कहानी- किसी से जुड़कर 2 (Story Series- Kisi Se Judkar 2)

एक रात मौसा बिल्कुल बदले हुए रूप में थे. उनकी आंखों में मुग्धता थी, हाथों में मज़बूत पकड़ थी, उसका रोना उन पर असर न डाल रहा था, उसके दर्द की अनसुनी ध्वनियां वायुमंडल में अब भी कहीं होंगी. मौसा धीरे से बोले थे, “निर्गुण, तुम मुझे राक्षस समझ रहे होगे, पर मैं राक्षस नहीं हूं. यह सब सभी बच्चों के साथ होता है, पर वे किसी से बताते नहीं हैं. बता देने से मां-बाप तुरंत मर जाते हैं.” वह उसके बचपन पर हमला था. उस दिन से वह एक बड़े शून्य में बदलने लगा.

जीत निर्गुण की हुई. वह गौरव के साथ उस आलीशान घर में स्थापित हुआ. उसे पता नहीं क्या-क्या होता था. उसे मोटे तौर पर याद है, आरंभिक अरुचि के बाद मौसा उससे अनुराग रखने लगे थे. उस अनुराग पर वह संदेह क्या करता, जब मौसी ही न कर पाई. और एक दिन यह अनुराग कठिन खेल में बदल गया. नानाजी बीमार थे. मौसी उन्हें देखने चली गई. परीक्षा के कारण वह न जा सका… एक रात मौसा बिल्कुल बदले हुए रूप में थे. उनकी आंखों में मुग्धता थी, हाथों में मज़बूत पकड़ थी, उसका रोना उन पर असर न डाल रहा था, उसके दर्द की अनसुनी ध्वनियां वायुमंडल में अब भी कहीं होंगी. मौसा धीरे से बोले थे, “निर्गुण, तुम मुझे राक्षस समझ रहे होगे, पर मैं राक्षस नहीं हूं. यह सब सभी बच्चों के साथ होता है, पर वे किसी से बताते नहीं हैं. बता देने से मां-बाप तुरंत मर जाते हैं.”

वह उसके बचपन पर हमला था. उस दिन से वह एक बड़े शून्य में बदलने लगा. बचपन की मासूमियत, मस्ती, मोहकता ख़त्म हो गई. हृदय खाली हो गया, कभी न भरने के लिए. वापस आई मौसी ने मौसा को उलाहना दिया, “निर्गुण कुंभला गया है, तुमने इसका ध्यान नहीं रखा.” मौसा हंसे, “रोज़ होटल से इसकी पसंद का खाना लाता था. पूछ लो.”

मौसी आश्‍वस्त हो गई, पर वह कभी आश्‍वस्त न हो सका. हरदम डरा हुआ होता. बिस्तर गीला कर देता. इसी बीच उसे दस्त लग गए. गंदा बिस्तर देख मौसी खीझ गई, “निर्गुण, क्या हो गया है तुम्हें? बिस्तर भी गीला कर देते हो और आज बिस्तर में दस्त? इतने बड़े हो गए हो?”

मौसा बीच में कूद पड़े, “इतना बड़ा भी नहीं हो गया है. नींद में दस्त छूट गया होगा. यह परेशान है. इससे सहानुभूति रखो.”

“हां, पर अचानक क्या हो गया है? बेटा, तुम्हें मेरे पास अच्छा नहीं लगता क्या?”

“गंगा, बच्चे से सहानुभूति रखो. परेशान है.”

