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बाल मज़दूरी… कब तक और क्यों? (Child labor … how long and why?)

 

अक्सर देखा है उन मासूम आंखों में सपनों को मरते हुए… रोज़ाना, हर दिन, हर पल… एक ख़्वाब को धीरे-धीरे दम तोड़ते हुए… अपने आस-पास ही रोज़ उन डूबते सपनों की सिसकियां हम सुनते हैं… कभी सिगनल पर नन्हें हाथों में फूल बेचते हुए… तो कभी कोई खिलौना, कोई क़िताब बेचते हुए ये बच्चे रोज़ अपनी रोटी का जुगाड़ करते नज़र आते हैं और हम इन्हें हिकारत की नज़र से देखकर मुंह मोड़ लेते हैं… इनका कुसूर स़िर्फ इतना है कि ये मजबूर हैं, क्योंकि ये बाल मज़दूर हैं.

जी हां, बाल मज़दूर का अर्थ यूं तो हर देश, हर समाज, हर क़ानून अपनी तरह से लगाता है, लेकिन हमारी नज़र में हर वो बच्चा, जो अपना बचपन खोकर स़िर्फ रोटी के जुगाड़ में लगा रहता है, जो स्कूल नहीं जा सकता, जो सपने नहीं देख सकता और जो अपने हक़ के लिए लड़ नहीं सकता, बाल मज़दूर है. दुख की बात है कि भारत में बाल मज़दूरी विश्‍व में सबसे अधिक है.

क्यों होती है बाल मज़दूरी?

– ग़रीबी, अशिक्षा और पारिवारिक व सामाजिक असुरक्षा इसका सबसे बड़ा कारण है.

– शहरों में जिस तरह से घरेलू नौकर के रूप में बच्चों से काम करवाने का चलन बढ़ा है, वो चलन अब बेलगाम हो चुका है.

– कहने को तो चाइल्ड लेबर एक्ट है, लेकिन हम अपने आसपास ही देखते हैं कि छोटे-छोटे होटलों, ढाबों या गैराज में बच्चों से कितना काम करवाया जाता है, क्योंकि क़ानून में इस तरह के प्रावधान हैं कि इन जगहों पर बच्चों से आसानी से काम करवाते हुए भी क़ानून के शिकंजे से दूर रहा जा सकता है.

– यही नहीं, कई ऐसे काम हैं, जो बच्चों के लिए ख़तरनाक हैं और जहां बच्चों के काम करने पर पूरी तरह से पाबंदी है, लेकिन वहां भी ग़ैरक़ानूनी तरी़के से बच्चों से काम करवाया जाता है.

– इन जगहों पर अमानवीय हालातों में इन बच्चों से 14-16 घंटों तक लगातार काम करवाया जाता है. इसके अलावा घरों में भी जो बच्चे काम करते हैं उन पर भी कई तरह ज़्यादती होती हैं, जैसे- खाना न मिलना, पैसे न मिलना, हिंसक व्यवहार, यौन शोषण आदि. लेकिन फिर भी यह सिलसिला थम नहीं रहा.

– दरअसल, यह एक आर्थिक व सामाजिक समस्या है, जिसका निवारण स़िर्फ क़ानून नहीं कर सकता.

– 14 साल से कम उम्र के बच्चों से काम करवाना क़ानूनन अपराध है, लेकिन फिर भी हम बहुत ही कम उम्र के बच्चों को अपने आसपास काम करते देखते हैं.

– बच्चों के रूप में सस्ते लेबर मिल जाते हैं.

– बच्चों का शोषण आसान होता है.

– उन्हें डराया-धमकाया जा सकता है.

– वो विरोध नहीं कर पाते. इन्हीं सब वजहों से बाल मज़दूरी ख़त्म नहीं हो रही.

