कहानी- होम स्वीट होम 2 (Story Series- Home Sweet Home 2)

“कितनी सयानी है हमारी बेटी! ख़ुद की तबीयत की परवाह न कर दीपू की शादी की तैयारियों के बारे में सोच रही है. मैं ही कभी-कभी अपनी सोच संकुचित कर लेती हूं.” पत्नी की सोच बदल रही है जानकर प्रकाशजी को अच्छा लगा था.

दीपा ने जो कहा वह करके भी दिखाया था. घर बैठे ही वह दोनों मोर्चे संभाल रही थी. प्रतिमाजी यह कहकर कि अभी शादी में बहुत टाइम है, इतना टेंशन मत ले उसे रोकने का प्रयास करतीं, तो वह कहती, “जानती हूं मां, बच्चे के आ जाने के बाद मेरी स्पीड आधी रह जाएगी, इसलिए मैं डिलीवरी से पहले-पहले सारी तैयारी कर लेना चाहती हूं.”

यद्यपि दीपक और प्रकाशजी ने सारी व्यवस्था संभाल ली थी, पर प्रतिमाजी क्षुब्ध हो उठी थीं. “दीया के लिए तो वह घर ही सब कुछ हो गया है. इस घर से तो मानो कोई नाता ही नहीं रह गया है.”

“ऐसी बात नहीं है. हमें उसकी मजबूरी समझनी चाहिए. वह भौतिक रूप से भले ही इस घर से दूर हुई है, पर उसके दिल के तार इस घर से गहराई तक जुड़े हुए हैं.” प्रकाशजी समझाते ही रह गए.

दीया इसके बाद भाई के रोके की रस्म पर ही आ पाई थी, पर बेहद थकी-थकी लग रही थी.

“एक बार डॉक्टर को दिखा आ.” प्रतिमाजी ने सुझाया था.

“अब घर लौटकर ही दिखाऊंगी मां.” प्रतिमाजी के अंदर फिर कुछ चटक-सा गया था.

“यह भी तेरा ही घर है.”

दीया मां की आहत भावना समझ नहीं पाई. “हां, पर यहां अभी सब रिश्तेदार वगैरह इकट्ठे हैं. व्यर्थ सवाल-जवाब करेंगे. दो ही दिन की तो बात है.”

“क्यों? रुकेगी नहीं?”

“नहीं मां, अर्जुन को कुछ काम है. मम्मीजी भी अभी ज़्यादा कुछ कर नहीं पातीं.”

प्रतिमाजी बुझ-सी गई थीं. उन्होंने तो सोचा था कि सबके जाने के बाद वे और दीया मिलकर पूरा घर व्यवस्थित कर लेंगे, पर अब दीया की अनिच्छा देख उन्होंने ज़्यादा आग्रह करना उचित नहीं समझा.

दीया ने फोन पर अपने गर्भवती होने की सूचना दी, तो वे ख़ुशी से फूली नहीं समाईं. “मां, आप दीपू की शादी की ज़रा भी चिंता मत करना. मैं जल्दी-जल्दी आ तो नहीं पाऊंगी, पर आपको ऑनलाइन सारी शॉपिंग करवा दूंगी. और हां, मेरी डिलीवरी की चिंता मत करना. मेरे पास मम्मीजी हैं. वे सब संभाल लेंगी.”

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“कितनी सयानी है हमारी बेटी! ख़ुद की तबीयत की परवाह न कर दीपू की शादी की तैयारियों के बारे में सोच रही है. मैं ही कभी-कभी अपनी सोच संकुचित कर लेती हूं.” पत्नी की सोच बदल रही है जानकर प्रकाशजी को अच्छा लगा था.

