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कहानी- सौतेली मां (Story- Sauteli Maa)

हमने जबसे होश संभाला, आपको ही देखा, आपको ही पाया. हर क़दम पर साये की तरह आपने ज़िंदगी की धूप से हमें बचाया. अपनी नींदें कुर्बान करके हमें रातभर थपकी देकर सुलाया. फिर भी हर ख़ुशी के मौ़के पर यहां आंसू बहाए जाते हैं कि आज हमारी सगी मां होती, तो ऐसा होता, वैसा होता…

आज इतने बरसों बाद पीछे पलटकर देखती हूं, तो एक ही लफ़्ज़ बार-बार कानों में गूंजता है… सौतेली मां! ताउम्र इस एक शब्द से जंग लड़ती आ रही हूं… अब तो जैसे ये मेरी पहचान ही बन गया है. हर बार अग्निपरीक्षा, हर बात पर अपनी ममता साबित करना… जैसे कोई अपराधी हूं मैं और ये पूरा समाज ही मुझे कठघरे में खड़ा करके सवाल करने का हक़ रखता हो… क्यों दूं मैं सफ़ाई? क्यों करूं ख़ुद को साबित…? मां स़िर्फ मां होती है, उसकी ममता सगी या सौतेली नहीं होती… लेकिन कौन समझता है इन भावनाओं को. दो कौड़ी की भी क़ीमत नहीं है मेरी इन भावनाओं की…’ नंदिनी आज न जाने क्यों इस उधेड़बुन में लगी थी. आज ही क्यों, वो तो अक्सर ख़ुद से इस तरह के सवाल करती रहती है, जिनका जवाब किसी के पास नहीं होता.

धूप को आंचल में भर लेने की कोशिश में जुटी थी नंदिनी… कभी झील में चांद के अक्स को थाम लेना चाहती थी… कभी उड़ती ख़ुशबू को मुट्ठी में कैद करने को आतुर हो जाती… लेकिन वो जानती थी कि ये संभव नहीं. हर बार तरसती निगाह से सबकी ओर देखती थी कि कहीं से कोई प्रशंसाभरे शब्द कह दे उसके लिए. लेकिन ऐसा होता नहीं था. समय इसी तरह गुज़र रहा था.
…आज आंगन चांदनी से भरा था, शबनम के बरसने से मौसम और भी ख़ुशगवार हो गया था. बालकनी में खड़ी उर्मिला अचानक बोली, “मां, इतनी देर से चुपचाप मेरे पीछे खड़ी क्या सोच रही हो?”
“उर्मि बेटा, तुम्हें कैसे पता चला कि मैं पीछे खड़ी हूं?” उर्मि की मां नंदिनी ने हैरान होकर पूछा.
“मां, तुम्हारी ख़ुशबू मैं अच्छी तरह से पहचानती हूं. तुम्हारा एहसास, तुम्हारा स्पर्श सब कुछ मुझसे बेहतर कौन समझ सकता है? आख़िर मां हो मेरी.” उर्मि ने अपनी मां का हाथ थामकर कहा.
“मां, क्या तुम अब भी दुविधा में हो? मैं सही हूं न मां?” उर्मि ने एक गहरी दृष्टि अपनी मां पर डालते हुए पूछा.
“सही-ग़लत तो मैं ख़ुद नहीं समझ पा रही. बस, मन में यही डर है कि तुम कहीं वही ग़लती तो नहीं दोहरा रही, जो मैंने भावनाओं में बहकर की थी.” उर्मि की मां नंदिनी ने अपने मन में छिपे डर को न चाहते हुए भी उर्मि के सामने रख दिया.
“मां, तुम्हारा डर जायज़ है, लेकिन तुमने जो किया, वो मेरे लिए गर्व की बात है और मैं भी चाहती हूं कि मैं वही करूं, जो इस व़क्त सही लग रहा है, बिना किसी पूर्वाग्रह के. तुम मेरी प्रेरणा हो मां… तुमसे ही मैं ममता की गहराई जान पाई हूं. भला तुम्हारी ममता को मैं तुम्हारी ग़लती कैसे मान लूं?”
