“मौसी, विवाह जीवनभर का मामला होता है, इसमें ईमानदारी बेहद ज़रूरी है. बाद में कोई यह न कहे कि ग़लत, ढोंगी लड़के के साथ संबंध हो गया.”
“…पर तुम्हारा सच किसी को पता क्यों लगेगा?”
“मौसी बातें अपनी ही ताक़त से एक दिन सामने आ जाती हैं. और कुछ बातें ऐसी होती हैं, जिन्हें छिपाना धोखा देना होता है.”
“लेकिन जब तुम दोषी नहीं हो, तो…”
“यही तो अड़चन है मौसी, दोषी और पीड़ित दोनों की ज़िंदगी समान रूप से प्रभावित होती है.”
वह किसी के साथ जुड़ना नहीं चाहता, जबकि मौसी की ज़िद है, उसे किसी से जुड़ना सीखना होगा. मौसी की ज़िद पर वह जुड़ना सीखने लगा, लेकिन उसने पाया, किसी को उससे जुड़ना अच्छा नहीं लगता. तब वह हैरान हुआ. मौसी सदमे में आ गई. बौखलाकर कहने लगी, “निर्गुण, वह तुम्हारा सच ज़रूर है, पर उस सच का कारण तुम नहीं हो, फिर उस सोच को लड़कीवालों को बता देने की क्या ज़रूरत है?”
वह निर्विकार मुद्रा अपना लेता है. “मौसी, विवाह जीवनभर का मामला होता है, इसमें ईमानदारी बेहद ज़रूरी है. बाद में कोई यह न कहे कि ग़लत, ढोंगी लड़के के साथ संबंध हो गया.”
“…पर तुम्हारा सच किसी को पता क्यों लगेगा?”
“मौसी बातें अपनी ही ताक़त से एक दिन सामने आ जाती हैं. और कुछ बातें ऐसी होती हैं, जिन्हें छिपाना धोखा देना होता है.”
“लेकिन जब तुम दोषी नहीं हो, तो…”
“यही तो अड़चन है मौसी, दोषी और पीड़ित दोनों की ज़िंदगी समान रूप से प्रभावित होती है.”
‘मैं बचपन में यौन शोषण का शिकार हुआ हूं’, यह सच बताकर, वह अब तक चार लड़कियों को चौंका चुका है. चारों लड़कियां समान भाव से चौंकी थीं. उनसे एकांत में बातें करते हुए वह उनके बारे में कुछ नहीं पूछता है, बल्कि कहता है…
मौसी के लाख समझाने का भी उस पर असर नहीं हुआ. मौसी से बातचीत के बाद वो परिमल बुक सेंटर चला गया. जब वह बुक सेंटर बंद कर रात में घर आया, तो मौसी ने घर के पते पर आया लहर का लेटर, जो चार लड़कियों में तीसरी थी, उसको दिखाया, “निर्गुण, हमारे लिए अच्छी ख़बर है. लहर शादी के लिए तैयार है.”
“मनोविज्ञान की इस छात्रा ने क्या अच्छी तरह विचार कर लिया है?”
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“कर ही लिया होगा, तभी तो.”
वह थोड़ा हंसकर ही रह गया. खाना खाकर वह अपने कमरे में आया और पत्र पढ़ने लगा, ‘कुछ दिन पहले मैंने आपको एक चैनल के कार्यक्रम में देखा. आप हॉट सीट पर थे. विषय था- चाइल्ड एब्यूसमेंट. आपने कुछ बातें संकेत और बिंब में बताईं, कुछ अंग्रेज़ी में. यह आपको सरल और सुविधाजनक लगा होगा, क्योंकि इस विषय में किस भाषा-परिभाषा में संवाद किया जाए, यह बड़ी समस्या है. कार्यक्रम को देखकर मुझे लगा आपके जिस सच को सुनकर मैं आपको विचित्र मान बैठी थी, वस्तुतः वह आपकी नैतिकता और ईमानदारी है. तभी तो आपने चीज़ें स्पष्ट कर दीं. यदि आपने मेरे बारे में बुरी राय न बना ली हो, तो प्रस्तुत हूं- लहर.’ उस ख़ामोश घर में वह पत्र ताज़ा ख़बर की तरह दाख़िल हुआ. यद्यपि निर्गुण ने अनुत्तेजित भाव से पत्र तकिये के नीचे रख दिया और आंखें मूंद लीं.
