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कहानी- अब लंदन दूर कहां 3 (Story Series- Ab London Dur Kahan 3)

“… हम अपना जीवन अपने हिसाब से जीते हैं. जब मन होता है, बच्चों से मिलने चले जाते हैं. वे वहां ख़ुश हैं, हम यहां, तो समस्या क्या है अकेले रहने में? वैसे भी आजकल इंटरनेट के कारण दूरियां समाप्त हो गई हैं. जब चाहे बच्चों से बातें कर लो, जब चाहे उनको वेबकैम पर देख लो. मेरी सोच भी यहां आने के बाद ही बदली है.” उन्होंने एक सांस में मेरे सामने अपने जीवन की रूपरेखा खींच दी. “… बढ़ती उम्र के अनुसार शरीर को कोई रोग लग जाता है, तो वे अधिक-से-अधिक डॉक्टर को दिखा देंगे, हर समय हमारा ध्यान तो नहीं रख सकते. ऊपर से इलाज के लिए अनाप-शनाप बेहिसाब ख़र्च करना पड़ता है. यहां तो बीमार पड़ने पर सरकार घर पर निशुल्क नर्स का इंतज़ाम करने के साथ बढ़िया-से-बढ़िया इलाज की भी ज़िम्मेदारी लेती है. इस उम्र में बच्चों के मोह को छोड़कर अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना सबसे ज़रूरी है. वहां बच्चों के साथ रहकर ज़िम्मेदारी निभाने के कारण अपने स्वास्थ्य का ध्यान भी नहीं रख सकते और बीमार पड़ने पर बच्चों पर आश्रित होकर उनके लिए हम बोझ बन जाते हैं. यहां पर रिश्तेदारों के कब, क्यों और कहां... जैसे प्रश्‍नों की बौछार के बिना बहुत मानसिक शांति है. हम अपना जीवन अपने हिसाब से जीते हैं. जब मन होता है, बच्चों से मिलने चले जाते हैं. वे वहां ख़ुश हैं, हम यहां, तो समस्या क्या है अकेले रहने में? वैसे भी आजकल इंटरनेट के कारण दूरियां समाप्त हो गई हैं. जब चाहे बच्चों से बातें कर लो, जब चाहे उनको वेबकैम पर देख लो. मेरी सोच भी यहां आने के बाद ही बदली है.” उन्होंने एक सांस में मेरे सामने अपने जीवन की रूपरेखा खींच दी. उसके बाद भी कई परिवार ऐसे मिले, जिनके बच्चे भारत के अतिरिक्त अन्य देशों में बसे हुए थे, लेकिन वे उनके साथ रहने से अधिक लंदन की सुविधाओं के साथ स्वतंत्र जीवन व्यतीत करना अधिक पसंद करते थे. यह देखकर मुझे आश्‍चर्य के साथ सुखद अनुभूति हुई कि पहले अधिकतर वरिष्ठ लोग अपने बच्चों पर आश्रित रहकर जीवनयापन करते थे, लेकिन नई टेक्नोलॉजी के कारण बच्चों की जीवनशैली में परिवर्तन आने से उनकी अत्यधिक व्यस्तता को स्वीकार करते हुए प्रौढ़ावस्था में बच्चों से अपेक्षा ना रखकर  आत्मनिर्भर रहकर ख़ुशहाल जीवन बिता रहे हैं. लंदन के निवासियों का कहना है, यहां रहकर ना हमें बच्चों के भविष्य की चिंता है, क्योंकि उनके करियर की और निशुल्क चिकित्सकीय सुविधा देना सरकार की ज़िम्मेदारी होती है. ना हमें अपने भविष्य की चिंता है, क्योंकि रिटायरमेंट के बाद हमारे रख-रखाव की ज़िम्मेदारी भी सरकार लेती है. विपरीत इसके भारत में बच्चों के करियर बनाने के लिए भारी फीस और महंगी चिकित्सा के ख़र्चे से ही लोगों का जीवन चिंताग्रस्त ही व्यतीत होता है और उसके बाद भी ना बच्चों के अच्छे भविष्य की और ना ही सही इलाज की गारंटी होती है. यह भी पढ़ेSuccessful लॉन्ग डिस्टेंस रिलेशनशिप के टॉप सीक्रेट्स (Top Secrets Of Successful Long Distance Relationship) लंदन में तीन महीने घूमने-फिरने में, वहां की जीवनशैली की जानकारी लेने में और बच्चों के साथ समय बिताने में कब बीत गए पता ही नहीं चला और लौटने का दिन भी आ गया. बेटा और बहू उदास होने लगे कि हम उनके बिना अकेले भारत में कैसे रहेंगे, तो मैंने कहा, “नितीश, तेरी बेटी अभी दो वर्ष की है, एक वर्ष बाद उसे किस स्कूल में भेजना है, इसकी तुझे चिंता नहीं होगी, क्योंकि घर के पासवाले स्कूल में ही यहां दाख़िला लेना आवश्यक है और ना ही तुझे फीस की चिंता होगी. स्कूल दूर नहीं होने के कारण किसी यातायात के साधन पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा, जिससे समय की बचत होगी और उसकी सुरक्षा के प्रति भी शंकित नहीं रहना पड़ेगा. सबसे अच्छी बात तो यह है कि यहां बच्चों को किताबों के बोझ नहीं उठाने पड़ते. तुम भी ट्रैफिक जाम न होने के कारण ऑफिस से लौटकर थके हुए और चिड़चिड़े से दिखाई नहीं पड़ते, क्योंकि भारत में रहकर यहां की कंपनी में, यहां के समयानुसार काम करने से तुम्हारी जीवनशैली बिगड़ी हुई थी. अब तुम सुबह ऑफिस जाते हो और शाम को लौट आते हो, इसलिए दिनचर्या ठीक हो गई है, जिसका तुम्हारी सेहत पर सकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है. बहू भी मेड रखने के झंझट से मुक्त बिना किसी रोक-टोक के अपनी सुविधानुसार अपनी दिनचर्या निर्धारित करने के लिए स्वतंत्र है. हम माता-पिता को इससे अधिक और क्या चाहिए. तुम लोगों की जीवनशैली से आश्‍वस्त होकर हम लौट रहे हैं. मैं तो तुम लोगों के बिना कभी रहने की कल्पना भी नहीं कर सकती थी, लेकिन यहां के वरिष्ठ नागरिकों के दैनिक क्रिया-कलापों में आत्मनिर्भरता और सक्रियता देखकर हमें भी प्रेरणा मिली है. तुम लोग लंदन में हो, तो हमें भी यहां आने का मौक़ा मिला है और अब लंदन दूर कहां है? सोशल नेटवर्किंग के ज़रिए कभी भी बात कर सकते हैं और वीडियो कॉल करके एक साथ रहने की अनुभूति का भी आनंद ले सकते हैं. वैसे भी भारत से लंदन की हवाई जहाज़ से दूरी ही कितनी है. जब चाहे तुम्हारे पास छह महीने के लिए आ सकते हैं.” मेरी बात सुनकर दोनों आश्‍वस्त हुए. उनके चेहरे पर मुस्कुराहट खिल गई और हम भारत लौटने के लिए एयरपोर्ट के लिए रवाना हो गए.       सुधा कसेरा

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