कहानी- अपने 1 (Story Series- Apne 1)

“राधिका, तेरी तरह सबके पास तो व़क्त नहीं है कि घंटों जाकर लोगों के पास बैठो. इस तरह बैठने से क्या रिश्ते प्रगाढ़ होते हैं. सामनेवाले का भी क़ीमती व़क्त बरबाद करो और ख़ुद अपना भी.” इस बार बड़े भैया की टिप्पणी थी.

“और क्या, घंटों बैठो, पंचायत करो, मुंह से किसी के लिए कुछ उल्टा-सीधा निकल गया तो वह अलग मुसीबत.” बड़ी भाभी भी कहां पीछे रहनेवाली थीं.

“लेकिन, अपनों के लिए तो व़क्त निकालना ही पड़ता है. ज़रूरी नहीं घंटों बैठो. 5 मिनट बैठने से भी आत्मीयता और अपनेपन का सुखद एहसास हो जाता है.”

“रिश्तों की हमें पौधों की तरह देखभाल करनी चाहिए. समय-समय पर उन्हें स्नेह की खाद और प्रेम के जल से सींचते रहना चाहिए. ऐसा ना करने से रिश्तों में प्रीत की सौंधी सुगंध और अपनत्व की भावना धीरे-धीरे ख़त्म होने लगती है और वह भी एक पुष्प की तरह असमय मुरझा जाते हैं.” अपनी भतीजी के विवाह में शामिल होने आई राधिका ने जब यह कहा, तो छोटी भाभी तुरंत बोल पड़ीं- “दीदी, पहले से ज़्यादा अब रिश्तों को सहेजने लगे हैं लोग. अब हर रोज़ सुबह उठते ही व्हाट्सऐप पर गुड मॉर्निंग से लेकर पूरी दिनचर्या का लेखा-जोखा वीडियो सहित गुड नाइट पर जाकर ही ख़त्म होता है.”

“लेकिन भाभी, व्हाट्सऐप पर अपनेपन, स्नेह और प्रेम का सर्वथा अभाव होता है. कुछेक ज़रूरी बातों को छोड़कर वहां स़िर्फ टाइमपास और हास-परिहास का आदान-प्रदान ही होता है, जिसे दिनचर्या का एक अंग समझकर सभी निभाते हैं, एक मशीन की तरह.”

“राधिका, तेरी तरह सबके पास तो व़क्त नहीं है कि घंटों जाकर लोगों के पास बैठो. इस तरह बैठने से क्या रिश्ते प्रगाढ़ होते हैं. सामनेवाले का भी क़ीमती व़क्त बरबाद करो और ख़ुद अपना भी.” इस बार बड़े भैया की टिप्पणी थी.

“और क्या, घंटों बैठो, पंचायत करो, मुंह से किसी के लिए कुछ उल्टा-सीधा निकल गया तो वह अलग मुसीबत.” बड़ी भाभी भी कहां पीछे रहनेवाली थीं.

“लेकिन, अपनों के लिए तो व़क्त निकालना ही पड़ता है. ज़रूरी नहीं घंटों बैठो. 5 मिनट बैठने से भी आत्मीयता और अपनेपन का सुखद एहसास हो जाता है.”

“लेकिन राधिका, बात तो व़क्त की है, आज आदमी के पास व़क्त ही नहीं है. तू ख़ुद देख आज रात को सृष्टि की शादी है और मैं ख़ुद उसका सगा चाचा सुबह ही आया हूं. भैया ने कह ही दिया था अपना व़क्त मत बरबाद करना. उन्होंने सभी को शादी के कार्ड व्हाट्सऐप पर भेज दिए. ऑनलाइन शॉपिंग कर ली, शादी से संबंधित सभी महत्वपूर्ण काम ऑनलाइन ही कर लिए. हल्दी, तेल, संगीत, मेहंदी जैसी सभी रस्में अभी दोपहर में ही निपट जाएंगी. बस, यूं समझो औपचारिकता करनी है और शाम को सभी तैयार होकर मेहमानों की तरह मैरिज हॉल

पहुंचेंगे. जयमाला, डिनर, फेरे, विदाई फिर रिश्तेदारों की विदाई और मैं ख़ुद भी वहीं से अपने परिवार सहित चला जाऊंगा.” छोटे भैया ने उसे पूरा ब्योरा सुना दिया.

