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कहानी- सरप्राइज़ गिफ्ट (Story- Surprise Gift)

“आज मैं अपने आपको दुनिया की सबसे अधिक भाग्यशाली स्त्री समझ रही हूं. क्या किसी को शादी की वर्षगांठ पर ऐसा अनमोल उपहार मिला होगा? हां, भाभीजी से नाराज़ हूं, उन्होंने भी मुझसे सब कुछ छुपाया.”

हम रात के दो बजे घर लौटे हैं. पार्टी देर रात तक चलती रही. आज मेरे जेठ-जेठानीजी की शादी की पचासवीं वर्षगांठ यानी गोल्डन जुबली जो थी. वास्तव में उन्होंने इस दिन को स्वर्णिम ही बना दिया. चारों तरफ़ वैभव का अद्भुत प्रदर्शन था. लक़दक़ क़ीमती साड़ियों एवं हीरे जड़ित आभूषणों में सजी उनकी बहुएं-बेटियां हर तरफ़ अपनी छटा बिखेर रही थीं. भाईसाहब का भरा-पूरा परिवार और अच्छी नौकरी थी. अच्छी-ख़ासी पेंशन मिलती है. प्रशासनिक अधिकारी की जो खनक होनी चाहिए, वो उन्होंने कायम रखी. आज की पार्टी के ख़र्च का यदि मोटे तौर पर भी अनुमान लगाऊं, तो फार्म हाउस के किराए, सजावट और खाने-पीने से लेकर बेटे-बहू, दामाद-बेटियों, पोते-नातिन- सभी को दिए गए क़ीमती उपहार यानी सब मिलाकर कम से कम 20 लाख तो ख़र्च हो ही गए होंगे.
पार्टी से आते ही ये तो सो गए हैं. थक जो गए हैं. ये भी एक सप्ताह से भाईसाहब के साथ सब व्यवस्था में लगे हुए थे. दोनों भाइयों में राम-लक्ष्मण-सा प्यार है. हमारा मकान भी भाईसाहब के बंगले के क़रीब ही है. भाईसाहब के विभाग में ही ये भी काम करते हुए रिटायर हुए, बस फ़र्क़ यही था कि ये इंजीनियर थे. इनके भैया-भाभी का इन पर ही नहीं, मुझ पर भी असीम स्नेह है, इसीलिए उन्होंने कभी भी हमें अपने से दूर नहीं किया.
तीन वर्ष बाद हमारी शादी को भी पचास वर्ष पूरे हो जाएंगे. क्या हम इतना भव्य आयोजन कर पाएंगे? जहां तक पैसे का सवाल है, तो इनके पास भी कम नहीं है, लेकिन पता नहीं, ये इतना ख़र्च करने को तैयार होंगे भी या नहीं? इनका स्वभाव अपने बड़े भाई से काफ़ी भिन्न है. सोच भी अलग ही है.
एक दिन इनका मन टटोलने के लिए मैंने इनसे इस विषय में पूछना चाहा, तब इनका उत्तर टालनेवाला था, “अरे सुधा, अभी तो तीन वर्ष बाकी हैं, जब वह दिन आएगा, तब सोचेंगे. अभी से तुम क्यों परेशान होती हो? तुम्हें निराश नहीं होना पड़ेगा. यह मेरा तुम से वादा है.”
तीन वर्षों का समय तो देखते-देखते बीत गया. इन तीन वर्षों में काफ़ी कुछ घट गया. मेरी छोटी बहन के पति एक दुर्घटना में मारे गए. उसके ससुरालवालों ने उसका साथ नहीं दिया. भाई के मरते ही बड़े भाई-भाभी ने सारे नाते तोड़ लिए. दो जवान बेटियों को साथ लेकर प्रज्ञा इसी शहर में रहने आ गई थी. प्रज्ञा के पति विरेशजी के ऑफिस से जो रुपए मिले थे, वो बड़ी बेटी के विवाह पर ख़र्च हो गए. छोटी बेटी भी विवाह योग्य है, जो पढ़ाई पूरी करके घर बैठी है. जहां भी उसके रिश्ते की बात चलाते हैं, लेन-देन को लेकर बात बिगड़ जाती है. अब विरेशजी की फैमिली पेंशन में घर ख़र्च चल जाए, वही बहुत है. शादी जैसा बड़ा ख़र्च उठाना प्रज्ञा के सामर्थ्य के बाहर की बात है. अपनी छोटी साली पर इनका विशेष स्नेह है. उसे छोटी बहन के समान मानते हैं. आर्थिक सहायता को भी तत्पर रहते हैं, लेकिन हमारी भी तो सीमाएं हैं. बस, हम दोनों को प्रज्ञा की तरफ़ से चिंता बनी रहती है.

