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कहानी- सॉरी आंटी (Short Story- Sorry Aunty)

आंटी की आवाज़ में जो कुछ भी था, वह रिया के संवेदनशील, भावुक मन को अंदर तक छू गया. एक स्त्री होकर भी वह कभी अंदाज़ा क्यों नहीं लगा पाई कि इन अकेली जी रही आंटियों के जीवन में कितना अकेलापन होगा. कितनी तन्हा हैं सब, अकेले रहकर ख़ुश रहने की कोशिश में लगी रहती हैं. सबके साथ जो थोड़ा-बहुत हंस-बोल लेती हैं, यह देखकर वह क्यों कभी ख़ुश नहीं हुई.

अपनी किटी पार्टी का पूरा ग्रुप रिया को बहुत पसंद था. अपनी घर-गृहस्थी को थोड़ी देर भूलकर महीने में एक बार पंद्रह महिलाएं इकट्ठा होकर एंजॉय करती थीं. रिया को इस दिन का इंतज़ार रहता था. दो बच्चों की मां, चालीस वर्षीया रिया स्वभाव से ख़ुशमिज़ाज, मिलनसार महिला थी. अपने गु्रप में वह अच्छी-ख़ासी लोकप्रिय थी. इस गु्रप में तीस साल से लेकर साठ साल की मीरा, पैंसठ साल की सुमन और सत्तर साल की रेखा आंटी भी थीं. तीनों आंटी को सब बहुत पसंद करते थे. सुमन आंटी अकेली रहती थीं. कुछ साल पहले उनके पति का देहांत हो गया था. एक ही बेटी थी, जो ऑस्ट्रेलिया में अपने पति और बच्चों के साथ रहती थी. सुमन आंटी की जीवनशैली किटी के बाकी सदस्यों के लिए प्रेरणा का स्रोत थी. अकेले कैसे जिया जाता है, इसका जीवंत उदाहरण थीं सुमन आंटी. रेखा आंटी के पति का भी स्वर्गवास हो चुका था. वे अपने बेटे के साथ रहती थीं. मीरा आंटी के भी पति नहीं रहे थे. दो विवाहित बेटियां थीं और वे अपनी छोटी बेटी के साथ रहती थीं.

पर पता नहीं क्यों रिया की ऐसी सोच थी कि वह अपने ग्रुप की तीनों बुज़ुर्ग सदस्याओं से सहज नहीं थी. रिया ने नोट किया था कि बाकी सब तो तीनों को बहुत प्यार करती थीं, लेकिन रिया उनसे दूरी बनाए रखती थी. तीनों अच्छी तरह से पहन-ओढ़कर रहतीं. कभी तीनों मिलकर बाहर भी खाने-पीने जातीं, मूवी भी देख आतीं. रिया भी सोचती कि क्या बुराई है अगर ये तीनों अच्छी तरह से लाइफ एंजॉय कर रही है? फिर वह इन्हें नापसंद क्यों करती है? वह अपनी सोच पर हैरान हो जाती. वह कहीं ईर्ष्यालु प्रवृत्ति की महिला तो नहीं बनती जा रही है, जो उन अकेली स्त्रियों को ख़ुश देखकर ख़ुश नहीं हो पाती. फिर सोचती, नहीं-नहीं वह क्यों जलेगी. वह तो अपने जीवन से संतुष्ट है.

कभी वह सोचती हमारे गु्रप में बुज़ुर्ग सदस्याओं की क्या ज़रूरत है, इन्हें तो भजन-कीर्तन मंडली में होना चाहिए. ये हमारी किटी में आकर क्यों एंजॉय करती हैं. तीनों हर गेम को उत्साह से खेलतीं और  इनाम मिलने पर बच्चों-सी ख़ुश हो जातीं. सब एक ही सोसायटी में रहती थीं. कई बार ऐसा भी हुआ था, जब रिया के पति अनिल या उसकी कुछ ख़ास सहेलियों ने उसके गु्रप का मज़ाक उड़ाया था यह कहकर कि, ‘तुम्हारा तो उम्रदराज़ आंटी लोगों का गु्रप है.’ यह सुनकर रिया को और ग़ुस्सा आता था. रिया स्वभाव से काफ़ी भावुक महिला थी, पर पता नहीं क्यों इन उम्रदराज़ स्त्रियों की उपस्थिति उसे नागवार गुज़रती. वह कई बार अपनी ख़ास सहेली टीना को कह चुकी थी, “अब किसी आंटी को अपने गु्रप में नहीं लेना है, धीरे-धीरे यह किटी नानी-दादी की किटी होती जा रही है.” टीना ने उसे समझाया, “थोड़ी देर हम लोगों के साथ बैठकर, खा-पीकर ख़ुश हो लेती हैं. अच्छा ही तो है, इसमें बुरा क्या है.” यही तो रिया समझ नहीं पा रही थी कि वह क्यों मन ही मन चिढ़ती रहती है. टीना ने यह भी कहा था, “रिया, कल हम भी तो उस उम्र में पहुंचेंगी, तो क्या तब हमारा मन नहीं होगा सबके साथ गु्रप में हंसने-बोलने का या तुम किसी मंदिर में बैठकर भजन ही करनेवाली हो तब?” रिया कुछ बोली नहीं थी. धीरे-धीरे इस किटी पार्टी को शुरू हुए पांच साल बीत गए थे, सब लोग अब तक घर की सदस्याएं-सी हो गई थीं, पर रिया की मनोस्थिति आज भी वही थी.