“तुम्हारी सोच ठीक है, लेकिन जिस दर्द से मैं गुज़री हूं, उसी दर्द से तुमको गुज़रते नहीं देखना चाहती. अब रात बहुत हो गई है, सो जाते हैं.”
“मां, मुझे आज अपनी गोद में सोने दो.” उर्मि को थपकी देकर मासूम बच्चे की तरह सुला रही थी नंदिनी और उसकी यादों का कारवां बरसों पहले जा पहुंचा था. नई-नई दुल्हन बनकर आई थी. अचानक ही उसकी ज़िंदगी में सब कुछ बदल गया था. जिस शख़्स को अब तक अपनी बड़ी बहन के पति के रूप में देखती आई थी, वो अब उसी की पत्नी बन चुकी थी. नंदिनी ने बिना आनाकानी किए सोम से शादी के लिए हामी भर दी थी, क्योंकि दीदी की असमय मौत के बाद उसे सबसे अधिक चिंता उनके दोनों बच्चों- उर्मिला और रोहित के भविष्य की थी. बाकी घरवालों की तरह नंदिनी की यही सोच थी कि मौसी भी मां समान ही होती है और चूंकि बच्चे पहले से ही नंदिनी से घुले-मिले थे, तो वो भी उसे अपनी मां के रूप में आसानी से स्वीकार कर पाएंगे. उसकी बहन ने भी तो उसे अपने बच्चों की तरह ही प्यार किया था हमेशा, तो भला वो अब पीछे कैसे हट सकती थी.
दूसरी तरफ़ सोम का भी वो बहुत सम्मान करती थी. समय बीतता रहा, बच्चों के साथ नंदिनी ख़ुद भी बच्ची ही बन जाती और खेल-खेल में उन्हें कई बातें सिखाने में कामयाब हो जाती. लेकिन इतना कुछ करने पर भी बात-बात पर उसे ‘सौतेली मां’ का तमगा पहना दिया जाता. अगर बच्चे को चोट लग जाए, तो पड़ोसी कहते, “बेचारे बिन मां के बच्चे हैं, सौतेली मां कहां इतना ख़्याल रखती होगी…” इस तरह के ताने सुनने की आदी हो चुकी थी नंदिनी, लेकिन सबसे ज़्यादा तकलीफ़ तब होती, जब अपना ही कोई इस दर्द को और बढ़ा देता. चाहे बच्चों का जन्मदिन हो या कोई अचीवमेंट, हर बार घर के क़रीबी रिश्तेदार यह कहने से पीछे नहीं हटते थे कि आज इनकी अपनी मां ज़िंदा होती, तो कितनी ख़ुश होती.
“सोम, मुझे ख़ुशी है कि सभी लोग दीदी को याद करते हैं, लेकिन बात-बात पर मुझे सौतेलेपन का एहसास कराना बहुत पीड़ादायक है. मैं हर तरह से आपको और बच्चों को अपना ही हिस्सा समझती हूं और यह भी आपको बता दूं कि अपना फ़र्ज़ समझकर नहीं, बल्कि आपके व बच्चों के प्रति प्यार व अपनेपन की गहरी भावना के चलते मैं सब करती हूं.” नंदिनी ने सोम से अपने दिल की बात कही.
“नंदिनी, तुम अपना फ़र्ज़ अच्छी तरह से निभा रही हो, लेकिन लोगों का तो तुम्हें पता ही है कि बिना सोचे-समझे कुछ भी बोल जाते हैं. उनकी बातों को इतनी अहमियत देकर तुम स़िर्फ ख़ुद को ही तकलीफ़ दोगी.” सोम ने नंदिनी को समझाया.
