कहानी- अपने 2 (Story Series- Apne 2)

मेरी शादी में तो जैसे ही किसी रिश्तेदार का आगमन होता, मां और पापा दोनों ही दौड़कर उनके आतिथ्य सत्कार में जुट जाते. उनके मान-सम्मान में कोई कमी ना रह जाए इसका वह हर पल ख़्याल रखते थे और यहां… छोटी भाभी कहती हैं आजकल तो पहले से ज़्यादा रिश्ते सहेजे जाते हैं व्हाट्सऐप पर. अब रिश्ते भी ऑनलाइन निभाए जाते हैं. यह कैसा अपनापन है, जिसमें न प्रेम का भाव है, न स्नेह की भावना और न ही आत्मीयता की मिठास है. मात्र एक औपचारिकता और दिखावा है.

जल्दी-जल्दी भात और मेहंदी की रस्म अदायगी हो गई. संगीत के नाम पर डीजे पर नृत्य चलने लगा. सभी एक साथ नाचने लगे. मैंने कहा, “भाभी, शगुन के लिए तो कम-से-कम ढोलक बजवा ही लेतीं.”

“बुआ, ये गली-मुहल्ला या बस्ती नहीं है, पॉश कॉलोनी है. सब हमें गंवार कहेंगे.” भाभी केबोलने से पहले ही भतीजा बोल पड़ा.

मन किया कि कह दूं, अगर ढोलक बजने से गंवारपन झलकता है, तो डीजे पर नशे में धुत नृत्य करते लोग, ये सब क्या है?

अपनी शादी का वह मोहक दृश्य आंखों के सामने तैर गया… “जोगी हम तो लुट गए तेरे प्यार में, जाने तुझको ख़बर कब होगी…” गाने पर जब भाभी नृत्य कर रही थीं, तब पापा ने चुपके से आकर कितने मर्यादित और शालीन व्यवहार से उन पर नोटों की गड्डियां लुटाई थीं.

और यहां तो जैसे छीना-झपटी मची है. एक-दूसरे पर हमला-सा कर रहे हैं. तभी नशे में धुत सृष्टि के ममेरे भाई ने सृष्टि की सहेली का हाथ पकड़कर खींचते हुए कहा, “कम ऑन बेबी, मेरे साथ डांस करो.” वह मना कर रही थी, लेकिन वह भद्दे और अश्‍लील ढंग से उसे डीजे पर खींचने लगा. “वह डांस नहीं करना चाहती, तो उसे क्यों ज़बर्दस्ती खींच रहे हो?”

“आप बीच में क्यों बोल रही हैं बुआ? अगर आपको यह सब अच्छा नहीं लग रहा है, तो प्लीज़ आप यहां से चली जाइए. क्यों रंग में भंग डाल रही हैं आप? आपस का मैटर है सॉल्व कर लेंगे.” भतीजे सूर्यांश ने जब यह कहा, तो मेरी मुट्ठियां क्रोध से भिंच गईं. मैं चुपचाप कमरे में आ गई. किसी ने मुझे बुलाने की ज़हमत नहीं उठाई. भाभी ने भी अपने लाडले की इस बेहूदा हरक़त पर उसे कुछ नहीं कहा. सारी रस्में चलती रहीं. किसी ने मेरी सुध तक नहीं ली.

मेरी शादी की हल्दी पर छोटी बुआ ज़रा-सी बात पर तुनक गई थीं और मुंह फुलाकर बैठ गई थीं. पूरा घर उन्हें मनाने में जुट गया था.

शाम को मैं बाहर निकली, तो देखा ब्यूटीपार्लर से लगभग 5-6 लड़कियां आई हुई थीं, जो रिश्तेदार महिलाओं का मेकअप कर रही थीं.

“दीदी, आप भी मेकअप करा लीजिए.” बड़ी भाभी ने कहा.

“नहीं भाभी, मैं अपने आप तैयार हो जाऊंगी.” कहकर मैं तैयार होने लगी. तभी रवि भी आ गए. उन्हें दोपहर तक आना था, लेकिन ट्रेन लेट हो गई थी.