यह सुनकर उसे लगा जैसे वो मूर्ख और फालतू थी, जो शादी से हफ़्ते भर पहले ही यह सोचकर आ गई थी कि शादी के कामों में भैया-भाभी का हाथ बंटाएगी. ख़ुद जिसकी शादी है, वह भी शादी से दो दिन पहले ही आई है. उसने उससे बात करने की कोशिश की, तो लैपटॉप पर निगाहें जमाए और उंगलियां चलाती व्यस्त सृष्टि ने बिना उसकी ओर देखे कहा, “सॉरी बुआ, ऑफिस का काम निपटा रही हूं, पेंडिंग नहीं रखना चाहती.”

तभी उसका मोबाइल घनघना उठा. “प्लीज़ श्रेय, स़िर्फ 3 दिन के लिए ही चलेंगे. यार, हनीमून ही तो मनाना है, वहां कोई गृहस्थी थोड़ी बसानी है. अगर लेट हो गए तो मेरा प्रमोशन मारा जाएगा… ओ.के. थैंक्स, लव यू बेबी,” कहकर वह फिर से लैपटॉप में व्यस्त हो गई.

“बेटा, क्या हनीमून भी तुम्हारे लिए मात्र एक औपचारिकता है. जब मेरी शादी हुई थी, तो मैं और तेरे फूफाजी शिमला, कुल्लू और मनाली 8 दिनों के लिए गए थे और वहां से वापस आने का हम दोनों का मन ही नहीं हो रहा था.”

“ओह माई स्वीट बुआ, आप जॉब नहीं करती थीं, फूफाजी भी प्राइवेट नौकरी नहीं करते हैं, इसलिए आप लोगों के पास तो व़क्त ही व़क्त है. लेकिन हमारे पास तो सांस लेने तक का भी टाइम नहीं है.” कहकर वह फिर से लैपटॉप में व्यस्त हो गई.

वह ख़ुद को उपेक्षित-सा महसूस करने लगी. दोपहर में ही रस्में औपचारिक रूप से निभाई जा रही थीं, स़िर्फ फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी में कैद होने के लिए.

यह भी पढ़े: गुम होता प्यार… तकनीकी होते एहसास… (This Is How Technology Is Affecting Our Relationships?)

उसे याद आ गई अपनी शादी की मेहंदी, हल्दी, तेल और भात की रस्में. कितना धूम-धड़ाका, उत्साह, जोश, शोर-शराबा और गीत-संगीत हुआ था. मां को तो फुर्सत ही नहीं मिल रही थी. पूरे घर में चकरघिन्नी की तरह नाच रही थीं. पापा भी दौड़-धूप में व्यस्त थे. कभी मेहमानों की आवभगत, कभी हलवाई, कभी टेंट… न जाने कितने काम थे.

“चलो दीदी, सृष्टि को हल्दी लगा दो.” भाभी ने कहा तो पूरे जोश, उत्साह और लाड़ से सृष्टि के गोरे गालों पर हल्दी मल दी. वह भड़क उठी, “क्या बुआ आप भी. पूरे फेस पर हल्दी लगा दी. ब्यूटीशियन ने मना किया था. स़िर्फ शगुन करना था.”

“सॉरी बेटा.” वह अपमानित-सी हो उठी. उसकी हल्दी पर सभी ने उसको कितनी मल-मलकर हल्दी लगाई थी. वह पूरी पीली हो गई थी. सब कह रहे थे कितना रूप-रंग निखर आया है बन्नो रानी का. दूल्हे राजा तो इसके रूप-रंग पर अपनी जान छिड़क देंगे,” यह सुनकर वह शर्म से लाल हो उठी थी.

डॉ. अनिता राठौर ‘मंजरी’

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Usha Gupta

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