– ग़रीब व अशिक्षित लोग ख़ुद मजबूर होते हैं. वो बच्चों को स्कूल भेजना अफॉर्ड नहीं कर सकते, उनके लिए जो बच्चा दिनभर कुछ काम करके थोड़े-से पैसे घर ले आए, वही काम का है.


एक्ट का इफेक्ट?

क्या कहता है क़ानून? क्या हैं प्रावधान और कहां कमियां रह गई हैं… इन तमाम बातों की जानकारी दे रहे हैं बॉम्बे हाइकोर्ट के सीनियर लॉयर एडवोकेट योगेश धनेश भारद्वाज.

– चाइल्ड लेबर एक्ट (प्रॉहिबिशन एंड रेग्युलेशन) 1986 के तहत 14 वर्ष तक की उम्र के बच्चे ख़तरनाक माने जानेवाले कामों व जगहों में काम नहीं कर सकते. ये ख़तरनाक काम कौन-कौन से हैं, इसकी लिस्ट में समय-समय पर संशोधन व विस्तार वर्ष 2006 व वर्ष 2008 में हुआ है.

– इससे पहले द फैक्टरीज़ एक्ट 1948 में 14 साल से कम आयु के बच्चों को किसी भी फैक्ट्री में काम करने से मनाही है. इस क़ानून में ये भी नियम बनाए गए हैं कि कौन, किस तरह से और कितने समय के लिए प्री एडल्ट्स (15-18 वर्ष की आयुवाले) को फैक्ट्री में काम करवा सकता है.

– द माइन्स एक्ट 1952 भी महत्वपूर्ण है. यह क़ानून 18 वर्ष की कम आयु के बच्चों को खदानों में काम करने से प्रतिबंधित करता है.

– द जुवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटेक्शन) ऑफ चिल्ड्रन एक्ट 2000 के तहत बच्चों का ख़तरनाक कामों में संलिप्त होना अपराध माना जाएगा. इसमें उन लोगों के लिए सज़ा का भी प्रावधान है, जो बच्चों को इन कामों के लिए मजबूर करते हैं या बच्चों से बंधुआ मज़दूरी करवाते हैं.

– द राइट ऑफ चिल्ड्रन टु फ्री एंड कंपल्सरी एजुकेशन एक्ट 2009 में 6 से 14 वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों को शिक्षा के अधिकार का आदेश दिया है. इसके अलावा इसमें यह भी आदेश है कि सभी प्राइवेट स्कूलों में 25% सीटें ग़रीब तबके व शारीरिक रूप से असक्षम बच्चों के लिए रखी जाएंगी.

