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कहानी- वैलेंटाइन डे (Short Story- Valentine Day)

हमने पश्‍चिम के त्योहारों और दिवसों को तो अपना लिया, पर क्या पश्‍चिमी देशों जैसे आधुनिक हम हो पाए हैं? ‘वैलेंटाइन डे’ तो ‘सेंट वैलेंटाइन’, जिन्होंने प्रेम के नाम पर शहादत दी थी, उनके प्यार के पैग़ाम को नमन करने के लिए मनाया जाता है. इसे वासना के बहाने से किसी के भी सम्मुख इज़हार करना या मन में दबी हुई भावनाओं को व्यक्त करने का माध्यम बनाना कहां तक उचित है?

नीले आसमान में बादलों का झुरमुट लगा था. कोहरा गहरा गया था. सूरज की किरणों की आंख-मिचौली ने वातावरण को बहुत ख़ुशनुमा बना दिया था. बारिश की बूंदें धीरे-धीरे जब बरसने लगीं, तो मौसम और भी सुहाना हो गया.
दिन में भी लाइटें जल उठी थीं. सारा बाज़ार टिमटिमाते बल्बों, रंग-बिरंगी झालरों और फूलों की ख़ुशबू से महक उठा था. हर दुकान और हर गली आज सजी-धजी-सी नज़र आ रही थी. युवाओं में एक अजीब-सी मस्ती और नशा था.
आकर्षक गिफ़्ट्स व कार्ड्स के इश्तिहार बाज़ार भर में छाए हुए थे. दैनिक अख़बार भी रंग-बिरंगे इश्तिहारों व संदेशों से भरे पड़े थे. होटल्स व रेस्टॉरेंट्स में आज कुछ विशेष ही साज-सज्जा थी. कहीं-कहीं तो डांस, म्युज़िक व सरप्राइज़ गिफ़्ट्स का भी इंतज़ाम था.
नेहा रोज़ाना की तरह तैयार होकर ऑफ़िस के लिए निकली. गहरे गुलाबी रंग की साड़ी उसके गोरे रंग पर बहुत फब रही थी. मैचिंग के मोती के टॉप्स और कड़े ग़ज़ब ढा रहे थे. सादगीपूर्ण सौंदर्य की वो मिसाल थी और उस पर उसका नपा-तुला सौम्य व्यवहार. ऑफ़िस में हर व्यक्ति उसका बेहद सम्मान करता था. पेेशे से एमबीए नेहा एक फैक्ट्री में मैनेजर थी. एक कुशल प्रशासक होने के साथ-साथ वह बेहद नरम दिल भी थी.
दिखावा, घमंड व चालाकी से कोसों दूर, वह अपना काम बेहद ईमानदारी व रुचि से करती थी. आज नियत समय से थोड़ा पहले आकर उसने अपनी सीट संभाल ली थी और इसका कारण था एक ज़रूरी मीटिंग. कंपनी के अन्य ब्रांचेज़ का स्टाफ़ भी उन्हीं के ऑफ़िस आ रहा था और सब व्यवस्था उसे ही देखनी थी.
कॉन्फ्रेंस हॉल में जाकर नेहा ने सारी व्यवस्थाएं देखीं. कुछ ज़रूरी निर्देश दिए और वापस अपने केबिन में लौट आई. वह कुछ आवश्यक फ़ाइलें देख ही रही थी कि अचानक नीरज आ गया. बड़ी गर्मजोशी से नीरज उससे मिला. नेहा ने कॉफ़ी का ऑर्डर दे दिया.
नीरज और नेहा ने एमबीए एक साथ ही किया था. दिखने में स्मार्ट नीरज पढ़ाई और ऑफ़िस के काम, दोनों में ही होशियार था. एमबीए पूरा करने से पहले ही दोनों की नौकरी एक ही फर्म के अलग-अलग ब्रांचेज़ में लग गई थी. नीरज जितना आकर्षक था, उतना ही शौक़ीन भी. नेहा को अक्सर वो उसकी सादगी पर छेड़ता रहता था. दोनों अक्सर मीटिंग में मिलते रहते. समान पद होने के नाते सूचनाओं व समस्याओं का आदान-प्रदान भी होता रहता था. यदा-कदा नीरज नेहा की मदद भी कर देता और कभी-कभी तो नेहा को घर भी ड्रॉप कर देता था.