सोम की बातों से नंदिनी का मन थोड़ा शांत हुआ, लेकिन दूसरी तरफ़ वो यह भी जानती थी कि सोम को उसकी पीड़ा की गहराई का अंदाज़ा तक नहीं. जब सबके सामने उसकी ममता पर सवालिया निशान लगा दिया जाता है, तब उसके दिल पर क्या गुज़रती है, यह कोई नहीं समझ सकता.
इसी बीच नंदिनी को पता चला कि वो मां बनने वाली है. इस बच्चे के लिए वो मानसिक रूप से तैयार नहीं थी, लेकिन सोम के समझाने पर उसने तय किया कि वो इस बच्चे को जन्म देगी.
नंदिनी ने एक बेटी को जन्म दिया. सोम और नंदिनी के साथ-साथ सभी ख़ुश थे. उर्मिला ने भी गुड़िया को देखकर कहा, “मां, ये बिल्कुल मेरी तरह दिखती है न.” सब लोग उसकी मासूमियत पर हंसने लगे. उर्मिला और रोहित की उम्र में मात्र एक वर्ष का ही अंतर था. नंदिनी जानती थी कि बच्चों को उससे कोई शिकायत नहीं है, लेकिन उसे डर था कि समय के साथ कहीं दूसरे लोग बच्चों के मन में भी सगे-सौतेले के भेद का ज़हर न भर दें. नंदिनी अपने इस डर से आजीवन उबर नहीं पाई और यही वजह रही कि अपनी कोख से जन्मी रश्मि से कहीं ज़्यादा ध्यान वो उर्मिला और रोहित का रखती. लेकिन कहीं न कहीं नंदिनी को यह एहसास हो रहा था कि रोहित के मन में कुछ ग्रंथियां पलने लगी थीं और वो धीरे-धीरे उससे दूर होता जा रहा था.
व़क्त बीतता गया. बच्चे बड़े हो गए. रोहित ने इंजीनियरिंग पूरी की और उर्मिला ने एमबीए. नंदिनी को दोनों बच्चों से बहुत उम्मीदें थीं, लेकिन रोहित की बढ़ती दूरी को लेकर उसके मन में डर बढ़ता ही जा रहा था और एक दिन उसका डर सही साबित हुआ. उस दिन जब रोहित के मुंह से भी उसने ‘सौतेली मां’ शब्द सुना, तो उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई.
“रोहित, ये क्या बात हुई बेटा, पढ़ाई पूरी हो गई, अब तुम्हें अपना करियर बनाने के लिए मेहनत करनी होगी. बिना जॉब ढूंढ़े, कहीं काम नहीं मिलेगा. दिनभर घर पर बैठकर, रात में दोस्तों के साथ पार्टी करके तुम अपना क़ीमती समय ज़ाया कर रहे हो.”
“…मैं जो भी कर रहा हूं, अपने पापा की कमाई पर कर रहा हूं, आपको क्यों तकलीफ़ हो रही है. आप चाहती हो, मैं मेहनत करूं और आप मज़े से मेरे पापा की सारी प्रॉपर्टी हड़प कर लो.” नंदिनी उस दिन रोहित को थप्पड़ मारने से ख़ुद को रोक नहीं पाई. पहली बार हाथ उठाया उसने अपने बच्चे पर.
“मुझे आपसे यही उम्मीद थी, आख़िर आपने साबित कर ही दिया ना कि सौतेली मां तो सौतेली ही होती है.” इतना कहकर रोहित ग़ुस्से में बाहर चला गया. नंदिनी रोती रही और यही सोचती रही कि आख़िर कहां चूक हुई उससे. जब वो दुल्हन बनकर आई थी, तो सोम के पास न ख़ुद का घर था, न ही कोई प्रॉपर्टी. उसकी नज़र में तो रोहित और उर्मिला ही उसकी सबसे बड़ी जायदाद थी. वो सौग़ात, जो उसकी बहन की थी, जिसे बड़े नाज़ों से उसे संभालना, सहेजना और पल्लवित करना था.
