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कहानी- किटी पार्टी 2 (Story Series- Kitty Party 2)

 

“उन्हें ख़ुदगर्ज बनाता कौन है...” अनुभा के इस प्रश्न पर सब एक पल को स्तब्ध रह गए... एक पल मौन के बाद उसने फिर प्रश्न किया, “लड़कियां कोमल मनवाली होती हैं ये सर्वविदित है. पर उनका कोमल मन कोमल सिर्फ़ अपने माता-पिता के लिए ही रहता है या अपने पति के माता-पिता के लिए भी रहता है?” इन अवांक्षित प्रश्नों पर सबको चुप देखकर वह व्यंग्यभरी मुस्कान के साथ बोली, “अरे, तुम लोग सीरियस क्यों हो गई. प्रश्न मन में उठा, तो लगा पूछना चाहिए.”

      ... “गिरीश राज़ी है... मतलब उसे पता है कि आंटी...” अरुणिमा के अधूरे वाक्य में छिपे प्रश्न को पहचानकर वह धीमे से बोली, “आनाकानी कर रहा था, पर मैंने मम्मी को बुलाकर ही दम लिया. साफ़-साफ़ बोल दिया था गिरीश से कि घर छोड़ दूंगी, पर जन्म देनेवाली मां को नहीं छोडूंगी. बस आ गया रास्ते पर...” भावुक हो आई कल्पना को देख सब भावुक हो गए. माहौल में गंभीरता छा गई. “सच में बेटियां ईश्वर की रहमत होती है.” सुधा ने कहा, तो सुनीता झट बोल पड़ी, “और क्या, कोई अपनी मां को छोड़ता है क्या... जो संवेदनशीलता लड़कियों में पाई जाती है लड़कों में दूर-दूर तक नहीं मिलती... संवेदनहीन होते है लड़के...” अरुणिमा ने भी हां में हां मिलाई... “सच में यार, मां-बाप तकलीफ़ में हो, तो झट दौड़ पड़ती है बेटियां... वहीं बेटे देखो, ख़ुदगर्ज़ कहीं के...”   यह भी पढ़ें: रिश्ते संभालने हैं, तो इन 5 चीज़ों से संभलकर रहें! (5 Steps To Save Your Relationship)   “उन्हें ख़ुदगर्ज बनाता कौन है...” अनुभा के इस प्रश्न पर सब एक पल को स्तब्ध रह गए... एक पल मौन के बाद उसने फिर प्रश्न किया, “लड़कियां कोमल मनवाली होती हैं ये सर्वविदित है. पर उनका कोमल मन कोमल सिर्फ़ अपने माता-पिता के लिए ही रहता है या अपने पति के माता-पिता के लिए भी रहता है?” इन अवांक्षित प्रश्नों पर सबको चुप देखकर वह व्यंग्यभरी मुस्कान के साथ बोली, “अरे, तुम लोग सीरियस क्यों हो गई. प्रश्न मन में उठा, तो लगा पूछना चाहिए.” “देख भई, सीधी-सी बात है कि मां, मां ही होती है... अब मां की जगह सास को तो नहीं दे सकते...” सुनीता की तल्ख़ी पर अनुभा ने भी व्यंग्यबाण छोड़े. “यानी लड़कियां बेटी के रूप में ही कोमल हृदया होती हैं, बहू रूप में नहीं...” “अरे, आज लड़कों के पक्ष में झंडा क्यों उठा लिया तुमने. अब छोड़ो ये फ़ालतू बातें... पार्टी एंजाॅय करो. सुधा ने कितना बढ़िया खाना बनाया है. अभी ताश के तीन राउंड है और हां, सुनीता को अपनी सास के ख़िलाफ़ भड़ास भी तो निकालनी है...” अंतिम शब्द कहते-कहते अरुणिमा ने अपनी जुबान दांतों तले दबा ली.   यह भी पढ़ें: लॉकडाउन- संयुक्त परिवार में रहने के फ़ायदे… (Lockdown- Advantages Of Living In A Joint Family)   सुनीता अनुभा की बातों से अभी भी भरी बैठी थी, सो बोले बिना न रह पाई... “बेटियां बहुएं बनकर परिस्थितियों के चलते बदलती हैं. मुझे ही देख लो, मम्मी-पापा ने कितने लाड़ से मुझे पाला. घर के कामों से मुझे कोई मतलब नहीं होता था... ऑफिस जाती थी, तो मां टिफिन पकड़ा देती थी. घर आती थी, तो चाय की प्याली..."

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें...

मीनू त्रिपाठी       अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES

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