Others

कहानी- ताक-झांक (Story- Taak-Jhank)

“आप अकेली रहती हैं, बोर नहीं होतीं?”
“नहीं, एकाध दोस्त हैं, श्‍वेता बिटिया है… फिर आप भी तो हैं.” उसने मुस्कुराकर सुधांशु को अर्थपूर्ण नज़रों से देखा.
“यह श्‍वेता…?” पर उसकी बात पूरी होने से पहले ही वृंदा ने घड़ी देखते हुए कहा, “चलें? मेरी एक ज़रूरी मीटिंग है. फिर मिलेंगे.”

वृंदा रायचौधरी इस कॉलोनी में रहने क्या आई, सारी महिलाओं की दिनचर्या में खलल पड़ गया. उसका एक-एक क्रियाकलाप देखने के लिए वे उसके घर की ओर टकटकी लगाए रहतीं. भले ही इसके लिए उन्हें कई बार खिड़की तक आना पड़ता, तो कई बार बरामदे तक. अब वृंदा कोई अजूबा तो थी नहीं. हां, ख़ूबसूरत व स्मार्ट थी और नफ़ासत-नज़ाकत थी उसमें. ग्रेसफुली ड्रेसअप होती थी, अच्छी नौकरी करती थी. बस, द़िक़्क़त यह थी कि किसी पड़ोसी से बातचीत नहीं करती थी.
कितनी अजीब बात थी न कि जब से यहां रहने आई, न किसी को अपने बारे में कुछ बताया, न किसी से पूछा. घर के पिछवाड़े लगे जामुन के पेड़ से पके-रसीले जामुन गिर-गिरकर सड़ते रहे, पर किसी के यहां नहीं भिजवाया. आस-पड़ोस में रहने का यह कौन-सा तरीक़ा हुआ भला? पर इन बातों से वृंदा को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा, मुश्किल तो बेचारी पड़ोसिनों की हुई न! इतने दिन ताक-झांक करके भी हाथ कुछ न आया, रूटीन अस्त-व्यस्त हुआ, सो अलग.
दरअसल इन महिलाओं को वृंदा को लेकर कई समस्याएं थीं. सबसे पहले तो यह कि मिस वृंदा रायचौधरी ‘मिस’ होकर अकेली क्यों रह रही थी? यदि यह मान भी लिया जाए कि शायद इसके माता-पिता नहीं होंगे, पर भाई-बहन, चाची, बुआ, मौसी कोई तो होगा. अगर कोई नहीं भी है तो इस उम्र में शादी तो हो ही जानी चाहिए थी.
“हो सकता है शादीशुदा ही हो.” किसी ने कहा.
“पर पति कहां है? शादीशुदा होने के लक्षण कहां हैं?”
“तलाक़शुदा हो सकती है या फिर विधवा?” एक और राय थी.
“नहीं, विधवा तो हरगिज़ नहीं हो सकती.” जितने लोग उतनी बातें.
एक शिकायत उसकी गाड़ी को लेकर थी. “वह पजेरो क्यों चलाती है? मारुति 800 या कोई दूसरी छोटी गाड़ी क्यों नहीं?”
“ड्रेसेस देखी हैं? हर तरह की ड्रेस पहनती है. चलो कुंआरी ही सही, पर इतनी छोटी भी नहीं कि स्कर्ट, इवनिंग गाउन, जीन्स सभी कुछ पहने. ऐेसे में मर्द ताकेंगे नहीं तो क्या करेंगे?”
उसकी सिल्क की ख़ूबसूरत साड़ियां इन औरतों की तकलीफ़ में और भी इज़ाफ़ा करती थीं.
“इतने बड़े मकान की क्या ज़रूरत है? तीन नौकर भी. हुंह!”
इन सब बातों को अगर किसी तरह सह भी लिया जाए, तो भी एक मसला तो ऐसा था ही, जो बहुत उलझन भरा था. एक ख़ूबसूरत युवक कभी-कभी वृंदा से मिलने आता था. उसके साथ में एक आठ-नौ साल की बच्ची भी होती थी, जो कई बार वृंदा के पास ही ठहर जाती थी. “क्या रिश्ता हो सकता है इनका आपस में?”
इतने प्रश्‍न, इतनी समस्याएं, कैसे सुलझे भला सब कुछ? ‘वह बोले या न बोले, हमें तो मेल-जोल बढ़ाना ही पड़ेगा’ यह सोचकर कई महिलाओं ने पक्की सहेली और अच्छी पड़ोसन होने का धर्म निभाने की कोशिशें भी कीं, पर इससे भी बात नहीं बनी तो शिकायतें और बढ़ गईं.
वृंदा रायचौधरी सबकी आंख की किरकिरी बन गई. ना-ना, सबकी नहीं, पुरुष वर्ग तो उसका प्रशंसक था. अब उनकी बीवियां भले ही कुछ भी कहें, हमेशा देर से उठनेवाले पुरुष अब सुबह-सबेरे उठ कर बरामदे में पेपर पढ़ते नज़र आते. कसरत के नाम पर तरह-तरह के करतब होते, जॉगिंग या सुबह-शाम की सैर होती. सिन्हा साहब तो बाल भी डाई करने लगे थे, कइयों का ड्रेस सेंस भी बदल गया, पर मजाल है कि उधर से कोई ल़िफ़्ट मिल जाए.