उनके आगमन पर किसी ने कोई ख़ुशी या उत्साह नहीं दिखाया. बस, बड़ी भाभी ने उनका अभिवादन करते हुए कामवाली को आवाज़ देकर कहा, “सीमा, ज़रा जल्दी से चाय-नाश्ता ले आना…” और साथ ही हल्के-से स्वर में भैया को संबोधित करते हुए कहा, “सुनो, रवि जीजाजी आ गए हैं.” कहते हुए तैयार होने चली गईं. सीमा भी चाय-नाश्ता रखकर चली गई.

मेरी शादी में तो जैसे ही किसी रिश्तेदार का आगमन होता, मां और पापा दोनों ही दौड़कर उनके आतिथ्य सत्कार में जुट जाते. उनके मान-सम्मान में कोई कमी ना रह जाए इसका वह हर पल ख़्याल रखते थे और यहां… छोटी भाभी कहती हैं आजकल तो पहले से ज़्यादा रिश्ते सहेजे जाते हैं व्हाट्सऐप पर. अब रिश्ते भी ऑनलाइन निभाए जाते हैं. यह कैसा अपनापन है, जिसमें न प्रेम का भाव है, न स्नेह की भावना और न ही आत्मीयता की मिठास है. मात्र एक औपचारिकता और दिखावा है.

यह भी पढ़ेछोटी-छोटी बातें चुभेंगी, तो भला बात कैसे बनेगी? (Overreaction Is Harmful In Relationship)

रात को सभी तैयार होकर मैरिज हॉल पहुंच गए. मेहमान आए औपचारिकता से मेज़बान से हाथ मिलाया, लिफ़ाफ़ा पकड़ाया और डिनर के लिए चल पड़े. ज़्यादातर युवा लड़के-लड़कियां सेल्फी लेने में व्यस्त थे. हर उम्र के हर प्राणी की उंगलियां अपने मोबाइल की स्क्रीन पर व्यस्त थीं. इक्का-दुक्का लोगों के समूह बातें कर रहे थे. सामूहिक हंसी और ठहाके तो ऐसे नदारद थे जैसे उन पर टैक्स लगा हो और लोगों ने टैक्स बचाने के लिए ख़ामोशी की चादर ओढ़ ली हो.

जयमाला, डिनर, फिर फेरे सब कुछ यंत्रवत् निपट गया. जूता चुराने जैसी जीजा-साली की मस्ती भरी रस्म भी बड़ी शांतिपूर्वक संपन्न हो गई. सालियों ने नेग के लिए कोई हंगामा या ज़िद नहीं की. दूल्हे ने चेक साइन करके उन्हें पकड़ा दिया. दूल्हे के दोस्तों और भाइयों ने भी कोई हंगामा नहीं किया.

हां, दूल्हे के दोस्तों और भाइयों ने अपने मोबाइल से दुल्हन की साइड की लड़कियों के दनादन फोटो ज़रूर क्लिक किए और उनके साथ डीजे पर डांस करने के लिए ज़रूर मारामारी और अफ़रा-तफ़री का माहौल बन गया था.

विदाई की भावुक बेला पर न किसी का मन उदास था, न किसी की आंखें नम थीं. ख़ुद सृष्टि भी अपने पति के साथ बातों में व्यस्त थी. लेकिन मेरा मन और आंखें दोनों ही भरी थीं. भावनाएं मेरे अंदर उमड़-घुमड़ रही थीं. छोटी-सी सृष्टि को कितना खिलाती थी, गोद से उतारती ही नहीं थी. उसकी हर ज़िद पूरी करती थी. सभी कहते थे अपनी लाड़ो को अपने साथ ससुराल ले जाना. ख़ुद सृष्टि भी कहती थी, “बुआ, मैं भी चलूंगी आपके छाथ आपकी छछुराल.” वही सृष्टि आज पराई-सी खड़ी थी. उसकी तरफ़ देख भी नहीं रही थी.

डॉ. अनिता राठौर ‘मंजरी’

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