कहानी- आईना 1 (Story Series- Aaina 1)

“आत्मनिर्भर? मैं पैसे नहीं कमाती, इसलिए कह रहे हो. अच्छी-ख़ासी डिग्री है मेरे पास. चाहूं तो मैं भी कमा सकती हूं, पर तुम्हीं नहीं चाहते.” रिनी उसकी बात समझे बिना, बातचीत का रुख मोड़ते हुए बोली. श्रीयंत का दिल किया, फट पड़े. ‘एक स्कूटी-कार सीखने के लिए समय नहीं है. घर-बाहर के काम हो नहीं पाते. नौकरी करना क्या आसान है?’ पर यथासंभव स्वर को शांत रखकर बोला, “यह मैंने कब कहा? आत्मनिर्भरता का मतलब स़िर्फ पैसा कमाना ही नहीं होता. स्कूटी या कार ड्राइविंग आने से बाहर के सभी काम तुम ख़ुद कर सकोगी. इन बातों में आत्मनिर्भर होना आज की गृहिणी के लिए कितना आवश्यक है. एक पति को कितनी मदद मिलती है इससे. आजकल तो माता-पिता ही शादी से पहले यह सब सिखा देते हैं लड़कियों को.”

रात के आठ बजनेवाले थे. श्रीयंत सड़क की भीड़ से उलझा हुआ कार ड्राइव करता हुआ ऑफिस से घर जा रहा था, पर दिमाग़ में विचारों का घमासान व दिल में भावनाओं की उठापटक जारी थी. ऑफिस में रिनी का फोन आया था कि कियान की तबीयत ठीक नहीं लग रही. डॉक्टर को दिखाना पड़ेगा, पर चाहते हुए भी वह जल्दी नहीं निकल पाया था. बॉस ने छह बजे मीटिंग रख ली थी.

अति व्यस्त नौकरी और घर-गृहस्थी की गाड़ी पटरी पर बिठाते-बिठाते कभी-कभी उसका हृदय अत्यधिक खिन्न हो जाता था. कार पार्किंग में लगाकर, अपने फ्लैट पर पहुंचकर उसने घंटी बजा दी. रिनी जैसे तैयार ही बैठी थी. दरवाज़ा खोलते ही शुरू हो गई.

“अब आ रहे हो? बच्चे की भी चिंता नहीं है तुम्हें. हर समय बस नौकरी-नौकरी. अगर बच्चे को कुछ हो गया, तो क्या करोगे इस नौकरी का?”

घर आकर उसको पानी भी नहीं पूछा था. दिनभर क्लांत तन-मन रिनी के उलझने से उबल पड़ने को बेचैन हुआ. दिल कर रहा था कपड़े बदलकर, एसी और पंखा चलाकर बिस्तर पर लेट जाए, पर कियान को डॉक्टर को दिखाना ज़रूरी था. उसने कियान का माथा छुआ. बुख़ार से तप रहा था.

“चलो, जल्दी चलो.” वह बिना रिनी की बात का जवाब दिए बाहर निकल गया.

डॉक्टर के पास से वापस आए, तो दिल और भी खिन्न हो गया. पांच वर्षीय कियान को वायरल हो गया था. मतलब कि अगले कुछ दिन व्यस्त से भी व्यस्ततम निकलनेवाले थे.

“रिनी तुम ड्राइविंग क्यों नहीं सीखतीं? कार नहीं, तो स्कूटी ही सीख लो. कई मुश्किलें आसान हो जाएंगी.” एक दिन श्रीयंत रिनी का मूड अच्छा देखकर बोला था.

“घर-गृहस्थी व बच्चा संभालूं या फिर…किस समय जाऊं सीखने तुम्हीं बताओ?”

“सीखने की इच्छा रखनेवालों को पूछना नहीं पड़ता. वो समय निकाल ही लेते हैं.” श्रीयंत भन्नाकर बोला.

“तुम तो बस हवा में बातें करते हो. मुझे नहीं सीखना और सीखने की ज़रूरत क्या है?”

