Others

कहानी- ट्रूज़ो (Short Story- Trousseau)

“तुमने ये सब सीख रखा है. मुझे तो विश्‍वास ही नहीं हो रहा और ये सब प्रमाणपत्र, मेडल आदि तुमने जीते हैं? तो इन्हें छुपाकर क्यों रखा है? बेटी, तुम्हारा असली ट्रूज़ो तो यही है. मैं नहीं जानती आधुनिक पीढ़ी के लिए ट्रूज़ो के क्या मायने हैं? लेकिन मेरे शब्दकोश में नववधू का असली ख़ज़ाना यही है…”

 

मां की तस्वीर के सम्मुख दुल्हन का लिबास धारण किए नंदिनी बेहद उदास खड़ी थी, जबकि आज तो उसकी ज़िंदगी का बेहद ख़ूबसूरत और महत्वपूर्ण दिन था. आज वह विवेक के संग परिणय-सूत्र में बंधने जा रही है, इसीलिए आज उसे मां की बहुत याद आ रही है.
कहते हैं, सुख बांटने से बढ़ता है और दुख बांटने से घटता है, लेकिन मां के चले जाने का दुख नंदिनी किसी के साथ नहीं बांटना चाहती थी, पापा के साथ भी नहीं, क्योंकि वह पहले से ही दुखी थे. इसीलिए अपनी शादी की सारी तैयारियां उसने ख़ुद ही कुछ सहेलियों के संग जाकर कर ली थीं. पापा के ज़िम्मे तो वैसे ही ढेरों काम थे. बारातियों के खाने-ठहरने आदि का इंतज़ाम करना, इसलिए नंदिनी ने पापा से पहले ही बोल दिया था कि वे उसकी शॉपिंग को लेकर बेफ़िक़्र हो जाएं.
नंदिनी का ट्रूज़ो नायाब बन पड़ा था. एक से बढ़कर एक साड़ियां, लहंगे, सलवार-कमीज़ आदि. बनारसी से लेकर जरदोज़ी, कांथा, गोटा किनारी आदि ढेरों वेरायटी से ट्रूज़ो सजा पड़ा था. यही बात गहनों, प्रसाधन सामग्री, सैंडल आदि पर भी लागू होती थी. हर ड्रेस, उससे मैच करती चूड़ियां, रुमाल, ब्रेसलेट, फुटवेयर, गहने, पर्स आदि सब उसके मनपसंद की. बजट की कोई सीमा नहीं थी. पापा ने उसे मनचाहा ख़र्च करने की आज़ादी दे दी थी. आख़िर उन्हें किसके लिए बचाकर रखना था? फ़र्नीचर भी वह अपनी पसंद का ऑर्डर कर आई थी. यह तय हुआ था कि सारा सामान उसके हनीमून से लौटने के बाद सीधे विवेक के पूना स्थित फ्लैट में पहुंचा दिया जाएगा.
बाबुल के घर से विदा होकर आई नंदिनी ने ढेरों अरमानों सहित ससुराल की दहलीज़ पर क़दम रखा और पहले ही दिन सबकी चहेती बन गई. सब रिश्तेदारों की आंखें उसका ट्रूज़ो देखकर चकाचौंध हो गई थीं.
“बहुत ही उम्दा पसंद है बहू की!”
“एकदम राजकुमारियों जैसा शाही अंदाज़ लिए.”
जितने मुंह, उतनी बातें. नंदिनी सुनती और ख़ुशी से फूल उठती. सबने उसकी तारीफ़ की, लेकिन अपनी सास की आंखों में उसे वह तृप्ति नज़र नहीं आई. तो क्या उन्हें इससे भी बेहतर की उम्मीद थी?
“अच्छी पसंद है बेटी तुम्हारी. लाओ, मैं सब सहेजकर रखवा दूं. इतना महंगा सामान है, कुछ ख़राब न हो जाए.” उनके ठंडे स्वर ने नंदिनी के अरमानों को भी ठंडा कर दिया था. सब कुछ समेटकर रखते हुए वह बेहद थक गई थी. तन की थकान से ज़्यादा मन की थकान चेहरे पर झलकने लगी थी.
मांजी का व्यवहार उसे तटस्थ-सा लगा. न वे बहुत ज़्यादा उत्साहित और उत्तेजित होती थीं और न बहुत ज़्यादा क्रोधित और निराश. वैसे वे बोलती भी काफ़ी कम थीं, लेकिन उनके हाथों की चुस्ती-फुर्ती देखकर नंदिनी दंग थी.
