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कहानी- पतंग 1 (Story Series- Patang 1)

दहलीज़ पर क़दम रखते ही गुलाबों की पंखुड़ियों की वर्षा के साथ जन्मदिन मुबारक का संगीत सुनाई दिया और एक सुवासित माधुर्य उसके रोम-रोम में समाता चला गया. निवेदन एकटक खड़ा होकर उसे निहार रहा था. उंगली में आकाश की पहनाई अंगूठी अभी उसके हाथों के मादक स्पर्श से मुक्त नहीं हो पाई थी और मन अभी आकाश की बांहों के घेरे से बाहर नहीं निकला था. अभी निवेदन आगे बढ़कर उसे बांहों में भर लेगा और वो... नहीं, आज तो उसे सब कुछ बताना ही है. बस, तीन घंटे ही हैं उसके पास. निपुणा घर पहुंची, तो घर देखकर दंग रह गई. ऑफिस में गुज़ारे इतने मधुसिक्त दिन की ख़ुमारी एक पल में काफूर हो गई. वो तो भूल ही गई थी कि कोई घर पर उसका इंतज़ार कर रहा होगा, पर निवेदन कैसे भूल सकता था, जो आज तक निपुणा को ख़ुश कर सकने का कोई भी अवसर नहीं भूला. उसने सारी सज्जा पर नज़र दौड़ाई. एकदम उसकी अभिरुचि के अनुरूप था सब कुछ. नहीं, ये निवेदन नहीं कर सकता. उसके पास तो इतना दिमाग़ भी नहीं था, जो उसकी अभिरुचि को समझ पाए... पर अब? अब तो वो सब कुछ कह सकना और भी कठिन हो गया था, जो उसे कहना था. उ़फ्! कहां लेकर जाएगी उसे उसके गुस्ताख़ दिल की गुस्ताख़ियां? दहलीज़ पर क़दम रखते ही गुलाबों की पंखुड़ियों की वर्षा के साथ जन्मदिन मुबारक का संगीत सुनाई दिया और एक सुवासित माधुर्य उसके रोम-रोम में समाता चला गया. निवेदन एकटक खड़ा होकर उसे निहार रहा था. उंगली में आकाश की पहनाई अंगूठी अभी उसके हाथों के मादक स्पर्श से मुक्त नहीं हो पाई थी और मन अभी आकाश की बांहों के घेरे से बाहर नहीं निकला था. अभी निवेदन आगे बढ़कर उसे बांहों में भर लेगा और वो... नहीं, आज तो उसे सब कुछ बताना ही है. बस, तीन घंटे ही हैं उसके पास. बिना बताए वो बैंगलुरू नहीं जा सकती. बैंगलुरू जाने की बात उठाई थी, तो निवेदन ने हमेशा की तरह स्वागत ही किया था उसकी उड़ान का. ‘तू घर और बच्चों की ओर से बिल्कुल निश्‍चिंत रह, छुट्टियों में तो आते-जाते रहेंगे ही.’ सारी तैयारियां निवेदन ने ही की थी. ख़ुद आकाश से फोन करके कहा था कि बैंगलुरू में वो अकेली होगी, तो उसका ध्यान रखे. ये सब सुनकर कैसे कहती कि... मधुर संगीत और ख़ूबसूरत सज्जा के साथ कैंडल लाइट डिनर के दौरान क़रीब बीसवीं बार निपुणा के होंठ हिले और शब्दों की कायरता पर खीझकर बंद हो गए, तभी ध्यान घड़ी की ओर गया. बस, आधा घंटा और? कैब आने का समय हो ही गया. कैसे शुरू करे बात? कैसे बताए कि उसे प्यार हो गया है? बंध गया है उसका पत्थर कहलाया जानेवाला मन? वो भी इस उम्र में? एक पराए मर्द से? बचपन से कोई उसे चलता-फिरता पुस्तकालय कहता आया है, तो कोई किताबी कीड़ा. कोई