कहानी- एक बदलाव की उम्मीद… 1 (Story Series- Ek Badlav Ki Umeed 1)

ये क्वॉरंटीन का दृश्य मुझे उस ज़माने की तरफ़ खींच रहा था, जब छुआ-छूत, जात-पात समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था. अगर सरलता से इसकी व्याख्या की जाए, तो समाज के ऊंची जाति के लोगों ने इंसानियत के विरुद्ध जाकर इंसानों के ही बीच भेद-भाव की एक गहरी रेखा खींच दी थी. जात-पात के नाम पर इंसानों को अछूत घोषित कर दिया.

 

फोन पर दादी की रिपोर्ट देखते ही पापा कुछ पल के लिए जड़वत हो गए… दादी कोरोना पॉज़िटिव थीं. घर में कोरोना ने दस्तक दे दी थी. हम सभी को कोरोना से सुरक्षित रखना, दादी की उम्र… उस पर कोरोना का प्रकोप. मां-पापा के चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आई थीं. पूरे घर में अफ़रा-तफ़री मच गई. सबसे पहले दादी को क्वॉरंटीन किया. फिर उनके लिए ज़रूरत का सभी सामान एकत्रित करना था. मास्क, सैनिटायज़रज, ऑक्सीमीटर, डिस्पोज़बल आदि. कमरे की ओट से क्वॉरंटीन हुई दादी की उदास पनीली आंखें, मुरझाया चेहरा सारा दृश्य देख रही थी. कितनी बेबस-सी दिख रही थीं वे. ये कोरोना बीमारी ही ऐसी है, जिसमें इंसान चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता. किसी की भी मदद नहीं कर सकते.
कोरोना वायरस चीन से आया एक सूक्ष्म-सा वायरस है, जिसके संक्रमण ने पूरे विश्व को हिला कर रख दिया. अत्यंत संक्रमित होने के कारण इसके फैलने का ख़तरा ज़्यादा था. कोरोना की वजह से पूरे विश्व की रफ़्तार थम गई थी. इसमें सबसे बड़ी समस्या ये थी कि इस रोग की न कोई दवाई है और न ही कोई इलाज. बस कोरोना संक्रमित रोगी को सबसे अलग-थलग यानी क्वॉरंटीन कर दिया जाता है एकदम अलग, बिल्कुल अलग… अछूतों की तरह. अत्यंत तकलीफ़ और अवसाद से भरा होता है रोगी के लिए ये क्वॉरंटीन का समय. मुझे तो मां ने सख़्ती से उनके या उनके कमरे के भी क़रीब जाने से बिल्कुल मना कर दिया था. उनके कमरे के आगे एक टेबल रख दी थी, जिस पर उनकी ज़रूरत का सामान और डिस्पोज़बल प्लेट में खाना रख कर मां आवाज़ लगा देती, “मांजी खाना ले लीजिए.“ या फिर कुछ और सामान. वे चुपचाप सिसकते-सिसकते आतीं और अपना खाना ले जातीं. उसके बाद मां अपना हाथ ऐसे सैनिटाइज़ करतीं जैसे किसी अछूत को छू लिया हो.

यह भी पढ़ें: कैसे करें बच्चों की सेफ्टी चेक: जानें 40 से अधिक उपयोगी ट्रिक्स(40+ Useful Safety Rules To Ensure Your Children’s Safety)

अछूत अर्थात् जो छूने योग्य न हो. खुद में ही कितना दर्द भरा है ये शब्द. ये क्वॉरंटीन का दृश्य मुझे उस ज़माने की तरफ़ खींच रहा था, जब छुआ-छूत, जात-पात समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था. अगर सरलता से इसकी व्याख्या की जाए, तो समाज के ऊंची जाति के लोगों ने इंसानियत के विरुद्ध जाकर इंसानों के ही बीच भेद-भाव की एक गहरी रेखा खींच दी थी. जात-पात के नाम पर इंसानों को अछूत घोषित कर दिया. यहां तक मासिक धर्म के दौरान उस स्त्री तो कुछ दिन के लिए बिल्कुल अलग-थलग कर देते हैं. उसे एक अलग कमरे में उतने दिनों के लिए क्वॉरंटीन अलग कर दिया जाता था और विधवा स्त्री…

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें…


कीर्ति जैन

अधिक कहानी/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां पर क्लिक करें – SHORT STORIES

Usha Gupta

Share
Published by
Usha Gupta

Recent Posts

कहानी- इस्ला 4 (Story Series- Isla 4)

“इस्ला! इस्ला का क्या अर्थ है?” इस प्रश्न के बाद मिवान ने सभी को अपनी…

March 2, 2023

कहानी- इस्ला 3 (Story Series- Isla 3)

  "इस विषय में सच और मिथ्या के बीच एक झीनी दीवार है. इसे तुम…

March 1, 2023

कहानी- इस्ला 2 (Story Series- Isla 2)

  “रहमत भाई, मैं स्त्री को डायन घोषित कर उसे अपमानित करने के इस प्राचीन…

February 28, 2023

कहानी- इस्ला 1 (Story Series- Isla 1)

  प्यारे इसी जंगल के बारे में बताने लगा. बोला, “कहते हैं कि कुछ लोग…

February 27, 2023

कहानी- अपराजिता 5 (Story Series- Aparajita 5)

  नागाधिराज की अनुभवी आंखों ने भांप लिया था कि यह त्रुटि, त्रुटि न होकर…

February 10, 2023

कहानी- अपराजिता 4 (Story Series- Aparajita 4)

  ‘‘आचार्य, मेरे कारण आप पर इतनी बड़ी विपत्ति आई है. मैं अपराधिन हूं आपकी.…

February 9, 2023
© Merisaheli