी पर कोई सीरियल देख रही थी. ब्रेक में उसने चैनल बदला, तो वहां बच्चों के डांस का प्रोग्राम चल रहा था. छोटे-छोटे बच्चे बेहद आकर्षक डांस कर रहे थे. तभी सूचना दी गई कि अगले प्रोग्राम के लिए जल्दी ही ऑडीशन लिया जाएगा तथा संपर्क के लिए फ़ोन नंबर भी बताए गए. तनुजा ने तुरंत नंबर नोट कर लिया. अगले दिन उसने फ़ोन नंबर मिलाया, तो बताया गया कि दो महीने बाद ऑडीशन है, जिसमें बच्चों को अपनी नृत्य कला का प्रदर्शन करना होगा. अगर बच्चा इस टेस्ट में सफल हो गया, तो ही उसे कार्यक्रम में हिस्सा लेने का अवसर मिलेगा. इसमें 5 से 10 वर्ष की उम्र तक के बच्चे ही हिस्सा ले सकते हैं.

शाम को बड़े उत्साह के साथ तनुजा ने पूरी जानकारी रमन को दी. रमन ने केवल इतना कहा, “सिया को स्पर्धा के हिसाब से नृत्य में पारंगत करना, ऑडीशन के लिए दूसरे शहर जाना, सबके सामने सिया का प्रदर्शन कैसा होगा, यह सब देखना-संभालना, साथ ही उसकी पढ़ाई में भी अड़चन न आए… यदि ये सब तुम संभाल सकती हो, तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है.”

तनुजा उत्साहित-सी बोली, “आपकी बेटी में काफ़ी टैलेंट है. मैं सब संभाल लूंगी.”

चूंकि समय बहुत अधिक नहीं था, सो अगले दिन से ही बढ़िया डांस क्लास की खोज शुरू हो गई. 3-4 दिनों के बाद आख़िर एक क्लास तनुजा को पसंद आ गई. शुरू के 2-4 दिन वह स्वयं उसे छोड़ने आई तथा दो घंटे वहीं बैठकर सब देखती रही. डांस टीचर बड़े प्रेम से बच्चों को डांस सिखा रहे थे. तनुजा उनके व्यवहार से काफ़ी संतुष्ट हुई. स्कूल से घर लौटकर सिया खाना खाती, स्कूल की बातें मम्मी को बताती. इतने में रिक्शा आ जाता. दो घंटे की डांस क्लास के बाद वह शाम छह बजे लौटती. फिर होमवर्क करने का वक़्त हो जाता. कुछ देर टीवी के प्रोग्राम देखने के बाद सोने का वक़्त हो जाता, क्योंकि सुबह 7 बजे स्कूल जाने के लिए जागना पड़ता था और 8 बजे स्कूल बस आ जाती थी.

जैसे-जैसे ऑडीशन का समय नज़दीक आ रहा था, तनुजा का उत्साह व तनाव भी उसी रफ़्तार से बढ़ रहे थे. जहां एक ओर बेटी का डांस देख संतुष्टि व विश्‍वास था कि उसका चयन हो जाएगा, वहीं दूसरी ओर तनाव भी कम नहीं था, पता नहीं कितने और बच्चे होंगे? सिलेक्टर कैसे होंगे? सिया वहां डरकर नर्वस तो

नहीं हो जाएगी? ऐसे अनेक सवाल उसके ज़ेहन में उपजकर उसे तनावग्रस्त कर देते.

ऑडीशन के लिए सिया के साथ तनुजा व रमन भी गए. तनुजा पता नहीं अकेले इन परिस्थितियों से निबट पाएगी या नहीं, यही सोच रमन भी साथ चले गए. ऑडीशन के लिए सैकड़ों बच्चे आए थे. बड़े शहरों के अतिरिक्त छोटे-छोटे कस्बों तक के बच्चे बड़े उत्साह के साथ आपस में बतिया रहे थे. बच्चों के अभिभावक जहां उत्साहित थे, वहीं तनावग्रस्त भी थे. हरेक के मन में अव्यक्त भय व आशंका थी कि उनके बच्चे का चयन न हुआ तो?

इतनी भीड़भाड़ देखकर तनुजा भी हतोत्साहित हो रही थी, पर रमन उसे तसल्ली देते रहे, “इतना टेंशन लेने की ज़रूरत नहीं है. यदि सिया का चयन हो गया, तो बहुत अच्छा है. लेकिन न भी हुआ, तो कोई बात नहीं. आख़िर यहां ढेरों बच्चे आए हैं, चयन तो गिने-चुनों का ही होगा न! इसी बहाने सिया ने कम से कम डांस में अच्छी प्रगति तो कर ली है. कला और गुण ज़िंदगी में हमेशा काम आते हैं…” लेकिन तनुजा का तनाव कम नहीं हुआ, बेशक वह ऊपरी तौर पर सहज दिखने का प्रयास करती रही.