पत्थर, तो कोई कंप्यूटर. हां, मगर आकाश को भी तो सब इन्हीं नामों से बुलाते हैं, तो क्या उस रोमांटिक फिल्म में ठीक ही कहा गया था कि दुनिया में कोई न कोई बंदा तो ऐसा होता है, जो बिल्कुल हमारी तरह होता है और जब वो हमारी ज़िंदगी में आता है, तो दिल के बंद दरवाज़े ख़ुद-ब-ख़ुद खुल जाते हैं. मगर उसमें तो ये भी कहा गया था कि वो हमारे लिए बना होता है, पर हम दोनों तो... पर नहीं, निवेदन के ज़िद्दी अनुरोध पर ऐसी फिल्में देखते हुए वो ऐसी बातों को बचपना कहती रही. फिर आज कैसे? यह भी पढ़ें: लघु उद्योग- चॉकलेट मेकिंग- छोटा इन्वेस्टमेंट बड़ा फायदा (Small Scale Industry- Chocolate Making- Small Investment Big Returns) सारे विकल्प उसके सामने रख दिए थे आकाश ने, पर किसी भी राह जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी वो. निवेदन से तलाक़ मांगने की बात शुरू करते ही ज़ुबान पर ताला लग जाता था और बैंगलुरू का प्रोजेक्ट लेने का मतलब... आकाश का इशारा स्पष्ट था, ‘एक साल की अवधि है प्रोजेक्ट की. उसके लिए बच्चों की पढ़ाई छुड़ाकर वहां शिफ्ट होने की बात तो व्यावहारिक है नहीं. तो निवेदन यहीं रहेगा. तुम वीकेंड्स पर आती रहना. वहां हमको कंपनी की ओर से एक ही गेस्ट हाउस में कमरे मिलेंगे. पूरा समय और एकांत...’ नहीं... निपुणा के संस्कार उसे इसकी इजाज़त नहीं देते. तलाक़ मांगने के लिए तो ज़िद्दी दिल ने मना लिया था, पर धोखा देने के लिए नहीं. उसने सिहरकर एक लंबी सांस छोड़ी. काश! आकाश उसे पहले मिला होता और तब नहीं मिला था, तो अब भी न मिलता. अच्छे ख़ासे जीवन में ये कौन-सी ख़लिश पाल ली है उसने. दिमाग़ कहो या संस्कार, उसे इस रिश्ते में आगे बढ़ने नहीं देते और दिल वापस लौटने नहीं देता. वो उस पतंग की तरह हो गई थी, जो ललचाई निगाहों से आकाश ताकती हुई अपनी डोर से टूटकर उसकी ऊंचाइयों में खो जाने के लिए फड़फड़ाती लहूलुहान हुई जाती थी, मगर मांझे को तोड़ना... निवेदन जैसे चाहनेवाले पति से ये कहना कि वो किसी और को चाहने लगी है. कैसे? तभी उसका ध्यान गया कि निवेदन आज अपने स्वभाव के विपरीत ख़ामोश था. बस, उसे देखकर मुस्कुरा रहा था. निगाहें कुछ देर पर दरवाज़े की ओर चली जाती थीं. इतना ख़ामोश तो वो बचपन से आज तक कभी नहीं रहा. आख़िर बात निपुणा को ही शुरू करनी पड़ी, “किसी का इंतज़ार है क्या?” “हां, तुम्हारे लिए एक उपहार मंगाया है. दावा है कि इस बार तुम्हें ज़रूर पसंद आएगा. तुम उसे बचकाना नहीं कह पाओगी. बहुत सोच-समझकर तैयार कराया है.” उफ़्! इसकी ये सोच और ये समझ. निपुणा अपनी झल्लाहट चेहरे पर आने से रोकने के लिए मेहनत कर ही रही थी कि निवेदन का मोबाइल बज उठा. bhavana prakash भावना प्रकाश

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