कहानी- याददाश्त (Short Story- Yadadasht)

यह सुनकर मां ग़ुस्से से बड़बड़ाई, “ये क्या नया नाटक है. कैसी अजीब बात कर रहे हो? ऐसे गरीबों की तरह शादी करेंगे, तो चार लोग बातें नहीं बनाएंगे… खानदान में क्या इज्ज़त रह जाएगी हमारी?”
“सादगीपूर्ण शादी से इज़्ज़त को बट्टा कैसे लगने लगा मां…”

नीलेश बैठक में आया, तो देखा वहां बैठे सभी लोग आगामी दिनों में उसकी होनेवाली शादी के इंतज़ाम और व्यवस्थाओं पर बड़े उत्साह से चर्चा कर रहे थे. मेन्यू और साज-सजावट पर सब अपनी-अपनी राय बढ़-चढ़कर दे रहे थे.
नीलेश को देखकर उसके पिता कह उठे, “भई, जिसकी शादी है, उसकी मर्ज़ी भी तो पूछ लो.”
अपने पिता की बात सुनकर नीलेश ने तत्परता से कहा, “मेरी तो इच्छा यही है कि मेरी शादी में आडंबरों और दिखावेबाजी पर फिज़ूलख़र्च न हो.” यह सुनकर सब चौंके और फिर यकायक मायूस हो गए.
नीलेश के पिता कुछ असमंजस से बोले, “शादी और दिखावा तो पर्याय है बेटा, जिस समाज में हम रहते हैं उसके हिसाब से चलने के लिए ख़र्चा तो होगा ही.”
पति के पक्ष में नीलेश की मां भी आश्चर्यमिश्रित खीज के साथ बेटे से बोली, “सही कह रहे है तुम्हारे पिता.
भई शादी तो आलीशान ढंग से ही होगी.”
“पर मां मैं शादी बिना तामझामवाली मतलब सादगीपूर्ण ढंग से करना चाहता हूं. कम से कम डेकोरेशन और खाने में भी चार नमकीन और दो तरह का मीठा बस…”
यह सुनकर मां ग़ुस्से से बड़बड़ाई, “ये क्या नया नाटक है. कैसी अजीब बात कर रहे हो? ऐसे गरीबों की तरह शादी करेंगे, तो चार लोग बातें नहीं बनाएंगे… खानदान में क्या इज्ज़त रह जाएगी हमारी?”
“सादगीपूर्ण शादी से इज़्ज़त को बट्टा कैसे लगने लगा मां…”
नीलेश के प्रतिवाद करने पर मां बोली, “औरों की बात तो जाने ही दो, कम से कम हमारे सपनो का ही ख़्याल करो. कब से इस दिन का इंतज़ार था और तुम सादगीभरी शादी का नया शगूफा छोड़ रहे हो.”
मां की नाराज़गी और पिता के धर्मसंकट को देखकर नीलेश बोला, “अच्छा आप लोग नाराज़ मत हो. जैसी शादी आप चाहते हो वैसी ही करूंगा.” यह सुनकर मां के चेहरे पर तुरन्त राहत के भाव आए.
नीलेश ने मुस्कुराते हुए मां के दोनों हाथ थामकर स्नेह से पूछा, “अच्छा अब ये तो बताइए, किसकी शादी की मिसाल रखकर आप मेरी शादी करना चाहती हैं?”
यह सुनकर मां चहककर बोली, “दिल्लीवाली सुलभा जीजी ने अपने बेटे की क्या शानदार शादी की थी. तेरी शादी वैसी ही शानो-शौकत से करूंगी.”
“ह्म्म्म” कुछ क्षण के मौन के बाद उसने मां से प्रश्न किया, “अच्छा बताओ तो उनके यहां की शादी में स्टेज में कौन-से फूलों की सजावट की गई थी?”
“फूल कौन-से थे किसे याद है? मेरे लिए तो गेंदा, गुलाब, टयूलिप और आर्किड सब एक बराबर होते हैं.” मां ने हंसते हुए जवाब दिया.


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“अच्छा तो ये ही बता दो कि टेंट-शामियाना कैसा था?” नीलेश ने फिर पूछा, तो मां ने नीलेश के पिता की ओर देखा.
उन्होंने भी कन्धे उचकाकर अनभिज्ञता दिखलाई, तो वह माथे पर शिकन डालकर बोली, “अरे, अब ये सब किसे याद रहता है.”
“फिर यही बता दो कि खाने में क्या-क्या बना था?”
अब तो मां झुंझलाकर बोली, “शादी में खाया-पिया और लिया-दिया कभी किसी को याद रहता है?”
“बस, यही तो आप लोगों को समझाने की कोशिश कर रहा हूं.” नीलेश के कहते ही सब एक-दूसरे का मुंह ताकने लगे.
मां ने नीलेश के पिता की आंखों में देखा. सहसा उन दोनों में आपसी मूक सहमति बनती दिखी. बैठक में छाई निस्तब्धता को नीलेश की मां ने यह कहते हुए तोड़ा, “लोगों की याददाश्त वाकई हमारी तरह ही होगी. ठीक है फिर जैसी तेरी मर्ज़ी… चार नमकीन और दो मीठे में क्या बनवाया जाए यह तुम लोग तय कर लो.”
पिता ने सिर हिलाकर पत्नी की बातों पर सहमति ज़ाहिर की, तो नीलेश का चेहरा ख़ुशी से खिल गया. शादी की व्यवस्थाओं को लेकर एक नई चर्चा नई सोच के साथ फिर से आरंभ हो गई.

मीनू त्रिपाठी

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Usha Gupta

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