आज नीरज कुछ ज़्यादा ही चहक रहा था. दोनों ने केबिन में बातें करते हुए कॉफ़ी ख़त्म की और मीटिंग अटेंड करने पहुंचे. मीटिंग बहुत अच्छी तरह से संपन्न हुई. सभी नेहा की व्यवस्थाओं की तारीफ़ कर रहे थे. उसके द्वारा दी गई प्रोजेक्ट रिपोर्ट की भी भूरि-भूरि प्रशंसा हुई. नेहा बहुत ख़ुश थी कि उसकी मेहनत सफल हो गई, तभी नीरज ने उसके सामने बाहर लंच करने का प्रस्ताव रख दिया.
‘ना’ की कोई गुंजाइश ही नहीं थी. मीटिंग में स़िर्फ स्नैक्स ही सर्व हुए थे और मीटिंग की तैयारी के चक्कर में सुबह घर से जल्दी निकलने के कारण नेहा ने कुछ खाया भी नहीं था. उसने नीरज को सहमति दी और केबिन से पर्स उठाकर उसके साथ हो ली.
दोनों एक रेस्तरां में पहुंचे. रेस्तरां गुलाब के फूलों से अटा पड़ा था. मधुर संगीत, परफ़्यूम की ख़ुशबू और ‘हैप्पी वैलेंटाइन डे’ के बैनर हर ओर लगे थे. ओहो! तो आज वैलेंटाइन डे है, नेहा ने सोचा इसीलिए बाज़ारों में इतनी रौनक है.
वेटर ऑर्डर लेने आ पहुंचा. नीरज ने जल्दी से ऑर्डर दिया और फिर बातचीत शुरू की. वह बोला, “आज तो बहुत सुंदर लग रही हो. सच नेहा, गुलाबी रंग तुम पर बहुत अच्छा लगता है.”
नेहा ने हंसते हुए ‘धन्यवाद’ कहा, तब तक वेटर ऑर्डर लेकर आ चुका था.
दोनों ने खाना शुरू किया. इधर-उधर की बातों के बीच अचानक नीरज गंभीर हो गया. उसने नेहा का हाथ थामा और जेब में से एक डिबिया निकालकर उसके हाथ पर रखकर भावुक होकर बोला, “नेहा, विल यू बी माई वैलेंटाइन?”
नेहा अचानक असहज हो उठी, “अरे, अचानक तुम्हें क्या हुआ? और ये क्या है?” उसने डिबिया खोलकर देखी. एक बेहद ख़ूबसूरत हीरे की अंगूठी थी.
“पहनो ना, देखें तुम्हें ठीक आती है या नहीं.” नीरज बोला.
“नहीं, मैं इसे नहीं ले सकती.” नेहा कसमसाई.
“प्लीज़, मेरी ख़ातिर…” नीरज ने आग्रह किया.
“पर… मैं इतना महंगा गिफ़्ट कैसे ले सकती हूं?” नेहा असहज हो रही थी.
लेकिन नेहा को नीरज के आग्रह के आगे झुकना पड़ा और उसे अंगूठी पहननी पड़ी. अंगूठी उसके नाज़ुक हाथों में बहुत जंच रही थी. वापसी में सारे रास्ते नीरज प्यार भरी बातें करता रहा. उसकी बातों में चंचलता, शोख़ी और शरारत सभी कुछ था. नीरज तो नेहा को ऑफ़िस के बाहर छोड़कर चला गया, पर नेहा, वोे तो जाने किस सोच में पड़ गई थी?
नीरज को वो पिछले काफ़ी सालों से जानती थी. थोड़ा नटखट तो वो था, पर नेहा के धीर-गंभीर स्वभाव को देखते हुए उसने कभी उसके साथ मस्ती नहीं की थी, फिर वो भी नेहा के स्वभाव को अच्छी तरह जानता था. पर आज यह अचानक नीरज को क्या हुआ?