अपनी हर इच्छा का दमन करके उसने पैसे सहेजे, अपनी ख़ुशियों को भूलकर बच्चों की परवरिश से ज़्यादा अहमियत किसी भी चीज़ को नहीं दी. बच्चों को शहर लेकर आई, ताकि वो गंदे माहौल से बाहर निकलें. सोम को भी कहा कि बच्चों की ख़ातिर कोई अच्छी नौकरी या अपना बिज़नेस शुरू करने का थोड़ा रिस्क लेना होगा.
नंदिनी ने ख़ुद सोम के साथ दिन-रात मेहनत करके यह बिज़नेस खड़ा किया और आज जब सब कुछ है उसके पास, तो इस बच्चे ने उसे कंगाल कर दिया. नंदिनी की आंखों से आंसू बहते ही जा रहे थे. ख़ैर, रोहित भले ही नंदिनी से दूर हो गया था, लेकिन उर्मिला नंदिनी को समझती थी.
लेकिन आज नंदिनी फिर एक दुविधा में थी, यूं लगा मानो इतिहास ख़ुद को दोहरा रहा हो. सोम ने नंदिनी को बताया कि उर्मिला के लिए एक बहुत ही अच्छा रिश्ता आया है. सोम के दोस्त मिस्टर खन्ना लंदन में रहते हैं, उनका बेटा रवि भी वहां डॉक्टर है, वो उर्मि को अपने घर की बहू बनाना चाहते हैं. यहां तक तो नंदिनी भी ख़ुश थी, क्योंकि वो जान-पहचानवाला परिवार था. दोस्ती रिश्तेदारी में बदल जाएगी, तो और भी अच्छा रहेगा. लेकिन जब सोम ने यह बताया रवि की पहले भी शादी हुई थी, उसकी पत्नी का देहांत हो चुका था और उनकी एक बेटी भी है, तब नंदिनी अपने ग़ुस्से को दबा नहीं पाई.
“नहीं सोम, यह शादी नहीं होगी. अपनी उर्मिला को यहां और भी अच्छे लड़के मिलेंगे. वैसे भी ऐसी क्या मजबूरी या जल्दी है, जो पहले से शादीशुदा किसी लड़के को हम अपनी बेटी के लिए चुनें?” नंदिनी ने दो टूक जवाब दे दिया.
“लेकिन इसमें बुराई ही क्या है? जान-पहचानवाला परिवार है, किसी अच्छे लड़के को रिजेक्ट करने का यह उचित कारण नहीं है.” सोम ने कहा.
“सोम, आप चाहे जो कहें, लेकिन मैं नहीं चाहती कि उर्मि के रूप में एक और नंदिनी पैदा हो… एक और सौतेली मां का जन्म हो, जो ज़िंदगीभर हर पल, हर क्षण अपनी ममता की परीक्षा ही देती जाए.” इतना कहकर नंदिनी फूट-फूटकर रो पड़ी.
“मैं इस शादी के लिए तैयार हूं.” उर्मि की आवाज़ ने सबको चौंका दिया.
“उर्मि, ये क्या कह रही हो? होश में तो हो?” नंदिनी ने कहा.
“हां मां, मैं सोच-समझकर यह फैसला कर रही हूं. मां, हमने जबसे होश संभाला, आपको ही देखा, आपको ही पाया. हर क़दम पर साये की तरह आपने ज़िंदगी की धूप से हमें बचाया. अपनी नींदें कुर्बान करके हमें रातभर थपकी देकर सुलाया. फिर भी हर ख़ुशी के मौ़के पर यहां आंसू बहाए जाते हैं कि आज हमारी सगी मां होती, तो ऐसा होता, वैसा होता… लेकिन कोई मुझसे पूछे, अगर हमारी सगी मां भी होती, तब भी हमारी इतनी अच्छी परवरिश नहीं करती, जितनी आपने की है. मैं चाहती हूं कि मैं भी आपके आदर्शों पर चलूं, बिल्कुल आपकी तरह बनूं… और मां स़िर्फ मां होती है… सगी या सौतेली जैसे शब्द हमारे विचारों की गंदगी होते हैं.