बहू का ‘चौका पूजन’ रस्म निभाने का वक़्त आया, तो देवर विनय ने हल्ला मचा दिया, “इतने दिनों से शादी में मीठा खाते-खाते तंग आ गया हूं. इसलिए नो हलवा, नो खीर!… भाभी, आपको कुछ कॉन्टीनेंटल वगैरह आता है?” नंदिनी ने मुस्कुराते हुए हां में गर्दन हिलाई, तो वह ख़ुशी से झूम उठा. “हुर्रे! फिर तो आज चायनीज़ हो जाए, पर आपको सामान की लिस्ट बनाकर देनी होगी, क्योंकि मां तो ये सब बनाती नहीं, इसलिए घर में इसका सामान भी नहीं होगा. मैं ख़ुद सब ला दूंगा.”
नंदिनी ने सहर्ष लंबी-चौड़ी लिस्ट बनाकर दे दी. इसी दिन के लिए तो उसने कुछ कुकिंग कोर्सेज़ कर लिए थे. डायरी की मदद से पढ़-पढ़कर, एक-एक चीज़ नाप-तौलकर उसने मंचूरियन और हाका नूडल्स बना दिया. सभी ने बहुत चाव से खाए. विनय तो बेहद खुश था.
“मां, आज से रसोई की ज़िम्मेदारी भाभी की… यह रोटी-सब्ज़ी सब बनाना बंद.”
“रोज़-रोज़ यह सब नहीं खाया जा सकता बेटा. कभी-कभी स्वाद बदलने के लिए नंदिनी से बनवा लेना.”
“तो फिर भाभी जब तक आप यहां हैं, मेरे लिए खाना आप ही बनाएंगी. आप पूना चली जाएंगी, तब तो यह दाल-भिंडी ही निगलनी है.” विनय ने जिस मासूमियत से मुंह बनाया, सबकी हंसी छूट गई.
शादी के बाद तीसरे ही दिन विवेक और नंदिनी अपने हनीमून के लिए निकल गए. हनीमून के दौरान नंदिनी को न केवल विवेक को जानने-समझने का मौक़ा मिला, वरन् उसके आग्रह पर विवेक ने उसे अपने घर-परिवार के बारे में भी खुलकर बताया. बाबूजी घर-परिवार से तटस्थ अपने बिज़नेस में ध्यान लगानेवाले इंसान थे. विनय बेहद ज़िंदादिल, हंसमुख और मेधावी छात्र था. घर की एकमात्र महिला सदस्य होने के कारण मांजी पर घर-गृहस्थी का पूरा भार था. विवेक ने बताया कि जब वे दुल्हन बनकर इस घर में आई थीं, तो घर की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी. लेकिन मां ने उन्हें कभी किसी चीज़ की कमी का एहसास नहीं होने दिया, और हां, फ़िज़ूलख़र्ची उन्हें नापसंद है, पर वे दिल की बहुत अच्छी हैं. मां के बारे में नंदिनी को बताते हुए विवेक न चाहते हुए भी भावुक हो उठा था और नंदिनी समझ गई थी कि मां-बेटों के दिल के तार बहुत ही मज़बूती से जुड़े हैं. काश! ऐसे ही मांजी के दिल के तार उससे भी जुड़ जाएं. पर मांजी ने न तो दिल से उसके ट्रूज़ो की तारीफ़ की, न ही उसके बनाए चायनीज़ की. नंदिनी के मनोभावों से अनजान विवेक अपने ही ख़्यालों में गुम था.
“नंदिनी, तुम्हें तो पता ही है कि हनीमून के बाद हम एक बार घर लौटेंगे, फिर पूना चले जाएंगे अपनी नई गृहस्थी बसाने… नंदिनी, तुम बुरा न मानो तो मैं एक प्रस्ताव रखना चाहता हूं. हम कुछ दिनों के लिए मां को संग ले लें?… तुम्हारा भी मन लगा रहेगा और मां तो कभी घर से बाहर निकली ही नहीं हैं. अकेला था तब मां से पूना आने का बहुत आग्रह करता था. मां हंसकर टाल जाती थीं, “कहती थीं मैं आकर क्या दीवारों से बातें करूंगी? तू तो ऑफ़िस चला जाएगा… हां, मेरी बहू ले आएगा न, तब मैं अवश्य आऊंगी… पर तब तू क्यों बुलाने लगा?”