“ज़रूरत तो बहुत है. छोटे-छोटे कामों के लिए मेरा मुंह देखती हो. आजकल महिलाएं कितनी आत्मनिर्भर हैं.”

“आत्मनिर्भर? मैं पैसे नहीं कमाती, इसलिए कह रहे हो. अच्छी-ख़ासी डिग्री है मेरे पास. चाहूं तो मैं भी कमा सकती हूं, पर तुम्हीं नहीं चाहते.” रिनी उसकी बात समझे बिना, बातचीत का रुख मोड़ते हुए बोली.

यह भी पढ़ेरिश्तों में बदल रहे हैं कमिटमेंट के मायने… (Changing Essence Of Commitments In Relationships Today)

श्रीयंत का दिल किया, फट पड़े. ‘एक स्कूटी-कार सीखने के लिए समय नहीं है. घर-बाहर के काम हो नहीं पाते. नौकरी करना क्या आसान है?’ पर यथासंभव स्वर को शांत रखकर बोला, “यह मैंने कब कहा? आत्मनिर्भरता का मतलब स़िर्फ पैसा कमाना ही नहीं होता. स्कूटी या कार ड्राइविंग आने से बाहर के सभी काम तुम ख़ुद कर सकोगी. इन बातों में आत्मनिर्भर होना आज की गृहिणी के लिए कितना आवश्यक है. एक पति को कितनी मदद मिलती है इससे. आजकल तो माता-पिता ही शादी से पहले यह सब सिखा देते हैं लड़कियों को.”

“मेरे पिता ने अच्छा-ख़ासा दहेज दिया था. कार ड्राइविंग नहीं सिखाई तो क्या? कार तो दी थी.” रिनी चिढ़कर बोली.

“उफ़्फ्! तुम्हारे पिता और तुम्हारा दहेज. मांगा किसने था. आजकल इस दहेज की ज़रूरत नहीं होती. ज़रूरत है लड़कियों को ज़माने के अनुसार अंदर-बाहर के कामों के लिए परफेक्ट बनाना, कोरी डिग्री लेना नहीं.तुम्हें ड्राइविंग नहीं आती, सीखना भी नहीं चाहतीं, इसलिए बाहर के छोटे-से-छोटे कामों के लिए मुझ पर निर्भर रहती हो.”

अस्पताल से घर आते, ड्राइव करते हुए श्रीयंत यही सब सोच रहा था. अगर आज रिनी ख़ुद ही समय से कियान को डॉक्टर को दिखा लात, तो न उसकी तबीयत ज़्यादा ख़राब होती और न उसे ऑफिस से घर आकर इस कदर परेशान होना पड़ता.

पर रिनी जैसी लाड़-प्यार में पली लड़कियों की बात ही अलग है. नाज़ुक इतनी कि गृहस्थी भी ठीक से नहीं संभाल पाती. नकचढ़ी इतनी कि रिश्तेदारों या सास-ससुर को पास नहीं फटकने देती और शान-बान इतनी कि घर-बाहर के काम करने में नानी याद आती है. डिग्री भी इस लायक नहीं कि इतना कमा सके कि कोई बहुत अधिक आर्थिक मदद मिल सके.

घर पहुंचकर दिनभर का थका-मांदा श्रीयंत कपड़े बदलकर बिस्तर पर लेट गया. रिनी कियान के साथ थी, पर श्रीयंत के दिमाग़ में अभी भी विचारों का टहलना लगातार जारी था.

छह साल हो गए हैं उसके विवाह को. जब उसके विवाह की बात चली, तो पत्नी के रूप में उसने, एक शिक्षित गृहिणी की ही कामना की. यही सोचकर कि घर व बच्चे संभालना भी एक पूर्णकालिक काम यानी फुल टाइम जॉब ही है और उसकी पत्नी घर संभालेगी, तो वह उसे पूरा तवज्जो व सम्मान देगा, जो उसने अभी तक किसी गृहिणी को मिलते नहीं देखा था.

   सुधा जुगरान

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