Short Stories

कहानी- उसकी राह (Short Story- Uski Rah)

“क्या यह वरदान मेरे लिए अभिशाप नहीं बन जाएगा? क्या यह सहारा मेरे लिए बोझ नहीं साबित होगा? इसके साथ क्या मैं सदा के लिए अपूर्ण नहीं रह जाऊंगी? अपने करियर के लिए अपूर्व ने मेरे बच्चे को अजन्मा होने का अभिशाप दिया था. बताइए क्या दोष था उसका? बस इतना कि वह एक महत्वाकांक्षी बाप की औलाद था?”  

आईटी कानपुर से बी.टेक., केलीफोर्निया यूनिवर्सिटी से एम. टेक, लंदन स्कूल ऑफ़ इकेनॉमिक्स से एमबीए, तीन साल में 3 कंपनियों का सफ़र, चौथे साल एक मल्टीनेशनल कंपनी के डिप्टी सीईओ के पद का दावेदार…. लक्ष्मीदेवी के 29 वर्षीय इकलौते बेटे अपूर्व की ऊंची उड़ान के आगे सफलता की सीढ़ियां भी छोटी पड़ती जा रही थीं. ऐसा हो भी क्यूं न, सोते-जागते, उठते-बैठते-बस काम ही काम. काम के अलावा अपूर्व को और कुछ सूझता ही नहीं था.

कई धन-कुबेर अपनी कन्याओं के लिए लक्ष्मीदेवी के घर लाइन लगाए रहते, पर अपूर्व कोई लड़की देखने को राज़ी ही नहीं होता. एक दिन उन्होंने उसके सामने कई फ़ोटो रखते हुए कहा, “मैंने ये लड़कियां पसंद की हैं, बता इनमें से सबसे अच्छी कौन है?”

अपूर्व ने तस्वीरों पर एक उचटती हुई दृष्टि डाली, फिर बोला, “ये सभी अच्छी हैं, पर मैं इनमें से किसी से शादी कर उसकी ज़िंदगी बर्बाद नहीं कर सकता.”

“क्या मतलब?”

“मां, मेरा प्यार कहीं और है. अगर मैं इनमें से किसी से शादी करूंगा तो बेचारी की ज़िंदगी बर्बाद हो जाएगी या नहीं?” अपूर्व मुस्कुराया.

“तो बता, तू किससे प्यार करता है, मैं उसी से तेरी शादी कर देती हूं.” लक्ष्मीदेवी हुलस उठीं.

“मेरा पहला प्यार मेरा करियर है. मुझे जल्द-से-जल्द कंपनी का सीईओ बनना है. हां, जिस दिन कोई ऐसी लड़की मिलेगी, जिसे देख दिल कहे कि यह करियर से भी ज़्यादा क़ीमती है, उस दिन फ़ौरन शादी कर लूंगा.” अपूर्व हल्का-सा मुस्कुराया, फिर ऑफ़िस चला गया. लक्ष्मीदेवी काफ़ी देर तक बड़बड़ाती रहीं.

अपूर्व ऑफ़िस पहुंचा ही था कि ब्लू-स्काई एडवर्टाइज़िंग कंपनी के एम.डी. रमन मेहता आ गए.

“मि. मेहता, हमारा काम हुआ कि नहीं.” अपूर्व ने उन्हें बैठने का इशारा करते हुए पूछा.

“सर, आप जैसे इंपोेर्टेन्ट क्लाईंट का काम न होने का प्रश्‍न ही नहीं उठता.” रमन मेहता धीरे से मुस्कुराए, फिर अपने ब्रीफकेस से दो एलबम निकाल अपूर्व की ओर बढ़ाते हुए बोले, “ख़ास आपके लिए दो नयी और बेइंतहा ख़ूबसूरत मॉडल्स का पोर्टफोलियो लाया हूं.”

अपूर्व ने एक एलबम को लेकर पन्ने पलटने शुरू किए.