वह कार्यक्रम में भाग लेने की मानसिकता नहीं बना पा रहा था. यौन को जिस तरह गोपनीय, वर्जित बनाकर रखा गया है, उसे देखते हुए वह साहस नहीं कर पा रहा था. फिर साहस किया, शायद किसी पीड़ित को उससे हौसला मिले.
ऐंकर पूछ रही थी, “कुछ याद है, जब तुम्हारे साथ यह सब हुआ, तुम कितने साल के थे?”
“नौ या दस.”
“…और यह सब तुम्हारे साथ मौसा ने किया.”
“हां. मौसी-मौसा ने मुझे गोद लिया था.”
“दत्तक पुत्र के साथ? बाप रे…! कैसा महसूस किया था तब?”
“वह अस्त-व्यस्त कर देनेवाला अनुभव था. इस तरह का उत्पीड़न बौद्धिक,
मानसिक शारीरिक, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक प्रत्येक स्तर पर असर डालता है. यह असहनीय है.”
“तुमने अपनी समस्या किसी को बताई थी?”
“बहुत दिनों तक नहीं. मैं मौसा से बहुत डरता था. पर एक दिन मौसी ने ख़ुद ही
देख लिया.”
“कभी भूल सकोगे?”
“कुछ ज़ख्म ऐसे होते हैं, जो कभी नहीं भरते.”
“विवाह को लेकर क्या सोचते हो?”
“मौसी की इच्छा है कि अब मेरा विवाह हो जाना चाहिए, पर सच जानने के बाद लड़कीवाले चुप्पी साध लेते हैं.”
“यहां पर बैठी कितनी लड़कियां हैं, जो निर्गुण और निर्गुण जैसे लड़कों से शादी
करना चाहेंगी?”
एक भी हाथ नहीं उठा.
निर्गुण हंसा. “यही होता है. किसी के प्रति दया या सहानुभूति रखी जा सकती है. सहयोग नहीं मिलता.”
वे दृश्य… वे कुछ दृश्य फिर कभी धुंधले नहीं हुए. दृश्य उतने भरे नहीं
होते, जितने दिखते हैं. उनके भीतर का विस्तार चौंकानेवाला होता है. वे कुछ घटनाएं… ऐसी होती हैं, जो पूरी ज़िंदगी का फैसला कर देती हैं और ज़िंदगी हमेशा के लिए बदल जाती है. वह चेहरा… चेहरा मौसा का था, अब हर किसी का चेहरा बन जाता है और निर्गुण हतप्रभ हो जाता है. वह मज़बूत पकड़… वह ज़बरदस्त पकड़ थी, जिससे वह आज भी नहीं छूट पाया है. उसकी बदलती-बिगड़ती ज़िंदगी… ज़िंदगी से जब-जब उसका सामना हुआ, हर बार अलग अर्थ, रहस्य भिन्नता और अनिश्चितता के साथ मिली.
इस आलीशान घर, जो कि बर्बर घर में तब्दील हो गया, में रहना कुटुंब के सभी बच्चों का सपना था. निःसंतान गंगा मौसी की बहनें और ननदें समय-समय पर अपने बच्चों को मौसी के घर रहने के लिए भेजा करती थीं कि मौसी का उनके बच्चे से लगाव विकसित हो और वे उसे गोद ले लें.
सुषमा मुनीन्द्र
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