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कहानी- वही होगा मेरा पति (Short Story- Wahi Hoga Mera Pati)

“ऐसी बातें ना बोल यमुना. तू क्यों भूल रही है बड़े-बड़े लखपतियों की छोरियां भी जब शादी के मंडप में बैठती हैं ना, उसके पहले ही क़रार हो जाता है. लाखों के सौदे होते हैं, यही रीत है.”
“होते होंगे लाखों के सौदे, उन छोरियों के मन में भी दहेज लेकर जाने की चाह रहती होगी. मैं वैसी नहीं हूं माई. वैसे भी मुझे भिखारी लड़के से ब्याह नहीं रचाना.”
“अरी यमुना दहेज तो उसके माई-बाप मांग रहे हैं. लड़के को काहे कोस रही है.”
“अच्छा मतलब वह अपने लड़के को बेच रहे हैं, डेढ़ लाख रुपए में. उन्हें कह दो हमें यह सौदा मंज़ूर नहीं.”

कड़कड़ाती धूप में मेहनत करती यमुना पसीने से तरबतर हो रही थी. तभी खाना खाने की छुट्टी हुई. इतने शरीर तोड़ परिश्रम के बाद उसे ज़ोरों की भूख लगी थी. आज माई ने क्या साग भेजा होगा, सोचते हुए उसने अपना खाने का डिब्बा खोला. वह देखकर हैरान रह गई कि डिब्बे में प्याज़ और सूखी रोटी के सिवाय और कुछ भी नहीं था. यमुना ग़ुस्से में लाल हो रही थी. उसने डिब्बे को वैसे ही वापस बंद कर दिया. तभी उसके बगल में खाना खा रही पार्वती ने पास में खड़े लार टपकाते कुत्ते को देखकर उसके आगे एक सूखी रोटी फेंक दी. कुत्ता भी रोटी देख उसे सूंघ कर अलग हो गया. उसे शायद बिस्किट की तमन्ना थी, जो इस वक़्त उसके नसीब में नहीं थे. यमुना की भूख और ग़ुस्सा दोनों ही अपनी चरम सीमा पर थे. वह उठी और वापस काम पर जाने लगी.
तभी पार्वती ने पूछा, “क्या हुआ यमुना खाना क्यों नहीं खा रही है? अरी बोल ना क्या हुआ?”
“सूखे टिक्कड़ भेजे हैं माई ने, कैसे खाऊं? सूखे टिक्कड़ को देखकर तो वह कुत्ता भी भाग गया, फिर भला मैं कैसे खाऊं?”
“अरी आ जा मेरे पास चटनी और थोड़ी साग भी है, खाएगी?”
“नहीं पारो तू खा ले मेरा पेट भरा है, जाती हूं काम पर.”
कड़ी धूप में पसीना बहता रहा, यमुना काम करती रही. सूरज को भी मानो उस पर दया आ गई, तो वह भी धीरे-धीरे अपने तापमान पर नियंत्रण करके ढलने लगा. शाम होने आई अपनी दहाड़ी पूरी करके यमुना जब शाम को घर पहुंची, तो उसकी माई ने पूछा, “यमुना, बड़ी थकी-थकी लग रही है? क्या बात है आज काम ज़्यादा पड़ गया क्या?”
यमुना ने ग़ुस्से में जवाब नहीं दिया.
उसकी माई ने अधिक ध्यान ना देते हुए उसका डिब्बा धोने के लिए उठाया और बाहर चली गई. डिब्बा खोलते ही उसने देखा, खाना तो जस का तस रखा है. वह वापस आई और यमुना से पूछा, “यमुना, खाना क्यों नहीं खाया? इसीलिए ऐसी लग रही है. मुंह उतर गया है. क्या हुआ है तुझको?”
“क्या खाती माई, सूखी रोटियां? साग क्यों नहीं बनाई? इतना तो कमा कर लाती हूं, खाने के लिए तो पैसा कम नहीं पड़ सकता.”
“यमुना अब से तो ऐसा ही खाना मिलेगा.“
“यह क्या कह रही हो मांई? क्यों ऐसा खाना मिलेगा? एक ही दिन में महंगाई इतनी बढ़ गई कि साग लेने के लिए भी पैसा नहीं है?”
“अरी नाराज़ी ना दिखा, तेरे बापू ने तेरा ब्याह तय कर दिया है. बहुत अच्छा लड़का है. कमाता भी ठीक-ठाक है। दहेज में उसके मांई-बाप डेढ़ लाख रुपया मांग रहे हैं, देना तो पड़ेगा. कौड़ी-कौड़ी बचाएंगे तभी तो इकट्ठा होगा ना. छह-सात महीने का समय है हमारे पास. तब तक हमें उतना पैसा जोड़ना पड़ेगा. साहूकार के पास से थोड़ा कर्ज़ा ले लेंगे.”
“यह क्या कह रही हो माई, इतना सारा दहेज मांग रहा है और तुम कह रही हो अच्छा लड़का है? उसे लड़की भी चाहिए और साथ में पैसा भी? मना कर दो, मैं ऐसे लड़के के साथ ब्याह हरगिज़ नहीं करूंगी, जिसकी नीयत में दहेज की दौलत हो. उसके बाजू में ताक़त नहीं है क्या अपनी जोरू को कमाकर खिलाने की?”