“ये मिस रेणुका रमानी हैं, मिस इंडिया यूनिवर्स के फ़ाइनल राउंड तक पहुंच चुकी हैं. आख़िरी राउंड में तबियत ख़राब हो जाने के कारण पिछड़ गई थीं, वरना इस बार की मिस इंडिया यही होतीं.”

अपूर्व ने बिना कोई प्रतिक्रिया व्यक्त किए एलबम के पन्ने पलटे, फिर दूसरा एलबम उठा लिया.

“ये हैं मिस नेहा गोविरकर, इस बार अमेरिका में बेस्ट एशियन ब्यूटी का पुरस्कार इन्हें ही मिला है. आपकी ख़ातिर बहुत मुश्किल से ये इंडिया में अपना पहला असाइनमेंट करने के लिए तैयार हुईं.” रमन मेहता ने प्रशंसात्मक स्वर में बताया.

अपूर्व ने इस एलबम के भी पन्ने पलटे, फिर उसे भी मेज़ पर रखते हुए बोला, “हमारी कंपनी एक्सक्लूसिव प्रोडक्ट लॉन्च करने जा रही है, इसके लिए हमें मॉडल चाहिए, बिल्कुल अनछुआ सौंदर्य. ओस की बूंद जैसा पवित्र चेहरा. ऐसी ख़ूबसूरती, जिसमें उन्मुक्त पवन जैसी चंचलता और अनंत आकाश जैसी असीम शांति एक साथ हो.”

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“ऐसा एक चेहरा है मेरे पास.” रमन मेहता ने ब्रीफकेस से एक और एलबम निकाला, “ये हैं मिस कंगना राय, बीएससी फ़ाइनल ईयर की स्टूडेंट. पिछले महीने अपने कॉलेज की नृत्य प्रतियोगिता में पुरस्कार जीता तो उत्साहित हो मेरे स्टूडियो में फ़ोटो खिंचवाने चली आई थीं.”

“मि. मेहता, आप मेरा समय बर्बाद कर रहे हैं. मैंने इस मॉडलिंग असाइनमेंट के लिए आपको मुंहमांगी क़ीमत देने का वादा किया है और आप किसी को भी लाकर मेरे मत्थे मढ़ देना चाहते हैं.” अपूर्व का स्वर तल्ख़ हो गया.

“सर, अनछुआ सौंदर्य बाज़ार में नहीं मिलता. ऐसा सौंदर्य तो बस सीप में बंद मोती के पास ही हो सकता है. अगर किसी पारखी की नज़र पड़ जाए तो उसे अनमोल रत्न बनते देर नहीं लगती.” रमन मेहता भरपूर आत्मविश्‍वास के साथ मुस्कुराए, फिर अपने शब्दों को वज़न देते हुए बोले, “आप एक बार इस एलबम के पन्ने तो पलट कर देखिए, आपकी आंखें चौंधिया न जाएं तो मेरा नाम बदल दीजिएगा.”

अपूर्व ने बहुत बेदिली से एलबम का पहला पन्ना खोला, लेकिन पहली ही तस्वीर सीधे दिल में उतरती चली गयी. ख़ूबसूरत चेहरे से झांक रही झील-सी गहरी आंखें किसी को भी अपने मोहपाश में बांध लेने में सक्षम थीं.

“मैं आज ही इनसे मिलना चाहूंगा.” अपूर्व ने एलबम रखते हुए फैसला सुनाया.

उसी दिन शाम रमन मेहता ने अपूर्व की कंगना राय से मुलाक़ात करवा दी. अपूर्व ने उसे देखा तो देखता ही रह गया. थोड़ी देर की औपचारिक बातचीत के पश्‍चात अपूर्व ने कहा, “मि. मेहता, अगर आप बुरा न मानें तो मैं मिस कंगना से अकेले में कुछ  बात करना चाहता हूं.”

“श्योर सर.” रमन मेहता के चेहरे पर एक व्यवसायिक मुस्कान उभरी और कंगना राय को बोलने का कोई मौक़ा दिए बिना वे वहां से हट गए.