ऐसा इसलिए था, क्योंकि वृंदा को निजी जीवन में दखलअंदाज़ी बिल्कुल पसंद नहीं. तरह-तरह के प्रश्‍नों से बचने के लिए ही वह किसी से संबंध नहीं रखती थी.
लेकिन उसके घर के सामनेवाली लेन के कोनेवाले मकान में रहनेवाले लोग उसे पसंद हैं, वे ताक-झांक नहीं करते. इस घर में रहनेवाली महिलाएं उसे देख हल्के से मुस्कुरा देती हैं.
एक बार वहां रहनेवाली एक लड़की दोलन उसे बुला ले गई थी. चाय पीते हुए स़िर्फ यही पूछा था कि उसका मन लग गया या कोई ज़रूरत हो, तो उन्हें बताए. कोई बेकार की बात नहीं पूछी. कई लोग थे उस घर में- दोलन के दो भाई, एक भाभी, एक भतीजा, मां और बाबा. दूसरा भाई सुधांशु अभी अविवाहित था. वह कुछ शर्मीला-सा लगा वृंदा को, अच्छा भी.
सुधांशु को भी वृंदा बहुत अच्छी लगती थी. उसकी स्मार्टनेस, पहनावा, मुस्कुराहट- सब पसंद थे उसे. भाभी की गोष्ठियों में आनेवाली महिलाओं की बातें उसके कानों में भी पड़ती रहती थीं. पर वह न कुछ कहता, न ही किसी अफ़वाह पर विश्‍वास करता.
उसका बहुत मन होता था कि वृंदा से कुछ बात करे, उसे बताए कि वह उसे अच्छी लगती है. पर कैसे? ऐसा मौक़ा तो मिले. फिर लड़कियों से बात करने के मामले में तो वह वैसे ही अनाड़ी था. एक दिन मौक़ा मिला भी, पर बुद्धू लड़का चुप रह गया. पता नहीं, यह उसका सीधापन था, शराफ़त या बेवकूफ़ी.
हुआ यूं कि एक दिन सुबह ऑफ़िस जाते समय जब वह गली के मोड़ तक पहुंचा, तो वृंदा अपनी गाड़ी के पास परेशान-सी खड़ी दिखी. उसने अपनी कार धीमी ज़रूर की, पर रोकने का इरादा न था, न ही उसे समझ में आया कि रुकना चाहिए या नहीं. लेकिन उसे रुकना ही पड़ा, क्योंकि वृंदा एकदम सामने आ गई थी. खनकती हुई आवाज़ में उसने पूछा, “मुझे ल़िफ़्ट देंगे, मेरे ऑफ़िस तक?”
“हां-हां, क्यों नहीं.” वह हड़बड़ाकर बोला, “और आपकी गाड़ी?”
“ख़राब हो गई है.” वह मुस्कुरा दी.
सुधांशु सोच रहा था कि वह कितना बेवकूफ़ है. उसकी हड़बड़ाहट और बेवकूफ़ी का वह मज़ा ले रही होगी. गाड़ी स्टार्ट करते हुए उसने पूछा, “किधर है आपका ऑफ़िस?”
उसी मुस्कुराहट के साथ वह बोली, “आपके बैंक के ठीक सामने.”
वह चौंक गया, पर वह सहज थी. उसकी परेशानी भांपते हुए बोली, “मिस्टर सुधांशु मजूमदार, मैं आपके बारे में काफ़ी कुछ जानती हूं, आप भले मेरे बारे में जानें या न जानें. मैं फीनिक्स में काम करती हूं.”
“ओह!” वह शरमाते हुए मुस्कुरा पड़ा. वह सोच ही रहा था कि कुछ पूछे, कुछ बताए कि उसका और वृंदा का ऑफ़िस भी आ गया. वह ‘थैंक्स’ कहकर सीढ़ियां चढ़ गई.
अब सुधांशु का मन कहां लगनेवाला था किसी काम में? वह बहुत कुछ सोचता रहा और इस नतीज़े पर पहुंचा कि वृंदा ज़रूर उसमें रुचि लेती है, तभी तो उसके बारे में जानकारी भी है उसे. कितने अच्छे से ‘थैंक्स’ बोली. वह क्यों नहीं बोला कुछ?
इसी बारे में सोच रहा था कि सौवीर आ गया. सौवीर चैटर्जी- लड़कियों से बात करने, उन्हें पटाने में माहिर. सुधांशु की पूरी बात सुन, आंखें फैलाकर बोला, “क्या अभी तक कुछ नहीं हुआ? तुम इतना घबराते क्यों हो? पहले तो तुम्हें ही बात करनी होगी न?”
“यह नामुमकिन है.”
“फिर देखते रहो सपने. सुचिता की तरह यह भी ग़ायब हो जाएगी.” सौवीर ने कहा.
“तुम तो मेरी आदत जानते हो. सोचता रहता हूं कि बात करूंगा, पर सामने पड़ते ही मेरे पसीने छूट जाते हैं.”
“वह भी सोचती होगी, कैसे अजीब आदमी हैं इस कॉलोनी के, लाइन ही नहीं मारते. चलो, तुमसे कुछ नहीं होता तो मैं अपना नंबर लगाता हूं. वैसे, मुझे तो ‘ऐसी’ ही लगती है.”
“वह ऐसी नहीं है. सबसे अलग है और मैं सीरियस हूं उसे लेकर. समझे?” सुधांशु थोड़े आवेश में बोला.
