कहानी- आईना 2 (Story Series- Aaina 2)

वह घर-बाहर, आजकल की स्वतंत्र व स्वच्छंद युवतियों के नए विचार सुनता व पढ़ता था. जिन्हें विवाह एक ग़ुलामी से अधिक कुछ नज़र नहीं आता था. आख़िर क्यों करें वे विवाह? विवाह करने व बच्चे पैदा करने में उन्हें अपने जीवन की सार्थकता नज़र नहीं आती थी.

लेकिन जब वह अपने जैसे युवकों के बारे में सोचता है, तो पूछना चाहता है कि उनके जीवन की कौन-सी सार्थकता है विवाह करने में? क्यों करें वे विवाह? क्यों पिसें वे गृहस्थी की चक्की में? अच्छा कमाते हैं, तो क्यों न रहें स्वच्छंद? आख़िर क्यों बनें वे कोल्हू के बैल… क्यों बांधें गले में घंटी?

पर इन छह सालों में वह ऊब-सा गया था अपने वैवाहिक जीवन से. नौकरी में भले ही बहुत व्यस्तता थी, पर वह एक सम्मान व संतोषजनक ओहदे पर था.

माता-पिता का इकलौता बेटा होने के नाते वह उनके प्रति अपने कर्त्तव्यों को समझता था और उन्हें पूरा भी करना चाहता था. दीदी विवाह के बाद लंदन चली गई थीं. अपने बच्चों व नौकरी की व्यस्तता में वह भारत कम ही आ पाती थीं, पर बीच-बीच में माता-पिता व सास-ससुर को टिकट भेजकर बुला लेती थीं.

उसके पिता ने काफ़ी कठिनाई व सीमित आय के साथ व मां ने अथक परिश्रम व किफ़ायत से अपनी इच्छाओं को मारकर, उन दोनों भाई-बहन को बहुत अच्छी स्कूलिंग व शिक्षा दी थी. दोनों भाई-बहन की कुशाग्रबुद्धि ने, माता-पिता के सपनों में मनचाहे रंग भर दिए थे, पर इन छह सालों में उसके ख़ुद के सपनों के रंग फीके पड़ने लगे थे.

वह घर-बाहर, आजकल की स्वतंत्र व स्वच्छंद युवतियों के नए विचार सुनता व पढ़ता था. जिन्हें विवाह एक ग़ुलामी से अधिक कुछ नज़र नहीं आता था. आख़िर क्यों करें वे विवाह? विवाह करने व बच्चे पैदा करने में उन्हें अपने जीवन की सार्थकता नज़र नहीं आती थी.

लेकिन जब वह अपने जैसे युवकों के बारे में सोचता है, तो पूछना चाहता है कि उनके जीवन की कौन-सी सार्थकता है विवाह करने में? क्यों करें वे विवाह? क्यों पिसें वे गृहस्थी की चक्की में? अच्छा कमाते हैं, तो क्यों न रहें स्वच्छंद? आख़िर क्यों बनें वे कोल्हू के बैल… क्यों बांधें गले में घंटी? पिछली पीढ़ी तक क्या हुआ, इस फालतू की बहस में वह नहीं पड़ना चाहता था, पर आज के समय में विवाह को अधिकतर लड़कियों की नज़र से ही क्यों देखा जा रहा है? लड़कों की नज़र से क्यों नहीं सोचा जाता, लेकिन किसी से कह नहीं पाता था अपने दिल में उबलते इन विचारों को.

माता-पिता ऋषिकेश के पास एक छोटे-से गांव में रहते थे. रिटायरमेंट के बाद पिता अपने गांव के घर में ही रहने चले गए थे. दोनों भाई-बहन की शिक्षा-दीक्षा के बाद, वे शहर में अपने लिए एक अदद छत बनाने लायक भी नहीं बचा पाए थे.

यह भी पढ़ेकब करें फैमिली प्लानिंग पर बात? (When Is The Best Time To Discuss Family Planning?)

वह अपने असहाय माता-पिता को अपने साथ रखना चाहता था, लेकिन रिनी को उनका स्थाई तौर पर रहना पसंद नहीं था. वह हर महीने एक निश्‍चित रक़म उनके लिए भेजना चाहता था, तो रिनी दस ख़र्चे और गिना देती और वह सोचता रह जाता कि क्यों होती है अधिकतर लड़कियों की यह शिकायत कि वे विवाह के बाद अपने माता-पिता की देखभाल नहीं कर पातीं. क्या अधिकतर लड़के कर पाते हैं?

लड़कियां तो फिर भी भावनात्मक दबाव बनाकर अपने मन की करा लेती हैं, पर घर-बाहर व नौकरी में उलझा पति धीरे-धीरे इन बेकार के विवादों से कन्नी काटकर, अपने ही रिश्तों के प्रति उदासीन होने लगता है.