कंगना के चेहरे पर परेशानी के चिह्न उभर आए, जिन्हें पढ़ते हुए अपूर्व ने धीमे स्वर में कहा, “आप अपना मॉडलिंग असाइनमेंट तो पक्का ही समझिए, लेकिन उससे पहले मैं एक शर्त रखना चाहता हूं.”

“आप मुझे काम दें या न दें, पर मैं आपकी कोई शर्त नहीं मानूंगी.” कंगना का  चेहरा अपमान से लाल हो उठा और वह झटके से उठ खड़ी हुई.

“देखिए, शर्त सुने बिना इनकार करना अक्लमंदी न होगी.” अपूर्व ने हड़बड़ाकर वहां से जा रही कंगना की कलाई थाम ली.

“छोड़िए मेरा हाथ, आप ग़लत समझ रहे हैं. मैं वैसी लड़की नहीं हूं.” हाथ छुड़ाते-छुड़ाते कंगना की आंखों से आंसू टपक पड़े.

“आप भी मुझे ग़लत समझ रही हैं. मैं भी वैसा लड़का नहीं हूं, मैं तो आपसे शादी करना चाहता हूं.” कंगना के आंसू देख अपूर्व हड़बड़ा उठा.

“क्या?” कंगना की आंखें आश्‍चर्य से फैल गईं.

“हां मिस कंगना, क्षणभर पहले मेरे मन में हल्की-सी आशंका थी, पर अब मुझे विश्‍वास हो गया है कि मेरा ़फैसला सही है.” अपूर्व क्षणभर के लिए रुका, फिर कंगना की आंखों में देखते हुए बोला, “मेरी शर्त स़िर्फ इतनी है कि या तो आप हमारी कंपनी के लिए मॉडलिंग के प्रस्ताव को स्वीकार कर लें या मेरी शादी के प्रस्ताव को, क्योंकि मॉडलिंग के बाद शादी और शादी के बाद मॉडलिंग मुझे स्वीकार न होगी.”

“मुझे थोड़ा व़क़्त चाहिए.” कंगना ने सहज होने की कोशिश की.

किंतु फैसला लेना आसान न था. एक तरफ़ कैरियर के आरंभ में ही इतना बड़ा ब्रेक था- ग्लैमर, शोहरत, पैसा और तड़क-भड़क भरी ज़िंदगी थी, तो दूसरी तरफ़ अपूर्व जैसा पति था, जिसके पास वह सब कुछ था जिसकी कामना हर लड़की करती है. कंगना की पूरी रात उहापोह में बीती.

अगले दिन जब उसने फैसला सुनाया तो अपूर्व ख़ुशी से उछल पड़ा. लक्ष्मीदेवी ने भी देरी नहीं की. चट मंगनी-पट ब्याह हो गया और अगले ही सप्ताह अपूर्व और कंगना हनीमून पर निकल गए. स्विटज़रलैंड, पेरिस, रोम, सिंगापुर और हांगकांग होते हुए जब वे एक माह बाद लौटे तो बहुत ख़ुश थे.

इस बीच अपूर्व का काम काफ़ी पिछड़ गया था, अतः वापस आते ही वह बुरी तरह व्यस्त हो गया. कंगना बहुत समझदार थी. पति की व्यस्तताओं और मजबूरियों को समझती थी. शिकायतें करने के बजाय वह अपूर्व के काम में हाथ बंटाने लगी.

“बहू, तुम एक अच्छी पत्नी के साथ-साथ एक अच्छी सेक्रेट्री भी बन गई हो. अब जल्दी से अच्छी मां बन कर भी दिखा दो.” एक दिन लक्ष्मीदेवी ने कंगना के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा.

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“यह ख़ुशी भी आपको जल्दी ही मिल जाएगी.” कंगना के चेहरे पर रक्तिम आभा उभर आयी.

यह सुन लक्ष्मीदेवी का चेहरा प्रसन्नता से खिल उठा और उन्होंने कंगना के चेहरे को अपने हाथों में थामते हुए उलाहना दिया,  “तुमने इतनी बड़ी ख़ुशी मुझसे अब तक छुपा कर क्यूं रखी?”