“चलो मान लेते हैं कि वह ऐसी नहीं है, पर इसके लिए भी तो उससे मिलना पड़ेगा, नहीं तो पता कैसे चलेगा कि वह तुम्हें चाहती भी है या नहीं.”
“उसने ‘ना’ कह दिया तो?”
“तो क्या?”
“तो मैं उसे दुबारा मुंह नहीं दिखा पाऊंगा. कितनी शरम आएगी.”
“फिर क्या है, तुम्हारा प्यार का भूत तो उतर जाएगा.”
कुछ दिनों बाद वृंदा सुधांशु के बैंक में आई. सुधांशु ने उसका काम पहले करवाया, फिर चाय भी मंगवाई. जाते समय उसने सुधांशु को अगले दिन के लंच के लिए निमंत्रण दिया. वह हैरानी से उसे देखता रहा.
“घबराओ नहीं, मैं ज़्यादा नहीं खाती.” वह खिलखिलाई, तो उसका ध्यान बंटा.
“कहां?”
“कोणार्क में.”
आज वह स्वयं को बहुत भाग्यशाली भी मान रहा था और साथ ही मूर्ख भी.
‘कितना बेवकूफ़ हूं मैं. लंच का निमंत्रण मेरी ओर से होना चाहिए था, कितना अच्छा अवसर खो दिया. ख़ैर, अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा. लगता है, वह मुझमें रुचि ले रही है, तभी तो पहल की है होटल में बुलाकर.’ उसने अपने आप से कहा.
अगले दिन सुधांशु वहां पहुंचा तो वृंदा पहले से ही बैठी थी. खाने के साथ-साथ बातें होती रहीं.
“आप अकेली रहती हैं, बोर नहीं होतीं?”
“नहीं, एकाध दोस्त हैं, श्‍वेता बिटिया है… फिर आप भी तो हैं.” उसने मुस्कुराकर सुधांशु को अर्थपूर्ण नज़रों से देखा.
“यह श्‍वेता…?” पर उसकी बात पूरी होने से पहले ही वृंदा ने घड़ी देखते हुए कहा, “चलें? मेरी एक ज़रूरी मीटिंग है. फिर मिलेंगे.”
उठने से पहले बिल सुधांशु ने चुकाया. वह ख़ुश था. साथ ही सोचता रहा कि ‘श्‍वेता कौन हो सकती है? कहीं वृंदा की बेटी तो नहीं? नहीं, ये नहीं हो सकता. वैसे, हो भी तो क्या है?’
कुछ दिन बाद वह औरंगाबाद गया. मां ने कुछ साड़ियां मंगवाई थीं. उसने एक वृंदा के लिए भी ली और लाकर अपनी आलमारी में रख दी. सोचा कि मौक़ा मिलते ही दे देगा.
अगली सुबह कुछ गड़बड़ हो गई. भाभी वृंदा की ही बात कर रही थी, “मां, नीरजा कह रही थी कि कल रात वही लड़का वृंदा के यहां रुका था. सुबह गया है. वह कह रही थी कि खाना-पीना अक्सर वहीं होता है. वृंदा जब उसे गेट तक छोड़ने आती है न, तो गलबहियां डालकर भेजती है.”
मां तो कभी यह सोच नहीं सकती थीं कि कोई लड़का-लड़की एक-दूसरे से दोस्तों की तरह भी मिल सकते हैं, कंधे पर हाथ रखना तो बहुत ग़लत बात थी उनके लिए. वे बोलीं, “राम-राम, यह भी कोई तरीक़ा हुआ? ऐसे तो बहू-बेटियों का यहां रहना दूभर हो जाएगा.”
सुधांशु को मां की राय भी पसंद नहीं आई और वृंदा का इतना खुला व्यवहार भी.
फिर कई दिनों तक वृंदा नहीं दिखी. सुधांशु को अच्छा नहीं लग रहा था. दोलन से पता चला कि वह कहीं बाहर गई हुई है. वह उसके लौटने का इंतज़ार करता रहा. कहां चली गई? क्यों चली गई?
एक दिन दिख ही गई वह, वहीं सड़क के मोड़ पर. गाड़ी रुकवा कर बैठ गई.
“गाड़ी ख़राब है क्या?”
“नहीं तो, ऐसे ही मन हुआ कि तुम्हारे साथ चलूं. तुम तो अपने आप कभी कहते ही नहीं.” उसने बड़ी सहजता से कहा था.
सुधांशु का मन फिर इधर-उधर हो गया. वह वृंदा को साड़ी ज़रूर देगा. वह किसी के साथ रहे, आए-जाए, इससे उसे या किसी को क्या? सुधांशु के साथ तो अच्छे से बात करती है. वह इन महिलाओं की बातों पर ध्यान ही क्यों देता है? उसने पक्का सोच लिया कि आज शाम को ही उसके घर जाएगा साड़ी देने. या लंच के लिए इन्वाइट करे उसे?
वह अवसर ढूंढ़ ही रहा था कि नीरजा भाभी फिर एक नई बात ले आईं. ऐसा लगता है, जैसे हर समय वृंदा के घर दूरबीन लगाए बैठी रहती हैं. अपने चार वर्षीय चिंटू की क़सम खाकर बोलीं, “एक आदमी रहने लगा है आजकल वृंदा के यहां. मैंने ख़ुद देखा है.”
