"वो ज़माना और था अम्मा, सब चीज़ें खुली बिकती थी. पॉलीथिन का चलन भी तो नहीं था."
"हां सो तो है, वो ज़माना और ही था… पर अब दोबारा उसी ज़माने की ओर लौटने की कोई तो मजबूरी होगी?"
"अरे मजबूरी कोई नहीं, जरा सी बात पर इन लोगों ने प्लास्टिक की थैलियों पर प्रतिबंध लगा दिया. कहते हैं प्लास्टिक की थैली से पर्यावरण को नुक़सान हो रहा है सो बंद कर रहे हैं."
अपनी बहू अलका को आलमारी में बड़ी देर से कुछ ढूंढ़ते हुए देख दमयंती पूछ बैठी, "इतनी देर से क्या ढूंढ़ रही हो."
"अम्मा यहां एक कपड़े का थैला रखा था, मिल ही नहीं रहा."
"कपड़े के थैले का क्या काम आ गया?" दमयन्ती के पूछते ही अलका झुंझलाकर बोली,
"अरे अम्मा, पिछली बार बाज़ार गई थी, ढेर सारा सामान ले लिया पर उन्होंने प्लास्टिक की थैली नही दी. कहने लगे प्लास्टिक बंद है. बड़ी मुश्किल हो गई थी उस दिन… इसलिए सोचा आज थैला लेकर चलूं."
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दमयन्ती गहरी सांस लेकर बोली, "हम लोग तो बिना थैले के कभी ख़रीदारी के लिए निकलते ही नही थे."
"वो ज़माना और था अम्मा, सब चीज़ें खुली बिकती थी. पॉलीथिन का चलन भी तो नहीं था."
"हां सो तो है, वो ज़माना और ही था… पर अब दोबारा उसी ज़माने की ओर लौटने की कोई तो मजबूरी होगी?"
"अरे मजबूरी कोई नहीं, जरा सी बात पर इन लोगों ने प्लास्टिक की थैलियों पर प्रतिबंध लगा दिया. कहते हैं प्लास्टिक की थैली से पर्यावरण को नुक़सान हो रहा है सो बंद कर रहे हैं."
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दमयंती विस्मय से बहू को देखने के बाद बोली,
"पर्यावरण को नुक़सान पहुंचना बेशक़ बड़ा कारण न हो पर थैले के साथ बाज़ार जाने की तुम्हारी मजबूरी देखकर सोचती हूं, पुराने कपड़े निकालकर कुछ थैले सिल दूं."
अलका सिर हिलाकर चली गई, तो दमयन्ती पास ही निश्चिंत सोती तीन साल की पोती के सिर पर हाथ फेरती बुदबुदाई, 'चिंता थी तेरी, पर अब निश्चिंत हूं. तेरी मां ने मजबूरी में ही सही, थैली छोड़ थैला पकड़ लिया है.'
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