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वह किटी में भरपूर आनंद उठाकर जब लौटती, तो कभी उसके पति या आस-पड़ोस के युवा बच्चे या कोई परिचित स्त्री कह देती, “क्या मज़ा आता है तुम्हें इस गु्रप में, उम्र देखी है सबकी? कैसे एंजॉय करती हो.” रिया को ग़ुस्सा तो बहुत आता, पर चुप रह जाती. वो कर भी क्या सकती थी?

इसी बीच रिया को पास की ही बिल्डिंग में अपने बेटे की ट्यूशन टीचर से मिलने जाना था. बारिश का मौसम था, लेकिन आसमान साफ़ था, तो वह बिना छतरी के ही घर से निकल गई. टीचर के घर की डोरबेल बजाकर कुछ देर इंतज़ार किया. जब किसी ने दरवाज़ा नहीं खोला, तो उसे लगा कि शायद घर पर कोई नहीं है. इसी बीच अचानक तेज़ बारिश शुरू हो गई. वह सोच में पड़ गई कि अब क्या करे? घर तक जाने में तो पूरी भीग जाएगी. टीचर के सामनेवाला फ्लैट सुमन आंटी का ही था. रिया ने सोचा, सुमन आंटी से छतरी मांग लेनी चाहिए, पर उनसे मिलने का उसका मन नहीं था. इतने में सुमन आंटी ने अपने फ्लैट का दरवाज़ा खोल दिया. बहुत प्यार से बोलीं, “रिया, मैंने तुम्हें खिड़की से बिल्डिंग के अंदर आते देखा, तो अंदाज़ा लगाया कि शायद तुम सामने टीचर से मिलने आई होगी. वे तो बाहर गई हैं, आओ न, अंदर आ जाओ.”

“नहीं आंटी, मैं चलती हूं, पर छतरी नहीं है मेरे पास, आपके पास एक्स्ट्रा छतरी है क्या?”

“हां है, पर पहले तुम्हें अंदर आकर एक कप चाय पीनी पड़ेगी मेरे साथ.” सुमन आंटी हंसते हुए बोलीं और रिया का हाथ स्नेहपूर्वक पकड़कर अंदर ले गईं.

साफ़-सुथरे घर के कोने-कोने से गृहस्वामिनी का कलाप्रेम दिखाई दे रहा था. सोफे पर बहुत बड़ा-सा टेडी बेयर रखा हुआ था. रिया ने पूछा, “आंटी, यह किसका है?”

“मेरा ही है.”

रिया चौंकी, “आपका?”

“हां, इसे यहां रख दिया मैंने, इसे देखकर मुझे लगता है कि सोफे पर कोई बैठा है, घर में है कोई.” आंटी के चेहरे पर भले ही मुस्कुराहट थी, पर उनकी आवाज़ की उदासी ने रिया के मन में हलचल-सी मचा दी थी. उनकी उदास आंखों की तरफ़ देखती हुई वह कुछ बोल नहीं पाई. आंटी ने स्नेहभरे स्वर में कहा, “आज पहली बार अकेली आई हो न! हमेशा किटी में ही आती हो, बैठो, मैं चाय लाती हूं.” जब तक आंटी चाय लाईं, रिया ड्रॉइंगरूम में रखी कलाकृतियां, सुंदर साफ़ शीशे से चमकते शोपीस, उनके स्वर्गीय पति की फोटो, बेटी और उसके परिवार की फोटो देखती रही, पर घर में जो सन्नाटा पसरा था, वह दिल को अजीब लग रहा था. एकदम शांत, पर उदास-सा घर.