ऑडीशन के 2 दिन बाद परिणाम घोषित किए गए. सिया का चयन हो गया था. रमन व तनुजा बेहद ख़ुश थे. तनुजा को यूं महसूस हो रहा था, मानो बहुत बड़ी जंग जीत ली हो, जबकि असली जंग तो अब शुरू होनी थी. वापस घर लौटकर उसने पड़ोसियों, दोस्तों और रिश्तेदारों सभी को बताया कि जल्दी ही उनकी बेटी टीवी के डांस रियालिटी शो में दिखेगी. रिकॉर्डिंग में लगभग महीनेभर का समय बाकी था. बीस बच्चों का चयन किया गया था, जिनमें से विजेता को बड़ी नकद राशि के अलावा प्रायोजकों द्वारा महंगे उपहार भी दिए जाने थे.

तनुजा के दिलों-दिमाग़ में अब हर समय यही विचार उठते रहते कि क्या उसकी बेटी विजेता बन पाएगी? अक्सर इसी से जुड़े विचारों में वो खोई रहती. स्वयं की सोच पर हंसी भी आती कि कितनी नादान है वह. जागती आंखों से सपने देखने लगी है.

धीरे-धीरे यह सोच उसके स्वभाव का हिस्सा बनने लगी. उसका पूरा ध्यान केवल सिया को डांस रियालिटी शो में विजेता देखने पर केंद्रित होने लगा. उसने सिया की डांस क्लास का समय बढ़ा दिया. तीन घंटों की प्रैक्टिस के बाद थकी-हारी बेटी होमवर्क करते-करते सोने लगती, तो तनुजा जबरन उठाकर बिठाती. कभी-कभी होमवर्क आधा-अधूरा ही हो पाता, स्कूल से शिकायत आती, तो तनुजा टीचर से कहती, “यदि सिया डांस कॉम्पिटिशन में विजेता बन गई, तो आपके स्कूल का नाम भी तो रोशन होगा. कुछ दिनों के लिए अगर वह ठीक से होमवर्क नहीं कर पाती, तो क्या हुआ, उतनी छूट तो आपको देनी चाहिए, बाकी परीक्षा के वक़्त उसकी पढ़ाई मैं देख लूंगी…” टीचर हैरानी से उसका मुंह देखती रह गई. फिर कहा, “डांस शो में हिस्सा लेना आपका निजी फैसला है, स्कूल की तरफ़ से तो हमने नहीं भेजा है. अतः अनुशासन के नाते बच्चे की पढ़ाई भी नियमित रूप से होनी चाहिए. यदि वह पढ़ाई में पिछड़ गई, तो इसकी ज़िम्मेदारी आपकी ही होगी.” तनुजा कुछ जवाब न दे सकी, लेकिन सिया की पढ़ाई के विषय में उसका व्यवहार पूर्ववत् ही बना रहा.

आख़िर डांस रियालिटी शो की तारीख़ की सूचना आ गई. पहले राउंड की शूटिंग दो दिनों में पूरी हुई. कुल 20 बच्चों में से 10 का चयन किया गया, जिसमें सिया भी शामिल थी. तनुजा बेहद ख़ुश थी. उसे लगने लगा था कि सिया अवश्य विजेता बनेगी. वहां उपस्थित काफ़ी लोगों ने सिया के डांस की प्रशंसा की थी. अगले पांच राउंड में एक-एक बच्चे को स्पर्धा से बाहर किया जाना था. दूसरे राउंड में भी सिया ने काफ़ी अच्छा डांस किया, तो वह तीसरे राउंड के लिए चुन ली गई. अगला राउंड सेमी-फ़ाइनल था.

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तनुजा दिन-रात सिया के पीछे पड़ी रहती, “अच्छी प्रैक्टिस करो, तुम्हें सेमी-फ़ाइनल में पहुंचना ही है, तभी तो फ़ाइनल में पहुंच पाओगी. आख़िर तुमको विजेता बनना है. कितने सारे रुपए इनाम में मिलेंगे. कितने सारे गिफ़्ट मिलेंगे. सब लोग तुमसे आकर मिलेंगे. तुम्हारा सत्कार करेंगे. शहर में भी तुम्हारा नाम होगा, अख़बारों में तुम्हारी फ़ोटो, ख़बर छपेगी. कितना नाम होगा तुम्हारा और साथ-साथ हमारा भी. तुम्हें बस इतना याद रखना है कि यह कॉम्पिटिशन जीतना ही है.”