“मांजी, मुझे भी आज ही इस बात का एहसास हुआ है. अभी तो इनको भी कुछ मालूम नहीं है.” कंगना की पलकें लाज से बोझिल हो उठीं.

“मैं अभी उसे ख़बर करती हूं.” लक्ष्मीदेवी ने मोबाइल उठाया.

“मांजी, प्लीज़ उन्हें सबसे पहले यह ख़बर मुझे देने दीजिए. मैं देखना चाहती हूं कि उनकी आंखों में कैसी ख़ुशी उभरती है.” उस शाम कंगना ने पूरे घर को नये सिरे से सजाया. अपूर्व काफ़ी देर से लौटा था. खाने के बाद दोनों जल्दी ही अपने कमरे में चले गए. थोड़ी देर बाद उनके कमरे से तेज़ बहस की आवाज़ें आने लगीं. फिर अपूर्व का स्वर तो शांत हो गया, पर कंगना की सिसकियां काफ़ी देर  तक सन्नाटे को भंग करती रहीं.

सुबह दोनों काफ़ी देरी से कमरे से बाहर निकले. अपूर्व के चेहरे पर शांति थी, किंतु कंगना के चेहरे पर वीरानी छायी हुई थी.

“तुम लोग कहां जा रहे हो?” उन्हें तैयार देख लक्ष्मीदेवी ने पूछा.

“डॉक्टर के पास.” अपूर्व ने सपाट स्वर में बताया.

अचानक जैसे छठीं इंद्रिय जागृत हो गयी. लक्ष्मीदेवी की अनुभवी आंखों ने पलभर में कंगना के दिल का हाल पढ़ लिया था, किंतु संशय मिटाने के लिए पूछा, “क्यों?”

“जी…. वो… वो…” अपूर्व चाहकर भी अभिव्यक्ति के लिए शब्द नहीं जुटा पाया, किंतु कंगना के आंखों से टपके आंसुओं ने प्रश्‍न का उत्तर दे दिया था.

“देखिए, शादी तो मैंने कर ली, पर अभी बच्चे-वच्चे के झंझट में फंसने का समय मेेरे पास नहीं है.” अपूर्व ने समस्या सामने रखी.

“इसमें तू परेशान क्यूं होता है? बच्चा तुझे नहीं कंगना को पालना है.” समस्या का मूल जान लक्ष्मीदेवी हंस पड़ीं.

“ये क्या पिछड़े ज़माने की बातें कर रही हैं.” अपूर्व पहले तो झल्लाया, फिर समझाते हुए बोला, “अभी तो मेरे कैरियर की शुरुआत है, बहुत लंबा सफ़र तय करना है मुझे. इसके लिए आए दिन पार्टियां देनी होंगी, लोगों से मिलना-जुलना होगा. कॉन्टेक्ट बढ़ाने होंगे. हाई सोसायटी की पार्टियों में लोग पत्नियों के साथ आते हैं. अब मेरे साथ यह नैपकीन में बच्चा लेकर चलेगी तो कैसा लगेगा?”

“तो इतनी-सी बात के लिए तू अपने बच्चे की हत्या कर देगा?” लक्ष्मीदेवी का मुंह खुला रह गया.

अपूर्व ने उनकी बात का कोई उत्तर नहीं दिया, किंतु कंगना की ओर मुड़ते हुए बोला, “मां पुराने ज़माने की हैं, हमारी बात नहीं समझ सकेंगी, लेकिन तुम मेरी शर्त सुन लो. अगर मेरे साथ ज़िंदगी गुज़ारनी है तो मैं गाड़ी निकाल रहा हूं, चुपचाप आकर बैठ जाओ वरना….”

अपना वाक्य अधूरा छोड़ अपूर्व तेज़ी से बाहर चला गया. यह अधूरा वाक्य ज़िंदगी में अधूरापन भर सकता था, अतः न चाहते हुए भी कंगना को पति की अनुगामिनी बनना पड़ा.