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सुमन आंटी चाय ले आईं और रिया के साथ ही चाय पीते हुए उसके परिवार और बच्चों के बारे में पूछती रहीं. अपनी बेटी के बारे में भी बहुत-सी बातें बताते हुए कहने लगीं, “सुबह तो मैं फ्लैट का दरवाज़ा खोलकर कभी-कभी अख़बार पढ़ते हुए बाहर खड़ी हो जाती हूं और बीच-बीच में स्कूल जाते हुए बच्चों को देखती रहती हूं. लगता है चलो, सुबह कोई तो दिखा वरना अंदाज़ा लगा ही सकती हो कैसा लगता होगा अकेले.” आंटी की आवाज़ में जो कुछ भी था, वह रिया के संवेदनशील, भावुक मन को अंदर तक छू गया. एक स्त्री होकर भी वह कभी अंदाज़ा क्यों नहीं लगा पाई कि इन अकेली जी रही आंटियों के जीवन में कितना अकेलापन होगा. कितनी तन्हा हैं सब, अकेले रहकर ख़ुश रहने की कोशिश में लगी रहती हैं. सबके साथ जो थोड़ा-बहुत हंस-बोल लेती हैं, यह देखकर वह क्यों कभी ख़ुश नहीं हुई. यहां थोड़ी देर में ही घर में फैली उदासी उसे व्यथित कर रही है और ये अकेलापन, उदास रात-दिन उनके जीवन का हिस्सा बन चुके हैं. इसके बावजूद ये लोग कभी अपने जीवन में आई कमियों का रोना नहीं रोतीं. अपने सुख-दुख अकेले ही सहेजती हुई कैसे जी रही हैं सब और वह कितनी अविवेकी, असंवेदनशील है. ये सब थोड़ी देर सबके साथ बैठकर अपना अकेलापन कुछ पल के लिए भूल जाती हैं, तो उसे इस पर आपत्ति है. छि:, क्या कभी वह नहीं पहुंचेगी उम्र के इस पड़ाव पर! और सोचती रहती थी कि छोड़ देगी इस गु्रप को, कोई हम उम्र सदस्याओं वाला गु्रप जॉइन करेगी. आज सुमन आंटी की बातों में उनकी उम्र की उदासी, अकेलापन साफ़-साफ़ दिखा रिया को, वह अचानक कह उठी, “आंटी, आप जब भी चाहें, मेरे पास आ जाया करें, घर और बच्चों के काम के कारण मेरा जल्दी निकलना नहीं होता है. आप आती रहा करें. मुझे अपनी बेटी जैसी ही समझें, आंटी.”

“हां, और क्या, मैं अपनी बेटी से भी यही कहती हूं कि मेरे ग्रुप में मेरी कई बेटियां हैं, जिनके साथ बैठकर मैं सब कुछ भूल जाती हूं. कितनी अच्छी हो तुम सब, तुम लोगों के साथ बैठकर तो जी उठती हैं हम तीनों. ढेरों शुभकामनाएं निकलती हैं तुम लोगों के लिए. कितना प्यार, सम्मान देती हो तुम सब.” रिया मन ही मन आत्मग्लानि लिए बस हल्की मुस्कुराहट के साथ आंटी की बातें सुन रही थी और फिर बस ‘बाय’, बोलकर चल पड़ी, पर उसका रोम-रोम अपने पिछले सालों के रूखे व्यवहार पर बस दो शब्द बोल रहा था, ‘सॉरी आंटी.’

      पूनम अहमद

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कहानी-सॉरी आंटी (Short Story-Sorry Aunty) | Hindi Kahaniya | Stories in Hindi
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आंटी की आवाज़ में जो कुछ भी था, वह रिया के संवेदनशील, भावुक मन को अंदर तक छू गया. एक स्त्री होकर भी वह कभी अंदाज़ा क्यों नहीं लगा पाई कि इन अकेली जी रही आंटियों के जीवन में कितना अकेलापन होगा. कितनी तन्हा हैं सब, अकेले रहकर ख़ुश रहने की कोशिश में लगी रहती हैं. सबके साथ जो थोड़ा-बहुत हंस-बोल लेती हैं, यह देखकर वह क्यों कभी ख़ुश नहीं हुई.
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