कहानी- भ्रांति 1 (Story Series- Bhranti 1)

मेरी हर समस्या का समाधान मां के पास था, फिर चाहे वह स्कूल या पढ़ाई से जुड़ी समस्या हो, दोस्तों से जुड़ी कोई समस्या या करियर बनाने की समस्या. मुझे मां मां नहीं, जादू का पिटारा लगती थीं, क्योंकि वे जादू से चुटकी में मेरी हर

समस्या सुलझा देती थीं. मैं नहीं जानता था सर्वशक्तिमान देवी कैसी होती है? सुना ही सुना था, कभी देखा तो था ही नहीं. मैंने तो मां को ही आठ भुजाओंवाली, शेर पर सवारी करनेवाली सर्वशक्तिमान देवी के रूप में परिकल्पित कर लिया था.

मां की स्थिति के बारे में डॉक्टर ने जो कुछ कहा, वह मेरे लिए कदापि अप्रत्याशित नहीं था, पर मैं इस कटु सत्य को स्वीकारने का साहस नहीं जुटा पा रहा था. जुटाता भी कैसे? बचपन से मां को एक सुपर वुमन के रूप में देखता आ रहा हूं. मैंने उन्हें न कभी गंभीर रूप से बीमार होकर बिस्तर पकड़ते देखा, न विपरीत से विपरीत परिस्थितियों में कभी हताश होते.

मैं तब बहुत छोटा था, जब मेरी उंगली से पापा के हाथ का साथ छूट गया. सुना था वे किसी के प्यार के चक्कर में थे और अंततः मां को छोड़कर उसी के पास चले गए. लोगों की बेचारगी भरी नज़रें मां को नहीं डिगा सकीं, ऐसा मुझे लगता था. वे मज़बूती से मुझे अपने सीने से चिपकाए हौसला देती रहीं कि अब से वे ही मेरी मां भी हैं और पिता भी. उन्होंने जो कहा वह करके भी दिखाया. मुझे पढ़ाने के साथ-साथ उन्होंने अपनी पढ़ाई भी जारी रखी. पहले बी.एड की डिग्री ली. फिर अध्यापिका की नौकरी के साथ-साथ एक के बाद एक डिग्रियां अपने लिए भी जुटाती रहीं. मैंने उन्हें कभी थकते नहीं देखा. कभी-कभी मैं उन्हें मज़ाक में रोबोट भी कह देता था, तो वे मुझे बांहों में भर लेतीं, “तुझे पता है इस रोबोट को ऊर्जा कहां से मिलती है? इसकी बैटरी कौन है?” मैं मासूमियत से इंकार में सिर हिला देता, तो वे मुझ पर चुंबनों की बरसात कर देती थीं, “अरे पगले, मेरी बैटरी है तू! तू सामने होता है न, तो मैं बराबर चार्ज होती रहती हूं.”

मेरी हर समस्या का समाधान मां के पास था, फिर चाहे वह स्कूल या पढ़ाई से जुड़ी समस्या हो, दोस्तों से जुड़ी कोई समस्या या करियर बनाने की समस्या. मुझे मां मां नहीं, जादू का पिटारा लगती थीं, क्योंकि वे जादू से चुटकी में मेरी हर

समस्या सुलझा देती थीं. मैं नहीं जानता था सर्वशक्तिमान देवी कैसी होती है? सुना ही सुना था, कभी देखा तो था ही नहीं. मैंने तो मां को ही आठ भुजाओंवाली, शेर पर सवारी करनेवाली सर्वशक्तिमान देवी के रूप में परिकल्पित कर लिया था. जिसके सिर पर ऐसी सर्वशक्तिमान देवी का कृपालु हाथ हो, उस शख़्स के आत्मविश्‍वास के तो क्या कहने!