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अब देखिए, बात हो रही थी हमारी शादी की ‘पचासवीं वर्षगांठ’ की, पर विचार है कि छोटी बहन के दुख-दर्द के ईर्द-गिर्द घूमने लगे. एक महीने बाद ही तो हमारी शादी को पचास वर्ष पूरे हो जाएंगे. 20 सितंबर को हमारा विवाह हुआ. आज 24 अगस्त है. इन्हें तो शायद याद भी नहीं है, वरना कुछ न कुछ प्लानिंग तो करते ही. भाईसाहब की तरह न सही, पर कुछ तो करेंगे ही, वरना रिश्तेदारी में बड़ी बदनामी होगी. कई दिनों से सोच रही थी कि इनसे इस बारे में बात करूं, पर इन दिनों ये काफ़ी व्यस्त रहे. रक्षाबंधन पर अपनी बड़ी बहन के पास 4-5 दिन रहकर आए हैं. बीच-बीच में भी इधर-उधर का जाना-आना निकल ही आता है. अब इनसे क्या बात करनी, कुछ न कुछ तो करेंगे ही. हर वर्ष शादी की वर्षगांठ पर कुछ न कुछ करते ही हैं, फिर इस बार भला क्यों भूलेंगे? मैं तो ऐसे ही सोचने लगती हूं. सब इन पर छोड़ देती हूं.
दो दिन रह गए हैं. आज 18 सितंबर है. मन बड़ा बेचैन हो रहा है, तभी भाभीजी मुझे बाज़ार ले जाने के लिए आ गईं. उन्होंने एक बहुत सुंदर साड़ी व सोने का सेट मुझे दिलवाया. फिर बोलीं, “20 तारीख़ की सुबह हमने अपने घर पर छोटी-सी पूजा रखी है. तुम्हारी शादी की वर्षगांठ हमारे घर पर ही मनेगी. तुम दोनों तैयार होकर सुबह आठ बजे पहुंच जाना. परिवार के अन्य लोग भी वहीं पहुंचेंगे.”
“भाभीजी, इन्हें तो याद भी नहीं है.”
“अरी पगली, तू क्यों दुखी होती है, उसे सब याद है. वह तुझे कुछ सरप्राइज़ देना चाहता होगा. भला ऐसा हो सकता है कि मेरा देवर अपनी शादी की स्वर्ण जयंती भूल जाए.” इस तरह भाभीजी ने मुझे आश्‍वस्त तो कर दिया, पर मेरा मन फिर भी विचलित रहा.
इन्होंने रात के ठीक बारह बजे मुझे बधाई दी. साथ में एक सुंदर-सी हीरे की अंगूठी मेरी उंगली में पहनाई. यह भी बताया कि सुबह जल्दी तैयार हो जाना. भाभीजी ने अपने घर पर बुलाया है.
सुबह सब आयोजन सादगीभरा, लेकिन प्यार भरा रहा. भाईसाहब एवं भाभीजी का प्यार तो सदा ही हम पर रहा है, लेकिन ये क्या करनेवाले हैं, इसका अंदाज़ा अभी भी नहीं लगा पा रही हूं! उत्सुकता बढ़ती जा
रही है.
“रात को होटल राज में प्रोग्राम है, तैयार रहना.” इन्होंने मुझसे बस इतना ही कहा और नाश्ता करके भाईसाहब के साथ बाहर चले गए. मेरी उत्सुकता एवं झुंझलाहट का अंत न था. यह भी क्या सरप्राइज़ हुआ कि कुछ बताते ही नहीं? बस, पहेलियां बुझा रहे हैं. भाभीजी से पूछती हूं, शायद उन्हें कुछ पता हो. वह भी कहां कुछ बता रही हैं, बस वही टालनेवाला जवाब.
देखते-देखते शाम हो गई. भाभीजी ने मुझे बड़े प्यार से तैयार किया. बिल्कुल दुल्हन की तरह. आज इस उम्र में भी जवानी का एहसास हो रहा है. अपने विवाह का दिन चलचित्र की तरह आंखों के सामने घूम रहा है. मां के रूप में बड़ी जेठानी मेरे साथ उपस्थित हैं.
ये सात बजे आए. जल्दी-जल्दी तैयार हुए. एक फूलों से सजी कार में हम दोनों होटल के लिए चल दिए. रास्ते में इन्होंने बड़े प्यार से मेरा हाथ थामकर जो कुछ संक्षेप में बताया, वो मेरे लिए आश्‍चर्य से कम न था. किस तरह इन्होंने अपनी शादी की वर्षगांठ पर व्यय करने के बदले प्रज्ञा की बेटी की शादी करवाने का दृढ़ संकल्प लिया. इसी कारण वह उसके लिए रिश्ता तय करने के सिलसिले में इधर-उधर भागते रहे. कितनी कठिनाइयों के बाद उसके विवाह के लिए घर-वर ढूंढ़ पाए हैं. आज ही राज होटल में विवाह है. बारात आ चुकी है. सभी रिश्तेदार पहुंच चुके हैं, बस सबको हमारे आने की प्रतीक्षा है.
“प्लीज़, तुम मुझे क्षमा कर देना सुधा, क्योंकि मैंने सब तुमसे छुपाकर किया. मेरी इच्छा केवल तुम्हें सरप्राइज़ देने की थी.
सुधा, जब से विरेशजी का स्वर्गवास हुआ है, तब से मैं प्रज्ञा की तरफ़ से चिंतित रहता था. तुम्हें भी मैंने उसके कारण काफ़ी व्याकुल देखा है. तभी से मेरे मस्तिष्क में एक योजना आकार ले रही थी कि क्यों न हम अपने विवाह की पचासवीं वर्षगांठ पर ख़र्च करने की बजाय प्रज्ञा की बेटी के विवाह पर व्यय करें. बस, तभी से मैं उसके विवाह की तैयारियों में लग गया. रिश्तेदारों का क्या है? सब आते और दावत खाकर चले जाते. कुछ प्रशंसा करते, कुछ नुक़्ताचीनी करते. बेटी का घर बस जाए, इससे ज़्यादा प्रसन्नता की बात और क्या हो सकती है? यही भाव मेरे मन में रहा. भाईसाहब एवं भाभीजी ने मुझे पूरा सहयोग दिया, वरना मैं तुम्हारे बिना इतना बड़ा निर्णय कभी भी न ले पाता. नौ बजे का मुहूर्त है. मेरी इच्छा है कि हम दोनों ही उसका कन्यादान करें. हमारी तो कोई बेटी है नहीं.”