प्रणय निवेदन का ऐसा तरीक़ा? नेहा जानती थी कि नीरज शादीशुदा था, फिर यह तोहफ़ा किसलिए? ऑफ़िस में बैठी नेहा यही सोच रही थी कि क्या स्त्री और पुरुष मात्र दोस्त, सहकर्मी या स़िर्फ परिचित नहीं हो सकते? क्या प्लेटोनिक लव कहीं भी नहीं है? आज जब स्त्री-पुरुष कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रहे हैं, तो क्या किसी परपुरुष के साथ बातें करने, खाना खा लेने या साथ घर चले जाने से उसे इतनी छूट मिल जाती है कि वह उससे अमर्यादित व्यवहार करे?
क्या पुरुष के लिए स्त्री स़िर्फ शरीर व सुंदरता है? हमने पश्‍चिम के त्योहारों और दिवसों को तो अपना लिया, पर क्या पश्‍चिमी देशों जैसे आधुनिक हम हो पाए हैं? ‘वैलेंटाइन डे’ तो ‘सेंट वैलेंटाइन’, जिन्होंने प्रेम के नाम पर शहादत दी थी, उनके प्यार के पैग़ाम को नमन करने के लिए मनाया जाता है. इसे वासना के बहाने से किसी के भी सम्मुख इज़हार करना या मन में दबी हुई भावनाओं को व्यक्त करने का माध्यम बनाना कहां तक उचित है?
हिंदुस्तानी संस्कृति में तो पति-पत्नी का सात जन्मों का साथ होता है. ऐसे में ब्याहता पत्नी के होते हुए वह किसी और से प्रणय निवेदन करे, इसका क्या मतलब? होती होंगी कुछ करियर ओरिएंटेड लड़कियां, जो इस तरह की हरकतों से तऱक़्क़ी की सीढ़ियां चढ़ती होंगी, पर वो, उसे तो अपने स्वाभिमान को गिरवी रखना बिल्कुल पसंद न था.
और नीरज…? उसे तो वह अपना दोस्त समझती थी. पर वह भी और पुरुषों की तरह ही निकला. नेहा को नीरज से घृणा-सी हो गई. उसने झट से हाथों से अंगूठी निकाली और डिबिया में रखकर पर्स में रख ली.
सारी शाम काम में नेहा का मन नहीं लगा. बार-बार उसे ऐसा लग रहा था, जैसे किसी ने उसे भरे बाज़ार में बेइ़ज़्ज़त कर दिया हो. फिर कुछ सोच वह मुस्कुराती हुई केबिन में से निकली. उसकी अधरों पर मुस्कान थी और मन निश्‍चिंत.
उसने सीधे अपनी कार नीरज के घर के सामने पार्क की. नीरज की पत्नी ने दरवाज़ा खोला. उसकी पत्नी को देख नेहा को सुखद आश्‍चर्य हुआ. वह काफ़ी सुंदर थी. बातों-बातों में नेहा ने वो अंगूठी नीरज की पत्नी को नीरज का वैलेंटाइन डे का तोहफ़ा बताकर दे दी.
यह सरप्राइज़ गिफ़्ट नेहा के हाथों पाकर वह असमंजस में थी.
“नीरज ऑफ़िस में व्यस्त हैं और उन्हें आने में भी देर हो जाएगी और फिर लेडीज़ की पसंद की उन्हें उतनी समझ नहीं कहकर उन्होंने मुझसे ही अंगूठी भिजवा दी.” इतना कहकर नेहा ने नीरज की पत्नी से इजाज़त मांगी और फिर आने का वादा करके वहां से चली आई.
घर आकर नेहा ने नीरज को फ़ोन लगाया और उसे बताया कि वो उसकी दी हुई अंगूठी उसकी पत्नी को दे आई है, क्योंकि उसकी असली हक़दार वही है. दूसरी तरफ़ से जब चुप्पी नहीं टूटी, तो नेहा ने आगे कहा कि नीरज उसका अच्छा दोस्त है और हमेशा रहेगा और वो उसकी दोस्ती खोना नहीं चाहेगी. नीरज समझ चुका था.
दूर कहीं फ़िज़ा में गूंज रहा था ‘हैप्पी वैलेंटाइन डे’.


         पूनम मेहता
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Meri Saheli Team

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