“अरे वाह, ऐसे कैसे सोच लिया मांजी ने? हम उन्हें अपने संग लेकर ही चलेंगे और वे जितने दिन रहना चाहें, रहें. मुझे बहुत अच्छा लगेगा… मैं तो ख़ुद यह सोचकर घबरा रही थी कि पूना में तुम्हारे ऑफ़िस चले जाने के बाद मैं क्या करूंगी? अपनों का साथ मुझे लुभाता है.” सागर किनारे बालू से खेलती नंदिनी ने आत्मीयता से अपना सिर विवेक के कंधे पर टिका दिया, तो विवेक ने प्यार से उसके गाल थपथपा दिए.
घर लौटकर विवेक ने अपनी मंशा ज़ाहिर कर दी. एकबारगी तो मां ने आनाकानी की, “नहीं… नहीं… यहां कौन संभालेगा? तुम तो जानते ही हो, सब मुझ पर कितने आश्रित हैं?… फिर तुम दोनों की नई-नई शादी हुई है…”
“और आप कबाब में हड्डी नहीं बनना चाहतीं. क्या मां, आप भी क्या-क्या सोच लेती हैं और किसने कहा कि मैं और बाबूजी आप पर आश्रित हैं? ले जाओ भैया, आप मां को साथ ले जाओ और बेचारी भाभी के बारे में तो सोचिए. अनाड़ी बहू कैसे गृहस्थी की गाड़ी चलाएगी? उन्हें आप जैसी खिलाड़ी की सख़्त आवश्यकता है. एक बार उनकी गृहस्थी की गा़ड़ी ढर्रे पर आ जाए, तो फिर लौट आना… क्योंकि तब तक यहां की गाड़ी पटरी से उतर चुकी होगी.”
विनय परिहास से बाज़ नहीं आ रहा था. मां भी आख़िर स्वीकृति देते हुए परिहास में शामिल हो गईं. “मेरी ज़िंदगी तो तुम लोगों की गाड़ियां पटरियों पर लाने में ही निकल जाएगी. चलो… पर मैं ज़्यादा दिन नहीं रुकूंगी.”
“बिल्कुल, बिल्कुल. आपकी हर शर्त हमें मंज़ूर है.” विवेक ख़ुश था मां चलने को राज़ी तो हुईं, लौटने की बात फिर देख लेंगे.
जिस दिन तीनों पूना पहुंचे, उसी शाम नंदिनी के सामान का ट्रक भी आ गया. सामान के पहाड़ के बीच बिस्तर बिछाकर तीनों ने रात गुज़ारी. अगली सुबह से ही विवेक ने ऑफ़िस ज़्वॉइन कर लिया. मां और नंदिनी पूरे दिन जुटी रहीं, तब कहीं जाकर शाम तक घर कुछ दिखने जैसी हालत में आया. शाम को विवेक घर लौटा तो घर की काया पलट चुकी थी. “वाह मां, आप दोनों ने तो इस हॉस्टल को घर बना दिया.” उस दिन तीनों देर रात तक बातें करते रहे. नंदिनी ने महसूस किया कि मांजी वाकई दिल की बहुत अच्छी हैं. पर कहीं कुछ कमी है, जो उसे मांजी के साथ अपने संबंधों में खटक रही थी.
सप्ताह भर होते-होते गृहस्थी की गाड़ी पटरी पर तेज़ी से दौड़ने लगी थी, लेकिन यहां भी ड्राइवर की भूमिका मांजी ने ही संभाल रखी थी. नंदिनी उनका हाथ बंटा देती थी. शाम से ही तेज़ बारिश के कारण मांजी को हल्का बुखार चढ़ आया. विवेक और नंदिनी ने उन्हें दवा और दूध पिलाकर सुला दिया. सवेरे दोनों की ही आंख देर से खुली. विवेक को ऑफ़िस के लिए देरी हो रही थी. नंदिनी को समझ नहीं आ रहा था क्या नाश्ता बनाए? रोज़ तो मांजी बना देती थीं. उसने फ्रिज से बची हुई सब्ज़ियां निकालकर आटा गूंधकर परांठे सेंक डाले. विवेक को रवाना कर लौटी, तो देखा मांजी उठ चुकी थीं.
“ये परांठे तुमने बनाए हैं? बड़ी सोंधी महक आ रही है.”
नंदिनी कुछ बोलती इससे पहले मांजी ने एक परांठा प्लेट में लेकर खाना भी आरंभ कर दिया. वे खाती जा रही थीं और तारीफ़ों के पुल बांधती जा रही थीं. “वाह, वाह! क्या परांठे बनाए हैं.”