सब विस्फारित नज़रों से एक-दूसरे को देखने लगीं.
“अरे, मैं तो पहले से ही कहती थी कि वह है ही ऐसी. एक दिन चिंटू के पापा से भी ल़िफ़्ट ली थी. ये बड़े इतराए घूम रहे थे. मैंने वो ख़बर ली कि बस! अब इनको तो मैं रोक सकती हूं, पर सुधांशु को कैसे रोकें? सीधा-सादा शरीफ़ लड़का है, फंस जाएगा बेचारा. अब कोई कैसे कुछ कहे?” सबको सुधांशु के चरित्र हनन की चिंता खाए जा रही थी.
तभी वृंदा के घर के सामने दो कारें रुकीं. हमेशा की तरह उत्सुक नीरजा ने देखा और बोल पड़ी, “अरे वही है.”
एक परिचित डॉक्टर का चेहरा दिखा, तो किसी की परवाह किए बगैर सुधांशु वृंदा के घर चला गया. पीछे-पीछे मां भी चली आईं. वृंदा बदहवास-सी इधर-उधर घूम रही थी.
“क्या हुआ वृंदा?”
वह सुधांशु के कंधे पर सिर टिका कर लगभग रो ही पड़ी. मां ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा, “बेटा, हमें नहीं बताओगी? शायद कुछ कर सकें हम?”
इसी सहानुभूति का इंतज़ार था शायद. प्यार से कहे गए ये शब्द रुला गए उसे. फिर ख़ुद को संभालते हुए वह उन्हें अंदर ले गई, जहां बिस्तर पर एक आदमी खांसते-खांसते बेदम हुए जा रहा था.
“ये मेरे पापा हैं, टीबी के आख़िरी स्टेज है. अभी तक शिमला में थे, सेनेटोरियम में. मैंने सोचा, कुछ व़क़्त साथ रह लें. इनके अलावा मेरा इस दुनिया में कोई नहीं है.” उसकी आवाज़ रुंधी हुई थी. वह युवक वृंदा को थाम कर कमरे से बाहर ले आया.
नीरजा बाहर से ही पता लगाने को उत्सुक थी. एक-दो लोग और भी थे, पर सबका ध्यान उस युवक और बच्ची की ओर ज़्यादा था, वृंदा और रोगी की तरफ़ कम. डॉक्टर इंजेक्शन देने अंदर चला गया. वृंदा को उस युवक ने हाथ पकड़ कर सोफे पर बिठा दिया.
“दोलन, तुम चाय बना कर लाओ.” सुधांशु ने कहा तो नौकर झट से रसोई में चला गया.
“बैठो सुधांशु.” वृंदा ने कहा, तो वह उसके पास ही बैठ गया. उसका मन हो रहा था कि वृंदा को बांहों में समेट ले, सारा दुख ले ले उसका.
डॉक्टर इंजेक्शन देकर बाहर आया और वहीं बैठ गया. शायद वह भी उस युवक की तरह वृंदा को अच्छी तरह जानता था.
तभी वृंदा की नज़र बाहर पड़ी और उसका चेहरा बुझ-सा गया. अचानक वह बाहर यूं ही खड़ी चार-पांच महिलाओं को संबोधित करते हुए बोल पड़ी, “आख़िर क्या चाहती हैं आप? मैं आपसे कोई मदद नहीं लेना चाहती हूं, न ही मुझे इसकी ज़रूरत है. आप बेवजह मुझे परेशान न करें. मैं जानती हूं, आपके मन में मुझे और मेरे मेहमानों को लेकर अनेक शंकाएं रहती हैं, पर मैं आपको कुछ भी बताने के लिए बाध्य नहीं हूं.”
सुधांशु बहुत ख़ुश हुआ. मन ही मन उसके साहस की दाद दे रहा था. वह जाने लगा, तो वृंदा ने उसे पकड़ लिया और कहा, “तुम कहां चले? चाय पीकर जाना.”
फिर सुधांशु की मां के पास जाकर वह धीरे से बोली, “मासी, यह श्‍वेता मेरे भाई की बेटी है. मेरी भाभी की एक दुर्घटना में मृत्यु के बाद से यह हॉस्टल में रहती है. पिछले साल मेरा भाई भी नहीं रहा. यह लड़का भाभी का भाई है, जो श्‍वेता को संभाले हुए है. यह डॉक्टर भी है.”
“बस बेटा, कोई कुछ कहता रहे, परवाह नहीं करते ऐसी बातों की.”
सुधांशु जाने लगा, तो वृंदा ने कहा, “कल लंच करा रहे हो न?” दोनों खुलकर हंस पड़े, मां भी हल्के से मुस्कुरा दीं.
सुधांशु को अभी भी नहीं पता कि वृंदा की उसके बारे में क्या राय है, पर एक बात उसने तय कर ली है कि वह इस ख़ूबसूरत रिश्ते को टूटने नहीं देगा. आज उसे बहुत अच्छा लग रहा था और वह तनावमुक्त भी था. घर आते-आते उसने सोच लिया कि कल वृंदा से क्या कहना है. साड़ी तो कभी भी दी जा सकती है, पहले ज़रूरी है, दोस्ती क़ायम रखना!

अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करें SHORT STORIES
            अनिता सभरवाल
Meri Saheli Team

Share
Published by
Meri Saheli Team
Tags: Story

Recent Posts

महेश कोठारे यांनी केली ‘झपाटलेला ३’ची घोषणा (Director Mahesh Kothare Announces Zapatlela-3)

अभिनेते महेश कोठारे यांच्या संकल्पनेतून तयार झालेला 'झपाटलेला' हा चित्रपट तुफान हिट ठरला होता. आता…

April 11, 2024

बुरे दिन वापस दे दो…. किरण मानेंची पोस्ट चर्चेत ( Kiran Mane Share Post For Current Situation In Maharashtra)

कुठे कुठला उमेदवार हवा होता-नको होता, या वादात आपण सर्वसामान्य माणसांनी अडकायला नको. महाराष्ट्रात या…

April 11, 2024

संकर्षण सोबत लग्न करण्याची इच्छा पण आईने…. अभिनेत्याची चाहतीसाठी खास पोस्ट ( Sankarshan Karhade Share Post For His Fan, Who Wants To Marry Him)

अभिनेता संकर्षण कऱ्हाडे सोशल मीडियावर खूप सक्रिय असतो. नुकताच त्याने त्याला साताऱ्याला आलेला त्याच्या खास…

April 11, 2024
© Merisaheli