समय के अंतराल के साथ दुनिया को देखने-परखने की मेरी क्षमता बढ़ती गई. मैं मां की बढ़ती उम्र और घटती ऊर्जा को भी समझने लगा था. लेकिन लगता था मां का जुझारूपन काल की किसी गणना को स्वीकारने के लिए तैयार ही नहीं था. वे हर व़क्त मेरी ढाल बनी रहती थीं. पढ़ाई के लिए विदेश जाने का अवसर मिला, तो मेरा मन मां को छोड़कर जाने को तैयार नहीं हुआ. पर मां हमेशा की तरह मज़बूती से मेरे सामने आ खड़ी हुईं, “क्यूं नहीं जाएगा तू? अरे, कितनों को ऐसा सुअवसर मिलता है? दो साल कब निकल जाएंगे पता ही नहीं चलेगा… मेरी चिंता कर रहा है? अरे, मैं कोई छोटी बच्ची हूं? चिंता तो मुझे तेरी होनी चाहिए. यहां तो इतने जान-पहचान वाले हैं, वहां तू अकेला… अरे, याद ही नहीं रहा गैस पर दूध छोड़ आई हूं.” मां पर मातृत्व की संवेदनाएं हावी होना आरंभ हुईं, तो वे हमेशा की तरह गैस पर कभी दूध, कभी सब्ज़ी का बहाना बनाकर खिसक ली थीं. मैं निरुत्तर उन्हें ताकता रह गया था. यह मां का आत्मविश्‍वास ही था कि मैं सफलता की सीढ़ियां लांघता बहुत जल्द अपने पैरों पर खड़ा हो गया.

यह भी पढ़ेपैरेंटिंग स्टाइल से जानें बच्चों की पर्सनैलिटी (Effects Of Parenting Style On Child’s Personality)

विदेश से लौटा, तो झुकी कमर और छड़ी के सहारे चलती मां को देखकर कलेजा हलक में आ गया. मेरे बिछोह ने मां को उम्र से पहले ही उम्रदराज़ बना दिया था. पर वे मुझे अब भी मेरा और अपना मनोबल बनाए रखने का प्रयास करती नज़र आईं. उन्हें इस हाल में देख मेरा आत्मविश्‍वास डगमगाने लगता था. वे मेरी मनोदशा भांप तुरंत अपने दैवीय अवतार में आ जातीं.

“शरीर बुढ़ा रहा है, तो क्या हुआ? देख, मेरा मन अभी भी कितना जवान है? तेरी शादी के सतरंगी सपने देख उछालें मार रहा है.”

“अभी कहां मां? अभी तो अपने पैरों पर खड़ा हुआ हूं. थोड़े क़दम तो जमने दो.”

मैं देख रहा था, मेरे जमते क़दमों के साथ मां के क़दम लड़खड़ाते जा रहे थे. उनके घुटनों का दर्द तेज़ी से उभर आया था. ऑपरेशन से भी बहुत ज़्यादा राहत नहीं मिल पाई थी. पर उनकी जिजीविषा दाद देनेवाली थी. जिस दिन उनके लिए घर में व्हीलचेयर लाई गई, मैं अकेले में अपने आंसू नहीं रोक पाया था. पर मां तो लगता था तब भी ख़ुश थीं.

“ऐसा लगता है पांवों में स्केट्स पहन लिए हैं. बचपन में तो कभी स्केटिंग की नहीं, चलो अब बुढ़ापे में इसका भी मज़ा ले लेते हैं.” मां की दिल्लगी मेरे सारे दुख-परेशानियां हर लेती थीं.

   संगीता माथुर

अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करें – SHORT STORiES

Usha Gupta

Share
Published by
Usha Gupta

Recent Posts

कहानी- इस्ला 4 (Story Series- Isla 4)

“इस्ला! इस्ला का क्या अर्थ है?” इस प्रश्न के बाद मिवान ने सभी को अपनी…

March 2, 2023

कहानी- इस्ला 3 (Story Series- Isla 3)

  "इस विषय में सच और मिथ्या के बीच एक झीनी दीवार है. इसे तुम…

March 1, 2023

कहानी- इस्ला 2 (Story Series- Isla 2)

  “रहमत भाई, मैं स्त्री को डायन घोषित कर उसे अपमानित करने के इस प्राचीन…

February 28, 2023

कहानी- इस्ला 1 (Story Series- Isla 1)

  प्यारे इसी जंगल के बारे में बताने लगा. बोला, “कहते हैं कि कुछ लोग…

February 27, 2023

कहानी- अपराजिता 5 (Story Series- Aparajita 5)

  नागाधिराज की अनुभवी आंखों ने भांप लिया था कि यह त्रुटि, त्रुटि न होकर…

February 10, 2023

कहानी- अपराजिता 4 (Story Series- Aparajita 4)

  ‘‘आचार्य, मेरे कारण आप पर इतनी बड़ी विपत्ति आई है. मैं अपराधिन हूं आपकी.…

February 9, 2023
© Merisaheli