नंदिनी हैरानी से मांजी को ताकती रह गई. मांजी शायद उसकी दुविधा भांप गई थीं. “बुरा मत मानना बेटी, मेरी सोच थोड़ी पुरानी है. नियोजित तरी़के से सारी सामग्री जुटाकर इत्मीनान से कोई व्यंजन तैयार करने से बड़ी उपलब्धि, मैं उपलब्ध सामग्री से मिनटों में पौष्टिक और स्वादिष्ट भोजन तैयार करना मानती हूं. अच्छी गृहिणी की असली पहचान तो यही है… अच्छा, अब मेरी तबियत बिल्कुल ठीक है, तो आज हम बचा हुआ सारा काम भी निबटा डालते हैं. यह एक बैग कैसा रह गया है, जिसका सामान हमने अभी तक खोलकर नहीं जमाया.”
“अं… वो ऐसे ही है मांजी. मैं तो छोड़ आई थी. दादी ने भेज दिया.” नंदिनी झेंपने लगी थी.
“दादीजी ने भेजा है, तो ज़रूर महत्वपूर्ण होगा. लाओ देखते हैं.” नंदिनी के रोकते-रोकते मांजी ने बैग खोलकर सामान फैला डाला. कढ़ाई की हुई चादरें, गिलाफ, टेबल कवर, कुशन, पेंटिंग्स, पुराने प्रमाणपत्र, मेडल, ट्रॉफ़ी…
“ये सब मैंने स्टूडेंट लाइफ़ में बनाए थे. अं… सीख रही थी. कुछ हॉबी क्लासेस में बनाए थे. इनमें लगाने जैसा कुछ भी नहीं है.” नंदिनी हड़बड़ाते हुए सब समेटने लगी. लेकिन मांजी एक-एक चीज़ को भावविभोर होकर ग़ौर से देखने लगीं. “तुमने ये सब सीख रखा है. मुझे तो विश्‍वास ही नहीं हो रहा और ये सब प्रमाणपत्र, मेडल आदि तुमने जीते हैं? तो इन्हें छुपाकर क्यों रखा है? बेटी, तुम्हारा असली ट्रूज़ो तो यही है. मैं नहीं जानती आधुनिक पीढ़ी के लिए ट्रूज़ो के क्या मायने हैं? लेकिन मेरे शब्दकोश में नववधू का असली ख़ज़ाना यही है. बेटी, आज तो तूने दिल ख़ुश कर दिया. पहले अपनी पाक कला की चतुराई से और अब यह ट्रूज़ो दिखाकर, मुझे तुझ पर गर्व है.” मांजी ख़ुशी से आत्मविभोर हो रही थीं.
“पर मांजी इतने एंटीक और बहुमूल्य शोपीसेज़ के सम्मुख मैं ये सब कहां सजाऊंगी? ये अनाड़ी हाथों से कढ़े आउटडेटेड बेड कवर, चादरें… सब मेरी हंसी उड़ाएंगे.” नंदिनी रुआंसी हो उठी.
“उदास मत हो बेटी. तुम नहीं लगाना चाहती तो ये सब मैं अपने साथ ले जाऊंगी. मैं सजाऊंगी, सहेजकर रखूंगी.”
“पर मांजी…”
“कुम्हार चाक पर बर्तन बनाता है, तो अनभ्यस्त हाथों से बने आरंभ के बर्तन सुआकार नहीं ले पाते. अभ्यस्त हाथों के कलात्मक बर्तन तो हर कोई ख़रीदने को तैयार रहता है. पर कुम्हार उन अनगढ़ बर्तनों को फेंकने का साहस नहीं कर पाता, क्योंकि उनसे उसका भावनात्मक जुड़ाव हो जाता है. वे उसके घर में ही यादगार के रूप में एक कोने की शोभा बढ़ाते रहते हैं. औरों की नज़र में तुच्छ पर उसके लिए बहुमूल्य धरोहर होते हैं. तुम्हारा यह ट्रूज़ो बहुमूल्य धरोहर के रूप में मेरे पास हमेशा सुरक्षित रहेगा.”
नंदिनी को सामने खड़ी मांजी नज़र आना बंद हो गई थीं, क्योंकि चेहरा पूरी तरह आंसुओं से भीग चुका था. आंखें मसलकर सामने दृष्टि गड़ाकर उसने फिर देखने का प्रयास किया. मांजी अब भी नज़र नहीं आ रही थीं. हां, मां… उसकी अपनी मां ज़रूर मुस्कुराती खड़ी नज़र आ रही थी.