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होटल दुल्हन की तरह सजा था. हमारे पहुंचते ही गुलाब की पंखुड़ियां बिखेरकर सबने हमारा स्वागत किया एवं शुभकामनाएं दीं. दूल्हा-दुल्हन मंच पर बैठे थे. एक तरफ़ विवाह मंडप सजा था. विवाह की रस्में हमारे पहुंचते ही शुरू हो गईं. कन्यादान करते हुए मेरी आंखें भर आईं. प्रज्ञा तो मेरे गले लगकर रो ही पड़ी.
“बोलो सुधा, कैसा लगा मेरा सरप्राइज़ गिफ्ट? अब तो नाराज़ नहीं हो न?”
“कैसी बातें करते हैं आप?” मैंने भावविभोर होते हुए कहा. “आज मैं अपने आपको दुनिया की सबसे अधिक भाग्यशाली स्त्री समझ रही हूं. क्या किसी को शादी की वर्षगांठ पर ऐसा अनमोल उपहार मिला होगा? हां, भाभीजी से नाराज़ हूं, उन्होंने भी मुझसे सब कुछ छुपाया.”
घर आने पर एक और ‘सरप्राइज़ गिफ्ट’ हमारी प्रतीक्षा कर रहा था. वह था हमारे इकलौते बेटे द्वारा भेजा गया अमेरिका आने का निमंत्रण, साथ में थे अमेरिका आने के हवाई टिकट.
“सुधा, तुम्हारे बेटे ने तुम्हारे हनीमून ट्रिप के टिकट भेजे हैं.” इतना कहकर भाभीजी मंद-मंद मुस्कुराने लगीं.

    मृदुला गुप्ता

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