कितना कमज़ोर है क़ानून?
क़ानून भले ही बन जाते हैं, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण होता है उन्हें लागू करवाना. विभिन्न विभागों में आपसी समन्वय की कमी से क़ानून लागू नहीं हो पाते. दूसरी तरफ़ बच्चों के पैरेंट्स ही ख़ुद नहीं चाहते कि उनके बच्चे का काम छूटे, क्योंकि उनकी रोज़ी-रोटी का ज़रिया कम हो जाएगा. चूंकि क़ानून में प्रावधान है कि बच्चे परिवार के काम (खेती या अन्य व्यवसाय आदि) में हाथ बंटा सकते हैं, तो इसका फ़ायदा आराम से उठाया जाता है, जिसके चलते बाल मज़दूरी ख़त्म होने का नाम नहीं ले रही.
इसके अलावा बाल मज़दूरी से रिहा हुए बच्चों के पुनर्वसन को लेकर भी अब तक काफ़ी उदासीनता बनी रही, जिस वजह से समस्या का समाधान नहीं हो पा रहा.
हालांकि अब सरकार मन बना रही है कि 14 वर्ष की आयु तक के बच्चों पर पूरी तरह से काम करने पर रोक लगा दी जाए, तो इस संदर्भ में एडवोकेट योगेश कहते हैं कि जहां तक क़ानून में संशोधन की बात है, तो इसमें कोई बुराई नहीं, लेकिन सवाल यह है कि क्या इस बदलाव या संशोधन से वाकई कोई बदलाव आएगा? यहां भी फैमिली बिज़नेस या एंटरटेनमेंट से जुड़े कामों को करने की छूट तो मिल ही रही है, जिस वजह से बच्चों को बचाने और पढ़ाने की मुहिम प्रभावित ज़रूरी होगी.
मेरा स़िर्फ यही मानना है कि जहां तक बच्चों की सुरक्षा और अधिकारों की बात हो, वहां कोई समझौता या शर्त नहीं होनी चाहिए.
हर बच्चे को शिक्षा का और अपने पैरेंट्स के साथ रहने का पूरा अधिकार है और हमें हर शर्त पर उनके इन अधिकारों की रक्षा करनी ही चाहिए.
बावजूद इसके नए संशोधित क़ानून में कई सकारात्मक बातें भी हैं, जैसे अब तक तो 1986 के क़ानून के तहत ख़तरनाक जगहों पर काम करने पर स़िर्फ 14 साल से कम आयु के बच्चों पर ही रोक थी, लेकिन अब 15-18 साल की उम्र के बच्चों को भी इस श्रेणी में लाया गया है. यह बहुत ही अच्छा संकेत है. इसके अलावा और भी अच्छा प्रस्ताव है कि अब राज्य सरकार बाल मज़दूरी से बचाए गए बच्चों के पुनर्वसन के लिए अतिरिक्त निधि (चाइल्ड एंड एडॉलसेंट लेबर रिहैबिलिटेशन फंड) भी प्रदान करेगी.

बाल मज़दूरी का प्रभाव

जो बच्चे इसे झेलते हैं, उन पर इसका शारीरिक, मानसिक व भावनात्मक प्रभाव पड़ता ही है.

– इन बच्चों को सामान्य बचपन नहीं मिलता.

– कुपोषण का शिकार होते हैं.

– अमानवीय व गंदे माहौल, जैसे- पटाखा बनाने के कारखानों, कोयला खदानें आदि में काम करने पर इनका स्वास्थ्य ख़राब होता है.

– कमज़ोरी के कारण ये जल्दी बीमार पड़ते हैं.

– ज़री के काम, डायमंड इंडस्ट्री, सिल्क इंडस्ट्री व कार्पेट बनाने के कामों में भी अधिकतर बच्चे ही जुटे रहते हैं, जहां इनसे लगातार कई घंटों तक काम करवाया जाता है, जिससे इनके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है.

– घरेलू काम करनेवाले बच्चों की हालत भी कोई बहुत अच्छी नहीं होती. उनकी उम्र व क्षमता से अधिक उनसे काम करवाया जाता है.

– मानसिक रूप से भी यह सामान्य बच्चों की तरह नहीं रह पाते. अशिक्षा की वजह से इनका पूरा भविष्य ही अंधकारमय हो जाता है.

एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में काम कर रहे बच्चे क्या बाल मज़दूर माने जाएंगे?

इस विषय पर काफ़ी बहस पहले ही की जा चुकी है. कुछ लोगों का यह मानना है कि उन पर रोक लगाने से आप उनके टैलेंट को भी दबा देंगे, क्योंकि जिन बच्चों में हुनर है, उसे बचपन से ही बढ़ावा न दिया गया, तो यह भी उनके साथ अन्याय ही होगा.
क़ानून में संशोधन के प्रयास पिछले काफ़ी समय से किए जा रहे हैं, लेकिन ये बिल पेंडिंग ही रहा, लेकिन अब इसे लागू करने का प्रयास फिर से हो रहा है. इसमें एंटरटेनमेंट से जुड़े क्षेत्र के बच्चों की वर्किंग कंडिशन और टाइम को भी नियंत्रित व बेहतर बनाने पर ज़ोर दिया गया है, जिससे बच्चों पर बोझ भी न पड़े और उनका टैलेंट भी प्रभावित न हो.

– गीता शर्मा

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