दीपा ने जो कहा वह करके भी दिखाया था. घर बैठे ही वह दोनों मोर्चे संभाल रही थी. प्रतिमाजी यह कहकर कि अभी शादी में बहुत टाइम है, इतना टेंशन मत ले उसे रोकने का प्रयास करतीं, तो वह कहती, “जानती हूं मां, बच्चे के आ जाने के बाद मेरी स्पीड आधी रह जाएगी, इसलिए मैं डिलीवरी से पहले-पहले सारी तैयारी कर लेना चाहती हूं.”

दीया की सोच सही थी. नन्हीं पीहू के आने से पहले-पहले शादी की सारी तैयारियां हो चुकने से शादी आराम से निपट गई. दीया शादी के बाद एक सप्ताह रुकी, पर उसका अधिक समय पीहू को संभालने और रिश्तेदारों के यहां दावत आदि में ही निकल गया.

इधर दीया ससुराल रवाना हुई और उधर दीपक हनीमून के लिए निकल गया. प्रतिमाजी घर सहेजती जातीं और बच्चों को याद करती जातीं. उन्होंने सबकी तस्वीरें ड्रॉइंगरूम में सजा दी थीं. हनीमून से लौटने तक दीपक और रिया की छुट्टियां समाप्त हो चुकी थीं. अतः दोनों ने अगले दिन से ही ऑफिस ज्वॉइन कर लिया.

इस बीच एक दुखद घटना घट गई. दिल का दौरा पड़ने से प्रकाशजी का निधन हो गया. प्रतिमाजी ख़ुद को अकेला और असहाय महसूस करने लगी थीं, पर कोई कब तक उनके पास बना रह सकता था? शनै: शनै: सभी ने अपनी राह पकड़ ली. प्रतिमाजी को दिन पहाड़ से लगने लगे. कहां तो पहले उन्हें सांस लेने तक की फुर्सत नहीं होती थी. अब तो क्या बनाना है? कब बनाना है? यह निर्देश भी बहू ही कुक को दे देती थी. प्रतिमाजी ने अपने कमरे से बाहर आना ही कम कर दिया था. कभी उन्हें दीया से शिकायत थी कि उसे इस घर से मोह नहीं रह गया है. पर सच पूछो तो अब यही स्थिति उनकी थी. उन्हें भी इस घर से अब कहां मोह रह गया है?

उस दिन उन्हें बाहर थोड़ी हलचल महसूस हुई, तो वे उठकर बाहर आईं. आज तो दीपक-रिया दोनों की छुट्टी है. शायद कोई मिलने आया होगा. वे सोच ही रही थीं कि दीपक सामने ही नज़र आ गया.

“क्या हुआ मां? कुछ चाहिए?” प्रतिमाजी हैरानी से परदे उतारते लोगों को देख रही थीं.

“ओह! मैं तो बताना ही भूल गया था. घर में नए परदे लग रहे हैं. रिया तो कब से पूरा घर रिनोवेट करवाना चाह रही थी. बीच में ही पापा का निधन हो गया. सारी छुट्टियां उसी में निकल गईं. अब अकेले आपके भरोसे तो रिनोवेशन का काम छोड़ा नहीं जा सकता. तो हमने सोचा परदे वगैरह बदलवाकर, थोड़ा इंटीरियर करवाकर घर को नया लुक दे देते हैं, क्योंंकि अब मेरे ऑफिसवालों के साथ-साथ रिया के ऑफिसवाले और रिश्तेदारों का भी आना-जाना लगा रहेगा. ये नए परदे कैसे लग रहे हैं मां? रिया ने पसंद किए हैं.”

प्रतिमाजी भला बहू की पसंद को कैसे नकार सकती थीं. फिर नए परदे वाकई बहुत अच्छे थे.

“रिया की पसंद अच्छी है.” प्रतिमाजी ने कहा, तो पीछे से आती रिया का चेहरा खिल उठा.

“देखा, मैंने कहा था न मांजी को ज़रूर पसंद आएंगे. मैंने कुछ आर्टपीस भी ऑर्डर किए हैं. आप उनमें से अपने कमरे के लिए पसंद कर लें.”

 

    अनिल माथुर

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