कहानी- एहसास तुम्हारे प्यार का… 1 (Story Series- Ehsas Tumhare Pyar Ka 1)

उसे लगता कि उसके मन की संवेदनशीलता, उसके दुख-दर्द और प्यार की भावना को मन की परतों में कहीं गहरे चुन दिया गया था, जिसे वह महसूस तो कर पाती थी, पर प्रकट नहीं कर पाती थी. उस दिन घर लौटी, तो उसे याद आया कि आज उसका बर्थडे था. देर तक इंतज़ार करती रही, पर मम्मी-पापा में से किसी का फोन नहीं आया. दोनों कहीं किसी पार्टी में व्यस्त होंगे, उसकी आंखें भर आईं. तभी कॉलबेल बजी. दरवाज़ा खोला, तो अचंभित रह गई. सामने गौतम खड़ा था, हाथों में केक थामे हुए. इसे कैसे पता चला कि आज उसका बर्थडे है?

खिड़की के परदों के अगल-बगल से घुसपैठ करती सूरज की किरणों के कारण नेहा की नींद उचटने लगी थी. वह थोड़ी देर और सोना चाहती थी, पर एक बार नींद उचट जाए, तो फिर सोना मुश्किल हो जाता है. नेहा ने चुपचाप लेटे-लेटे घड़ी की तरफ़ नज़रें दौड़ाईं, तो दस बज चुके थे. उस दिन रविवार था और छुट्टी की सुबह वैसे भी आलसभरी होती है. वह उठकर एक कप कॉफी बना लाई. यह कॉफी ही तो उसके रसहीन जीवन में बचा एकमात्र रस था.

वह कॉफी लेकर बालकनी में आ खड़ी हुई. रूम से बाहर निकलते ही 14वीं मंज़िल के फ्लैट के सामने फैली कॉलोनी की सड़कों पर भागती गाड़ियां और लोग नज़र आने लगे. बाहर के शोर-शराबे तो उस तक नहीं पहुंच पाते थे, फिर भी उनकी गति उसे जीवित होने का एहसास ज़रूर करा देती थी. तभी कॉलबेल की आवाज़ से उसकी तंद्रा भंग हुई. कमला होगी, वह  छुट्टी के दिन देर से आती थी. उसने दरवाज़ा खोला, तो कमला अंदर आकर ख़ामोशी से अपने काम में जुट गई.

हल्के-फुल्के बर्तनों का शोर और वॉशिंग मशीन की खटपट, कभी-कभी आसपास फैली ख़ामोशी को तोड़ रही थी. कमला ने अपना काम समाप्त कर दोपहर का खाना बनाकर डायनिंग टेबल पर रख दिया. फिर दरवाज़ा बंद करने के लिए उसे बोलकर चली  गई. कमला के जाने के बाद वह सीधे बाथरूम में घुसी. नहाने के बाद फ्रेश होकर बाहर निकली, तो मन काफ़ी हल्का हो गया था.

नाश्ता करके वह फिर बिस्तर पर आ लेटी. पास पड़ी पत्रिका को उलटती-पलटती रही. फिर लैपटॉप निकालकर ऑफिस के कुछ अधूरे काम पूरे करके खाना खाया ओैर एक बार फिर बालकनी में आ बैठी.

समय से आकर कमला रात का खाना बनाकर चली गई. माहौल में फिर वही एकाकीपन और ख़ामोशी पसर गई.

तभी उस ख़ामोशी को चीरती मोबाइल फोन की घंटी बज उठी. उसकी मम्मी का फोन था. वही पुराना राग कि जल्दी शादी के बारे में सोचो. फिर उन लड़कों की जानकारियां देने लगीं, जो उनकी गुड लिस्ट में थे. नेहा ने हां-हूं कर अपना मोबाइल रख दिया. मोबाइल रखते ही उसे याद आया कि कल ऑफिस जाना है. जल्दी नहीं सोई, तो समय पर ऑफिस नहीं पहुंच पाएगी. मन में उपजे अवसाद को झटक वह सोने की कोशिश करने लगी.

दूसरे दिन ऑफिस में घुसते ही, गुडमॉर्निंग की आवाज़ ने उसे चौंका दिया. नज़रें घुमाई तो गौतम था. पिछले हफ़्ते ही कानपुर से ट्रांसफर होकर आया था. जब से इस ऑफिस को जॉइन किया था, तब से किसी-न-किसी बात की जानकारी हासिल करने के बहाने उसके पास चला आता. शायद नेहा का सबसे कटे-कटे रहकर अपने काम में मशगूल रहना उसे खटकता था, पर चाहकर भी नेहा उससे खुलकर बातें नहीं कर पाती थी. हालांकि वह चाहती थी कि वह भी बाहर के शोर-शराबे का हिस्सा बने, ज़ोर-ज़ोर से ठहाके लगाए और सबसे तर्क-वितर्क करे और अपने अंदर जमा अकुलाहट और छटपटाहट को बाहर आने दे, पर स्वभाव के अनुरूप बात होंठों तक आकर रुक जाती थी.

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उसे लगता कि उसके मन की संवेदनशीलता, उसके दुख-दर्द और प्यार की भावना को मन की परतों में कहीं गहरे चुन दिया गया था, जिसे वह महसूस तो कर पाती थी, पर प्रकट नहीं कर पाती थी. उस दिन घर लौटी, तो उसे याद आया कि आज उसका बर्थडे था. देर तक इंतज़ार करती रही, पर मम्मी-पापा में से किसी का फोन नहीं आया. दोनों कहीं किसी पार्टी में व्यस्त होंगे, उसकी आंखें भर आईं. तभी कॉलबेल बजी. दरवाज़ा खोला, तो अचंभित रह गई. सामने गौतम खड़ा था, हाथों में केक थामे हुए. इसे कैसे पता चला कि आज उसका बर्थडे है? फिर भी दरवाज़े से हटकर उसे अंदर आने के लिए जगह बना दी. वह इत्मीनान से अंदर आकर केक को टेबल पर रखते हुए बोला, “बैठने के लिए नहीं कहोगी?”

नेहा का दिल चाहा कि उससे कहे कि अब तक सब कुछ क्या तुम मेरी इजाज़त से कर रहे थे, जो अब तुम्हें इजाज़त की ज़रूरत पड़ गई, पर मुस्कुराकर उसे बैठने के लिए कहना ही पड़ा. फिर नेहा ने केक काटने की औपचारिकता निभाई और दोनों ने मिलकर केक खाया. अब तक दोनों के बीच की झिझक भी काफ़ी कम हो गई थी. देर तक वे इधर-उधर की बातें करते रहे. थोड़ी देर बाद गौतम चला गया, पर नेहा की सोच बहुत देर तक गौतम के आसपास ही घूमती रही. उसे लगा कि कुछ तो दम है गौतम में, क्यों उसके मन में गौतम के लिए सम्मोहन बढ़ने लगा था. बरसों से दिल के अंदर छुपे निश्छल प्यार की चाह की

संभावना शायद उसे गौतम में दिखने लगी थी. वह बिस्तर पर आ लेटी, पर आज उसका मन कहीं ठौर ही नहीं पा रहा था. मन के झरोखे से दादी मां का प्यारभरा चेहरा उसके दिलो-दिमाग़ पर दस्तक देने लगा था. कितना सुकून मिलता था उसे दादी मां की गोद में.

      रीता कुमारी

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