यह भी हो सकता है मां कि इस शादी में भी लोग कहें कि अगर सगी मां होती, तो शायद कुंआरा लड़का ढूंढ़ती, लेकिन मैं ऐसे लोगों को बाहर का रास्ता दिखाने का साहस कर सकती हूं अब, क्योंकि अब मेेरे सब्र का बांध टूट गया है.”
नंदिनी की आंखों से आंसू बहने लगे और दो बूंद सोती हुई उर्मि के गालों पर गिर पड़ी. उर्मि नींद से जागी, तो देखा नंदिनी की आंखें नम हैं.
“क्या हुआ मां, क्या सोच रही हो?” नंदिनी यादों को समेटकर वर्तमान में लौटी.
“उर्मि, मेरे प्यार और समर्पण को तुमसे बेहतर कोई नहीं समझ पाया है, लेकिन भावनाओं में बहकर ऐसा कोई भी फैसला मत लो, जिसके लिए आगे चलकर तुम्हें पछताना पड़े. तुमने अगर यह शादी की, तो मैं ख़ुद को कभी माफ़ नहीं कर पाऊंगी. इसीलिए अपने फैसले पर एक बार फिर विचार कर लो. मैंने तुम्हें लेकर और भी कई सपने देखे थे, क्या उन्हें अधूरा छोड़ दोगी?”
उस व़क्त उर्मि ने कुछ नहीं कहा, रातभर स़िर्फ बिस्तर पर करवटें ही बदलती रही. फिर न जाने क्यों अचानक उसने टाइम देखा. 4 बज रहे थे. लेकिन शायद वो फैसला ले चुकी थी और इंतज़ार नहीं करना चाहती थी. इसलिए नंदिनी के पास आकर बैठ गई.
नंदिनी भी कहां सो पाई थी इस बेचैनी भरे माहौल में. उर्मि को देखकर चौंक गई, “क्या बात है उर्मि? इतनी सुबह… कुछ कहना चाहती हो?”
“मां, मैंने बहुत सोचा और आप बिल्कुल सही कह रही हो, मैं भावुक होकर ही यह फैसला ले रही थी. अभी तो मुझे अपना करियर बनाना है. आपके सपनों को पूरा करना है. आप चाहती थीं न कि मैं अपने पैरों पर खड़ी होकर आपका नाम रौशन करूं. इतनी जल्दी शादी के लिए मैं मानसिक रूप से तैयार भी नहीं थी. थैंक्यू मां, हमेशा की तरह आपने सही समय पर मुझे सही रास्ता दिखाया और मेरी आंखें खोल दीं.”
नंदिनी ने उर्मि का माथा चूमा, “उर्मि, तुमने एकदम सही फैसला लिया है.”
“मां, जिसके पास आप हो, वो भला कभी कोई ग़लती कर सकता है क्या? आपने हर क़दम पर हमें सही राह दिखाई.
जब-जब हम कमज़ोर पड़े, आपने ही हाथ थामा, जब-जब हम लड़खड़ाए आपकी ही बांहों का सहारा मिला. आप दुनिया की बेस्ट मां हो.”
“बस, अब बातें बहुत हो गईं. चलो सो जाओ. अब तो मुझे भी नींद आ रही है. मन का बोझ हल्का हो गया.”
“मां, मुझे अपने पास ही सोने दो न प्लीज़. पापा तो वैसे भी टूर पर गए हैं.” दोनों खिलखिलाकर हंसने लगीं और थोड़ी देर बाद ही नींद की आगोश में खो गईं. दोनों के चेहरे पर अलग ही सुकून था. कुछ ही देर में सुबह होनेवाली थी और आज का सूरज नई उमंग, नई ताज़गी लेकर आनेवाला था, अंधेरी रात अपने साथ सारी शंकाओं को भी लिए जा रही थी.


               गीता शर्मा
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