“देखो बच्चों, कल तुम्हारी ज़रूरत हमें होगी ये सच है, पर अभी से उस मुद्दे पर बात करना कुछ ऐसा है, जैसे बदलते ख़ुशगवार मौसम को नज़रअंदाज़ कर आंधी-तूफ़ान, बाढ़ की आशंका में परेशान होना. जब तक मौसम ख़ुशगवार है उसका लुत्फ़ उठाओ... कल की कल देखना. अभी से कल को बोझ की तरह उठाए फिरना सही नहीं.”
नलिनीजी भी उनका समर्थन करते हुए बोलीं, “ये तो हद ही है. पहले जल्दी शादी होती थी, तो हम अपने साथ सद्भावनाएं और बड़ों के प्रति आदर लेकर आते थे.
रस्मों-रिवाज़ों की गठरी में एक-दूसरे के प्रति सम्मान, कुछ समझौते और समर्पण लेकर आते थे. कम उम्र में एक-दूसरों की ज़रूरतों के हिसाब से ढलना कमज़ोरी नहीं, हमारे दांपत्य की मज़बूती होती थी. वर्तमान के मीठे लम्हों में डूबे हम भविष्य की चर्चा करके इतनी दूर भी नहीं देखते थे कि धुंधले और उलझे दृश्यों के विवाद में घिरकर उन स्नेही लम्हों को गंवा दें. समय के साथ और हिसाब से चलकर अपना परिवार देखते थे. मैंने तुम्हारे पापा से कभी ये तय नहीं किया कि तुम्हारे नाना-नानी की देखभाल ये करेंगे, नहीं करेंगे... पर जब ज़रूरत पड़ी, तो तुम्हारे पापा और मैंने अपना फ़र्ज़ उनके प्रति निभाया... मेरे और तुम्हारे पापा के बीच जो भी था हमारा था. तुम्हारी आज़ादी, करियर-पढ़ाई, स्वयं निर्णय लेने की छूट ये सोचकर दी थी कि इन सब के साथ बेहतर जीवन का निर्वाह करोगी... आत्मनिर्भर बनते-बनते तुम कब इतनी आत्मकेंद्रित और निरंकुश हो गई कि हमसे जुड़े फैसले करने लगी. सबके सामने ख़ुद पर लगते आक्षेप तीर की तरह चुभे, तो अपूर्वा की आंखों में आंसू आ गए, ये देख अभिमन्यु तुरंत बोला, “बात इतनी भी बड़ी नहीं थी. ग़लती अपूर्वा से ज़्यादा मेरी है. मैंने मुद्दे की संवेदनशीलता का आकलन ठीक से नहीं किया. प्रैक्टिकली बात करते हुए ध्यान ही नहीं दिया कि कब इसके मन को ठेस पहुंची और शायद तभी बात बिगड़ गई. आप लोगों को दुख पहुंचा हो, तो दिल से सॉरी...” अभिमन्यु के शब्द अपूर्वा पर असर करते उसके पहले ही विमलजी बोल पड़े, “संवेदनशीलता भरी आपसी समझ किसी शादी की सफलता के लिए ज़रूरी है. मेरे हिसाब से बच्चों के निर्णय का हमें समर्थन करना चाहिए. वैसे ये वैचारिक मतभेद इनके दिमाग़ की उपज थी. ना मैं और ना आप लोग इनके भरोसे जीवन बिताने के इच्छुक हैं. आज इस बेमतलब के विवाद को हम पैरेंट्स सुलझा लेंगे, पर कल को कोई और विवाद उत्पन्न हुआ, तो फिर से ये दोनों अपने अहं की तलवारें खींच लेंगे, क्या पता विवाह की परिणति तलाक़ हो तब... दोनों एक-दूसरे को समझने-समझाने में विफल हुए हैं, ऐसे में विवाह रोक देने में ही भलाई है. कामना करता हूं कि भविष्य में तुम्हारी आकांक्षाओं पर कोई खरा उतरे और तुम घर बसाओ.”