ज़िंदगी मिटाकर भी ज़िंदगी चलती रहती है. चंद दिनों बाद कंगना एक बार फिर पति के क़दमों से क़दम मिलाकर चलने लगी, किंतु कहीं कुछ ऐसा था जो दरक गया था. उसके चेहरे को देखकर ऐसा लगता था जैसे किसी पुष्प से उसकी सुगंध छीन ली गयी हो.

समय बीतता रहा, अपूर्व की मेहनत रंग लायी और शादी की दूसरी वर्षगांठ पर कंपनी ने उसे सीईओ  के पद का तोहफ़ा दिया. इस ख़ुशी में उसने बहुत बड़ी पार्टी दी. अपूर्व और कंगना रातभर झूमते-गाते रहे. उनके सारे सपने सच हो गए थे.

अगले दिन ऑफ़िस में अपूर्व के पेट में भयंकर दर्द उठा. पहले भी दो-तीन बार ऐसा हो चुका था, किंतु व्यस्तताओं के चलते अपूर्व ने उसे नज़रअंदाज़ कर दिया था, लेकिन इस बार दर्द असहनीय था. सहकर्मियों ने उसे हॉस्पिटल में भर्ती कर दिया.

जांच के बाद जब रिपोर्ट सामने आयी तो सबके पैरों तले ज़मीन खिसक गयी. अपूर्व की आंत में कैंसर था, वह भी अंतिम चरण में. कंगना ने सुना तो जड़ हो गयी.

अपूर्व को एक नामी कैंसर इंस्टिट्यूट में भर्ती करा दिया गया. कंगना ने देश के बड़े-बड़े डॉक्टरों को बुलाया. अपूर्व की सेवा में दिन-रात एक कर दिया, पर उसकी स्थिति में सुधार नहीं हो रहा था. डॉक्टरों की सलाह पर अपूर्व का अमेरिका में ऑपरेशन करवाने का निश्‍चय किया गया. चार दिन बाद की हवाई जहाज की टिकटें भी मिल गईं.

अगले दिन कंगना कुछ ज़रूरी काग़ज़ात    लेने घर गयी. अचानक उसे उल्टी होने लगी. लक्ष्मीदेवी की अनुभवी आंखों ने कारण समझ लिया. कंगना को बिस्तर पर लिटाते हुये उन्होंने सांस भरी, “लगता है, ऊपर वाले ने हमारी सुन ली है.”

“कुछ नहीं सुनी है ऊपर वाले ने. अगर उसे सुनना ही होता तो… तो….” कंगना के शब्द हिचकियों में बदल गए.

“रो मत बेटा.” लक्ष्मीदेवी ने कंगना के सिर पर हाथ फेरा, फिर मोबाइल उसकी ओर बढ़ाते हुए बोलीं, “अब तो तुम्हें जीने का सहारा मिल गया है, चलो यह ख़ुश-ख़बरी अपूर्व को सुना दो.”

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“नहीं मांजी, अपूर्व को यह ख़बर न तो मैं दूंगी और न ही आप.” कंगना का स्वर कड़ा हो गया और वह झटके से उठ खड़ी हुई.

“क्यों?”

“क्योंकि यह बच्चा दुनिया में नहीं आएगा और इसके वजूद की ख़बर देकर मैं अपूर्व के कष्ट को और नहीं बढ़ाना चाहती.” कंगना ने दो टूक फैसला सुनाया.

“यह क्या पागलपन है. जो ग़लती अपूर्व ने की थी, वही ग़लती तू करने जा रही है?” लक्ष्मीदेवी तड़प उठीं.

“मांजी, ग़लती न तो अपूर्व ने की थी और न मैं कर रही हूं. मैं बहुत सोच-समझकर फैसला कर रही हूं.” कंगना ने एक-एक शब्द पर ज़ोर देते हुए कहा.

लक्ष्मीदेवी ने कंगना को अविश्‍वसनीय नज़रों से देखा, फिर बोलीं, “बेटा, बच्चा तो स्त्री को प्रकृति का दिया सबसे बड़ा वरदान है, उसके जीने का सहारा है. बच्चे के बिना स्त्री सदैव अपूर्ण होती है और तू….”