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बापू बिस्तर पर हैं, तुमसे काम होता नहीं. तुम दोनों का क्या होगा? कर्ज़ का ब्याज भरते-भरते ज़िन्दगी बीत जाएगी. ये साहूकार भी कम लालची नहीं होते. हम जैसों को कर्ज़ा देकर ही अपना घर चलाते हैं. कामकाज होता नहीं है उनसे. गरीबों की मेहनत का खून चूस-चूस कर ही पलते हैं ये. दहेज लेने वाले भी इन्हीं के भाई-बंधु होते हैं. जो अभी पैसा मांग रहे हैं, क्या वह बाद में मुझे तुम्हारे लिए कुछ भी करने देंगे? नहीं माई नहीं, मुझे ब्याह करना ही नहीं है.”
“अरी पगली है क्या तू? दहेज के बिना रिश्ते नहीं होते. तूने अभी दुनिया देखी ही कहां है. ब्याह तो सभी को करना पड़ता है. बेटी को घर के खूंटे से बांध कर तो नहीं रख सकते ना? तू हमारी चिंता ना कर, मैं जैसे-तैसे दो जून की रोटी का जुगाड़ तो कर ही लूंगी.”
“मैंने कह दिया ना माई, ऐसे लालची परिवार में मैं रिश्ता कभी नहीं करूंगी.”
“ऐसी बातें ना बोल यमुना. तू क्यों भूल रही है बड़े-बड़े लखपतियों की छोरियां भी जब शादी के मंडप में बैठती हैं ना, उसके पहले ही क़रार हो जाता है. लाखों के सौदे होते हैं, यही रीत है.”
“होते होंगे लाखों के सौदे, उन छोरियों के मन में भी दहेज लेकर जाने की चाह रहती होगी. मैं वैसी नहीं हूं माई. वैसे भी मुझे भिखारी लड़के से ब्याह नहीं रचाना.”
“अरी यमुना दहेज तो उसके माई-बाप मांग रहे हैं. लड़के को काहे कोस रही है.”
“अच्छा मतलब वह अपने लड़के को बेच रहे हैं, डेढ़ लाख रुपए में. उन्हें कह दो हमें यह सौदा मंज़ूर नहीं.”
माई ने यमुना को हर तरह से समझाने की कोशिश की, किंतु यमुना की ना हां मैं ना बदली.
यमुना ने कहा, “माई कल से साग बनाना मत भूलना.”
“ठीक है.” कहकर माई अपना काम करने लगी.
वह हर रोज़ थोड़ा-सा साग बनाकर यमुना के डिब्बे में रख देती और बाकी कच्चा उठाकर गीले कपड़े में रखकर छुपा देती. माई और बापू तो अभी भी यमुना की चोरी से सूखी रोटी, प्याज़ के साथ खा कर पानी पी लेते. यमुना को एक दिन तबीयत ख़राब लग रही थी, इसलिए वह खाने की छुट्टी में मालिक को बोल कर घर आ गई. उसने सोचा आज माई-बापू के साथ घर पर ही खाना खाऊंगी, पर घर में घुसते ही उसने देखा माई और बापू प्याज़ और नमक के साथ रोटी खा रहे थे. यह देखकर यमुना की आंखें आंसुओं से भीग गईं और वह उन दोनों के सामने आकर घुटनों के बल बैठ गई.
माई और बापू उसे देखकर हैरान रह गए. माई ने कहा, “अरे यमुना, तू इस वक़्त?”
यमुना की आंखों से आंसू टपक कर उनकी थाली में जा गिरा. यमुना कुछ भी बोल नहीं पा रही थी, लेकिन उसकी आंखें सब कुछ बोल रही थीं. उसके आँसू देख कर माई और बापू के आंसू भी बह निकले.
बापू ने कुछ बोलने के लिए मुंह खोला, तो यमुना ने उनके मुंह पर अपनी उंगली रख दी और अपने घुटनों को नीचे कर पालथी मार कर उनके पास बैठ गई. यमुना ने अपना डिब्बा खोला और उसमें से साग निकाल कर अपने हाथों से उन्हें पूरा खाना खिलाया. इस समय कोई किसी से कुछ नहीं कह पा रहा था.
यमुना के मन में केवल यही विचार आ रहा था कि उसका यह फ़ैसला कितना सही था कि वह दहेज देकर ब्याह नहीं करेगी, वरना उसके माई-बापू को शायद जीवनभर नमक के साथ ही रोटी खाना पड़ती. उसके बाद उसने माई से कहा, “माई दो-दो पैसे बचाकर साग के बिना रोटी खाकर आप डेढ़ लाख कभी इकट्ठे ना कर पाओगी, बस मेरा दिल दुखाओगी. तुम्हें मेरी क़सम आज के बाद फिर कभी ऐसा किया तो.”
“ठीक है यमुना तू जीती और मैं हारी.”
उसके बाद भी यमुना के लिए कई रिश्ते आते रहे, लेकिन हर जगह बात दहेज पर आकर अटक जाती. यमुना अपनी ज़िद पर अड़ी ही रही.

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वह अपनी माई से हमेशा एक ही बात कहती थी, “माई दहेज मांगने वालों के लिए मेरे मन में केवल दो ही बातें आती हैं. एक तो यह कि वे लालची हैं और उनका लालच कभी भी ख़त्म नहीं होगा और दूसरी ये कि वे भिखारी हैं अपने दम पर कमाने की शायद उनकी औकात ही नहीं है. माई उनके लिए मेरे मन में मान-सम्मान कभी नहीं आता. तुम ही बोलो माई ऐसे परिवार या ऐसे लड़के से रिश्ता में क्यों जोड़ू, जिसका मैं आदर ही ना कर पाऊं. मुझे मेरे बापू और माई की थाली में सूखी रोटी और प्याज़ नहीं, रोटी के साथ साग, चटनी और अचार भी चाहिए. मैं तो ऐसे लड़के से ब्याह करुगी, जो बिना दहेज लिए मुझसे विवाह करे और मुझे मेरे माई-बापू के लिए रोटी के साथ साग का भी जुगाड़ करने दे, वही होगा मेरा पति."

- रत्ना पांडे

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