निर्गुण सचमुच परेशान था. मौसी उसकी याचना को पहचानती क्यों नहीं? लेकिन मौसी ऐसे किसी संदर्भ के बारे में सोच तक नहीं सकती थी. रिश्तों में इस तरह की भूल, भ्रम, अज्ञानता, असावधानी, अति विश्‍वास पनप जाता है, कथित संस्कारशील घरों में शोषण निर्बाध रूप से जारी रहता है. प्रत्येक पुनरावृत्ति पर निर्गुण का हृदय भर आता- भगवान, नरसिंह की तरह किसी खंभे से निकलकर मौसा को दो फाड़ कर दो. कई बार सोचा चुपचाप अपनी मां के पास चला जाए, पर नहीं जानता था किस बस में बैठकर जाए. कारण क्या बताए? अब उसे लगता है कि वह तय नहीं कर पाता था, क्या करना चाहिए. यह बात बताएगा, तो मां-बाप मर जाएंगे, यह भ्रम इतना प्रभावी था कि जब छुट्टियों में मां के पास गया, तब भी कुछ न बता पाया. बस, इतना कहा, “मां मैं यही रहूं?”

यह भी पढ़े: समझें बच्चों की ख़ामोशी की भाषा (Understanding Children’s Language Of Silence)

मां ने पुचकारा, “वहां अच्छा नहीं लगता? बेटा, तुम भाग्यवान हो, जो ग़रीब घर से उस अच्छे घर में चले गए. अपने बाबू को देखते तो हो, कभी इधर काम ढूंढ़ते हैं, कभी उधर. मेरी क़िस्मत में गंगा की तरह सुख नहीं है. बेटा, तुम बड़े हो गए हो, तुम्हें समझदारी सीखनी होगी. अपने कुछ कपड़े अपने छोटे भाई को दे जाना. मौसी तुम्हें नए ख़रीद देगी.”

चूंकि वह तीन भाई-बहनों में सबसे बड़ा था, अतः उसे छोटी उम्र में ही बोध कराया जाने लगा था कि वह बड़ा है. अब उसे लगता है कि उसने बचपन ठीक से जीया ही नहीं. उसकी नादानियां कभी माफ़ हुई ही नहीं, क्योंकि वह घर का बड़ा बच्चा था. मौसा उसे लेने आ गए. छोटे भाई व बहन के लिए कपड़े और मिठाई लाए थे. इसी कारण मौसा का जादू सभी पर चल जाता था. उसे वापस भेजते हुए अम्मा-बाबू बहुत प्रसन्न थे.

वह फिर बर्बर घर में था. डरा हुआ. मौसा उसे घेरते, वह दूर भागता. बात करते, वह जवाब न देता. मौसी को लगता अनादर कर रहा है, “निर्गुण, मौसाजी कुछ पूछ रहे हैं.”

मौसा हंसते, “गंगा, बात को तूल न दिया करो. बच्चे ऐसे ही होते हैं. इसे स्वाभाविक भाव में रहने दो.”

आज सोचता है, सब कुछ अस्वाभाविक बनाकर मौसा किस स्वाभाविक भाव की बात करते थे? मौसा ने ऐसा क्यों किया? कौन-सी कुंठा, अतृप्ति, विकार, प्रतिरोध

रहा जो…?

उसका चित्त अशांत रहने लगा. अंक कम आने लगे. वह मौसी के साथ बैठकर मूवी देख रहा था. मौसी फिल्मों की शौक़ीन थीं. कैसेट मंगाकर देखा करती थीं. रेप सीन था. निर्गुण भय और घबराहट से कांपने लगा.

“मौसी यह सब तो बच्चों के साथ…”

मौसी ने वीसीआर बंद कर दिया, “निर्गुण तुम पागल हो.”

“मैं जानता हूं न.”

“लगता है गंदे लड़कों की सोहबत में पड़ गए हो. यह सब बच्चों के साथ नहीं, लड़कियों के… अच्छा जाओ यहां से. बच्चे मूवी नहीं देखते.” मौसी क्रुद्ध हो गईं.

निर्गुण की परेशानी बढ़ गई. मौसी क्या ठीक कहती हैं? किससे पूछे? उसे अपने मित्र विराम की याद आई. विराम दो साल बड़ा था और बहुत अधिक जानकारी रखता था.

  सुषमा मुनीन्द्र

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