कंगना ने लक्ष्मीदेवी की बात बीच में ही काट दी, “क्या यह वरदान मेरे लिए अभिशाप नहीं बन जाएगा? क्या यह सहारा मेरे लिए बोझ नहीं साबित होगा? इसके साथ क्या मैं सदा के लिए अपूर्ण नहीं रह जाऊंगी? अपने करियर के लिए अपूर्व ने मेरे बच्चे को अजन्मा होने का अभिशाप दिया था. बताइए क्या दोष था उसका? बस इतना कि वह एक महत्वाकांक्षी बाप की औलाद था?” कंगना ने अपनी आंखों से ढलक आये आंसुओं को पोंछा, फिर लक्ष्मीदेवी की आंखों में झांकती हुई बोली, “अपूर्व का क्या होगा, यह अब कोई रहस्य नहीं रह गया है, लेकिन उसके बाद मेरा क्या होगा? यह आपने तो नहीं सोचा, पर क्या मुझे भी अपने करियर के बारे में नहीं सोचना चाहिए? डूबना अवश्यंभावी है, यह जानकर क्या मुझे आंख मूंद कर अपनी कश्ती को लहरों के सहारे छोड़ देना चाहिए?”

कंगना के मुंह से निकला प्रत्येक वाक्य लक्ष्मीदेवी का जीवन के यथार्थ से कटु साक्षात्कार करवा रहा था, फिर भी उन्होंने तिनके का सहारा लेने की कोशिश की, “बेटा, बच्चे के सहारे तेरा जीवन कट जाएगा और जाते-जाते अपूर्व को भी थोड़ी-सी ख़ुशी मिल जाएगी.”

“जीवन कट जाएगा? लेकिन कैसे कटेगा यह आप भी जानती हैं और मैं भी.” कंगना के चेहरे पर दर्द की रेखाएं तैर आईं और वह लक्ष्मीदेवी का हाथ थामते हुए बोली, “यक़ीन मानिए मांजी, अगर इस बात की ज़रा-सी भी संभावना होती कि अपूर्व नौ माह बाद बच्चे का मुंह देखने के लिए मौजूद रहेंगे तो मैं यह धर्म अवश्य निभाती.”

“तूने उसके साथ सात फेरे लिए हैं. पति के वंश को आगे बढ़ाना भी पत्नी का धर्म होता है.” लक्ष्मीदेवी ने अंतिम शस्त्र चलाया.

“मैं पत्नी के धर्म को निभाऊंगी, दिन-रात उनकी सेवा करूंगी. जितने भी पल उनके पास बचे हैं, उन्हें अधिक-से-अधिक सुख देने की कोशिश करूंगी.” कंगना ने सांत्वना दी.

“पर…”

“अब कोई ‘पर’ नहीं मांजी. हमेशा आपके बेटे ने शर्त सामने रखी है. आज आपकी बहू शर्त रखती है.” कंगना ने अपने अंदर उमड़ रहे आंसुओं को नियंत्रित किया और एक-एक शब्द पर ज़ोर देते हुए बोली, “मैं अस्पताल जा रही हूं, आप चाहें तो साथ चल कर मुझे इस लायक बना सकती हैं कि मैं अंतिम समय तक आपके बेटे की सेवा कर सकूं. लेकिन यदि आप चाहें तो मुझे रोक कर इस लायक भी बना सकती हैं कि मैं अपने बढ़े हुए पेट को लेकर ख़ुद अपनी सेवा करवाऊं और मेरा पति अंतिम समय में जीवनसाथी के साथ को तरसता रहे.”

इतना कहकर कंगना सधे क़दमों से दरवाज़े की ओर चल दी. लक्ष्मीदेवी के अंदर इतना साहस शेष नहीं बचा था कि उठकर दरवाज़े को बंद कर सकें. वह फटी आंखों से उसे बाहर जाते देखती रहीं. वह तय नहीं कर पा रही थीं कि उसकी राह सही है या ग़लत….?

संजीव जायसवाल ‘संजय’  

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