अगले दिन उसे ऑफिस से छुट्टी लेनी पड़ी, क्योंकि कियान की तबीयत बहुत बिगड़ गई थी और वह रिनी को अपनी जगह से उठने भी नहीं दे रहा था. शाम को उसके बचपन का दोस्त शिवम उसका हालचाल लेने आ गया. दोनों दोस्त साथ बैठकर एक-दूसरे को अपना दुखड़ा सुना रहे थे.

“यार तेरा अच्छा है. तूने नौकरीपेशा लड़की से शादी नहीं की.” बातचीत के दौरान शिवम बोला.

“अरे, इसमें क्या अच्छा है. तेरी पत्नी नौकरीवाली है. कम-से-कम इतनी आय तो हो ही जाती है कि तू अपने घरवालों की थोड़ी मदद कर सके. मैं तो चाहते हुए भी नहीं कर पाता हूं.”

“तो मैं कौन-सा कर पाता हूं.” रियाना की नौकरी किस काम की? आमदनी अठन्नी, ख़र्चा रुपया. जो कमाती है, उस पर स़िर्फ अपना ही हक़समझती है. अपने शौक व मौज पर ख़र्च करती है और अपने माता-पिता, भाई-बहन पर ख़र्च करना अपना अधिकार समझती है, पर मैं ऐसा नहीं कर सकता. मुझे तो पूरी गृहस्थी चलानी है. रियाना से सलाह लिए बिना अपनी मर्ज़ी से अपने घरवालों पर ख़र्च भी नहीं कर सकता और न ही उन्हें बुला सकता हूं. रियाना हंगामा खड़ा कर देगी, लेकिन उसके घरवाले जब-तब आ धमकते हैं, मेरे मूड की परवाह किए बिना रियाना उनकी ख़ूब आवभगत करती है. आख़िर घर और किचन पर तो पत्नी का ही पहरा व हक़ होता है न, फिर कमाती भी तो है.” शिवम व्यंग से मुस्कुराया.

“इससे तो अच्छा था नौकरी ही न करती और ठीक से घर संभालती. अब तो नौकरी करके रौब अलग झाड़ती है, ‘एक तुम्हीं थोड़ी न थककर आए हो…’ अब उससे कोई पूछे, ‘चलो, नहीं थकता मैं. छोड़ देता हूं नौकरी. मैं संभालता हूं घर, पर उसकी तनख़्वाह से पूरे ख़र्चे चल जाएंगे क्या?” शिवम एकाएक भन्ना गया.

“सही कह रहा है, पर रिनी चाहे नौकरी नहीं भी करती है, पर इतनी नाज़ुक लड़कियां तो घर भी ठीक से नहीं संभाल पातीं. सब्ज़ी काटने से भी हाथ ख़राब होते हैं. खाना बनाना भी ठीक से नहीं आता. बस थोड़ा-बहुत सुपरविज़न ही हो पाता है. शौक दुनिया भर के हैं, जिसके लिए पैसा चाहिए. नौकरी के साथ-साथ घर में भी उसकी मदद करनी पड़ती है. कभी-कभी तो दिल करता है भाग जाऊं कहीं.” श्रीयंत ने भी दिल की भड़ास निकाली.

सुधा जुगरान

 अधिक अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करें – SHORT STORiES

Usha Gupta

Share
Published by
Usha Gupta

Recent Posts

कहानी- इस्ला 4 (Story Series- Isla 4)

“इस्ला! इस्ला का क्या अर्थ है?” इस प्रश्न के बाद मिवान ने सभी को अपनी…

March 2, 2023

कहानी- इस्ला 3 (Story Series- Isla 3)

  "इस विषय में सच और मिथ्या के बीच एक झीनी दीवार है. इसे तुम…

March 1, 2023

कहानी- इस्ला 2 (Story Series- Isla 2)

  “रहमत भाई, मैं स्त्री को डायन घोषित कर उसे अपमानित करने के इस प्राचीन…

February 28, 2023

कहानी- इस्ला 1 (Story Series- Isla 1)

  प्यारे इसी जंगल के बारे में बताने लगा. बोला, “कहते हैं कि कुछ लोग…

February 27, 2023

कहानी- अपराजिता 5 (Story Series- Aparajita 5)

  नागाधिराज की अनुभवी आंखों ने भांप लिया था कि यह त्रुटि, त्रुटि न होकर…

February 10, 2023

कहानी- अपराजिता 4 (Story Series- Aparajita 4)

  ‘‘आचार्य, मेरे कारण आप पर इतनी बड़ी विपत्ति आई है. मैं अपराधिन हूं आपकी.…

February 9, 2023
© Merisaheli