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पीठदर्द की वजह जानने के लिए कराइए स्पाइन फंक्शन टेस्ट (Spine function test to detect clear cause of back pain)

हममें से ज़्यादातर लोग कभी न कभी पीठदर्द (Backaches) की समस्या का सामना करते हैं. यह समस्या इतनी सामान्य हो गई है कि अब पेनकिलर्स का असर भी कम होने लगा है. फिज़ियोेथेरेपी भी मनचाहे परिणाम नहीं दे रही है. ऐसे में समस्या गंभीर होने पर स्पाइन सर्जरी कराने की सलाह दी जाती है. स्पाइन सर्जरी से बचने में स्पाइन फंक्शन टेस्ट (Spine Function Test) बहुत असरकारी होता है. कैसे? आइए जानते हैं.

हार्वर्ड मेडिकल रिव्यू द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार, सामान्य पीठदर्द को ठीक करने की प्रक्रिया में कम से कम 52 दिन लग जाते हैं. पीठ दर्द के 90 फ़ीसदी केसेज़ में कारण बेहद सूक्ष्म होते हैं. एक्स-रे और एमआरआई से स़िर्फ स्ट्रक्चरल समस्याओं का पता चल पाता है, लेकिन पीठदर्द के सही कारण का पता नहीं चल पाता है. ऐसे में डीएसए जैसे स्पाइन फंक्शन टेस्ट की मदद से पीठदर्द के सही कारणों का पता लगाया जाता है. फलस्वरूप डॉक्टरों को सही ट्रीटमेंट प्लान बनाने में आसानी होती है.

स्पाइन फंक्शन टेस्ट क्यों ज़रूरी है?
हमारी रीढ़ की हड्डी चार मुख्य चीज़ों-बोन्स, डिस्क, नर्व्स और सॉफ्ट मसल टिशूज़ से बनी होती है. हमारे शरीर का 70 फ़ीसदी भार सॉफ्ट मसल टिशूज़ उठाते हैं और 30 फ़ीसदी भार डिस्क, बोन और दूसरे अंग उठाते हैं. जब सॉफ्ट टिशूज़ कमज़ोर हो जाते हैं तो वे शरीर का बोझ उठाने में असमर्थ हो जाते हैं और भार हड्डियों पर आ जाता है, जिसके कारण कई तरह की समस्याएं होती हैं. उठने-बैठने व चलने-फिरने में भी समस्या होती है. स्पाइन फंक्शन टेस्ट करने पर पता चलता है कि किस सॉफ्ट टिशूज़ के कारण समस्या हो रही है. इस टेस्ट की मदद से पता चल जाता है कि कौन-से मसल्स कमज़ोर हैं और उसी के अनुसार मरीज़ समस्याग्रस्त मसल्स का इलाज करा सकते हैं.

सबसे सटीक टेस्ट
डिजिटल स्पाइन एनालिसिस सबसे पहला व सटीक स्पाइन फंक्शन टेस्ट है, जिसे मेडिकल क्षेत्र में पूरी मान्यता प्राप्त है. जैसे दिल संबंधी बीमारियों की जानकारी के लिए स्ट्रेस टेस्ट किया जाता है, उसी तरह रीढ़ संबंधी समस्या का पता लगाने के लिए इस टेस्ट का सहारा लिया जाता है. डिजिटल स्पाइन एनालिसिस की मदद से यह पता लगाया जाता है कि सॉफ्ट टिशूज़ मसल्स शरीर का कितना भार उठा सकते हैं और रीढ़ की हड्डी को कितना सपोर्ट कर सकते हैं.

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इस टेस्ट में मरीज़ के रीढ़ की हड्डी की 21 तरीक़ों से जांच की जाती है. जिससे इस बात का पता चल जाता है कि कौन-सा टिशू कमज़ोर है और किस हड्डी पर अतिरिक्त भार आ रहा है. यह टेस्ट पांच कंप्यूटर द्वारा नियंत्रित यंत्रों और सेंसर्स की मदद से किया जाता है. समस्या के कारण का पता चल जाने पर जिस भाग में परेशानी हो, उसे ही ट्रीट किया जाता है. डिजिटल स्पाइन एनालिसिस जैसे स्पाइन फंक्शन टेस्ट की मदद सेे मरीज़ों को समय रहते समस्या के मूल कारण का पता चल जाता है, जिससे इलाज में आसानी होती है.

यह टेस्ट सर्जरी से कैसे बचाता है?
समस्या के मूल कारण का पता चल जाने पर डॉक्टर को ट्रीटमेंट प्लान करने में आसानी होती है. ऐसे में सर्जरी से बचने की संभावना ज़्यादा होती है. स्पाइन रिहैबिलिटेशन जैसे कंज़र्वेटिव ट्रीटमेंट का सक्सेस रेट 90 फ़ीसदी से ज़्यादा है.

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Shilpi Sharma

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