विमलजी के कहने पर प्रशांत बोले, “फिर अपने यूरोप ट्रिप का क्या करें?” यह सुनकर विमलजी इत्मीनान से बोले, “इनकी शादी टूटने से हमारा संबंध थोड़े टूट जाएगा. हां, पहले तय था कि इनकी शादी होने की ख़ुशी में यूरोप यात्रा करेंगे, पर अब शादी कैंसिल होने की ख़ुशी में टूर पर निकलेंगे. इन बच्चों की वजह से कब तक फंसे रहेंगे...” इस अप्रत्याशित वार्तालाप पर अपूर्वा-अभिमन्यु चौंके, “यूरोप..? आप लोग क्या बात कर रहे हैं मैं समझा नहीं...” अभिमन्यु ने पूछा, तो अपूर्वा भी उलझन से भरी बोली, “हां, मुझे भी इस बारे में कुछ पता नहीं.”
“तुम दोनों की शादी के बाद हम लोगों ने कुछ फुर्सत के पल सेलिब्रेट करने की योजना बनाई थी, तुम हनीमून पर जाते और हम यूरोप...” प्रशांत के कहने पर शुभ्रा ठंडी सांस लेकर बोली, “जाने क्यों आज की संतानें इतना आत्मकेंद्रित होती जा रही हैं कि हमारी ख़ुशी इनसे देखी नहीं जाती.
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माता-पिता के प्रति संवेदनशीलता रह ही नहीं गई... कहां तो मैं और अभिमन्यु के पापा प्लान बनाए बैठे थे कि अपनी धर्मशालावाली ज़मीन पर फार्म हाउस बनवाएंगे और कहां ये अपने थ्री बेडरूम के फ्लैट में हमारी सांसें घोटने की तैयारी में हैं...” वो चुप हुईं, तो नलिनीजी बोल पड़ीं, “आप लोग धर्मशाला की सोच रहे हैं, यहां देखो, कब अपूर्वा शादी करती है और कब हमें अपने घर में अपने तरी़के से जीने का स्पेस मिलेगा, हम तो यही सोच रहे थे, पर...” इस टिप्पणी पर अपूर्वा विस्मय से आंखें बड़ी-बड़ी करती हुई बोली, “हे भगवान! इनके तो अपने बड़े-बड़े प्लान हैं और हम बेव़कूफ़ इनकी वजह से अपनी शादी तोड़ रहे हैं.” उतावलेपन में अपूर्वा ने अभिमन्यु का हाथ पकड़ लिया, तो वह बेबस-सा बोला, “मुझे माफ़ कर दो यार...” एक दबी-सी मुस्कान अभिभावकों के चेहरे पर आई देख अपूर्वा ने विमलजी से कहा, “मुझे माफ़ कर दीजिए, अभिमन्यु से बेहतर अंडरस्टैंडिंग रखनेवाला जीवनसाथी तो फिर भी मुझे शायद मिल जाए, पर आप जैसे पैरेंट्स मिलना मुश्किल है. मैं बेवजह मम्मी-पापा को लेकर इतना इनसिक्योर हो रही थी.” अपूर्वा के कहने पर विमलजी ने झट आशीर्वाद भरा हाथ उठाया. शुभ्रा भावुक-सी बोली, “देखो बच्चों, कल तुम्हारी ज़रूरत हमें होगी ये सच है, पर अभी से उस मुद्दे पर बात करना कुछ ऐसा है, जैसे बदलते ख़ुशगवार मौसम को नज़रअंदाज़ कर आंधी-तूफ़ान, बाढ़ की आशंका में परेशान होना. जब तक मौसम ख़ुशगवार है उसका लुत्फ़ उठाओ... कल की कल देखना. अभी से कल को बोझ की तरह उठाए फिरना सही नहीं.”
“जी मम्मीजी.” कहकर अपूर्वा उनके गले लग गई. अभिमन्यु ने भी झट प्रशांत और नलिनी के पैर छुए, तो प्रशांत उसकी पीठ पर स्नेह से धौल जमाते बोले, “आज तुम दोनों डेट पर जाओ, पर हां फ्यूचर मत डिसकस करना...” “बिल्कुल नहीं पापा...” कहते हुए उसने अपने कानों को हाथ लगाया, तो अपूर्वा भी उसी अंदाज़ में अपने कानों को हाथ लगाते हुए मुस्कुरा दी. यह देख सब हंस पड़े.
मीनू त्रिपाठी