गरिमा का चेहरा तमतमा उठा. वह थोड़ी देर वहीं बैठी उस लड़के की हरक़तों को रिकॉर्ड करती रही, फिर सधे क़दमों से कक्ष के चक्कर लगाते हुए उसके क़रीब पहुंची और डपटते हुए बोली, “शर्म नहीं आती तुम्हें नकल करते हुए? चलो यह घड़ी दो मुझे.”
“ए मैडम, अपने काम से काम रखो. मुझसे पंगा मत लो, वरना बहुत पछताना पड़ेगा.” वह लड़का दांत भींचते हुए गुर्राया. उसके चेहरे का रंग अचानक बदल गया था.
गरिमा ने क़रीब जाकर देखा. वह एक साधारण घड़ी थी. उसमें ऐसा कुछ न था कि उसे बार-बार देखा जाए. वह चहलक़दमी करते हुए दूसरी लाइन में चली आई, लेकिन उसकी दृष्टि उसी लड़के पर टिकी रही. वह अब भी थोड़ी-थोड़ी देर बाद अपनी घड़ी को देख रहा था.
गरिमा से रहा नहीं गया. उसने क़रीब जाकर कहा, “तुम बार-बार घड़ी क्यूं देख रहे हो?”
“मैडम, ऑब्जेक्टिव टाइप पेपर है. ढाई घंटे में पूरे 150 प्रश्न करने हैं यानी एक मिनट में एक प्रश्न. इसीलिए हर प्रश्न के बाद टाइम देख लेता हूं, ताकि कहीं हिसाब-क़िताब गड़बड़ा न जाए.” उस लड़के ने पान से सने अपने दांतों को चमकाते हुए कहा.
गरिमा को उसके बात करने का अंदाज़ पसंद नहीं आया, लेकिन बार-बार घड़ी देखना कोई अपराध न था, इसलिए बिना कुछ बोले वहां से हट गई, पर उसके मन में संदेह के नाग ने फन उठा लिया था. वह चुपचाप अपनी कुर्सी पर बैठ गई. थोड़ी देर बाद उसने अपने बड़े-से पर्स से मोबाइल निकाला और उसके कैमरे को ज़ूम कर उस लड़के की कलाई पर बंधी घड़ी की ओर कर दिया.
‘59 सी’ घड़ी के स्क्रीन पर एक सेकंड के लिए कुछ उभरा, फिर वह गायब हो गया. गरिमा को लगा शायद यह उसका भ्रम था. उसने अपनी दृष्टि मोबाइल के स्क्रीन में दिख रही घड़ी पर टिका दी.
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चंद पलों बाद उस लड़के की उंगली ने घड़ी को स्पर्श किया. ‘60 ए’ एक सेकंड के लिए स्क्रीन पर उभरा और फिर गायब हो गया और घड़ी पहले की ही तरह समय दिखाने लगी. गरिमा ने तिरछी नज़रों से उस लड़के की ओर देखा. उसने उत्तरपुस्तिका में एक प्रश्न के उत्तर को ‘टिक’ किया और फिर पेन रखकर अपनी उंगली से घड़ी को स्पर्श किया.
‘61 डी’ घड़ी में पुन: एक संदेश उभरा और फिर गायब हो गया. अब तो शक की कोई गुंजाइश न थी. वह लड़का इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के सहारे नकल कर रहा था. कहीं से उसे क्रमवार सही उत्तरों के सिग्नल मिल रहे थे. लेकिन यह काम किसी अकेले का नहीं हो सकता. ज़रूर इसके लिए पूरा गिरोह काम कर रहा होगा. ये लोग नकारा लोगों को पास करवाकर अधिकारी बनवा देते हैं और आगे चलकर ऐसे ही अयोग्य अधिकारी देश को लूटने में जुट जाते हैं.
गरिमा का चेहरा तमतमा उठा. वह थोड़ी देर वहीं बैठी उस लड़के की हरक़तों को रिकॉर्ड करती रही, फिर सधे क़दमों से कक्ष के चक्कर लगाते हुए उसके क़रीब पहुंची और डपटते हुए बोली, “शर्म नहीं आती तुम्हें नकल करते हुए? चलो यह घड़ी दो मुझे.”
“ए मैडम, अपने काम से काम रखो. मुझसे पंगा मत लो, वरना बहुत पछताना पड़ेगा.” वह लड़का दांत भींचते हुए गुर्राया. उसके चेहरे का रंग अचानक बदल गया था.
संजीव जायसवाल ‘संजय’
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