         शैली माथुर

 

अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करेंSHORT STORIES
Usha Gupta

Share
Published by
Usha Gupta

Recent Posts

हास्य काव्य- श्रीमतीजी की होली (Poem-Shrimatiji Ki Holi)

होली की चढ़ती खुमारी मेंचटकीले रंगों भरी पिचकारी मेंश्रीमान का जाम छलकता हैकुछ नशा सा…

March 24, 2024

‘गोविंदा’ दहीहंडी पथकाने गाठली अतुलनीय उंची : गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रेकॉर्डने घेतली नोंद  (Maharashtra ‘Govinda Team’ Enters In Guinness Book of World Record : ” OMG, Yeh Mera India” Program Streaming Their World Record On TV)

जय जवान पथकाने एका सांस्कृतिक उत्सवात सर्वाधिक उंचीचा मानवी मनोरा उभारून गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड…

March 24, 2024

कहानी- दूसरी ग़लती (Short Story- Doosari Galti)

यह अंतिम कार्य भी पूरा करके वो अपने घर पहुंचा. जीवन में इतना बड़ा तूफ़ान…

March 24, 2024

शर्माची सारखे माझे फोटो काढायचे अन् मी… कंगनाने शेअर केली बालपणीची आठवण (Kangana Ranaut Childhood Photos and stories )

बॉलिवूड अभिनेत्री कंगना रणौत तिच्या वक्तव्यांमुळे, तिच्या स्टाइलमुळे दररोज मीडियामध्ये चर्चेत असते. कोणत्याही विषयावर आपले…

March 24, 2024
© Merisaheli