अत्यधिक प्रैक्टिस के कारण सिया बहुत थक गई थी. अगले दिन सेमी-फ़ाइनल के लिए चयन होना था. थकान व तनाव के कारण सिया कुछ डरी-सहमी हुई थी. जब उसकी बारी आई, तो अच्छा डांस करते हुए भी वह 2-3 स्टेप्स भूल गई, जिसके कारण कॉम्पिटिशन से बाहर कर दी गई. वह नन्हीं जान उस समय फूट-फूटकर रो पड़ी. आयोजकों के दिलासा देने पर सुबकते हुए बोली, “मम्मी ने कहा था कि इस कॉम्पिटिशन में तुमको विनर बनना है. अब वो नाराज़ होंगी, मुझे डांटेंगी…”

दर्शकों के बीच बैठी तनुजा की आंखों से अविरल अश्रुधारा प्रवाहित हो रही थी. वह हिसाब लगा रही थी कि कितना ख़चर्र् सिया की डांस क्लास के लिए हुआ, कपड़ों पर हुआ, प्रोग्राम के लिए आने-जाने पर हुआ और मिला क्या? सारे सपने चकनाचूर हो गए. अब वह पड़ोसियों व रिश्तेदारों को क्या मुंह दिखाएगी? इस पर कितना ख़र्च किया. पढ़ाई में भी वह पीछे रह गई. पता नहीं अगले महीने होनेवाली वार्षिक परीक्षा में पास भी हो पाएगी या नहीं. उसकी टीचर भी नाराज़ थी, पता नहीं क्या होगा?

रमन भी नाराज़ होकर कहेंगे, “तुम्हें समझाया था इन रियालिटी शोज़ के चक्कर में मत पड़ो, यहां पर असफल होने के बाद युवा तो युवा, छोटे-छोटे बच्चे भी कई बार तनाव व डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं. सैकड़ों-हज़ारों में कोई ख़ुशक़िस्मत ही होता है, जिसे अपने परिश्रम व कला का सम्मान मिलता है. हमारे जैसे मध्यमवर्गीय लोगों के लिए अपनी आवश्यकताओं को दरकिनार कर ऐसी स्पर्धाओं के पीछे भागने का कोई औचित्य ही नहीं है. इन प्रोग्रामों के पीछे की सच्चाई बड़ी कड़वी होती है. इनकी चकाचौंध से सभी आकर्षित होते हैं, लेकिन वास्तविकता के बारे में कोई नहीं जानता.”

घर लौटने पर उसने अपना तनाव, डिप्रेशन व ग़ुस्सा सब कुछ सिया पर उतार दिया, “यह किसी काम की नहीं. इस पर कितना पैसा ख़र्च किया, कितनी मेहनत की. सोचा था कुछ कर दिखाएगी, तो इसका भी नाम होगा और हमारी भी इ़ज़्ज़त बढ़ेगी. पर सब बेकार हो गया.

अब सब लोग कितना मज़ाक उड़ाएंगे कि सेमी फ़ाइनल तक भी नहीं पहुंच पाई…”

रमन ने समझाया, “तनुजा, अब जाने भी दो. जो हो गया, सो हो गया, सिया ने अपनी तरफ़ से तो पूरी कोशिश की, जजों को पसंद नहीं आया तो वह क्या कर सकती है?”

तनुजा फिर भड़क उठी, “ये जज भी बेईमान होते हैं. पक्षपात करते हैं. डांस के बाद तो तारी़फें कर रहे थे, फिर नंबर कम क्यों दिए? ज़रूर अपनी पहचानवालों को आगे किया होगा… मैं ही बेवकूफ़ थी, जो पार्टी में उस महिला की बातों में आ गई और इस डांस शो के लिए इतने पापड़ बेले. अब तो टीवी पर इनके प्रोग्राम को भी नहीं देखूंगी, लोगों को बेवकूफ़ बनाते हैं…” तनुजा गहरे अवसाद में चली गई थी. सिया तो हंसना-खेलना ही भूल गई थी, हर समय डरी-सहमी रहती. परेशान होकर रमन दोनों को डॉक्टर के पास ले गया. दोनों को ही डॉक्टर ने आराम की सलाह दी व कुछ दवाइयां भी दीं. सिया तो धीरे-धीरे नॉर्मल होने लगी, लेकिन डॉक्टर का कहना था कि तनुजा को ठीक होने में वक़्त लगेगा. उसे दवा भी लेनी होगी और मानसिक रूप से आराम भी करना पड़ेगा.

नरेंद्र कौर छाबड़ा

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