‘‘पापा, आपको अपनी पत्नी की इज़्ज़त प्यारी हो या न हो, किंतु मुझे अपनी मां से बहुत प्यार है. आपकी शै पाकर कभी नायशा ने मम्मी के लिए कुछ कह दिया, तो मैं बर्दाश्त नहीं करुंगा. इसलिए अच्छा यही होगा कि आप अपनी इस आदत को सुधार लें.’’ तब से इनके व्यवहार में कुछ बदलाव अवश्य आ गया, किंतु वह स्नेह और निकटता मैंने इनके साथ कभी महसूस नहीं की, जो पति-पत्नी को एक-दूसरे का पूरक बनाते हैं.
… घरवाले हों अथवा बाहरवाले, सबके समक्ष मुझे नीचा दिखाकर इन्हें आत्मसंतुष्टि मिलती थी. आज भी उस रात की स्मृति मेरे दिलोदिमाग़ में संचित है. रजत के जन्म के समय प्रसव पीड़ा के दौरान मुझे हाॅस्पिटल में एडमिट किया गया था. अनुराग मुझसे यह कहकर कि मां को घर छोड़कर अभी आता हूं सारी रात नहीं आए थे. उस रात्रि की तपिश आज भी मेरे मन को जलाती है. आंखों से बह रहे आंसुओं में प्रसव की पीड़ा, बेटे के जन्म की ख़ुशी और एक पति की उपेक्षा सभी कुछ समाहित था.
सुबह को जब वह आए, तो कितनी सहजता से बोले थे, ‘‘साॅरी यार, थकान इतनी थी कि घर जाते ही नींद आ गई.’’ उस समय मेरा हृदय छलनी हो गया था. क्या यही होता है पति का फर्ज़, पति का प्यार…
पहले आन्या और फिर रजत के जन्म के पश्चात मैंने स्वयं को बच्चों की परवरिश में व्यस्त कर लिया. धीरे-धीरे हमारे रिश्तों में ठंडापन बढ़ता गया. मेरे रीते मन में वेदनाओं का बवंडर तब और उठने लगा, जब अनुराग का एक के बाद एक कई स्त्रियों के साथ नाम जुड़ा. दबे शब्दों में एक अर्थहीन-सा विरोध किया था मैंने और फिर हमेशा की तरह रोकर इस पीड़ा को हृदय की गहराइयों में दफ़न कर लिया. यहां तक कि कभी अपने बच्चों के सम्मुख भी ज़ाहिर नहीं होने दिया.
समय के साथ बच्चे बड़े हुए. आन्या डाॅक्टर और रजत इंजीनियर बन गया. दोनों के विवाह हुए. नायशा बहू बनकर घर में आई. कदाचित अनुराग के मन में बहू की नज़रों में अच्छा बने रहने का भाव रहा हो, इसीलिए हर बात में उसकी प्रशंसा और मेरा मखौल उड़ाना एक दिन रजत को क्रोधित कर गया. नायशा की अनुपस्थिति में उसने कहा था, ‘‘पापा, आपको अपनी पत्नी की इज़्ज़त प्यारी हो या न हो, किंतु मुझे अपनी मां से बहुत प्यार है. आपकी शै पाकर कभी नायशा ने मम्मी के लिए कुछ कह दिया, तो मैं बर्दाश्त नहीं करुंगा. इसलिए अच्छा यही होगा कि आप अपनी इस आदत को सुधार लें.’’ तब से इनके व्यवहार में कुछ बदलाव अवश्य आ गया, किंतु वह स्नेह और निकटता मैंने इनके साथ कभी महसूस नहीं की, जो पति-पत्नी को एक-दूसरे का पूरक बनाते हैं.
और अब इतने वर्ष बीत जाने पर चलाचली की इस बेला में अनुराग अपनेपन का एहसास मुझे क्यों दिलाना चाहते हैं. क्या वह नहीं जानते कि तपते रेगिस्तान पर कुछ ठंडी फुहारों का असर कभी नहीं होता. मन में न जाने कितने शिकवे-शिकायतों का अंघड़ जंगल-सा उगा हुआ है, जिसके नुकीले दंश हरदम मेरे हृदय को लहूलुहान किए रहते हैं. इसी अंघड़ जंगल में भटकते-भटकते मुझे पिछले दिन की घटना याद आ रही है.
मेरा दर्द भुलाने के लिए रजत मुझे पुरानी एलबम दिखा रहा था. कुतुबमीनार के प्रांगण में एक अमेरिकन जोड़े स्टेसी और राबर्ट से मुलाक़ात हुई थी. उनके कहने पर हमने उन्हें एयरपोर्ट तक की लिफ्ट दी थी…
अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें…
रेनू मंडल
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